Deependra Bhuchar
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Deependra Bhuchar (Major), Vira Chakra (Posthumous), became martyr on 23 August 1997 in Uri sector of Jammu and Kashmir fighting with the militants. He was from Firozpur, Punjab.
Unit: 24 Punjab Regiment.
मेजर दीपेंद्र भूचर
मेजर दीपेंद्र भूचर
वीर चक्र (मरणोपरांत)
यूनिट - 24 पंजाब रेजिमेंट
आतंकवाद विरोधी अभियान
मेजर दीपेंद्र भूचर का जन्म श्री आर. सी. भूचर एवं श्रीमती उषा भूचर के परिवार में हुआ था। वह पंजाब के फिरोजपुर नगर के निवासी थे। वह भारतीय सेना की पंजाब रेजिमेंट की 24 बटालियन में सेवारत थे।
उरी सेक्टर ऑपरेशन, अगस्त 1997
अगस्त 1997 में 24 पंजाब बटालियन को जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में तैनात किया गया था। मेजर दीपेंद्र 24 पंजाब की 'डेल्टा' कंपनी के कमांडर के रूप में कार्यरत थे। 23 अगस्त 1997 को वह उरी के उत्तरी झेलम सेक्टर में 'नानक' चौकी पर तैनात थे।
23 अगस्त 1997 को प्रातः से ही शत्रु ने 24 पंजाब की चौकियों पर अंधाधुंध गोलीबारी आरंभ कर दी। यह गोलीबारी 'बादल' नाम की एक अग्रिम चौकी पर आरंभ हुई और लगभग 8:45 बजे, एक अन्य एकाकी अग्रिम चौकी भी शत्रु तोपखाने और मशीन गन के भारी फायर में घिर गई। अनुकरणीय साहस का प्रदर्शन करते हुए मेजर दीपेंद्र नानक चौकी से CRAWL TRENCH के माध्यम से उस अग्रिम चौकी की ओर दौड़ पड़े।
शत्रु की Five Huts नाम की चौकी से हो रही मशीन गन की भारी गोलीबारी के उपरांत, भी मेजर दीपेंद्र ने अपने सामर्थ्य पर 106 mm रिकोइललेस (RCL) गन को अनावृत में संचालित करने का निर्णय लिया। अपने जीवन को गंभीर संकट में डालते हुए लांस नायक शमशेर सिंह के साथ RCL गन से उन्होंने शत्रु बंकरों का सामना किया और शत्रु के एक बंकर को पूर्णतः नष्ट कर दो शत्रु सैनिकों को मार गिराया।
आगामी संघर्ष में, शत्रु के एक भारी मोर्टार गोले से मेजर दीपेंद्र और लांस नायक शमशेर सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए। अपने घातक घावों के उपरांत भी वह अविचलित RCL गन को संचालित करते रहे और 84 mm रॉकेट लॉंचर की सहायता से शत्रु के एक और भारी मशीन गन बंकर का भी सामना किया और भारतीय चौकी पर प्रभावी गोलाबारी कर रहा वह शत्रु बंकर RCL के गोले से नष्ट हो गया।
अपनी घातक चोटों से अविचलित मेजर दीपेंद्र अपने सैनिकों को प्रेरित करते रहे। वह अंतिम श्वास तक शत्रु पर प्रभावी फायरिंग करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
मेजर दीपेंद्र भूचर ने भारतीय सेना की वास्तविक परंपराओं की पालना में उत्कृष्ट साहस और वीरता का प्रदर्शन करते हुए जीवन का सर्वोच्च बलिदान दिया। 26 जनवरी 1998 को उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
शहीद को सम्मान
चित्र गैलरी
स्रोत
बाहरी कड़ियाँ
संदर्भ
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