Dharampal Singh Bhalothia/Aitihasik Kathayen/Anjana-Pawan Kumar

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ऐतिहासिक कथाऐं


रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया

ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो. 9460389546


कथा-12 अंजना-पवनकुमार

सज्जनों ! त्रेता युग में महेंद्रपुर राजधानी का राजा महेंद्र व बेग मोहिनी रानी थी। उन्होंने अपनी राजकुमारी अंजना की शादी के लिए देश प्रदेश से राजकुमारों के फोटो मंगवाए | उनमें से अंजना व उसकी सहेलियां दो फोटो पर विचार करने लगी जिसमें भान नगर के देव पर्व की प्रशंसा व रतनपुर के राजा विद्याधर के पवन का उपहास किया । यह सब महल के नीचे खड़े पवन कुमार ने सुना तो बदला लेने की ठानी व अंजना से शादी करने के लिए वजीर को अपने पिताजी के पास भेजता है ।

भजन-1 कथा परिचय

तर्ज : चौकलिया
राजा महेन्द्र था त्रेता में, महेन्द्रपुर राजधानी थी।
अंजना राजकुमारी थी, और बेग मोहिनी रानी थी।। टेक ।।
महल में राजा को बुलवाके, बेग मोहिनी न्यू बोली।
जवान बेटी बैठी घर में, आपने आँख नहीं खोली।
समय पर आवे तीज दीवाली, समय पर आवै होली।
पीले हाथ करो बेटी के, समय पर सजवादो डोली।
समय पै आपको न्यू बुलवाया, समय की बात बतानी थी ।। 1 ।।
उसी वक्त फोटो अंजना के, राजा ने बनवाये थे।
देश-देश के राजाओं के, पास में सब भिजवाये थे।
राजाओं के राजकुमारों के, फोटो मंगवाये थे।
महल में भेजे सारे फोटू, अंजना को दिखलाये थे।
फोटू देखें भरती सरती, हरप्यारी भगवानी थी ।। 2 ।।
छाँट लिये दो फोटू सबमें, उन पर करने लगी विचार।
भाननगर का देवपर्व था, रतनपुर का पवन कुमार।
इनमें सुन्दर देवपर्व सै, इसपै चढा़ शनि का भार।
पवन कुमार की शकल देख के, सभी रही थी ताने मार।
पवन जहर का घड़ा, देव अमृत की खास निशानी थी ।। 3 ।।
साथ मंत्री बात सुने था, पवन महल के पास खड़ा।
देवपर्व बूंद अमृत की, पवन जहर का बना घड़ा।
तलवार निकाली गुस्सा आग्या, जैसे काला नाग लड़ा।
मंत्री जी ने पकड़ लिया, फिर महेन्द्रपुर ने चाल पड़ा।
धर्मपालसिंह भालोठिया कहे, ब्याह करने की ठानी थी ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
बात सुनी जब सहेलियों की, पवन कुमार के लागी चोट।
जो कुछ चर्चा हुई महल में, उसके दिल में होगी नोट।
कहो पिताजी से मंत्री जी, मेरी अब करदो शादी।
शादी के लिए लड़की बतादो, राजा महेन्द्र की शहजादी।।

वार्ता- पवन शादी करके अंजना को घर ले आता है और आते ही दोहाग देकर अलग जनाना महल में छोड़ देता है ।

भजन-2 कवि का

तर्ज : बार बार तुझे क्या समझाऊँ, पायल की झन्कार........
पवन कुमार ने शादी कर, अंजना को दिया दोहाग।
बांस हाथ में खड़ी महल पर, रोज उड़ावे काग।। टेक ।।
महल के चारों और दही के कुण्डे चार धरे।
काग चोंच नहीं मारण पावे, हरदम रहें भरे।
जो नहीं इस पर अमल करे, दूँ लगा महल के आग ।। 1 ।।
धोला बाणा सूखा खाणा, रहे इस दोहागण का।
गीत सुरीले गये सामण के, खेल गया फागण का।
हरदम काम रहे जागण का, चाहे तीज चाहे फाग ।। 2 ।।
महल जनाना कहें जहाँ पर, अंजना ठहराई।
सास नणद देवराणी जिठानी, कोई नहीं आई।
बेहोश हुई महेन्द्र जाई, न्यू कहे फूटगे भाग ।। 3 ।।
शादी होके नई बहू जब, घर पर आया करें।
घर कुणबे की औरत मिलके, रात जगाया करें।
भालोठिया कहे गाया करें, वह टेम-टेम के राग ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! पवन कुमार दरबार में आया और राजा ने उसको आदेश दिया बेटा ये अभी रावण का पत्र आया है आपको सेना लेकर जाना पड़ेगा। पवन सेना लेकर चला, चलते-चलते शाम हो गई और वन में डेरा लगा दिया । रात को पेड़ पर दो पक्षी बोल रहे थे ।

भजन-3 पवन कुमार का (राजकुमार)

