Dharampal Singh Bhalothia/Aitihasik Kathayen/Manjharani-Pratipal

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ऐतिहासिक कथाऐं


रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया

ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो. 9460389546


कथा-11: मंझारानी-प्रतिपाल

सज्जनों ! एक समय देश में राजा प्रतिपाल राज करते थे । उन्होंने सात शादियां की लेकिन कोई संतान नहीं हुई । एक दिन सातों रानियां तालाब पर नहाने गई तो इनको देखकर एक सेठानी मुँह फेर कर खड़ी हो गई । यह देखकर सातों रानियां बहुत परेशान हो गई -

भजन. 1 कथा परिचय

== दोहा ==

किसी समय इस देश में, था राजा प्रतिपाल।

शादी सात करवा लई, नहीं मिला एक लाल।

== आनन्दी ==
नहीं मिला एक लाल भूप को, हरदम रहती परेशानी।
मौज लूट रही थी महलों में, राजा की सातों रानी।
सत पकवानी बने रोज, कोई खानपान में मस्त रहे।
कई-कई सूट बदलती दिन में, कोई फैशन में व्यस्त रहे।
कोई राज का दिखा डठोरा, हुक्म चलावे बाँदी पर।
कोई करे सौ-सौ नखरा, और रौब जमावे बाँदी पर।
इस घर की कूढ़ी उठेगी, रोजाना भूप सुने चर्चा।
आगे शादी नहीं करूँ, कोई काम नहीं आया खर्चा।
एक दिन नहाने तालाब के ऊपर, आई थी सातों रानी।
इनको घाट पर आई देख, मुँह फेर खड़ी एक सेठानी।
रानी बोली कौन लुगाई, हमको देख मरोड़ करे।
धर्मपालसिंह कहे सुभाष, एक गीत में तोड़ करे।।

वार्ता- सेठानी ने कड़वे शब्दों में रानियों से कहा -

भजन-2 सेठानी का

तर्ज : मन डोले, मेरा तन डोले.........
बोली सेठानी, कड़वी बानी, जन्म लिया बेकार।
सातों डूब मरो मझधार।। टेक ।।
बुजुर्ग लोग बताया करते, एक ही बांझ कसूती हे।
पता नहीं आज के बीतेगी, मिलगी सात नपूती हे।
इसीलिए ही तुमको बतावें, लोग पैर की जूती हे।
एक साथ छः बच्चे देती, तुमसे अच्छी कुत्ती हे।
क्यों इतराती, नहीं शरमाती, जीना सै धिक्कार।
सातों डूब मरो मझधार ।। 1 ।।
जिस घर में नहीं छठी मनाई, वो मोडां का डेरा हे।
नहीं उजाला उस घर में, रहता दिन रात अन्धेरा हे।
राजा को दूँ सुझाव मैं, जो कहन मानले मेरा हे।
सातों को छुड़वादे बन में, खाज्यां शेर बघेरा हे।
नहीं करे माफ, हो रास्ता साफ, फिर नया बसे घरबार।
सातों डूब मरो मझधार ।। 2 ।।
बेइज्जती के हलुवे तैं, दलिये की थाली अच्छी हे।
फल विहीन पौधे से तो, काँटो की डाली अच्छी हे।
गोरे रंग की बाँझ नार से, काली-काली अच्छी हे।
गरीब घर की चाहे अनपढ़ हो, बच्चों वाली अच्छी हे।
नरक नमूना, घर सूना, जहाँ बच्चे नहीं दो चार ।
सातों डूब मरो मझधार ।। 3 ।।
चाहे बान्ध लो काची साड़ी, पहनलो सूट रंगीला हे।
वो निर्भागण नारी जिसने, नहीं ओढ़ा पीला हे।
जिस घर में नहीं थाली बाजी, निराश कुटुम्ब कबीला हे।
धर्मपालसिंह कहे उस घर का, होजा ऊट-मटीला हे।
सुभाष कहे, नहीं कोई रहे, उसका फिर रिश्तेदार।
सातों डूब मरो मझधार ।। 4 ।।

वार्ता- राजा सातों रानियों के विशेष आग्रह पर शादी के लिए तैयार हो जाता है ।

भजन-3 सातों रानियों का-भूप से फरियाद

तर्ज : चौकलिया
भूप के आगे हाथ जोड़, न्यू बोली सातों रानी।
शर्त करो मंजूर नहीं तो, छोड़ दिया अन्न-पानी।। टेक ।।
नहाने गई तालाब के ऊपर, एक साथ हम सारी।
घाट बने न्यारे-न्यारे, जहाँ नहावें थे नर-नारी।
जहाँ जनाना घाट बना था, उसकी शोभा न्यारी।
घाट के चारों ओर बनी थी, ऊँची चार दीवारी।
बारी नहाने की देखे थी, वहाँ खड़ी एक सेठानी ।। 1 ।।
बीच बिचाले तालाब के, एक था रंगदार फुहारा।
कोई घाट पर नहावे थी, कोई देखे खड़ा नजारा।
सेठानी फिर बोली अकड़ के, उसने ताना मारा।
मार के ताना उसने म्हारा, खून फूँक दिया सारा।
बोली बाँझ लुगाई गन्दी, डाकन बच्चे-खानी ।। 2 ।।
हम सातों आज हाथ जोड़ के, खड़ी आपके पास।
शादी और करवानी होगी, शर्त हमारी खास।
किसी राजा की जवान बेटी, जल्दी करो तलाश।
लाल किरोड़ी आवे महल में, जिस दिन हों नो मास।
हो जा पूरी आस, कोई मिल जागी छोरी सयानी ।। 3 ।।
शर्त करी मंजूर, नहीं राजा ने देर लगाई।
शक्तिपाल राजा के घर में, जवान बेटी पाई।
उसी रोज हो गये फेरे, जिस दिन थी गोद भराई।
भालोठिया कहे आठवीं रानी, मंझा महल में आई।
गर्भवती हुई मंझारानी, खुशी भूप के छाई।
राजा करे प्यार मंझा से, वो सातों हुई पुरानी ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
सातों रानी घर में प्यार देखके मंझा रानी का।
बोली ईश्वर हमें उठाले, मजा नहीं जिन्दगानी का।
विचार करके सातों ने फिर, पुरोहित को बुलवाया है।
शीश पीटके बोली सातों, हाहाकार मचाया है।।

