Dharampal Singh Bhalothia/Aitihasik Kathayen/Dulari-Kalichand
रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया
ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो. 9460389546
सज्जनों ! हिंदू धर्म अपनी विशेषताओं के कारण श्रेष्ठ माना जाता है लेकिन समय-समय पर हिंदू धर्म के ठेकेदारों द्वारा अपनाई गई नीतियों एवं कट्टरता के कारण इतिहास में अनेकों बार हानि उठानी पड़ी । बादशाह सुलेमान की गौड़ बंगाला राजधानी थी । बादशाह के वजीर नेमीचंद ब्राह्मण की मृत्यु के पश्चात उसके लड़के कालीचंद को फौज में सेनापति बनाया था । बादशाह की लड़की दुलारी कालीचंद से शादी करना चाहती थी लेकिन कालीचंद का परिवार, जाति व समाज के ठेकेदारों को यह मंजूर नहीं था ।
भजन-1 कवि का
- तर्ज : चौकलिया
- समय-समय पर आर्य जाति, जो तू गलती खाती ना।
- गैर नहीं तेरा राजा होता, इतने कष्ट उठाती ना।। टेक ।।
- मोहम्मद गौरी गजनी से ,जब भारत पै आया चढ़के।
- भारत के वीरों ने उसको, हरा दिया था लड़के।
- सतरह बार गया था वापिस, अपना नाक रगड़ के।
- पृथ्वीराज ने भूल करी थी, छोड़ा पकड़-पकड़ के।
- देश की माया गाड़ी भर-भर, कभी गजनी में जाती ना ।। 1 ।।
- दूसरी बार बीरबल ने, करदी थी भारी नादानी।
- बीरबल मुझको हिन्दू बनाले, ये अकबर की थी बानी।
- गधी खड़ी कर जमना जी में, बीरबल डाल रहा पानी।
- रही गधी की गधी, बादशाह चाहवै था गऊ बनानी।
- अकबर हिन्दू बन जाता तो, मुसलमानी आती ना ।। 2 ।।
- सुलेमान बादशाह की थी, गौड़ बंगाला राजधानी।
- वजीर नेमीचन्द ब्राह्मण था, पढ़ा लिखा और था ज्ञानी।
- इसके बेटा कालीचन्द था, पढ़ा लिखा चढती जवानी।
- बीमार होके नेमीचन्द की, खत्म हुई थी जिन्दगानी।
- उस दिन कालीचन्द को, जाति मूर्ख मूढ़ बताती ना ।। 3 ।।
- नाबालिग लड़का कालीचन्द, बादशाह ने उसे पढ़ाया था।
- जवान होते ही अपनी फौज में, सेनापति बनाया था।
- कुछ तो बनावट शरीर की, कुछ रंग और रूप सवाया था।
- धर्मपालसिंह भालोठिया कहे, चाँद ईद का आया था।
- कालीचन्द को आर्य जाति, जो उस दिन ठुकराती ना ।। 4 ।।
- == आनंदी ==
- सुलेमान की शहजादी थी उसका नाम दुलारी था।
- दर्शन करती रोजाना वो, आता जब ब्रह्मचारी था।
- कालीचंद से शादी हो, मन ही मन हर्षाई थी।
- उसको आता देखकर, झट बांदी बुलवाई थी।।
वार्ता- दुलारी ने कालीचंद की सुंदरता पर मोहित होकर शादी करने की ठानी और बांदी को बुलाकर कहा -
भजन-2 दुलारी (शहजादी ) का
- तर्ज : आपके कहे में रहूँ ऋषि जी, रहूँ ऋषि जी, मैं मैं मैं मैं मैं .......