तर्ज : चौकलिया
जंगल बियाबान मंत्री छाई रात अन्धेरी।
ये पक्षी क्यों चिल्लावें, सुनके नींद उखड़गी मेरी।। टेक ।।
बारह-बारह कोस चोगरदे, नहीं कोई घर गाम।
डेरे डाल दिये जंगल में, करने को आराम।
घोड़ों के मुँह पड़े तोबरे , काढ़ के धरी लगाम।
हाथी खड़े चरैं थे, कर दिया चारे का इन्तजाम।
तमाम फौज का खाना बन गया, नहीं लगाई देरी ।। 1 ।।
दरखत की जड़ में जब हमने, अपने बिस्तर खोले।
आई थोड़ी नींद, ये पक्षी लगे मचावण रोले।
एक पश्चिम डाल पर और एक पूर्व में बोले।
ज्यूं प्रेमी अपने प्रेमी को, टोहवण खातिर डोले।
टोहलें एक एक ने, पूरी रात लगावें फेरी ।। 2 ।।
मेरे जीवन में आज तलक नहीं, इतनी मंजिल काटी।
हुई थकावट गात में और लागी नई औचाटी।
नींद गई सौ कोस एक दम, हो गई तबियत खाटी।
सुनके बोल विरह के दिल की, झाल डटें नहीं डाटी।
कोन्या पाटी मालुम इन पै, किसने मुसीबत गेरी ।। 3 ।।
जबसे मंत्री जी मैंने, दरखत में ध्यान लगाया।
नहीं दोनों ने धीर धरी, नहीं भेद बात का पाया।
के तो इनकी जोट बिछड़गी, तड़फ रही सै काया।
के फिर किसी मांसाहारी ने, इनको आन सताया।
आया सुनके भालोठिया, पर आँख खुली नहीं तेरी ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! जंगल मे रात को पेड़ पर चकवा चकवी की विरह वेदना देखकर पवन बेचैन हो उठा वह सभी को सोता छोड़ अंजना से मिलने के लिए महल की तरफ घोड़ा दौड़ा देता है ।

भजन-4 कवि का

तर्ज : होगा गात सूक के माड़ा, पिया दे दे मनैं कुल्हाड़ा........
के बूझे राजकंवारा, हो सै प्रेम का अजब नजारा।
सारा देख लिया संसार में, प्रेमी मरे प्रेम की मार में।। टेक ।।
प्रेम के वश में हो के प्रेमी, गावे प्रेम का गाना।
जिसके मार प्रेम की लागे, बन जाता दीवाना।
खाना पीना सोना छूटे, लागे गुम चोट नहीं फूटे।
उठे झाल प्रेम की धार में,प्रेमी मरे प्रेम की मार में ।। 1 ।।
प्रेम के वश में भँवरा फूल पै, प्रेम का ले आनन्द।
प्रेम के वश में सुधबुध भूला, हुआ फूल में बन्द।
चन्द फूल बाग में पाया, फिर माली ने हार बनाया।
आया फूल प्रेम के हार में, प्रेमी मरे प्रेम की मार में ।। 2 ।।
पतंग प्रेम के वश दीपक पै, झूम-झूम के आवे।
प्रेम की मस्ती लौ पे चश्ती, सच्चा प्रेम दिखावे।
पावे फिर प्रेम का दर्जा, जग में अमर प्रेम को करजा।
मरजा प्रेमी के दरबार में, प्रेमी मरे प्रेम की मार में ।। 3 ।।
राजकंवर इस दरखत पै, ये चकवा- चकवी बोलें।
रात अन्धेरी बिछड़ गये ,अब चक चक करते डोलें।
खोलें कथा प्रेम की सारी, हो गई रात काटणी भारी।
प्यारी प्रेम दिखावे भरतार में, प्रेमी मरे प्रेम की मार में ।। 4 ।।
भालोठिया कहे तेरे जैसा, नहीं अकल का अन्धा।
वचन भराये फेरां पै, कन्धे से मिलाया कन्धा।
धन्धा उसको दिया कुढाला, उड़ावे काग महेन्द्र बाला।
माला रटे तेरे इन्तजार में, प्रेमी मरे प्रेम की मार में ।। 5 ।।
== राधेश्याम ==
राजकुमार ने देखा बिलखता, चकवा-चकवी का जोड़ा।
प्रेम की चोट जिगर में लागी, अपना त्यार किया घोड़ा।
अपनी सेना, मंत्री जी को, जंगल में ही सोते छोड़ा।
तेज गति करदी घोड़े की, घर आया दौड़ा-दौड़ा।।

वार्ता- पवन कुमार को आया देखकर बांदी बसंत माला उसके स्वागत के लिए अंजना को तैयार होने के लिए कहती है ।

भजन-5 बसन्त माला (बान्दी) का

तर्ज : गंगा जी तेरे खेऽऽऽत में, घले हिण्डोले चार.....
अंजना बैठी होऽऽऽलिये, तेरा बाहर खड़ा भरतार।
अन्धेरी राऽऽऽत में, आज चाँद खिला तेराऽऽऽ।। टेक ।।
बहुत कहानी, मिलें पुरानी, न्यू कहते नर-नार बेबे।
बिना पति का, नार सती का, ये सूना संसार बेबे।
जितने पति सै, इतने पत सै, पति बिना दुख हजार बेबे।
बैठी होले और मुँह धोले, क्यों लावै सै देर बेबे।
अर्ज तुम्हारी, सुन न्यायकारी, करी तेरे पर मेहर बेबे।
करके शुद्धि, दई सै बुद्धि, तेरे पति की फेर बेबे।
घी के दीवे जोऽऽऽ लिये, मिल गावां मंगलाचार ।। 1 ।।
समझ बात को, कभी रात को, नहीं आज तक आया बेबे।
करले दर्शन, होजा प्रसन्न, उसने प्रेम दिखाया बेबे।
बाहर खड़ा, घोड़े पै चढ़ा, वो तेरी सास का जाया बेबे।
तेरे प्यार में, अन्धकार में, ले रहा चाँद उजाला बेबे।
लेके पानी, कर अगवानी, देखले ढंग निराला बेबे।
पान मिठाई, बालूशाही, हाथ में ले फूलमाला बेबे।
अब रोज महल में डोऽऽऽलिए, तू कर करके सिंगार ।। 2 ।।
मेरे खयाल में, बारह साल में, कुरड़ी की भी जागे बेबे।
गई खेत में, मिली रेत में, ठोड़ ठिकाने लागे बेबे।
बन के गोली, चुभ जा बोली, माणस जिद ने त्यागे बेबे।
वक्त खास, आज तेरे पास में, आया पवन कुमार बेबे।
फाटक खोलूँ, भीतर बोलूँ, कर रहा सै इन्तजार बेबे।
हँसते-हँसते, बोल नमस्ते, कर उसका सत्कार बेबे।
प्रेम वचन मुँह बोऽऽऽलिए , तेरा बाग हुआ गुलजार ।। 3 ।।
झटपट जागी, निंद्रा त्यागी, दरवाजे पर आई अंजना।
पति शरण में, देख चरण में, अपनी नाड़ झुकाई अंजना।
खुशी में फूली, सारे भूली, जितने भी दुख पाई अंजना।
प्राण-पिया, क्यों कष्ट दिया, न्यू कह करके मुस्कराई अंजना।
स्वागत करके, कोली भर के, अपने महल में लाई अंजना ।
धर्मपालसिंह अंग-अंग में, फूली नहीं समाई अंजना।
कष्ट भतेरे ढोऽऽऽलिए, आज हो रही खुशी अपार ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! अंजना पवन कुमार का स्वागत करती है और दोहाग का कारण पूछते हुए अपना दुखड़ा सुनाती है ।