वार्ता- सातों रानियों ने पुरोहित को बुलाकर कहा कि मंझा रानी को मारने की योजना बनाओ ।

भजन-4 सातों रानियों का पुरोहित से

तर्ज : होगा गात सूक के माड़ा, पिया दे दे मनै कूल्हाड़ा ......
दादसरे ध्यान लगाले, हम सातों के प्राण बचाले।
पाले बहुत बड़ी जागीर तूं , बनज्या सबसे बड़ा अमीर तू।। टेक ।।
हमारे ऊपर संकट की आज, घटा उठ के आई।
और किसी का दोष नहीं, खुद हमने गलती खाई।
ब्याही जब से मंझा रानी, हम सातों हो गई बेगानी।
पुरानी फिर लिख दे तकदीर तूं ,बनजा सबसे बड़ा अमीर तू ।। 1 ।।
किसी नई बिमारी का जब, कोई आ जाता बीमार।
वैद्य डॉक्टर फौरन करते, ताजा आविष्कार ।
त्यार नुस्खा कोई बनाईये, तू भी ताजा दांव लगाईये।
खाइये हलुवा पूरी खीर तूं ,बनजा सबसे बड़ा अमीर तू ।। 2 ।।
हो दया आपकी, सारी उमर, हम सातों स्वर्ग में झूलें।
मंझा सौकन को मरवादो, आपके गुण नहीं भूलें।
फूलें फेर खुशी में सातों, आपके गुण गावेंगी रातों।
बातों-बातों मार दे तीर तूँ ,बनजा सबसे बड़ा अमीर तू ।। 3 ।।
धर्मपालसिंह कहे सदा, दादां ने खेल बिगाड़े।
बड़े-बड़े राजे महाराजे, बसते हुए उजाड़े।
झाड़े लगावें बड़े कसूते, अब मारो कसकर जूते।
सूते लोग जगादे बीर तूं ,बनजा सबसे बड़ा अमीर तू ।। 4 ।।

वार्ता- पंडित जी दरबार में आया। राजा को पतरा दिखाके आगे का हाल बताया ।

भजन-5 पुरोहित का राजा से

तर्ज : तेरे पूजन को भगवान ........
मेरी बात सुनो महाराज, घर में बड़गी नागीन काली।। टेक ।।
मैंने देख लिया पतरा, राज के ऊपर आया खतरा।
रहेंगे नहीं तख्त और ताज, आप नहीं खतरे से खाली ।। 1 ।।
खतरा बनगी मंझा रानी, धन दौलत इज्जत की हानि।
खाने को नहीं मिले अनाज, इतनी आजा कंगाली ।। 2 ।।
इसने नहीं किसी को बख्शा, घर का बदल दिया सब नक्शा।
सातों रानी सैं नाराज, उनकी खोस लई ताली ।। 3 ।।
मंझा रानी को मरवाओ, भालोठिया को मतना बताओ।
इसका यही सै एक इलाज, फिर आ जावे खुशहाली ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
बात पुरोहित की सुनके, हुई राजा को चिन्ता भारी।
उसी वक्त कर दिये, मंझा की मौत के वारंट जारी।
जल्लादों को बुलवा करके, दिया राजा ने परवाना।
मंझा को लो उठा रात को, गहरे वन में ले जाना।
रात को इसको खत्म करो और जमीं के अन्दर दफनादो।
इसके बदन की कोई निशानी, काटकर मुझको लादो।।

वार्ता- राजा ने पुरोहित की बात को सत्य मानकर जल्लादों को बुलाकर मंझा रानी को मरवाने के लिए हुक्म दिया और कहा कि अभी सूनसान जंगल में ले जाओ और मार कर उसकी कोई निशानी मुझे लाकर दो । उसके बाद जल्लाद रात को महल में जाते हैं ।

भजन-6 जल्लादों का रानी से

तर्ज : गंगा जी तेरे खेत में........
चिट्ठी ले प्रतिपाऽऽऽल की, चले चार जल्लाद।
गये रणवाऽऽऽस में , जहाँ सोवे थी रानीऽऽऽ।। टेक ।।
चोर-चोर, रही मचा शोर, रानी के पास आ गई दासी।
महल में बड़के, ऊपर चढ़के, कमरों की ले रहे तलाशी।
देख शकल, हो गई हलचल, रानी हैरान हुई थी खासी।
हुई परेशानी, देख के रानी, सोच रही थी करके गौर।
मेरा ठिकाना, महल जनाना, मर्द नहीं कोई आवे और।
ये नालायक, ज्यान के ग्राहक, हैं जल्लाद नहीं कोई चोर।
जरूरत नहीं धनमाऽऽऽल की, चाहिये नहीं जायदाद।
मेरी तलाऽऽऽश में, ये फिरते अभिमानीऽऽऽ।। 1 ।।
रानी बोली, अब हद होली, बड़गे आज महल में खूनी।
मैं क्षत्राणी, भूप की राणी, क्योंकर आज समझ ली सुन्नी।
ओ हत्यारो, किस को मारो, सिर पै नाच रही सै हूनी।
करी बदमाशी, सत्यानाशी, राजा को दे दूँ समाचार।
हुक्म तेज, दे पुलिस भेज, और साथ में आवे थानेदार।
मारें सोट, दें फोड़ होठ, सुजा दें गुद्दी मार-मार।
उतार परत दें खाऽऽऽल की, नाहक करो फसाद।
कारागाऽऽऽर में, बीतेगी जिन्दगानीऽऽऽ।। 2 ।।
बोले रानी, सुनो कहानी, नया फैसला आज का।
मौत का वांरट दे दिया, झट परवाना महाराज का।
कौन खता, नहीं लगा पता, राजा के खास मिजाज का।
हम तो डरते, पालन करते, राजा के आदेश का।
आपका सिर कटवाके आज फिर, पेटा भरे नरेश का।
हमको पूरी, मिले मजदूरी, ये म्हारा काम हमेश का।
चिंता रोटी दाऽऽऽल की, धर्म कर्म नहीं याद।
बारह माऽऽऽस में, ये रहती है परेशानीऽऽऽ।। 3 ।।
नहीं शराबी, नहीं कबाबी, नहीं हमने पी रखी भाँग।
उठावें सोती, मांगे फिरोती, म्हारी नहीं इसी कोई मांग।
आपको मारें, शीश उतारें, नहीं ये लोग दिखावा सांग।
रात अन्धेरी, हो सै देरी, पड़े छोड़ने महल मकान।
बाहर निकल, और पैदल चल, जहाँ मिले जंगल सुनसान।
धार लगाके, तेग चलाके, आप के हम ले लें प्रान।
भालोठिया धर्मपाऽऽऽल की, मिले नहीं इमदाद।
उसकी आऽऽऽस में, नहीं चाले मनमानीऽऽऽ।। 4 ।।