- शान देखकर हुई दीवानी, हुई दीवानी, मैं मैं मैं मैं मैं।
- हे बाँदी मैं मैं मैं मैं मैं, आज हुई दीवानी मैं।। टेक ।।
- बल विद्या रंग रूप खुदा ने, किसी किसी को बांटे।
- कोई-कोई इन्सान जगत में, सबसे न्यारे छांटे।
- कांटे फूल की देख निशानी, देख निशानी, मैं मैं मैं मैं मैं।
- हे बाँदी मैं मैं मैं मैं मैं, आज हुई दीवानी मैं ।। 1 ।।
- जिस दिन जन्म लिया होगा, इस ब्रह्मचारी ने।
- घर-घर मंगल गाया होगा, नगरी सारी ने।
- महतारी ने समझूँ सयानी, समझूँ सयानी, मैं मैं मैं मैं मैं।
- हे बाँदी मैं मैं मैं मैं मैं, आज हुई दीवानी मैं ।। 2 ।।
- जितनी देर में कारीगर ने, दुनिया सकल बनाई।
- ये मूरत भी तैयार करी जब, उतनी देर लगाई।
- बधाई दूँ मैं उसको जबानी, उसको जबानी, मैं मैं मैं मैं मैं।
- हे बाँदी मैं मैं मैं मैं मैं, आज हुई दीवानी मैं ।। 3 ।।
- छैल रंगीला गाद सजीला, रंग का गोरा गोरा।
- नाक सुआ सा मुँह बटवा सा, चन्दन के सा पोरा।
- छोरा राजा, बनूँगी रानी, बनूँगी रानी, मैं मैं मैं मैं मैं।
- हे बाँदी मैं मैं मैं मैं मैं, हे आज हुई दीवानी मैं ।। 4 ।।
- ये सै चान्द पूर्णमासी का, बनूँ चकोरी मैं, चकोरी मैं।
- ये शिवजी कैलाश पति और बनजां गौरी मैं।
- हो रही आज, बिल्कुल सयानी, बिल्कुल सयानी, मैं मैं मैं मैं मैं।
- हे बाँदी मैं मैं मैं मैं मैं, आज हुई दीवानी मैं ।। 5 ।।
- मेरे बाबल के द्वार पै, जिस दिन मोड़ बाँध के आवे।
- धर्मपालसिंह भालोठिया को, शादी में बुलवावे।
- गावे उसकी, देखूँ ढाणी, देखूँ ढ़ाणी, मैं मैं मैं मैं मैं।
- हे बाँदी मैं मैं मैं मैं मैं, हे आज हुई दीवानी मैं ।। 6 ।।
वार्ता- बांदी शहजादी के इरादों को जानकर उसे आने वाली समस्या से सावचेत करती है ।
गीत-3 बाँदी का
वार्ता- दुलारी कालीचन्द से शादी के इरादे का सन्देश बांदी के द्वारा अपनी माँ के पास भिजवाती है ।
भजन -4 दुलारी (शहजादी ) का
- तर्ज : फिरकी वाली, तू कल फिर आना.......
- हे जाइये बाँदी, ये काम सै जरूरी, दूँगी तेरी दस्तूरी।
- मेरी अम्मा को सलाम दे, हे बाँदी बता मेरा काम दे।। टेक ।।
- जवान उमर में बेटी घर में, होती काला साँप हे, चिन्ता रहे दिन-रात।
- तन में भारी, लगे बीमारी, दुखी पिता और मात।
- गात सूके, हाड मांस ने फूँके, खाना कर हराम दे।
- हे बाँदी बता .........।। 1 ।।
- उन्हे बताइये, मुझे न चाहिए, राजपाट के ठाठ हे,रथ बग्घी और बहल।
- कोठी बंगले, झाँकी जंगले, सुन्दर-सुन्दर महल।
- छैल छोरा, जो रंग का गोरा-गोरा, तू कालीचन्द का नाम दे।
- हे बाँदी बता .........।। 2 ।।
- करके मनादी, करदें शादी, मेरी उसके साथ हे,कर लिया मनै कबूल।
- लड़की चाहती, उसको ब्याहती, दुनिया फिरे फिजूल।
- रूल पुराना, मेरी अम्मा को बताना, चाहे धन की नहीं छदाम दे।
- हे बाँदी बता .........।। 3 ।।
- करें सहेली, जिनमें खेली, मेरी शादी का चाव हे, मेरी बचपन की प्रीत।
- बाजें बाजे, आन बिराजे, मेरे मन के मीत।
- गीत सुनावे, हे धर्मपालसिंह आवे, मेरी शादी में प्रोग्राम दे।
- हे बाँदी बता .........।। 4 ।।
- == दोहा ==
- सुनकर बाँदी आ गई, राजमहल दरम्यान।
- दुलारी भी पहुँच गई, थोड़ी देर में आन।।
वार्ता- दुलारी भी अपनी माँ के पास पहुँच कर कालीचन्द से शादी के लिए कहती है ।
भजन-5 दुलारी (शहजादी ) का
- तर्ज : सावन की मल्हार - बाजन लगे समर के ढोल .......