भजन-6 अंजना का

तर्ज : सत्यवान के घरां चाल, दुख भरा करेगी सावित्री,........
बिना कसूर त्याग दी मैं, क्यों दिया दोहाग बतादो जी,
हो भरतार।। टेक ।।
देख तुम्हारा, फोटू प्यारा, माना सिर का ताज पिया।
शुभ दिन आया, ब्याह करवाया, बजे खुशी के साज पिया।
घर में लाकर, दी अलग बैठा, तुम क्यों हो गये नाराज पिया।
क्यों फटकारी, मैं बेचारी, खोट बतादो आज पिया।
सजा मिली,क्यों खड़ी महल पर,ऊड़ाऊँ काग बतादो जी,
हो भरतार।। 1 ।।
खुशी मनाई, हो मन चाही, आई नई नुहेली पिया।
छोड़ चली, पीहर की गली मैं, जहाँ बचपन में खेली पिया।
रहूँ महल में, दासी टहल में, पावें और सहेली पिया।
रहें साथ, मेरे प्राणनाथ, मैं रहूँगी नहीं अकेली पिया।
धुआँ नहीं दिखा, मैं क्यों फूंकी बिना आग बतादो जी,
हो भरतार।। 2 ।।
इतने रोज, मैं करी मौज, वो सारा नक्शा झड़ग्या पिया।
रहूँ सासरे, पति आसरे, वो सारा चाव निकलग्या पिया।
महल जनाना, ढ़ूँड पुराना, देख नाग सा लड़ग्या पिया।
सो गया माली, बिना रखवाली, सूना बाग उजड़ग्या पिया।
कब तक हरा भरा पावे, बिना माली बाग बतादो जी,
हो भरतार।। 3 ।।
धोला बाणा, सूखा खाणा, देखी घणी तबाही पिया।
पहन खड़ाऊँ, काग उड़ाऊँ, हाथ में लेके बाही पिया।
कभी मैं छत पै, कभी तखत पै, सो के रात बिताई पिया।
बंसत माला, देख कसाला, मेरी धीर बन्धाई पिया।
धर्मपालसिंह देख ढंग, क्यों भूला राग बतादो जी, हो
हो भरतार।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! पवन कुमार ने बताया कि मैं शादी की चाह में महेंद्रपुर गया था वहां पर आपके विचार सुनकर आपसे शादी कर दोहाग देने की सोची ।

भजन-7 पवन कुमार का

तर्ज : भरण गई थी नीर राम की सूँ.......
अंजना तेरे बोल राम की सूँ।
गये कलेजा छोल राम की सूँ।। टेक ।।
लागी थी औचाटी तन में, जब से देखी मूरत तेरी।
ब्याह करवाऊँ घर में लाऊँ, पड़ी थी जरूरत तेरी।
महेन्द्रपुर में गया एक दिन, देखने को सूरत तेरी।
वक्त वक्त का मोल राम की सूँ ।। 1 ।।
छाई थी अन्धेरी रात, शहर सारा सो रहा था।
साथ में वजीर था, मैं तेरा महल टोह रहा था।
सामने एक ऊँचे घर में, उजाला सा हो रहा था।
छोरी करें थी मखौल राम की सूँ ।। 2 ।।
सुन करके आवाज तेरी, ध्यान मैं लगाया था।
राजकुमार देवपर्व, तेरे मन को भाया था।
फोटू देख मेरा, घड़ा जहर का बताया था।
खोलूं तेरी पोल राम की सूँ ।। 3 ।।
कलेजे में बोल तेरे, उस दिन के खटकते रहे।
वही बोल अपने बीच, पहाड़ बन अटकते रहे।
इसी कारण न्यारे-न्यारे, हम दोनों भटकते रहे।
भालोठिया कहे खोल राम की सूँ ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
पाँच रोज तक महल में रहके, मस्ती मौज उड़ाई थी।
छठे रोज मिल फौज में चल, लंका की सूरत लग़ाई थी।
कई दिनों के बाद महल में, पवन की माँ आई थी।
अंजना का रंग-ढंग देख के, खोटी खरी सुनाई थी।।

वार्ता- सज्जनों ! पवन कुमार अंजना से मिलकर छठे रोज वापिस चला जाता है। कुछ दिन बाद अंजना की सास महल में आती है और वास्तविकता से अनभिज्ञ होने के कारण अंजना को गर्भवती देखकर आग बबूला हो जाती है ।

भजन-8 रानी का (अंजना की सास)

