Attila

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Attila (b.?-r.434–d.453), frequently referred to as Attila the Hun, was the ruler of the Huns from 434 until his death in March 453. Attila was a leader of the Hunnic Empire, which stretched from the Ural River to the Rhine River and from the Danube River to the Baltic Sea.

Attila's Empire

During his reign, he was one of the most feared enemies of the Western and Eastern Roman Empires. He crossed the Danube twice and plundered the Balkans, but was unable to take Constantinople. His unsuccessful campaign in Persia was followed in 441 by an invasion of the Eastern Roman Empire, the success of which emboldened Attila to invade the West.[1] He also attempted to conquer Roman Gaul (modern France), crossing the Rhine in 451 and marching as far as Aurelianum (Orléans) before being defeated at the Battle of the Catalaunian Plains.

Subsequently he invaded Italy, devastating the northern provinces, but was unable to take Rome. He planned for further campaigns against the Romans but died in 453.

Appearance and character

While there is no surviving first-hand account of Attila's appearance, there is a possible second-hand source, provided by Jordanes, who cites a description given by Priscus.[1][2]

Short of stature, with a broad chest and a large head; his eyes were small, his beard thin and sprinkled with grey; and he had a flat nose and tanned skin, showing evidence of his origin.

Some modern scholars have suggested that this description is typically East Asian, because it has all the features that fits the physical type of people from Eastern Asia, and that Attila's ancestors may have come from there.[3][4]

Etymology

The origin of the name "Attila" is unclear. Menander used the term Attila as the name of the Volga River.[5] Pritsak considers it to mean "universal ruler" in a Turkic language related to Danube Bulgarian. [6]

The turkologist Otto J. Maenchen-Helfen rejects a Turkic etymology, and suggests an East Germanic origin: "Attila is formed from Gothic or Gepidic atta, "father", by means of the diminutive suffix -ila." He finds Pritsak's etymology "ingenious but for many reasons unacceptable". However, he suggests that these names were not the true names of the Hun princes and lords. What we have are Hunnic names in Germanic dress, modified to fit the Gothic tongue, or popular Gothic etymologies, or both. Mikkola thought Attila might go back to Turkish atlïg, "famous"; Poucha finds in it Tokharian atär, "hero." The first etymology is too farfetched to be taken seriously, the second is nonsense.[7]

The name of Attila's brother Bleda is also of Germanic origin. [8] Judging by a hypothetical Germanic etymology of Attila's name and the status of Gothic and the lingua franca at his court, historian Peter Heather states that the possibility of Attila being of Germanic ancestry cannot be ruled out.[9]

Jat clans

  • Antil (अंतिल) - need to research if there is any relation of Attila with Antil Jat clan ?

Variants

The name has many variants in modern languages: Atli and Atle in Norse, Attila/Atilla/Etele in Hungarian (Attila is the most popular), Etzel in German (Nibelungenlied), Attila, Atilla, Atilay or Atila in Turkish, and Adil and Edil in Kazakh or Adil ("same/similar") or Edil ("to use") in Mongolian.

विजेता जाट अत्तीला (Attila)

अत्तीला सीथियन जाट नेता बालामीर का वंशज था जिसने कैस्पियन सागर के उत्तर से बढ़कर डैन्यूब नदी तथा उससे भी पार तक कई देशों पर विजय प्राप्त की थी। अत्तीला जाटों की उसी शाखा से सम्बन्धित था जिससे इण्डोसीथियन थे। इसके पिता का नाम मुञ्जक था। यूरोप में विजयी अत्तीला का चरित्र अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रहा है।

उसका राज्य डैन्यूब नदी के पूर्व में मैदानी क्षेत्र पर था। उसने यूरोप तथा एशिया दोनों में अपने राज्य का बहुत विस्तार किया। उसने चीनी सम्राट् के साथ समान शर्तों पर समझौता किया। उसने रेवेन्ना तथा कांस्टेंटीपल को 10 वर्ष तक भयभीत रखा।