- एरी री माँ मत करिये इनकार , माँग रही सै भीख तेरी बेटी।। टेक ।।
- तेरी बेटी आज मरने वाली, आत्महत्या करने वाली।
- एरी री माँ मेरी जिन्दगानी बेकार , माँग रही सै भीख तेरी बेटी ।। 1 ।।
- सुन्दर बदन, रंग गोरा-गोरा, जवान उमर ब्राह्मण का छोरा।
- एरी री माँ मेरा उससे हो गया प्यार , माँग रही सै भीख तेरी बेटी ।। 2 ।।
- कर मत देर सगाई करदे, बेटी की मनचाही करदे।
- एरी री मां मेरा कालीचन्द भरतार , मांग रही सै भीख तेरी बेटी ।। 3 ।।
- महज धर्मपालसिंह बुलवादे, मेरी शादी में गाणा गा दे।
- एरी री माँ करवा दे ब्याह संस्कार , माँग रही सै भीख तेरी बेटी ।। 4 ।।
वार्ता- सज्जनों ! बेगम ने दुलारी की बात सुनकर इज्जत की दुहाई देते हुए काफिर से शादी के लिए मना किया और शादी की जिद्द नहीं छोड़ने पर बाबुल द्वारा मरने मारने की बात कहती है ।
भजन-6 बेगम-दुलारी वार्तालाप
- तर्ज : चौकलिया
- जुल्म बीत ज्यां, प्रलय हो जा, कर काफिर से शादी हे।
- म्हारा भी मुँह काला होजा, मान मेरी शहजादी हे।। टेक ।।
- तेरे बाबल पर आज दुलारी, खुदा की मेहरबानी हे।
- दुनिया के मां गौड़ बंगाला चमक रही राजधानी हे।
- तेरे दादा और परदादा की, इज्जत बहुत पुरानी हे।
- काफिरों से करी लड़ाई, हार कभी नहीं मानी हे।
- बन करके हिन्दवानी, आज तू करवावे बर्बादी हे।
- म्हारा भी मुँह काला ............।। 1 ।।
- जाति घमंड बुरा होता, माँ सभी खुदा के बन्दे हे।
- कौम बुरी नहीं होती कोई, इन्सान मिले कुछ गन्दे हे।
- छोटे बड़े और ऊँच नीच, मुल्ला पंडितों के फन्दे हे।
- धर्म मजहब के नाम से खाते, माँग माँग के चन्दे हे।
- आना जाना एक सभी का, मालिक एक अनादि हे।
- म्हारा भी मुँह काला ........।। 2 ।।
- किसी बादशाह के बेटे से, कर देंगे तेरी सगाई हे।
- महलों में हो वास तेरा, बेगम कहें लुगाई हे।
- तेरी म्हारी दुनिया में, फिर इज्जत बने सवाई हे।
- कहाँ पर मुँह दिखलावेंगे, काफिर को बना जंवाई हे।
- वो रास्ता मत छोड़, चली जो तेरी दादी परदादी हे।
- म्हारा भी मुँह काला .......।। 3 ।।
- तेरे बाबल नै बेरा पाटे, फिकर करेगा भारी हे।
- या तो तनै मार दे, या खुद मरज्या खाय कटारी हे।
- पाल-पोस के जवान करी, अब क्यों खोवे सै सारी हे।
- नहीं आवे कोई शादी में, रूसैंगी रिश्तेदारी हे।
- धर्मपालसिंह भालोठिया करे, दुनिया में मनादी हे।
- म्हारा भी मुँह काला ........।। 4 ।।
वार्ता- अब शहजादी अपनी बात को मनवाने के लिए अनेकों उदाहरण देकर कहती है ।
भजन-7: दुलारी (शहजादी ) का
वार्ता- अंत में दुलारी ने पिताजी से कहा कि या तो कालीचंद से शादी कर दो वरना मैं मर जाऊंगी ।