तर्ज : जमाई मेरो छोटो सो,मैं किस पर करूं गुमान ........
बहू तनै जुल्म करे, म्हारे कुल के लगाया दाग।। टेक ।।
जब शादी करके लाया था, तेरा न्यारा महल बताया था।
बेटे ने दिया दोहाग, बहू तनै जुल्म करे...... ।। 1 ।।
तेरे तन पै धोला बाणा था, तनै पति का हुकम बजाणा था।
उड़ाये क्यों नहीं काग, बहू तनै जुल्म करे...... ।। 2 ।।
तू फिरे आज माची माची, साड़ी बांध रही काची।
तू गावे सुरीले राग, बहू तनै जुल्म करे...... ।। 3 ।।
प्रीत मेरे बेटे की तोड़ी, गैर मर्द से यारी जोड़ी।
ओ पापण निर्भाग, बहू तनै जुल्म करे...... ।। 4 ।।
दीख रहा तेरा पाँव भारी, बेशर्म कहूँ या लजमारी।
या कह दूँ काला नाग, बहू तनै जुल्म करे...... ।। 5 ।।
इज्जत म्हारी दुनिया भर में, आज मिलादी तैं ठोकर में।
विद्याधर की पाग, बहू तनै जुल्म करे...... ।। 6 ।।

सज्जनों ! रानी ने आकर राजा विद्याधर को बहू के चाल-चलन की जानकारी दी व देश निकाला देने को कहती है ।

भजन-9 रानी का राजा से

तर्ज : एक परदेशी मेरा दिल ले गया .......
के बूझे महाराज आज , मेरा सूकग्या लहू।
करगी कुल बदनाम, आज तेरी लाडली बहू।। टेक ।।
आज मैं देखण गई महल में, माची फिरे थी चहल पहल में।
टहल में दासी बोली, मै हाजिर रात दिन रहूँ ।। 1 ।।
शादी कर बेटे ने त्यागी, इसको दिया था महल दोहागी।
नागी आचरणहीन, बात नहीं झूठी मैं कहूँ ।। 2 ।।
बच्चा होगा अपने घर में, चर्चा फिर होगी घर-घर में।
नजर मैं नीची करके, ताने देश के सहूँ ।। 3 ।।
भालोठिया कहे हो गया चाळा, रानी कहे दो देश निकाला।
काला हो गया चाँद ग्रहण में, मैं भी न्यू गहूँ ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
विद्याधर को गुस्सा आ गया, बात सुनी जब रानी की।
जुल्म बीत गये प्रलय होगी, धरती भरगी पानी की।
महल में आया अंजना को, पहले दो चार दई गाली।
फिर अंजना को भेंट करी, जो लाया था वर्दी काली।।

सज्जनों ! राजा क्रोधित होकर अंजना को उमर दिसोटा का हुक्म देता है और काली वर्दी देकर महल से बाहर कर देता है ।

भजन-10 राजा विद्याधर का

तर्ज : जरा सामने तो आओ छलिये/अ दिल मुझे बता दे, तू किस पे आ गया है.......
हो बाहर महल से अंजना, कर्म करा तन खोटा।
दोहाग खत्म हुआ तेरा, अब मिल गया उमर दिसोटा।। टेक ।।
शादी करके लाया बेटा, उस दिन से तू त्यागी।
नहीं किसी का आना जाना, दिया था महल दोहागी।
भागी तू काग उडाइये, लेकर के हाथ में सोटा ।। 1 ।।
जो थी शर्त मेरे बेटे की, सारी आपने तोड़ी।
पता नहीं किस नये यार के, साथ मिलाई जोड़ी।
घोड़ी ज्यूं फिरे नाचती, तेरे बात करण में टोटा ।। 2 ।।
हारसिंगार उतार बदन से, ले ले वर्दी काली।
उमर दिसोटा मृत्यु-दण्ड की, ये पोशाक निराली।
जाली जाल नहीं हो इसमें, नहीं फूल किनारी गोटा ।। 3 ।।
सिर्फ एक जोड़ी दिया कपड़ा, लंहगा चुन्नी चोली।
धर्मपालसिंह कहे सुभाष, बिल्कुल ही हद होली।
बोली पानी पीवण ने दे दो, मुझे एक लोटा ।। 4 ।।

सज्जनों ! उमर दिसोटा मिलने पर अब अंजना सहारे के लिए पीहर महेन्द्रपुर की तरफ चल पड़ती है ।

भजन-11 कवि का

तर्ज : भगत रहे टेर टेर, आओ ना लगाओ देर.....
दोहाग खत्म हुआ देश निकाला, चली अंजना बसंतमाला।
ली पीहर की राही।। टेक ।।
मेरे सास ससुर आज, दोनों बने अति बेदर्दी।
लिया फैसला उमर दिसोटा, दे दी काली वर्दी।
गर्मी सर्दी और बरसात, चलें सफर में दिन और रात।
क्यों कर करूँ समाई ।। 1 ।।
आखिर एक सहारा, अब तो महेन्द्रपुर में जाऊँ।
मात-पिता भाई भावज को, सारी बात बताऊँ।
ताऊ चाचा सब परिवार, सुन करके मेरा समाचार।
आज्यां चाची ताई ।। 2 ।।
बने जख्म पर जख्म, हमेशा सुनते बात पुरानी।
आज यहाँ अंजना के, संग में बनगी वही कहानी।
पानी नहीं किसी ने प्याया, भाभी कहे क्यों सांग दिखाया।
तू आई बिना बुलाई ।। 3 ।।
जिस नगरी में जन्म लिया था, बचपन जहाँ बिताया।
धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, दीखे आज पराया।
काया जलकर हो गई ढेरी, बात सुनो माताजी मेरी।
तेरे पेट की जाई ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
सब ने आँखें बन्द करी, नहीं किसी ने मेर दिखाई थी।
लंगार से जा बिछुड़ गऊ, वोह इसी तरह डकराई थी।
बेटी को लगा छाती से, रोई बेबस जननी माई थी।
माँ-माँ करके लिपटी अंजना, देने लगी दुहाई थी।।