वार्ता- अब राजा भी महल में आ गया। रानी की एक भी बात नहीं सुनी। जल्लादों को धमका के बोला झटपट इसको बियाबान जंगल में ले जाओ और इसको मारकर मुझे सूचना दो ।

भजन-7 रानी का जल्लादों से

थर-थर-थर-थर कांपे रानी, आँखों में बरसे था पानी,
रो-रो करे विलाप, जल्लादो मत मारो।। टेक ।।
सुन्नी हुई, कलेजा धड़के, भारी दर्द मेरा सिर भड़के ।
चढ़ता आवे ताप, जल्लादो मत मारो ।। 1 ।।
मेरा आज नहीं कोई साथी, रूठ गये सब गोती नाती।
तुम्ही माई और बाप, जल्लादो मत मारो ।। 2 ।।
मेरे पेट के अन्दर बच्चा, इतना कोमल फूल सा कच्चा।
डबल लगेगा पाप, जल्लादो मत मारो ।। 3 ।।
तेग तुम्हारी जब चालेगी, धरती माता भी हालेगी।
आसमान जा काँप, जल्लादो मत मारो ।। 4 ।।
दे दो जीवन मांगू उधारा, ईश्वर करेगा भला तुम्हारा
ज्यान बख्श दो आप, जल्लादो मत मारो ।। 5 ।।
भालोठिया थारे गीत बनादे, सुभाष फिर गाके सुनादे।
घर जाओ चुपचाप, जल्लादो मत मारो ।। 6 ।।

वार्ता- जल्लादों को दया आ गई और जेवर लेकर छोड़ दिया लेकिन एक जल्लाद बोला सुहागी साड़ी मेरी है उतारकर दे दो तो रानी साड़ी भी उतार कर दे देती है ।

भजन-8 रानी का जल्लादों से

तर्ज : जमाई मेरो छोटो सो,मैं किस पर करूं गुमान ........
कसाई कुछ दया करो, क्यों मेरी उतारो साड़ी।। टेक ।।
शीश पीट के रानी रोई और कपड़ा नहीं तन पै कोई।
कार करे मत माड़ी ।। 1 ।।
फिर जल्लाद अकड़ के बोला, क्यों नाहक में करती रोळा।
मेरी ये खास दिहाड़ी ।। 2 ।।
एक बोझे की ओट में आई, तन से साड़ी उतार बगाई।
रह गई नग्न उघाड़ी ।। 3 ।।
भालोठिया कहे मार वक्त की, हवा गई सब ताज तख्त की।
पैरों को पाड़े झाड़ी ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
एक जल्लाद को दया आ गई, बोला इसको मत मारो।
राजा को निशानी देने के लिए, नकली कोई सांग धारो।
वहीं मृग एक मरा पड़ा, बोला इसकी आँख निकालो तुम।
राजा को दे करके निशानी, अपनी बात बनालो तुम।
रानी छोड़ दई वन में, ये फिरती झुण्डे झाड़ों में।
पूरी रात भर चलती रही थी, बियाबान उजाड़ों में।।

वार्ता- जल्लाद रानी को नंगे बदन वं में छोड़ कर चले जाते हैं । जल्लादों से ज्यान बचाकर रानी आगे चली सवेरा हो गया । ऊंचे पहाड़ के नजदीक एक गहरे सूखे नाले में डेरा जमा लिया ।

भजन-9 कवि का

तर्ज : भगत रहे टेर टेर, आओ ना लगाओ देर.....
दिन निकला पहाड़ो में आके, एक नाले में गुफा बनाके,
रानी ने घर बना लिया।। टेक ।।
खोद-खोद करके रानी ने, मिट्टी बाहर निकाली थी।
बैठो उठो और सो जाओ, पूरी जगह बनाली थी।
सोने के लिए ठौड़ बनाई, पत्ते तोड़-तोड़ के लाई।
उनका बिस्तर बना लिया ।। 1 ।।
खुद ही नक्शा बना लिया, वहाँ कोई नहीं इंजीनियर था।
कोई नहीं मजदूर था, वहाँ कोई नहीं कारीगर था।
नहीं ईंट और सीमेंट चूना, कहीं देखा नहीं इसा नमूना।
बंगला सुन्दर बना लिया ।। 2 ।।
बाप के घर पै राजकुमारी, पति के घर पै रानी थी।
महलों वाले ठाठ-बाठ, सब भूली बात पुरानी थी।
भूल गई सब लाभ और हानि, नहीं लावे आँखों में पानी।
दिल को बज्जर बना लिया ।। 3 ।।
पहाड़ के अन्दर से निकले था, ताजा पानी का झरना।
धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, पड़ता नहीं गर्म करना।
रानी रोज वहाँ नहावे थी, ईश्वर का ध्यान लगावे थी।
धाम पवित्र बना लिया ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
रानी के पेट में दर्द चला, थोड़ा सा पानी गर्म पिया।
रात को थोड़ी देर बाद में, नाले में नल ने जन्म लिया।
सुबह ही रानी न्हाई आप, बच्चे को स्नान करवाया।
घूंटी पिलाई बच्चे को और आपने थोड़ा फल खाया।।