भजन-8 दुलारी (शहजादी ) का
- पिताजी तेरी बेटी सूँ, मेरा लीजो तरस बँटाय।। टेक ।।
- जिसे पिताजी बार-बार, तुम काफिर रहे बताय ।
- या तो कोई फरिश्ता सै, या खास खुदा कहलाय ।। 1 ।।
- महलों के अन्दर उसको अब, जल्दी लो बुलवाय।
- कालीचन्द के संग में मेरा, दीजो निकाह कराय ।। 2 ।।
- जो तुम शादी नहीं करोगे, फिर जिन्दगानी नाय।
- तेरे आगे पेट के अन्दर, मरूँ कटारी खाय ।। 3 ।।
- हो लाचार बादशाह ने, अपना दरबार लगाया।
- पृथ्वीसिंह फिर उसी वक्त, लिया कालीचन्द बुलवाय ।। 4 ।।
वार्ता- सुलेमान अपनी बेटी की धमकी सुनकर कालीचंद को बुलाकर उसे शादी के लिए मजबूर करता है ।
भजन-9 सुलेमान बादशाह - कालीचन्द वार्तालाप
- तर्ज : पारवा (खड़े बोल)
- हो मेरे कालीचन्द सरदार, आज तू करवाले शादी।।
- तेरे ऊपर मेहर हुई, खुश हो गये अल्लाह ताला।
- मेरी दुलारी तेरे गले में, डालेगी फूल माला।
- हो बन खुदा का खिदमतगार, आज तू करवाले शादी ।। 1 ।।
- खुदा के खिदमतगार आप हैं, वैदिक धर्म हमारा।
- अपना धर्म नहीं छोडूँ मुझे है प्राणों से प्यारा।
- हो बिना धर्म मनुष्य बेकार, नहीं मैं करवाऊँ शादी ।। 2 ।।
- मुसलमान अगर बणना जो, आपको नहीं पसंद।
- शुद्ध करके तू मेरी लाडली, ब्याहले कालीचन्द।
- हो हो, वो लेगी जनेऊ धार, आज तू करवाले शादी ।। 3 ।।
- रहूँ मैं बाल ब्रह्मचारी, जनाब इरादा मेरा।
- बाल ब्रह्मचारी रहके, जंगल में लगालूँ डेरा।
- हो हो, तजूँ मोहमाया तैं प्यार, नहीं मैं करवाऊँ शादी ।। 4 ।।
- कालीचन्द तू मत चूके, सुन ले मेरी फरियाद।
- महलों में हो डेरा तेरा, बन मेरा दामाद।
- हो हो, सब तेरा राज दरबार, आज तू करवाले शादी ।। 5 ।।
- फर्ज करो जो शुद्ध करके, मैं करवालूँगा शादी ।
- मेरा कुटुम्ब मनै दुदकारे, हो जागी बरबादी।
- हो हो, रूठेंगे रिश्तेदार , नहीं मैं करवाऊँ शादी ।। 6 ।।
- मत घबरावे, शुद्धि करके, शादी तू करवाले।
- धर्मपालसिंह भालोठिया को, शादी में बुलवाले।
- हो हो वो करवादे ब्याह-संस्कार, आज तू करवाले शादी ।। 7 ।।
- == दोहा ==
- सुलेमान की बात पर वो हुआ था रजामन्द।
- परिवार से पूछने, चल पड़ा था कालीचन्द।।
- == राधेश्याम ==
- घर आते ही कालीचन्द ने, बुलवाया भाईचारा ।
- बड़े बड़े विद्वान बुलाये, सुनाने को किस्सा सारा।।
- गावँ और परिवार के मुखिया,सब शामिल हो गये भाई।
- एक-एक से बूझे था, यह पंचायत किसने बुलवाई।।
वार्ता- कालीचंद शादी के लिए हां कर देता है और अपने परिवार के पास इजाजत लेने के लिए जाता है ।
भजन-10 कालीचन्द (सेनापति) का
- तर्ज : गाड़ी वाले मनै बिठाले ........