पूर्वी रोमन सम्राट् थियोडोसियस द्वितीय की पोती हांनारिया को, दरबार के एक कर्मचारी पर मोहित होने के कारण बन्दी बनाया गया था। उस लड़की ने निराश होकर अपनी अंगूठी अत्तीला को भेजी तथा अपने को मुक्त कराने और पति बनने की प्रार्थना की। अत्तीला तुरन्त दक्षिण की ओर बढ़ा और कांस्टेंटीपल के निकट पहुंच गया। इतिहासज्ञ गिब्बन के अनुसार उसने अपनी सफलता में 70 नगर नष्ट कर दिए। रोमन सम्राट् ने उससे बहुमूल्य शान्ति-सन्धि करनी पड़ी। अत्तीला हांनारिया को अपनी दुल्हन समझता रहा। उसने अगले आक्रमण के लिये बहाने के रूप में उस सम्बन्ध को कायम रखा। सम्राट् को एक और सन्धि करने के लिये विवश कर दिया गया। अतः सम्राट् थियोडोसियस ने अपनी पौती हांनारिया का डोला अत्तीला को दे दिया।

सम्राट् ने अत्तीला के कैम्प में अपना एक राजदूत भेजा जिसके साथ एक साहित्यकार प्रिस्कस भी गया। उसने अत्तीला के कैम्प में जो कुछ देखा उसका एक विस्तृत विवरण लिखा। वह लिखता है कि “अत्तीला शराब के स्थान पर मधुपानीय, अनाज के प्रति बाजरा तथा शुद्ध पानी या जौ के पानी का सेवन करता था। (यह अत्यन्त रोचक है कि हरयाणाराजस्थान के जाटों का प्रिय भोजन बाजरा है)। उसकी राजधानी एक बहुत विस्तृत कैम्प के रूप में थी। उसमें रोमन नमूने का एक स्नानघर तथा पत्थर की बनी हुई एक कोठी थी। अधिकतर लोग


1. आधार लेख अनटिक्विटी ऑफ जाट रेस, पृ० 54 से 62, लेखक उजागरसिंह माहिल।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-393


झोंपड़ियों तथा तम्बुओं में रहते थे। अत्तीला तथा उसके प्रमुख नेता अपनी पत्नियों एवं मन्त्रियों के साथ लकड़ी के महलों में रहते थे। लूटी हुई वस्तुओं का बहुत बड़ा दिखावा था। किन्तु अत्तीला एक जाट की तरह ही बहुत साधारण जीवन व्यतीत करता था। वह लकड़ी के प्यालों तथा थालों में भोजन करता था। वह बड़ा परिश्रमी था। अपने महल के द्वार पर दरबार लगाता था तथा साधारण गद्दी पर बैठता था।”

451 ई० में अत्तीला ने पश्चिमी साम्राज्य पर धावा बोल दिया। उसने गॉल (फ्रांस) पर आक्रमण करके वहां के बहुत से नगरों तथा सुदूर दक्षिण में आर्लिअंज (Orleans) तक लूटमार की। फ्रैंक्स उसे हराने के लिये बहुत कमजोर थे किन्तु वीसी गोथ (पश्चिमी गोथ) कहलाने वाले जाटों की एक और शाखा फ्रैंक्स लोगों से मिल गई। 451 ई० में चालोञ्ज़ के स्थान पर एक भयंकर युद्ध हुआ जिसमें दोनों ओर से 1,50,000 आदमी मारे गये। यूरोप में अत्तीला को यह पहली पराजय मिली क्योंकि उसके विरुद्ध प्राचीन जाट विजेताओं की एक शाखा शत्रु की ओर मिलकर लड़ रही थी। इस हार से वह निराश नहीं हुआ। उसने अपना ध्यान दक्षिण की ओर दिया और उत्तरी इटली पर आक्रमण कर दिया। अक्वीला एवं पाडुआ को जला दिया तथा मिलान को उसने लूट लिया। यहां पोपलियो ने उसे अग्रिम आक्रमणों से रोका। चमत्कारिक अत्तीला ने ईसाइयों के मुख्य पादरी की प्रार्थना पर शान्ति स्थापित कर ली। उस साहसी वीर योद्धा की सन् 453 ई० में मृत्यु हो गई। उसका साम्राज्य कैस्पियन सागर से राइन नदी (पश्चिमी जर्मनी में) तक फैला हुआ था1