वार्ता- अगले दिन रानी ने एक बच्चे को जन्म दिया और अपने आप को सम्भाला फिर अपने अतीत को याद करते हुए संकट के समय भगवान से अरदास करती है -

भजन-10 रानी का ईश्वर से

तर्ज : ले के पहला पहला प्यार........
ईश्वर तू है सर्वाधार, सारे जग का पालनहार।
हो सै देरी, अब मेरी, लो जल्दी खबर।। टेक ।।
महलों में जन्मी थी मैं, महलों में ब्याही।
आज मेरे ऊपर क्यों, ये पड़ी सै तबाही।
आई घोर मुसीबत आज, रोटी कपड़े की मोहताज।
वन में नंगी, फिरूँ मैं, नहीं रहने को घर ।। 1 ।।
नले में बना के गुफा, उसमें लगाया डेरा।
दिन में सतावे गर्मी, रात को छाया अन्धेरा।
मेरा दुख पावे सै गात, सिर पै आ जावे जब रात।
रोवे बिलख-बिलख, मेरा लखते जिगर ।। 2 ।।
पौधों के फल तोड़-तोड़, भूख मिटाऊँ तन की।
बच्चे को पिलाऊँ घूंटी, औषधि मिलाके वन की।
मन की डटे नहीं झाल, जब रोवे सै मेरा लाल।
मेरी आँखों में आवे, सै पानी भर ।। 3 ।।
सौकन मनावें खुशी, आज महल में।
भालोठिया कहे वो घूमें, रथ बग्गी बहल में।
टहल में बाँदी तैयार, रहे हाजिर सेवादार।
प्यार आपस में आज, उन पर राजा की नजर ।। 4 ।।
== दोहा ==
घूमते फिरते आ गया, वहाँ मनसाराम वजीर।
रानी ले बच्चा, बड़गी गुफा में, बिल्कुल नंगा शरीर।।

वार्ता- सज्जनों ! मंझा ने झरने पर स्नान किया। बच्चे को नहलाया फिर गोदी मे लेकर बैठी। बच्चा माँ का दूध पी रहा था तभी घूमता फिरता प्रतिपाल राजा का वजीर मनसाराम वहां आ गया। मंझा वजीर को देखकर गुफा में चली गयी। वजीर अपने को धर्म का बाप कहते हुए मँझा से आप बीती बताने के लिए कहता है ।

भजन-11 मनसाराम वजीर का

तर्ज : दिल लूटने वाले जादूगर............
नंगा बदन ये बड़गी गुफा में, दुखिया नार दिखाई दे।
कोई नगर घर गाँव नहीं, इसका परिवार दिखाई दे।। टेक ।।
गोद में इसके बच्चा सै, ये बच्चा बिल्कुल कच्चा सै।
ये अभी तैयार की जच्चा सै, नहीं निकली बाहर दिखाई दे।। 1 ।।
शर्म की मारी गड़गी ये, मुझे देख गुफा में बड़गी ये।
भारी चिंता में पड़गी ये, होकर शर्मसार दिखाई दे ।। 2 ।।
किसी श्रेष्ठ कुल की जाई ये, और मूर्ख संग ब्याही ये।
इसलिए घणी दुख पाई ये, रूठा भरतार दिखाई दे ।। 3 ।।
बोला बीती आप बतादे तू, मैं धर्म का बाप बतादे तू।
मेरी बेटी साफ बता दे तू, हो हल्का भार दिखाई दे ।। 4 ।।

वार्ता- मनसाराम वजीर ने दुखिया औरत से उसका पता ठिकाना व इस हालत का कारण पूछा ।

भजन-12 मनसाराम वजीर का

तर्ज : हे हे, देवकी के जतन बनाऊँ मैं---
हे हे, अपना हाल बतादे हे,
कहाँ पर तेरा पीहर, कहाँ ससुराल बतादे हे।। टेक ।।
दूर तक घर गाम नहीं, भयंकर उजाड़ बेटी।
कहीं पर सै झील, कहीं ऊँचे-ऊँचे पहाड़ बेटी।
कहीं ऊँचे पेड़ खड़े, कहीं झुण्डे झाड़ बेटी।
कहीं मस्त ऊँट खड़े, पीस रहे जाड़ बेटी।
चीते रींछ भगेरे बोलें, शेरों की दहाड़ बेटी।
जंगल सारा गूँजे, हाथी मारते चिंघाड़ बेटी।
हे हे, क्यों बिखरे बाल बतादे हे ।। 1 ।।
जन्म भूमि कहाँ तेरी, कौनसा घर गाम बेटी।
माता बुलाया करती, क्या लेकर के नाम बेटी।
अपने खानदान का तू, पता दे तमाम बेटी।
जंगल में बिचरती फिरती, सुबह और शाम बेटी।
खाने पीने का सै, कहाँ पर इन्तजाम बेटी।
तेरे बिना नहीं बना, के जरूरी काम बेटी।
हे हे, के सै जाल बतादे हे ।। 2 ।।
चेहरे पर उदासी, तेरा काँप रहा गात बेटी।
लड़ा है पति या रूठे, पिता और मात बेटी।
या फिर कहीं बिछुडी़ तेरी, सखियों की जमात बेटी।
डरे ना बतादे अपनी, सच्ची-सच्ची बात बेटी।
किस पापी ने तेरे संग में, किया उत्पात बेटी।
गोदी में बच्चे को लेकर, फिरे दिन-रात बेटी।
हे हे, यो किसका लाल बतादे हे ।। 3 ।।
किस चक्कर में फिरे आज, बनी तू दीवानी बेटी।
तेरी तरह कोई नहीं, फिरती है जनानी बेटी।
राज ताज तख्त किसने, खोसी राजधानी बेटी।
देख लिया होगा सारा, जंगल घूम-घूम बेटी।
बेटा खिलावे गावे गीत, झूम-झूम बेटी।
कभी तू लडावे लाड, मुख चूम-चूम बेटी।
हे हे, कहे धर्मपाल बतादे हे ।। 4 ।।
== आनन्दी ==