- हाथ जोड़ के कालीचन्द, लगा करने फरियाद।
- सुनो मेरा भाईचारा।। टेक ।।
- नाम दुलारी सूरत प्यारी, रंग की गोरी-गोरी सै।
- पढ़ी लिखी विद्वान जवान, अठारह साल की होरी सै।
- सुलेमान की छोरी सै, रही आज तलक आजाद।।
- सुनो मेरा भाईचारा ।। 1 ।।
- बोला बादशाह करके रंग चाव, कालीचन्द करले शादी।
- तेरे प्यार में इन्तजार में, तड़प रही मेरी शहजादी।
- खुश होगी तेरी माँ दादी, तू बन मेरा दामाद।।
- सुनो मेरा भाईचारा ।। 2 ।।
- ब्याह करवाले वचन भरवाले, तेरे धर्म में जो आया।
- विदा पै सारा राज तुम्हारा, बादशाह ने फरमाया।
- तुम्हारी हो सब धन माया, मेरे और नहीं औलाद।।
- सुनो मेरा भाईचारा ।। 3 ।।
- चाचा ताऊ जिनको बुलाऊँ, बनके बाराती चालो तुम।
- फूफा बहनोई रहे ना कोई, बुलाके भाती चालो तुम।
- गोती नाती चालो सब, आज करो मेरी इमदाद।।
- सुनो मेरा भाईचारा ।। 4 ।।
- बान्ध मोड़, करके मरोड़, चालो बादशाह के द्वारे पै।
- धर्मपाल सिंह चले संग, वहाँ पड़ेगी चोट नक्कारे पै।
- तुम्हारे एक इशारे पै हों, महलों में आबाद।।
- सुनो मेरा भाईचारा ।। 5 ।।
- == दोहा ==
- कालीचन्द ने आकर, शादी से किया इनकार।
- सुलेमान कहने लगा, करो इसको गिरफ्तार।।
- बाँदी आई दौड़ के, सुन शहजादी मेरी बात।
- कल होगी फांसी, उसे रात-रात हवालात।।
वार्ता- सज्जनों ! कालीचन्द का भाईचारा और पूरी बिरादरी के सहमत न होने पर निराश होकर उसने शादी के लिये मना कर दिया। इसके बाद बादशाह सुलेमान ने उसे गिरफ्तार कर फांसी का आदेश सुनाया । आदेश सुनकर शहजादी ने बांदी से कहा -
भजन-11 शहजादी का बाँदी से
- तर्ज : मेरा दिल ये पुकारे आजा, मेरे गम के सहारे आजा..........