जाट इतिहास पृ० 186 पर ठा० देशराज ने लिखा है कि “रोमन सम्राट् थियोडोसियस जाटों से बहुत भयभीत था, अतः उसने लड़की हांनारिया की शादी अत्तीला से कर दी। इस तरह से जाट और रोमन लोगों का रक्त सम्बन्ध स्थापित हो गया। इस लड़की की सलाह के अनुसार जाटों ने इटली से बाहर स्पेन और गॉल के बीच में अपना साम्राज्य स्थापित किया जो 300 वर्ष तक कायम रहा। सन् 446 ई० में हूण लोग रोम का ध्वंस करते हुए गॉल में प्रवेश कर गए। वहां पर रोमनों व गाथों (जाटों) ने मिलकर हूणों को हरा दिया।”

अत्तीला के मरने के बाद उसके साम्राज्य को उसके तीन पुत्रों अल्लाक, हरनाम तथा देंघिसक में बराबर-बराबर बांट दिया। इस बंटवारे के समय अन्य दो निकट सम्बन्धी उजीन्दर व एमनेद्ज़र ने अपने अधिकार की मांग की। इसलिये अन्त में उस साम्राज्य को पांच भागों में बांटा गया। पिता की सम्पत्ति या साम्राज्य को उसके पुत्रों में विभाजन का यह तरीका प्राचीन आर्य रीति के अनुसार है जो कि जाट समाज में आज भी प्रचलित है।

इसी प्रकार बलवंशियों का राजा कुबरत जिसने 630 ई० में रोमन सम्राट् हरकलीन्ज से सन्धि की थी, के मरने पर उसका राज्य उसके पांच पुत्रों में बराबर-बराबर बांट दिया गया था2

अत्तीला के मरने के बाद कुल्लर और उदर गोत्र के जाटों ने मिलकर रोमन साम्राज्य पर आक्रमण किया तथा (485 ई० से 557 ई०) 72 वर्ष तक लड़े। इनका शासन चलता रहा। बाद में


1. आधार लेख अनटिक्विटी ऑफ जाट रेस, पृ० 54 से 62, लेखक उजागरसिंह माहिल।
2. जाट्स दी ऐन्शेन्ट रूलर्ज पृ० क्रमशः 88, 84, 85, लेखक बी० एस० दहिया।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-394


बलवंशीय जाटों का शासन हुआ जिनके नाम पर बुल्गारिया नाम पड़ा। (J.J. Modi in JBRRAS, 1914, P. 548)1

ये तीनों कुल्लर, उदर, बल वंश के लोग मध्यएशिया से यूरोप को बड़े संघों के रूप में गये। इनके नेता बालामीर (376 ई०), उलदस (400 ई०), रौलस (425 ई०), रूगुल (433 ई०) और अत्तीला (जो कि 453 ई० में मर गया) थे2

सन् 489 ई० में पूर्वी गाथों के सरदार थियोडेरिक (देवदारुक) ने इटली पर आक्रमण किया। 4 वर्ष की निरन्तर लड़ाई के बाद इटली के तत्कालीन सम्राट् ओडोवर ने इटली का आधा राज्य देकर गोथों से सन्धि कर ली। थोड़े ही दिन बाद देवदारुक ने सम्राट् ओडोवर को मरवाकर सारी इटली पर गाथों का अधिकार जमा दिया। इस जाट सम्राट् ने इटली पर 493 ई० से 526 ई० तक 33 वर्ष शासन किया। उसने रोमानों को बड़े-बड़े पदों पर नियुक्त किया। नगर, बाग-बगीचे, सड़कें और नहरों की मरम्मत कराई। कृषि और उद्योग-धन्धों की उन्नति कराई। रोमन लोगों के साथ न्याय व अच्छा व्यवहार किया जिससे वे कहने लग गये कि खेद है “जाट इससे पूर्व ही हमारे यहां क्यों न आये।” उन्होंने जाट राज्य को राम राज्य की संज्ञा दी।

