Bhupendra Singh Rana

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Bhupendra Singh Rana

Bhupendra Singh Rana (Bamroliya) is a poet from village Ghamuri, Tehsil Gohad, Bhind district in Madhya Pradesh. He is presently Resident of Seondha, District Datia, Madhya Pradesh.

जीवन परिचय

कवि राणा भूपेंद्र सिंह पुत्र श्री जगत सिंह राणा, निवासी सेवड़ा, दतिया, मध्य प्रदेश. आपका जन्म 1 जुलाई 1977 को हुआ. आप सह संयोजक युवा साहित्यकार मंच सेवड़ा हैं.

पता: जाट निवास वार्ड नंबर 3, दुबे मोहल्ला सेवड़ा, जिला दतिया, मध्य प्रदेश

मोबाइल: 9977083614, 7509915787

सम्मान

आपको श्रेष्ठ युवा रचनाकार सम्मान 2015 लखनऊ से सम्मानित किया गया है.

आपकी कुछ कविताएँ नीचे दी गई हैं:

मन की आग

कितनी चीखें गूंज रहीं थी कितनी लाशें मौन थीं।
समझ न पाये गलत इरादे आयी मुशीबत कौन थी।।
छिना सभी का ही कुछ ना कुछ पुलवामा की धरती पर।
मक्कारों औ गद्दारों के शिकन न आयी माथे पर।।
मां से मां का लाल रूठकर चला गया परदेश मे।
कैसा ये भूचाल मचा है अपने पावन देश मे।।
पापा को खोया है कोई कोई खोया भाई को।
इक मां ने बेटा खोया है इक ने खोया जमाई को।।
शांति अमन और चैन शब्द तो बड़े फरेवी हो गये।
अपने घरों मे ही जबसे कुछ खुद आतंकी हो गये।।
शर्म करो अब जाकर चुल्लूभर पानी मे डूब मरो।
यातो बदला लो दम भरकर या दहाड़ना बंद करो।।
वेवा बीवी बेसुध थी अब देख सिसकती चूड़ी को।
पता नही था कुछ भी घर मे उसकी दादी बूढी को।।
पसर गया है मातम अब तो गम का ही माहौल है।
देशवासियो अलख जगाओ तुमको देश का कौल है।।
मै तो लिखता हूं घटनाक्रम पर तुम अब इतिहास लिखो।
बहुत वर्तली एतिहात भई अब तो तुम भी सख्त दिखो।।

राणा भूपेंद्र सिंह-कवि

सेवढ़ा जिला दतिया म.प्र.

जटवारे के जाट भीमसिंह के ठाठ

गोहद के राजा हुये सच मे बहुत महान।
जटवारे की आप थे सच मे ऊंची शान।।
किया तिरेपन वर्ष तक जटवारे पर राज।
गोहद को जो दुर्ग है पहचान बना है आज।।
मददगार सबके रहे किया न कोई भेद।
मगर मराठा ने किया खानी थाली मे छेद।।
नीरपुरा इटायली बनी गढ़ी करवास।
गांव मुढ़ैना पिपाहड़ा है जाटों का वास।।
तौमर और भदौरिया चंबल रही कछार।
पर जाटों ने क्षेत्र मे मानी कभी न हार।।
सन पंद्रह सौ पांच मे हुआ दुर्ग निर्माण।
जीर्णशीर्ण उस दुर्ग का हो फिर से निर्माण।।
महाराज यशवंत ने दिया भीम को राज।
भीमसिंह के दुर्ग पर अब शासन कि राज।।
मगर धरोहर जाट की है जाटों के बीच।
जाटों का दायित्व है उसे पुनः दें सींच।।

रचना: भूपेन्द्र सिंह राणा

बाहरी कड़ियाँ

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संदर्भ

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