- आज हो गया चाळा हो बाँदी, मेरा मिटा उजाला हे बाँदी ।
- घटा बनके काली आई, गर्दिश चाँद पर छाई।। टेक ।।
- कभी-कभी जब चन्द्र-ग्रहण, होता है, होता है।
- थोड़ी देर का अन्धेरा, नहीं सहन होता है, होता है।
- दुनिया देखती रह जा, चन्द्रमा सम्पूर्ण गहजा।
- हो रंग कुढ़ाला हे बाँदी ।। 1 ।।
- दिया पिता ने आज बुरा पैगाम, हे बाँदी, हे बाँदी ।
- बेढ़ंगा निकले इसका पैगाम, हे बाँदी , हे बाँदी ।
- नहीं बस रात-रात का, सुबह मैं हवालात का।
- तोड़ूँ जा ताला हे बाँदी ।। 2 ।।
- कालीचन्द के बिना बाँदी मैं प्राण,खो दूँगी,खो दूँगी ।
- मेरे बाबुल की बनी बनाई शान, खो दूँगी, खो दूँगी।
- जो फांसी तोड़णिया आवे, तमाशा देखता जावे।
- होगा मुँह काला हे बाँदी ।। 3 ।।
- बेकसूर को मारें उनका जोर, देखूँगी, देखूँगी।
- बिना खुदा जो उसको मारे कौन और देखूँगी, देखूँगी।
- धर्मपालसिंह दिन-रात, गर्मी सर्दी और बरसात।
- रटूँ उसकी माला हे बाँदी ।। 4 ।।
वार्ता- सुबह फांसी के मैदान में जाकर शहजादी ने जल्लादों को खदेड़ दिया और कालीचन्द के गले में बाँह डालकर रोते हुए यों कहती है -
भजन-12 दुलारी (शहजादी ) का
- तर्ज : छोड़ के जा मत रे मेरे वीर, छोड़ के जा मत हो.......
- तेरे बिना बे-मौत मरूँगी।
- जाय मत हो मेरी ज्यान, छोड़ के जाय मत हो।। टेक ।।
- जिस माँ की गोदी में लेटी, तजे पिता जिसकी मैं बेटी।
- बसे तेरे में प्राण, छोड़ के जाय मत हो ।। 1 ।।
- तजदी साथण सखी सहेली, तेरे प्यार में आई अकेली।
- कहाँ चल दिये श्रीमान, छोड़ के जाय मत हो ।। 2 ।।
- तेरे बिना मेरी दुनिया सूनी, लेंगे ज्यान खड़े ये खूनी।
- मिले जमीं आसमान, छोड़ के जाय मत हो ।। 3 ।।
- कर दिये मेरे बाबल ने चाळे, गोरे बदन पर कपड़े काळे।
- देख हुई मैं हैरान, छोड़ के जाय मत हो ।। 4 ।।
- मेरे प्राण के नाथ चलूँगी, मैं भी आपके साथ चलूँगी।
- मान चाहे मत मान, छोड़ के जाय मत हो ।। 5 ।।
- भालोठिया कहे सोच दीवाना, गया वक्त फिर हाथ न आना।
- पछतावे नादान, छोड़ के जाय मत हो ।। 6 ।।
- वार्ता- सज्जनों ! शहजादी ने विकराल रूप बना लिया और जल्लादों को कहती है कि इसके हाथ लगाया तो तुम्हारी खैर नहीं है। जल्लादों ने बादशाह को बताया। बादशाह फांसी घर पर आकर शहजादी का ड्रामा देखता है ।
भजन-13 कवि का
- तर्ज : बार बार तुझे क्या समझाऊँ, पायल की झन्कार.........
- जहाँ बना था फांसी घर, वहाँ आया था सुलतान।
- देख ड्रामा शहजादी का, हो गया था हैरान ।।
- कालीचन्द मुलजिम के पास में, खड़ी पुकारे थी, पुकारे थी।
- कौन मारणिया मेरे पति को, रूक्के मारे थी, मारे थी।
- सिंहनी ज्यूँ ललकारे थी, सब गूँजे था आसमान ।। 1 ।।
- सुलेमान के कोई फैसला, समझ में नहीं आया, नहीं आया।
- दोनों को फांसी तोड़ो ये फोरी हुकम, सुनाया था, सुनाया।
- कालीचन्द को उसने बताया, महाकाफिर शैतान ।। 2 ।।
- समझ गया मैं इन दोनों के, सिर पर मौत बिराजे, बिराजे।
- जड़ से उखाड़ो बांस को, फिर नहीं बंसरी बाजे, बाजे।
- गीदड़ गाँव कैड़ भागे, जब काल चढ़े सिर आन ।। 3 ।।
- कर्महीन बालक की ये, मशहूर कहानी सै, कहानी सै।
- त्यौंहार के दिन रूसेगा, ये खास निशानी सै, निशानी सै।
- भालोठिया कहे अज्ञानी सै, ये कालीचन्द नादान ।। 4 ।।
वार्ता- सज्जनों ! ये समस्या देखकर बादशाह ने कहा-इन दोनों को फांसी दे दो। जल्लाद आगे बढ़े तभी शहजादी बोली जल्लादो पहले मुझे फांसी दो। जल्लाद फिर खड़े हो गये । कालीचन्द ने देखा कि ये तो मौत भी मेरे से पहले लेती है फिर तो वह झुककर बादशाह को न्यू बोला -
भजन-14 कालीचन्द का
- तर्ज - सत्यवान म्हारे ठहरण का इन्तजाम करिये .......