वार्ता- सज्जनों ! अंजना पीहर आकर अपनी व्यथा माँ को सुनाती है और पवन के आने तक रहने के लिए कहती है किन्तु माँ बेबस और लाचार थी और वहां पर भी उसे कोई सहारा नहीं मिला ।

भजन-12 अंजना का माँ से

तर्ज : बाबुल की दुआऐं लेती जा.......
धरती और आकाश मिले, हुआ चारों और अन्धेरा माँ।
महलों में रखवादे इतने, आवे जमाई तेरा माँ।। टेक ।।
जब तेरा जमाई आवेगा, सब भ्रम दूर हो जावेगा।
विद्याधर पछतावेगा, बेटे का उजाड़ा डेरा माँ ।। 1 ।।
जंगल में शेर दहाडेंगे, और हाथी खड़े चिंघाड़ेंगे।
कही अजगर मुँह फाड़ेंगे, कहीं चीता रीछ भगेरा माँ ।। 2 ।।
मैं जंगल में दुख पाऊँगी, फल-फूल और पत्ते खाऊँगी।
महीनों तक नहीं नहाऊँगी, पड़ जावें गात में ढ़ेरा माँ ।। 3 ।।
मेरा सारा ठाठ बिगड़ ज्यागा, धरती में सोवणा पड़ ज्यागा।
रात अन्धेरी में लड़ज्यागा, कोई बिच्छू साँप गुहेरा माँ ।। 4 ।।
चाहे कितनी भी दुख पाऊँ मैं, नहीं कुल के दाग लगाऊँ मैं।
नहीं गोली जहर की खाऊँ मैं, नहीं देखूँ कुंआ झेरा माँ ।। 5 ।।
जो गिन-गिन के दिन काटेगा, वो क्योंकर दिल ने डाटेगा।
इस अनहोनी का पाटेगा, जब मेरे पति ने बेरा माँ ।। 6 ।।
मेरा कौन इतिहास बनावेगा, जो गीत बनाके गावेगा।
वो भालोठिया ही पावेगा, मिलें डाकू चोर लुटेरा माँ ।। 7 ।।

वार्ता- सज्जनों ! जब अंजना अकेली जंगल में चलने के लिए तैयार होती है तो बांदी बसंतमाला साथ चलने की जिद्द करती है लेकिन अंजना पवन के आने तक उसे सारी घटना बताने के लिए रुकने को कहती है ।

भजन-13 अंजना का बसंतमाला से

तर्ज : म्हारी रे मंगेतर नखरे वाली .......
मैं तो मरी मौत मेरी आई, तू क्यों मरी पराई जाई।
छोड़ बसंत मेरा साथ, अकेली जाने दे।। टेक ।।
माँ के महल में खाईये मेवा, इसकी रोज बजाईये सेवा।
सुख पावे दिन रात, अकेली जाने दे ।। 1 ।।
अंजना आगे चाल पड़ी थी, आँसुओं की लग रही झड़ी थी।
थर-थर काँपे था गात, अकेली जाने दे ।। 2 ।।
पीहर सासरा छूटा मेरा, अब होगा जंगल में डेरा।
जहाँ डाकू करें उत्पात, अकेली जाने दे ।। 3 ।।
जिस दिन मेरा पति आवेगा, मेरा महल सूना पावेगा।
बुरी-बुरी कहें पिता-मात, अकेली जाने दे ।। 4 ।।
आवे पति जब महेन्द्रपुर में, जब प्रवेश करेगा घर में।
तू सारी बताइये बात, अकेली जाने दे ।। 5 ।।
धर्मपालसिंह गीत बनावे, सुभाष फिर गाके सुनावे।
जय बोले प्रभात, अकेली जाने दे ।। 6 ।।
सज्जनों ! अंजना के लाख मना करने के बावजूद बसंतमाला साथ चल पड़ती है ।

भजन-14 बसंतमाला का अंजना से

तर्ज : चौकलिया
नहीं अकेली जाने दूँगी, बसंतमाला न्यू बोली।
साथ नहीं छोडूँ जीवन में, अंजना की भरली कोली।। टेक ।।
बसंतमाला कहे अंजना, आपके साथ रहूँगी मैं।
नहीं देखूँ मुँह फेर के पीछे, तन पर कष्ट सहूँगी मैं।
मेरे साथ में जो बीतेगी, आपको नहीं कहूँगी मैं।
आपके दुख को देख देख के, चाँद की भांति गहूँगी मैं।
उस दिन भी थी साथ आपके, आई सासरे में डोली ।। 1 ।।
पीछे मुड़-मुड़ के देख रही थी, दोनों चाल पड़ी वन में।
रात अन्धेरी सिर पर आ गई, दुख की झाल उठें तन में।
आँधी और बरसात आ गई, बिजली चमक रही घन में।
हे भगवान आसरा तेरा, ध्यान लगा रही थी मन में।
कदम-कदम पै खतरा, दोनों देखें थी ओली सोली ।। 2 ।।
चलते-चलते जा पहुँची थी, ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों में।
कभी नहीं पैदल चाली थी, पैर फट गये झाड़ों में।
शेर दहाड़ें वन गूँजे था, हाथी की चिंघाड़ों में।
कभी पेड़ की खड़ी ओट में, भीजे थी बोछाड़ों में।
जंगल में छुपकर रहती थी, कहीं डाकुओं की टोली ।। 3 ।।
पकड़ हाथ में हाथ चले थी, दीखे नहीं अन्धेरे में।
तेज हवा का लाग्या झोंका, दोनों पड़गी झेरे में।
सारी रात वहीं पर काटी, रही कूप के घेरे में।
सुबह निकलके पहुँच गई थी, एक साधु के डेरे में।
धर्मपालसिंह दंग रहा, जब साधु ने आँखें खोली ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
धीरे-धीरे बीत रहे दिन, दुख की घटा छटी काली।
सुख की घड़ी आँवती दीखे, पूर्व में चमकी लाली।
फूल खिला अंजना के बाग में, जल्दी आवेगा माली।
चाँद खिला अन्धेरी रात में, बसंत बजा रही थाली।।