मनसा राम ले मां बेटे को, अपने घर पर आया है।

सेठानी ने इनको घर में, बेहद प्यार दिखाया है।।

वार्ता- वजीर रानी मँझा और बच्चे को घर ले आया, बच्चा बड़े लाड प्यार से पलने लगा । कवि यहाँ ईश्वर की अद्भुत लीला का वर्णन करता है ।

भजन-13 कवि का

तर्ज : बार-बार तोहे क्या समझाऊँ..........
हे भगवान दयालु, तेरी लीला अपरम्पार।
सेठ-सेठानी राजकुमार के, बन रहे पालनहार।। टेक ।।
छोटे बड़े जितने भी घर में, बेहद प्यार दिखाते।
सेठ-सेठानी बेटा-बेटा, कहके पास बुलाते।
खाना खिलाते, दूध पिलाते, इच्छा के अनुसार ।। 1 ।।
खेल कूद में बचपन सारा, रहा था बीत मौज में।
कभी-कभी ट्रेनिंग लेता, राजा की खास फौज में।
चन्द रोज में बना इतना गजब का, घोड़े का असवार।। 2 ।।
जिसका खानदान क्षत्रिय, नहीं कोई कमी नसल में।
तन में जिसके दौड़ रहा, राजा का खून असल में।
बल में अकल में इससे बढ़के, कोई नहीं सरदार ।। 3 ।।
साधु संत की सेवा जो कोई, करता मान ऋषि का।
समय हाथ से नहीं जाने दे, मिलता लाभ इसी का।
भालोठिया कहे समय किसी का, करता नहीं इन्तजार । 4।
== राधेश्याम ==
अठारह साल का नल हो गया था, शस्त्र विद्या में होशियार।
इसके बराबर पूरी फौज में, घोड़े का कोई नहीं असवार।
कभी-कभी वह पुष्कर के संग, चौपड़ खेला करता था।
इतना गजब खिलाड़ी बन गया, नहीं किसी से डरता था।
एक दिन वन में घूम रहा, एक चौपड़ का पासा पा गया।
नाना को दिया पासा लाकर, जल्दी अपने घर आ गया।
वजीर ने फिर पासा दे दिया, राजा को उपहार में।
धमकाया राजा ने वजीर, बोला था अहँकार में ।।

वार्ता- सज्जनों ! एक दिन नल घोड़े पर चढ़ जंगल में घूम रहा था तो एक चौपड़ का पासा मिला । वह पासा नल ने वजीर को दिया । वजीर ने वो पासा राजा को भेंट कर दिया लेकिन वही भेंट वजीर के लिए मुसीबत बन गई । पासा मिलने पर राजा वजीर से कहता है -

भजन-14 राजा का वजीर से

तर्ज : जरा सामने तो आओ छलिये, छुप छुप जीने........
जरा होश में तो आओ रे लाला, झूठा बना साहूकार तू।
पासा एक दिखावे, नहीं ल्याया चौपड़-स्यार तू।। टेक ।।
चौपड़ नहीं देनी चाहे, मैं बात समझ गया तेरी।
झूठी कहानी बना-बना के, करता हेरा फेरी।
क्यों अकल मारता मेरी, मत बने घणा होशियार तू ।। 1 ।।
जिसकी दाढ़ी में तिनका हो, उसकी दाल में काला।
बनिये का ये काम दिखावे, पूंजी राख दिवाला।
पड़ गया राजा तैं पाला, छुप-छुप करे शिकार तू ।। 2 ।।
सोलह स्यार हों चौपड़ साथ में और ल्यादे दो पासा।
नहीं तो बुरा नतीजा होगा, सुनले तोड़ खुलासा।
हो जागा जेल में बासा, भुगतेगा कारागार तू ।। 3 ।।
पूरी चौपड़ ल्यादे तू, मैं इनाम दूँगा भारी।
धर्मपालसिंह भालोठिया कहे, रहज्या साहूकारी।
इज्जत की कीमत सारी, बिना इज्जत बेकार तू ।। 4 ।।

वार्ता- राजा ने वजीर मनसाराम को कहा कि या तो कल पूरी चौपड़ ला देना नहीं तो फिर आपको कड़ी सजा मिलेगी, वजीर ने घर आकर समाचार बताया।

भजन-15 वजीर का नल से

तर्ज : चौकलिया
मनसाराम वजीर न्यू बोला, जुल्म हो गया नल बेटा।
मेरी मौत और जिन्दगी का, बने फैसला कल बेटा।। टेक ।।
पड़ा नले में रोवे था जब, मैंने तेरा सुना विलाप।
हाल देखकर माँ बेटे का, मेरा गया कलेजा काँप।
आपकी माँ फिर बेटी बनाई, मैं बन गया धर्म का बाप।
माँ बेटे को अपने घर पै, पहुँच गया लेकर चुपचाप।
मैंने अपना धर्म निभाया, नहीं किया कोई छल बेटा ।। 1 ।।
घर में बच्चे रहें बिराने, कहीं भी नहीं सुनी ये बात।
आपकी माँ के जन्मदाता, नहीं आये याद पिता और मात।
चली पढ़ाई, मिले वक्त पर, कापी कपड़े कलम दवात।
पति-पत्नी फिर हम दोनों, सेवा में लगे रहे दिन-रात।
सेवा के बदले में हमको, मिला मौत का फल बेटा ।। 2 ।।
मेरी करड़ाई, उस दिन लागी, जिस दिन तू लाया पासा।
राजा देगा इनाम भारी, मेरे थी दिल में आशा।
पासा एक देख कर, राजा बोला था, करड़ी भाषा।
पूरी चौपड़ लादे नहीं तो, कोर्ट में करूँ इस्तगासा।
बासा मेरा जेल में हो, या करदे मुझे कतल बेटा ।। 3 ।।
मंझा ने ये बात सुनी जब, हूक मार के रोई थी।
सारे दिनभर रही सुबकती, नहीं रात भर सोई थी।
जिसमें खाना बनता था, वो सूनी पड़ी रसोई थी।
चाया नाश्ता नहीं बना और रोटी तक नहीं पोई थी।
धर्मपालसिंह भालोठिया कहे, होनी हो प्रबल बेटा ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! नल ने नाना से कहा की राजा से एक महीने की मोहलत ले लो तब तक इस समस्या का हल निकाल लेंगे ।