थियोडोरिक जाट सम्राट् की सन् 526 ई० में मृत्यु हो गई जिससे जाटों तथा रोमनों को बड़ा दुख हुआ। उसके बाद सन् 553 ई० तक उसके वंशजों का इटली पर शासन रहा। इसी वर्ष उनके हाथ से रोमन सम्राट् जस्टिनियन ने इटली का राज्य छीन लिया।

यूरोप में एक नया धर्म खड़ा हुआ था जिसका नाम महात्मा यीशु के नाम पर ईसाई धर्म था। इसके सिद्धान्त भी बौद्ध-धर्म से मिलते-जुलते थे तथा एक ईश्वर को ही मानने के थे। इसलिए यूरोप के जाटों पर भी ईसाई धर्म का प्रभाव पड़ने लगा। वे 12वीं सदी तक सबके सब ईसाई हो गये।

सन् 711 ई० में तरीक की अध्यक्षता में मुसलमानों ने स्पेन में जाट लोगों पर चढ़ाई की। उस समय जाटों का नेता रोडरिक (रुद्र) था। वह युद्ध में हार गया और बर्बर अरबों का स्पेन और गॉल (फ्रांस) पर अधिकार हो गया। (जाट इतिहास पृ० 188-189, में ठा० देशराज)

इसके बाद फिर स्पेन पर जाटों का राज्य रहा। इसका प्रमाण यह है। दसवीं शताब्दी में स्पेन के अन्तिम जाट सम्राट् का पौत्र अलवारो था। एक साहित्यिक लेख में उसको स्पष्ट रूप से बहुत ऊँचे स्तर की पुरानी गेटी (जाट) जाति का वंशज बताया गया है। (Journal of Royal Asiatic society, 1954, P. 138)। अलवारो कहता है कि मैं उस जाट जाति का हूं जिसके लिये (1) सिकन्दर महान् ने घोषणा की थी कि जाटों से बचो, (2) जिनसे पाइरस डरा (3) जूलियस सीज़र कांप गया (4) और हमारे अपने स्पेन के सम्राट् जेरोम ने जाटों के विषय में कहा था कि इनके आगे सींग हैं, सो बचकर दूर रहो। (Episola XX, Nigne, Vol 121, Col, 514) बी० एस० दहिया, पृ० 58-59)।

External links

References

  1. Bakker, Marco. "Attila the Hun". Gallery of reconstructed portraits.
  2. Wolfram, Herwig (1997). The Roman Empire and its Germanic Peoples (Hardcover). Dunlap, Thomas (translator) (1st ed.). University of California Press. p. 143. ISBN 978-0-520-08511-4.
  3. The Roman Empire and Its Germanic Peoples. By Herwig Wolfram
  4. The Cambridge History of Early Inner Asia, Volume 1 edited by Denis Sinor
  5. Van Ruysbroeck, Willem (January 1, 1998). The Journey of William of Rubruck to the Eastern Parts of the World, 1253-1255 (Hardcover). Rockhill, William Woodville (translator) (New ed. of 1900 ed.). Asian Educational Services. p. 107. ISBN 978-81-206-1338-6.
  6. Pritsak, Omeljan (December 1982). "The Hunnic Language of the Attila Clan" (PDF). Harvard Ukrainian Studies (Ukrainian Research Institute, Harvard University) VI (4): 428–476. ISSN 0363-5570, p.444
  7. Maenchen-Helfen, Otto (August 1973). The World of the Huns: Studies in Their History and Culture. University of California Press. ISBN 978-0-520-01596-8. p:386–387
  8. Maenchen-Helfen, Otto (August 1973). The World of the Huns: Studies in Their History and Culture. University of California Press. ISBN 978-0-520-01596-8. p:387–388
  9. ruhns, Annette (March 26, 2013). "Die Epoche der Völkerwanderung: Bestien auf zwei Beinen" [The Age of Mass Migration: Beasts on Two Legs]. Spiegel Online: Wissenschaft [Science] (in German). SPIEGELnet GmbH. Archived