वार्ता- सज्जनों ! अंजना बसंतमाला रात को जंगल में भटकते भटकते एक झेरे में पड़ जाती हैं । सुबह झेरे से निकलकर एक साधु के डेरे पर पहुंच जाती हैं और वहां पर अंजना एक पुत्र को जन्म देती है जिसका नाम हनुमान रखा ।

भजन-15 कवि का

तर्ज : म्हारी रे मंगेतर नखरे वाली ......
दुख की घटा छठी थी काली,पूरब में छाई थी उजियाली ।
उदय हुआ था भान, सन्त के डेरे में।। टेक ।।
बियाबान भयंकर जंगल, तिथि अष्टमी बार था मंगल।
जन्म लिया हनुमान, संत के डेरे में ।। 1 ।।
बसंत माला सेवा बजावे, चीज जरूरत की मंगवावे।
मिले था सब सामान, संत के डेरे में ।। 2 ।।
महन्तजी ने बेदी रचाई, हवन करा और छठी मनाई।
हो रहा मंगल गान, संत के डेरे में ।। 3 ।।
नाम करण संस्कार करा था, महावीर उसका नाम धरा था।
है योद्धा बलवान, संत के डेरे में ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
एक दिन अंजना धूप में बैठी, अपने केश सुखावे थी।
प्यार करे थी बच्चे से और पति की याद सतावे थी।
जंगल में साधु रहते हैं, आज याद महल की आवे थी।
मुख चुम्बन कर बार-बार बेटे के लाड लडावे थी।।
सज्जनों ! एक दिन अंजना अपने अतीत की यादों में खोई हुई अपने बच्चे के लाड लडाते हुए कहती है -

भजन-16 अंजना का-बच्चे से प्यार

तर्ज:-ऊँची ऊँची दुनिया की, दिवारें सैंया तोड़ के........
सासरे पीहर से चाली, नीची करके नाड़ मैं, नाड़ मैं।
मैं आई रे, तेरे कारण, बियाबान उजाड़ मैं ।। टेक ।।
ब्याह के त्यागी, महल दोहागी, ग्यारह साल की देर हुई।
इतना लेट, तू पड़ा पेट, जब तेरे पिता की मेहर हुई।
एक दिन दादी शेर हुई थी, उसकी सुनी दहाड़ मैं, दहाड़ मैं ।। 1 ।।
दिया दिसोटा, झटका मोटा, महेन्द्रपुर में आई थी।
नाना नानी, मामा मामी, सबने आँख चुराई थी।
जंगल की राह बताई थी, कहा पड़ो कहीं जा भाड़ में, भाड़ में ।। 2 ।।
बसंत माला, देख कसाला, चाल पड़ी मेरे साथ में।
दोनों सहेली, चली अकेली, हाथ पकड़ के हाथ में।
घोर अन्धेरी रात में, काँटे गडगे थे झाड़ में, झाड़ में ।। 3 ।।
होती महल में, चहल पहल में, जाती छठी मनाई आज।
बजता बाजा, नाचता राजा, गाती गीत लुगाई आज।
खाते लोग मिठाई आज, तेरे खूब लडाती लाड मैं, लाड मैं ।। 4 ।।
परिवार के भाई, देने बधाई, आते महल जनाने में।
सुनती भजन, होता मनोरंजन, भालोठिया के गाने में।
जंगल के ठिकाने में आज, उल्लू बोलें पहाड़ में, पहाड़ में ।। 5 ।।
== आनन्दी ==
पवन कुमार अब जीत लड़ाई, रतनपुर को चाल पड़ा।
जिस घर में अंजना छोड़ी, उस सूने ढूँढ में आन बड़ा।
सूने घर में, बोलें कबूतर, एक कमरे में गधा खड़ा।
चक्कर खा बेहोश हो गया, जैसे काला नाग लड़ा।
आया होश, खड़ा होकर गया, माता-पिता के पास में।
बोला पिताजी कहाँ अंजना, उसकी करूँ तलाश मैं।।

वार्ता- सज्जनों ! पवन लड़ाई जीतकर रतनपुर लौटता है । महल में अंजना को न पाकर अपने पिताजी से उमर दिसोटा की बात सुनकर कहा पिताजी वह पतिव्रता नारी थी आपने गलत किया । फिर महेन्द्रपुर में ससुर के पास जाता है, पता लगा कि यहाँ भी उसको शरण नहीं मिली तो उसे ढूंढने के लिए जंगल में निकल पड़ता है । आगे एक झेरे पर पानी पीता है वहां अंजना की एक अंगूठी मिलती है ।

भजन-17 राजा विद्याधर का पवन से

मेरे बेटा पवन कुमार , दूसरी करवाले शादी ।। टेक ।।
उसने कर्म कर दिया खोटा, हमने दे दिया उमर दिसोटा।
वो थी चोर चटोरी जार, करी इज्जत की बरबादी ।। 1 ।।
पवन कहे पिता गलती तुम्हारी, अंजना थी पतिव्रता नारी।
आप पोते से करते प्यार, माँ भी बन जाती दादी ।। 2 ।।
पवन चल महेन्द्रपुर में आया, सास ससुर से पता लगाया।
बोले काढ़ दी धक्के मार, लोग हँसाई करवादी ।। 3 ।।
पवन के लगन लगी थी खासी, करूँ जंगल में रोज तलाशी।
मेरी अर्ज सुने करतार, मिलेगी वन में शहजादी ।। 4 ।।
लागी प्यास हुई परेशानी, एक झेरे में दीखा पानी।
पीके पानी मिला उपहार, चिन्ता अंगूठी ने ल्यादी ।। 5 ।।
हो गई आज तसल्ली मन में, शेर भगेरे खा गये बन में।
भालोठिया कहे चिता कर त्यार, आग फिर उसमें सुलगादी ।। 6 ।।
== आनन्दी ==
एक साधु वहाँ देख रहा था, उसने दौड़ लगाई है।
पकड़ पवन को लक्कड़ फैंके, चिता की आग बुझाई है।।