भजन-16 नल का वजीर से

तर्ज : बार बार तोहे क्या समझाऊँ.............
बोला नल अब नानाजी, करो राजा से अरदास।
एक महीना की छुट्टी ले लो, चौपड़ करूँ तलाश।। टेक ।।
सत्य की बाँदी लक्ष्मी कभी, आके फेर मिले, फेर मिले।
पानी मिल जा बाड़ी में, मुर्झाया फूल खिले, फूल खिले।
रोगी को जब तक दवा झिले, नहीं टूटा करती आस ।। 1 ।।
सच्ची लगन हो पक्का प्रण, जो आगे कदम धरे, कदम धरे।
राम हिमाती हिम्मत का, वो कारज सिद्ध करे, सिद्ध करे।
जो संकट में नहीं डरे, उसका बनता इतिहास ।। 2 ।।
भील गडरिये बसते, बियाबान उजाड़ों में, उजाड़ों में।
अपनी बना झोंपड़ी, रखते रेवड़ बाड़ों में, बाड़ो में।
बैठे-बैठे पहाड़ो में वो, खेलें चौपड़ ताश ।। 3 ।।
उस जंगल में जाऊँगा मैं, जहाँ मिला पासा, मिला पासा।
आस पास कोई गाँव मिलेगा, वहाँ करूँ बासा, करूँ बासा।
भालोठिया कहे करूँ खुलासा, ल्यादूँ चौपड़ खास ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
चढ़ घोड़े पर चल दिया नल, अब चौपड़ की तलाश में।
चलते-चलते वन में पहुँच गया, बद्री भील के पास में।
नगरी के बीच में बड़ा चौक, वहाँ छाया खास रहे बड़ की।
बड़ के नीचे भील बैठ के, बाजी लगावें चौपड़ की।।

वार्ता- नल नाना से वायदेनुसार जंगल में भीलों के पास जाता है उनसे शर्त में चौपड़ जीतकर नाना को लाकर दे देता है ।

भजन-17 कवि का

तर्ज : चौकलिया
पन्ना भील और नल दोनों की, लिखतम हो गई त्यार।
शर्त लगाके खेलन लागे, बिछ गयी चौपड़-स्यार।। टेक ।।
दर्शक बैठ गये जम के, अब शुरू हो गया खेल।
इन्तजाम था इतना पूरा, नहीं हो धक्का पेल।
दोनों खिलाड़ी चलें बराबर, मिला गजब का मेल।
पता नहीं कौनसा जीतेगा, कौनसा होगा फेल।
जब तक हार जीत नहीं होगी, करना हो इन्तजार ।। 1 ।।
पन्ना बोला खेलूँ पे्रम से, करूँगा नहीं अकड़ मैं।
दांव लगाऊँ जोड़-जोड़ के, पासे पकड़-पकड़ मैं।
कभी खेल में रोल मचाके, करूँ नहीं गड़बड़ मैं।
हार गया तो बड़े प्रेम से, दे दूँगा चौपड़ मैं।
तुरंत दान करूँ महापुण्य, मैं राखूं नही उधार ।। 2 ।।
नल बोला मैं वचन का पक्का, नहीं जीवन में तोड़ा।
जिसको मैंने वचन दे दिया, पूरा करके छोड़ा।
मेरे खेल की कला निराली, कभी ना पासा जोड़ा।
मैं हारा तो आपको अपना, पकड़ा दूँगा घोड़ा।
मर्द की गई जबान तो उसका, जीना है धिक्कार ।। 3 ।।
पन्ना की थी जीत चार में, जोर लगा दिया सारा।
पासा तीन पड़या काणा, न्यू पन्ना बाजी हारा।
नल ने पासा लिया हाथ में, पड़ग्या था पौ-बारा।
भालोठिया कहे जीत गया नल, हो गया जय-जयकारा।
चौपड़ लेकर नल अपने घोड़े पर हुआ सवार ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
चौपड़ दे दी नानाजी को, नल ने अपने घर आकर।
वजीर ने फिर उसी वक्त दी, चौपड़ राजा को जाकर।।

वार्ता- सज्जनों ! राजा प्रतिपाल एक दिन शिकार खेलते हुए भीलों की सीमा में शेर का शिकार करता है। भीलों का सरदार क्रुद्ध होकर राजा को बंदी बना लेता है । नल भीलों को मारकर राजा को मुक्त करवा लेता है, घर वापसी में भीमा नगरी में शाम हो जाती है ।

भजन-18 आल्हा डगर - राजा प्रतिपाल का वन में जाना

राजा प्रतिपाल एक दिन बन में, खेलण गया शिकार।
पाँच सात लिए बन्दे साथ में, घोड़ों पर हो गये सवार।
गहरे बन में शेर मिलेगा, अपनी तेज करी रफ्तार।
शेर दहाड़ा जब झाड़ी में, भूप ने दिया निशाना मार ।। 1 ।।
तीर भूप का लगा छाती में, शेर बब्बर के निकले प्रान।
बाहर निकाला था झाड़ी से, जहाँ पर था खाली मैदान।
भीलों का सरदार आ गया, लेकर अपने साथ जवान।
बोला पकड़ो इस पाजी को, आ गया कौन आज शैतान ।। 2 ।।
हमारी हद में शेर मार दिया, जालिम ने दिये जुल्म गुजार।
साथी भागे जान बचाके, भूप ने डाल दिये हथियार।
राजा पकड़ के बन्द कर दिया, जहाँ भीलों का कारागार।
आये भगोड़े राजा के घर, घटना का दे दिया समाचार ।। 3 ।।
नल ने अपनी फौज सजाई, पल की नहीं लगाई बार।
पहुँच गये थे उसी जंगल में, जहाँ भीलों का था अधिकार।
लेकर अपनी टोली आ गया, भीलों का दीना सरदार।
देखते-देखते उसने नल के, ऊपर झोंक दई तलवार ।। 4 ।।
नल ने अपना बचाव कर लिया, ढ़ाल पै लगी तेग की धार।
चाली नल की तेग दुधारी, दीना का दिया शीश उतार।
भग्गी पड़गी थी भीलों में, बोले नहीं बसावे पार ।
सारी नगरी खाली हो गई, कोई बचा नहीं नर-नार ।। 5 ।।
कारागार से बाहर निकाला, प्रतिपाल किया आजाद।
नल को लगा लिया छाती से, देने लगा था आशीर्वाद।
आज रात को मरवा देते, तैयार कर लिया था जल्लाद।
नल बेटा मेरी जान बचादी, ता-जिन्दगी रखूँगा याद ।। 6 ।।
भीलों से छुड़वाया भूप को, नल ने किया गजब का काम।
करी तैयारी वापिस घर की, साथ मंत्री मनसाराम।
मंजिल-मंजिल चलते-चलते, जंगल कर दिया पार तमाम।
धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, भीमा नगरी हो गई शाम ।। 7 ।।