- सुलेमान से हाथ जोड़, चरणों में अरज गुजारी।
- रे उस कालीचन्द ने, करी शादी की तैयारी।। टेक ।।
- पहले जो कुछ गुनाह हुआ,उसकी माफी माँगूंगा मैं।
- महीने भर की छुट्टी दो, कहीं घूमकर आऊँगा मैं।
- अपने हिन्दू कुल को, अब दोबारा समझाऊँगा मैं।
- शुद्धि के लिए बड़े-बड़े, विद्वानों से सलाह मिलाऊँगा मैं।
- या तो शादी करवा देंगे या फिर निकाह करवाऊँगा मैं।
- यदि समाज नहीं माना तो, इस्लाम धर्म अपनाऊँगा मैं।
- जहाँ कहीं भी जाऊँगा, मेरे साथ में रहे दुलारी ।। 1 ।।
- बादशाह से छुट्टी लेकर, कालीचन्द रवाना हुआ।
- जो भी कहीं सुना उसने, बड़ा धाम माना हुआ।
- पण्डितों का गढ़ था, वहाँ सभी जगह जाना हुआ।।
- पाटलीपुत्र जगन्नाथपुरी, नालंदा बिहार गये ।
- उत्तर भारत मथुरा काशी, वृन्दावन हरिद्वार गये
- गोरखपुर केदारनाथ भी, होकर के लाचार गये।
- शहजादी कहे मेरी ज्यान, मैं चलती-चलती हारी ।। 2 ।।
- बड़ी जगह सुनी वहाँ, कालीचन्द जाता रहा।
- हाथ जोड़ कर चरणों में, वो अपना शीश झुकाता रहा।
- अपनी जो कहानी थी, वह सब जगह सुनाता रहा।।
- लेकिन जहाँ गया उसको, सब जगह बदकार मिले।
- गद्दीयों पर बैठे उसको, ईश्वर के ओतार मिले।
- दुष्ट नीच कहके देते, गाली बेशुम्मार मिले।
- धर्म के ठेकेदार मिले, इसे बड़े बड़े मठधारी ।। 3 ।।
- जिन पै था भरोसा उनके, देख के कमाल आया।
- सबने आँख मीच लीनी, किसी को नहीं खयाल आया।
- रोता शीश पीटता, हिन्दू जाति तेरा लाल आया।।
- बादशाह से आकर बोला, यह है प्रोग्राम मेरा।
- खुदा का सूँ बन्दा कोई, नया रखो नाम मेरा।
- चोटी काटो कलमा पढ़ूँ, मजहब सै इस्लाम मेरा।
- धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, जुल्म हुए बड़े भारी ।। 4 ।।
सज्जनों ! इस प्रकार दुलारी के निस्वार्थ प्रेम को देखकर कालीचन्द शादी के लिए हां कर देता है लेकिन इससे पहले दुलारी को साथ लेकर अपने धर्म गुरुओं के पास जाता है । धार्मिक कट्टरता के कारण सभी जगह निराशा हाथ लगी आखिर वापिस आकर इस्लाम धर्म स्वीकार कर लेता है और दोनों का निकाह हो जाता है ।