वार्ता-सज्जनों ! अंजना की अंगूठी एक कुएं के पास मिलने पर उसे मरा हुआ जानकर पवन आत्मदाह की तैयारी करता है लेकिन उसी समय एक साधु आकर उसे बचा लेता है ।

भजन-18 पवन का साधु से

तर्ज : चौकलिया
चिता पाड़ के जुल्म करे, तनै ओ बैरागी बन्दे।
साधु बोला आत्म हत्या, करें अकल के अन्धे।। टेक ।।
बना अकल का अन्धा मैं, आँखों पर चर्बी आगी।
एक राजा की निर्दोष बेटी, शादी करके त्यागी।
सोहागरात रंग चाव नहीं करा, दे दिया महल दोहागी।
मैं चल दिया लड़ाई में, रावण की चिट्ठी आगी।
लागी चोट, दो पक्षी बन में, बोले मन्दे-मन्दे ।। 1 ।।
फौज सौंप मंत्री को, चढ़ घोड़े पर एड़ लगाई।
जहाँ महल अंजना का, रात को सूती आन जगाई।
करा स्वागत अंजना ने, वो फूली नहीं समाई।
प्रेम मिलन हो गया दोनों का, सुहागरात मनाई।
बधाई बसंत माला दे, कहे कटे कष्ट के फन्दे ।। 2 ।।
मैं बोला अंजना अब जाऊँ, पड़े बजानी ड्यूटी।
मात-पिता से बता दिये, थी पाँच रोज की छुट्टी।
अंजना बोली माँ नहीं माने, मनै बतावे झूठी।
मैं बोला लो माँ को दिखा दिये, मेरी खास अंगूठी।
ड्यूटी पर न्यू चला जाणूं, आकाश में उड़े परिन्दे ।। 3 ।।
एक दिन मात-पिता ने आके, भेष बना दिया काला।
मेरी धर्म पत्नी अंजना को, दे दिया देश निकाला।
पीहर में नहीं बड़ने दी, हुए कोप ससुर और साला।
वन की सूरत लगाली, चाली साथ में बसंत माला।
भालोठिया कहे गूंठी देख, विचार बने मेरे गन्दे ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! पवन कुमार से सारी कहानी सुनकर साधु पवन को अपने डेरे पर ले जाता है और बताता है कि अंजना अपने मामा हनुमानपुर के राजा भीमसेन के साथ गई है ।

भजन-19 साधु का पवन से

तर्ज : होलियों में उड़े रे गुलाल ......
क्यों मरे मौत बिना आई, चाल मेरे डेरे में।। टेक ।।
क्यों इतना दिल का कच्चा तूं, क्षत्री मर्द का बच्चा तूं।
क्यों सिर पर धरे बुराई, चाल मेरे डेरे में ।। 1 ।।
अंजना साथ में बसंतमाला, अंजना के जन्मा एक लाला।
आश्रम पर छठी मनाई, चाल मेरे डेरे में ।। 2 ।।
आपको खबर सुनाऊँ ताजा, हनुमानपुर का महाराजा।
ले आया जहाज हवाई, चाल मेरे डेरे में ।। 3 ।।
यहाँ पर खाना खाया था, अंजना का नाम बताया था।
बोला मेरी बहन की जाई, चाल मेरे डेरे में ।। 4 ।।
मुझ पर कृपा नाथ करो, बोला इनको मेरे साथ करो।
ये मेरी बहन की जाई, चाल मेरे डेरे में ।। 5 ।।
विमान में बैठ लिए सारे, फिर गूँज रहे जय-जयकारे।
भालोठिया कहे कविताई, चाल मेरे डेरे में ।। 6 ।।
== आनन्दी ==
भीम सेन राजा और रानी हनुमानपुर आये थे।
बसंतमाला और अंजना, बच्चा संग में लाये थे।।
साधु ने डेरे में पवन को, ये समाचार सुनाये थे।
चला पवन हनुमानपुर को, जल्दी कदम उठाये थे।।

वार्ता- सज्जनों ! राजा भीमसेन अंजना बसंतमाला और बच्चे सहित हनुमानपुर आ गये । दूसरे दिन पवन भी साधु के बताने पर वहां आ गया। यहां पर मामा भीमसेन ने बच्चे का दिसोठण किया उसमें अंजना के माता-पिता व पवन के माता-पिता परिवार सहित खुशियों में शामिल हुए ।

भजन-20 अंजना का

तर्ज : चौकलिया
मामा के घर बैठी अंजना, करे इन्तजार बटेऊ का।
हे भगवान करवादो दर्शन, पवन कुमार बटेऊ का।। टेक ।।
सुनी टेर, नहीं करी देर, ईश्वर ने खेल दिखाया था।
बिना खोट, गई बिछुड़ जोट, दोबारा मेल मिलाया था।
हनुमानपुर मामा के घर, पवन बटेऊ आया था।
हुआ पवित्र, सारा नगर, दुल्हन की तरह सजाया था।
गरीब-नवाज, बचाई लाज, हुआ उद्धार बटेऊ का ।। 1 ।।
दीखे सजना, आई अंजना, गोद में बच्चा प्यारा था।
देख शकल, गया पवन पिघल, बच्चे का सिर पुचकारा था।
महेन्द्र राजा, करके तकाजा, बच्चों सहित पधारा था।
मिटी भूल, रहे बरस फूल, ये देखण योग्य नजारा था।
रतनपुर जब मिली खबर, आ गया परिवार बटेऊ का ।। 2 ।।
सखी सहेली, चम्पा चमेली, भरी उमंग में आई थी।
लाडो खजानी और नारानी, भगवानी भरपाई थी।
सुरजी सरमण, दाखां मरमण, चन्द्रमुखी स्योबाई थी।
जमना भूरी और अंगूरी, सब दे रही बधाई थी।
धापां सरती, स्वागत करती, ताना मार बटेऊ का ।। 3 ।।
भूप भीम, करके स्कीम, फिर दिसोठण करवाया था।
बुला हलवाई, बना मिठाई, सारा शहर जिमाया था।
अंजना पवन, हो रहे मगन, तन फूला नहीं समाया था।
चलो सजन अब सुनो भजन, भालोठिया बुलवाया था।
था शुभ अवसर, राजेन्द्र करता प्रचार बटेऊ का ।। 4 ।।