वार्ता- भीमा नगरी में राजा भीमसेन की राजकुमारी दमयन्ती की स्वयंवर शादी ।

भजन-19 कवि का

तर्ज : जमाई मेरो छोटो सो, मैं किस पर करूँ गुमान ........


भीमा नगरी में, आ रही थी अजब बहार।। टेक ।।
भीमसेन की शहजादी, दमयन्ती की थी शादी।
लगा हुआ दरबार ।। 1 ।।
पहुँच गये थे सजधज के, अपना इष्टदेव भजके।
आ रहे थे राजकुमार ।। 2 ।।
मछली की आँख में मारे तीर, उसकी जागेगी तकदीर।
मिलेगा परचा त्यार ।। 3 ।।
बारी-बारी सब आये थे, अपने बाजू आजमाये थे।
गये खाली सबके वार ।। 4 ।।
निराश हुए थे सब राजा, सबका बन्द हुआ बाजा।
बैठ गये सब हार ।। 5 ।।
नल का नम्बर आया था, चिल्ले पर तीर चढ़ाया था।
दिया निशाना मार।। 6 ।
भीमसेन हरसाया था, झट नल को गले लगाया था।
हो रही थी जय-जयकार ।। 7 ।।
धर्मपालसिंह ने आके, नल दमयन्ती को बैठा के।
करवा दिया ब्याह-संस्कार ।। 8 ।।

सज्जनों ! नल के स्वयंवर मे जीतने पर राजा भीमसेन ने नल-दमयन्ती की शादी धूमधाम से कर दी ।

भजन-20 कवि का

तर्ज : चौकलिया
दमयन्ती की शादी करके, खुश मम्मी और पापा था।
नही दिखावा किया भीम ने, दान का बन्द लिफाफा था।। टेक ।।
नल ने अपनी बल विद्या की, छाप सभा में छोड़ी थी।
पूरी शर्त स्वयंवर की हो, आँख मीन की फोड़ी थी।
भीमा नगरी नल को देखन, आई दौड़ी-दौड़ी थी।
दमयन्ती और नल की मिलगी, सारस जैसी जोड़ी थी।
छः फुट का था नल छोरा, जब बारोठी पर नापा था ।। 1 ।।
नहीं पंडित से पतरे में कोई, मुहूर्त घड़ी दिखाई थी।
नहीं छोरे का टीका, नहीं छोरी की गोद भराई थी।
नहीं तेल और बान किया, और पीठी नहीं लगाई थी।
नहीं घुड़चढ़ी कंगन-डोरा, नहीं आँखों में स्याही थी।
नहीं मोड़ था सिर के ऊपर, लगा कुदरती छापा था ।। 2 ।।
वेद विधि से ब्याह संस्कार, हो गया राजकुंवारी का।
विदा के ऊपर महिला देती, नल को नेग जुहारी का।
यथा-योग्य सम्मान किया था, नल की सेना सारी का।
नानका दादका दे पंचाती, लिया नेग मनियारी का।
प्रतिपाल के भीम की रानी ने, लगा दिया थापा था ।। 3 ।।
नल और दमयन्ती चढ़ावण, लोग नगर के आये थे।
मात-पिता के चरणों में, दोनों ने शीश झुकाये थे।
बूढ़ों से आशीर्वाद लिया, जवानों से हाथ मिलाये थे।
भालोठिया कहे सहेलियों ने, गीत वक्त के गाये थे।
भीम भूप ने प्रतिपाल समधी के, बांधा साफा था ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
घर पर आकर राजा ने, अपना दरबार लगाया है।
अपनी फौज का नल को, प्रधान सेनापति बनाया है।
मनसा राम मंत्री को दिया, प्रधानमंत्री का दरजा।
योजना और बहुत जनहित की, खुशी मनावे थी परजा।
नल ने दिया निमंत्रण, कल महाराज हमारे घर आना।
सातों रानी आवें साथ में, आपको माँ देंगी खाना।।

वार्ता- सज्जनों ! राजा प्रतिपाल नल के साथ घर आया और भोजन किया। भोजन के बाद राजा बोला ऐसा खाना कभी रानी मंझा बनाया करती थी ।

भजन-21 राजा प्रतिपाल का

तर्ज : ऊँची ऊँची दुनिया की दीवारें.......
नल बेटा खाना खाकर के, हो गया आज निहाल मैं,निहाल मैं।
मैंने खाया रे, खाना ऐसा, खाया कई साल में।। टेक ।।
ऐसा खाना कभी मेरे महल में, मंझा बनाया करती थी।
जब तक खाना खाता, बैठ के पास जिमाया करती थी।
कभी-कभी खाया करती थी, मेरे साथ एक थाल में, थाल में ।। 1 ।।
जब से मंझा गई महल से, नहीं पेट भर खाऊँ मैं।
जैसा भी मिलता उसा खा लेता और को नहीं बताऊँ मैं।
आपको आज सुनाऊँ मैं, आप बीती मिसाल मैं, मिसाल मैं ।। 2 ।।
खाना खाके नल बेटा, आज मन मेरा हो गया प्रसन्न।
सच्ची बतादे मेरे लाडले, किसने बनाया है भोजन।
उसके आज करूँगा दर्शन, नहीं करूँगा टाल मैं, टाल मैं ।। 3 ।।
अन्ध विश्वास में अपना सब, भूल गया मैं कर्म-धर्म।
धर्मपालसिंह भालोठिया को, देखकर के आवे शर्म।
आज मुझे हो गया भ्रम, कुछ काला दिखे दाल में, दाल में ।। 4 ।।
== दोहा ==
नल बोला मेरी माँ ने खाना, आपके लिए बनाया खास।
आपको भोजन जिमा प्रेम से, माँ की हो गई पूरी आस।।