सज्जनों ! इस प्रकार पवन का अंजना माता पिता व पुत्र हनुमान से मिलन होता है और खुशी-खुशी रतनपुर को रवाना हो जाते हैं।


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महाशय आजाद सिंह छिल्लर सेवा निवृत, लोक संपर्क विभाग, हरियाणा गाँव- छिल्लर जिला - दादरी

            स्वतंत्रता सेनानी व भजनोपदेशक – चौ. धर्मपाल सिंह भालोठिया  

एक बार महाशय धर्मपाल सिंह भालोठिया जी को कन्या गुरुकुल महाविद्यालय (विद्यापीठ ) पंचगांव-भिवानी की कार्यकारणी ने अक्टूबर 2006 के तेईसवें वार्षिक महोत्सव पर सम्मानित करने के लिए बुलाया । सम्मानित करने के बाद अतिथिगण एवं श्रोताओं ने उनसे एक भजन सुनाने का अनुरोध किया तो उन्होंने कहा कि वृद्धावस्था के कारण ज्यादा बोल तो नहीं पाऊँगा लेकिन फिर भी श्रोताओं के अनुरोध पर उन्होंने यह गाना सुनाया - मैं क्या गाऊँ तुम क्या सुनोगे, गाने का ढंग बदल गया । ब्याह शादी का मनोरंजन और भक्ति सत्संग बदल गया ।। यह गाना सुनकर अतिथिगण व श्रोता झूम उठे । मैंने (आजाद सिंह छिल्लर ) भी उनका पूरा साथ दिया, तब भालोठिया जी ने कहा कि “साजिन्दे गाणे वाले के ‘पर’ होते हैं, महाशय आजाद आपने मेरा पूरा साथ दिया तो मैंने खुशी से गाना सुना दिया और श्रोताओं ने भी पूरा आनन्द लिया’’। मैं लोक संपर्क विभाग दादरी में कार्यरत था तब अनेकों बार भालोठिया जी के घर मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों के लिए बुलाने जाता था, ऐसे में मेरा उनसे बार बार संपर्क हुआ जिससे मुझे भालोठिया जी को नजदीक से जानने और समझने का मौका मिला ।

            श्रद्धांजलि भजन    
  संगीत कला थी गजब भालोठिया धर्मपाल में ।
  जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में।.... टेक 

  1. गाणा और बजाणा निराला स्टेज का धणी था ।

  कवियों में सिरमौर ऊँची तेज अणी था । 
  मस्तक की मणि था हर चाल ढाल में। 
  जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में ।।

2. श्री भालोठिया जैसा उपदेशक चाहूँ सूँ भगवान बनै ।

  बल में अकल में गुण विद्या में उन जैसा महान बनै ।
  आर्य नौजवान बनै प्रभु फिलहाल में ।
  जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में ।। 

3. हर समस्या सुलझाई उन्होंने घूम घूम कर ।

  सदा सफलता रही कदमों में पैर चूमकर ।
  जब गाते थे झूम झूम कर स्वर व ताल में ।
  जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में ।।

4. राजनीति कहानी कहूँ जो है लंबी दास्तां।

  चुनावों में पड़ता रहता था हमारा कट्ठा वास्ता। 
  आस्था रही आपकी ताऊ देवीलाल में ।
  जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में ।।

5. ऋषियों के ग्रंथ पढ़ते थे और बात उन्ही की कहते थे ।

  सत्य मार्ग की कठिनाई को हंस हंस के सहते थे ।
  स्वार्थ में नहीं बहते थे समय व काल में ।
  जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में ।।

6. रुका नहीं और झुका नहीं ना संकट में घबराया ।

  साफ और सच्ची बात कही कोई लोभ डिगा नहीं पाया ।
  सात्विक भोजन खाया खुश थे सब्जी दाल में ।
  जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में।।

7. आनंदी और नगमे पर खुश हो जाते नर नारी ।

  शराब बंदी पर कट्ठे  घूमे बनकर के प्रचारी । 
  शेयर और शायरी कहके व्याख्या करते मिसाल में ।
  जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में । 
8. काम उनके याद रहेंगे कस्बे नगर देहात के । 
  कई महीने पहले निमंत्रण आते ब्याह, भात के ।
  प्रचार रात के खत्म हुए जो होते चौक व गाल में।
  जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में।।

9. हे भगवान भालोठिया परिवार मंगलमय सुखदाई हो।

  इनके बेटे पोते, प्यारे मित्रों को सौ सौ बार बधाई हो ।
  गो घृत दूध मलाई हो, सोने के थाल में ।
  जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे बाल में ।।

10.जन्मदिन या पुण्य तिथि को ढाणी में मनाणा चाहिए।

   आर्य उपदेशक बुला जलसा कराणा चाहिए।
   आजाद सिंह बुलाणा चाहिए एक बार साल में।
  जोश और होश भर देते थे वो बुड्ढे, बाल में।