वार्ता- सज्जनों ! राजा ने भोजन के बाद नल से कहा कि मैं आपकी माँ से बात करना चाहता हूँ ।

भजन-22 राजा प्रतिपाल का

तर्ज- एक परदेशी मेरा दिल ले गया ......
खुश होकर के प्रतिपाल महाराज न्यू बोला।
आपकी माँ से बात करूँ दो, आज न्यू बोला।। टेक ।।
आपकी माँ कोई देवी भवानी, है दुर्गा की खास निशानी ।
रानी है कोई गया तख्त ,और ताज न्यू बोला ।। 1 ।।
मुर्गी जणे हजारों चूजा, सिंहणी शेर जणें नहीं दूजा।
पूजा आपकी माँ की करें, समाज न्यू बोला ।। 2 ।।
जन्मा एक किरोड़ी लाल, लाल ने कर दिये अजब कमाल।
काल मेरे सिर पर था, करा इलाज न्यू बोला ।। 3 ।।
देख भोजन का नमूना खास, मेरे कुछ हो गया विश्वास।
इतिहास सुनावे भालोठिया, मिला के साज न्यू बोला।। 4 ।।

वार्ता-सज्जनों ! राजा ने रानी मँझा से मिलने पर नल के बारे में पूछा तो मंझा रानी शुरू से ब्योरेवार सम्पूर्ण कहानी सुनाती है ।

भजन-23 रानी मंझा का प्रतिपाल को

तर्ज:-सत्यवान के घरां चाल, दुख भरा करेगी सावित्री ........
जल्लादों को सोंपी आपने, नल की माँ मंझा रानी,
ओ महाराज।। टेक ।।
रानी सात आपके घर में, बाँझ रह गई सारी।
आठवीं रानी थी मंझा, उसका हो गया पाँ भारी।
उसकी बनगी थी दुश्मन, सातों सौकन हत्यारी।
पुरोहित ने लालच में आकर, आपकी अकल मारी।
अत्याचारी बोला, मंझा कर देगी, कुणबा घाणी,
ओ महाराज ।। 1 ।।
उसी वक्त कर दिया आपने, मौत का वारंट जारी।
जल्लादों को बुलवा करके, दिया हुकुम सरकारी।
मंझा को ले जाओ रात को, सोवें जब नर-नारी।
मार के बन में आँख काढ़ के, ल्याओ निशानी न्यारी।
होशियारी कर प्राण बचागी, मंझा थी इतनी सयानी,
ओ महाराज ।। 2 ।।
मंझा चलते-चलते सुबह, पहाड़ों के बीच में आई।
दर्द शुरू हो गया पेट में, मंझा नहीं घबराई।
नले में नल ने जन्म लिया, जहाँ नहीं नर्स नहीं दाई।
हुआ सवेरा पानी का एक, झरना दिया दिखाई।
नहाई आप, बच्चा नहलाया, ताजा गर्म मिला पानी,
ओ महाराज ।। 3 ।।
रानी ने फिर औषधियों की, घूंटी गजब बनाई।
घूंटी फिर अपने बच्चे को, करके गौर पिलाई।
पौधों के फल तोड़-तोड़ के, अपनी भूख मिटाई।
मनसा राम वजीर आपका, करता फिरे घुमाई।
लाया साथ माँ बेटे को घर, प्यार करे थी सेठानी,
ओ महाराज ।। 4 ।।
नल को मिला चौपड़ का पासा, घूम रहा था वन में।
नानाजी को दे दिया पासा, खुशी हुई थी मन में।
मंत्री ने दिया पासा आपको जाकर राज भवन में।
पासा देखकर एक, आपके गुस्सा भरा बदन में।
पूरी चौपड़ ल्यादे नहीं तो, पड़ जागी आफत ठाणी,
ओ महाराज ।। 5 ।।
बात आपकी सुन, मंत्री की, थर-थर कांपी काया।
सिर पर चिंता सवार हो गई, से घर आया।
बोला रे नल खूब दिया फल, नाना को मरवाया।
थोड़ी मोहल्लत ली राजा से, नल ने दांव सुझाया।
चौपड़ पूरी ला दूँगा, न्यू नल ने करी भविष्यवाणी,
ओ महाराज ।। 6 ।।
नाना के घर रहते नल को, हुए अठारह साल।
गले में तीर कमान रहे थी, पीठ के ऊपर ढ़ाल।
फौज का सेनापति आपने, बना दिया तत्काल।
भीलों से छुड़वाया आपको, नल का अजब कमाल।
भीलों के बन्धन में आपको, बासी रोटी पड़ी खानी,
ओ महाराज ।। 7 ।।
अपनी कहानी सुना जबानी, रानी का दिल गया उझल।
भूप की गलती भूल गई, आई पर्दे से बाहर निकल।
मैं हूँ आपकी रानी मंझा, ये है आपका बेटा नल।
ये है पुत्रवधू दमयन्ती, शादी होकर आई कल।
पूरी कहानी भालोठिया से बूझ लियो, जाकर ढ़ाणी,
ओ महाराज ।। 8 ।।

सज्जनों ! मंझा रानी भूप की गलती को भुलाकर भावुक हो उठी और कहने लगी कि मैं ही आपकी रानी मंझा हूं और यह आपका बेटा और पुत्रवधू हैं । इस प्रकार राजा प्रतिपाल को अपने पूरे परिवार से मिलकर अपार खुशी हुई और सभी को अपने साथ घर ले आता है ।

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