Dharampal Singh Bhalothia/Aitihasik Kathayen/Ratankor-Harpal Singh

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ऐतिहासिक कथाऐं


रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया

ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो. 9460389546


कथा-8:रतनकोर-हरपालसिंह

सज्जनों ! जब देश में वेदों का प्रचार कम हो गया था उस समय मानकपुर राजधानी में राजा मदन पाल राज करते थे । उनके कमला व चपला दो रानियां थी । कमला खूबसूरत और राजा की विश्वासपात्र थी एवं चपला सीधी-भोली थी । कुछ समय पश्चात चपला के छ: अंगुली वाला पुत्र पैदा हुआ । पुत्र होने पर चपला का महल में मान सम्मान बढ़ गया जो कमला को नागवार गुजरा ।


भजन-1 कमला रानी का

== दोहा ==

देखो जब इस देश में, छाया था अन्धकार।

नाम मात्र को रह गया, था वेदों का प्रचार।।

== आनंदी ==

किसी जमाने में मानकपुर, एक छोटी सी राजधानी थी ।

था अज्ञान पाखंड प्रजा में, पोपों की मनमानी थी ।

महाराज थे मदनपाल, कमला चपला दो रानी थी ।

चपला थी सादी भोली और कमला बड़ी सयानी थी ।

एक दिन चपला ने जन्मा, छ: अंगुली वाला लाल ।

महलों में बाजी थाली, कमला का मन हुआ बदहाल ।

राज पुरोहित को बुलवाने, दासी को भेज दिया तत्काल ।

पैर पकड़ के पंडित जी को, लगी समझाने अपनी चाल ।।


वार्ता- कमला अपनी कुटिल योजनानुसार बच्चे को मरवाने के लिए पंडित जी को बुलाकर कहती है -

भजन - 1 कमला रानी का
तर्ज : गंगा जी तेरे खेऽऽत में.......
दादसरा तेरे हाऽऽऽथ में, है दुखियारी की ज्यान।
नाव मझधाऽऽऽर में, आज पार लगा द्यो जीऽऽऽ।। टेक ।।
दादसरे न्यू नैन भरे, आज किस्मत मेरी फूट गई।
मेरे साथ मेरे प्राण नाथ की, मोहब्बत बिल्कुल टूट गई।
सूरत भोली थी अनमोली, गजब की गोली छूट गई।
मेरी महल की चहल-पहल की, जितनी थी तैयारी गई।
खाती मेवा होती सेवा थी, सारी खातिरदारी गई।
बैठी रोऊँ जिन्दगी खोऊँ, दिन धोली मैं मारी गई।
प्यारी गई एक स्याऽऽत में, मेरी चन्दा जैसी शान।
नाव मझधाऽऽऽर में, पार लगा द्यो जीऽऽऽ ।। 1 ।।
हो गया छोरा, करे डठोरा, दादसरे मेरी सोकण आज।
किस्मत जागी, बैठी लागी, गोन्द के लाडू ठोकण आज।
ओढ़ के पीला, अजब रंगीला, चाली कुआ धोकण आज।
तबियत खाटी, लगी औचाटी, फटता मेरा सीना आज।
भारी मुश्किल, हो गया पल-पल, दुखियारी का जीना आज।
छाई उदासी, भूखी प्यासी, हो गया एक महीना आज।
पसीना आज मेरे गाऽऽऽत में, मैं देख हुई हैरान।
नाव मझधाऽऽऽर में, पार लगा द्यो जीऽऽऽ ।। 2 ।।
मेरा बालम, आज वो जालिम, मनै बिल्कुल भूल गया।
धन लुटवावे, खुशी मनावे, अपने मन में फूल गया।
जैसे काला, हो मतवाला, बीन के ऊपर टूल गया।
रात और दिन, मैं काटूँ गिन-गिन, मेरे चेहरे की लाली गई।
पान मिठाई, बालूशाही, फल मेवा की डाली गई।
माल खजाना, हुआ बेगाना, मेरे हाथ से ताली गई।
थाली गई जिस राऽऽऽत में, बाजै महल दरम्यान।
नाव मझधाऽऽऽर में, पार लगा द्यो जीऽऽऽ ।। 3 ।।
आपको राजा, करे तकाजा, बुलवावे दरबार में।
लेकर पतरा, करदे खतरा, राजा के विचार में।
मार दे बच्चा, समझूँ सच्चा, जादूगर संसार में।
गुण नहीं भूलूँ, स्वर्ग में झूलूँ, दे सिद्ध काम बना दादसरे।
आम के आम बना दे, तू गुठली के दाम बना दादसरे।
धर्मपाल गया बिगड़ हाल, इसका इन्तजाम बना दादसरे।
मेरे प्राण के नाऽऽऽथ में, भरदे कोई तूफान।
नाव मझधाऽऽऽर में, पार लगा द्यो जीऽऽऽ ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! राजा ने बच्चे की जन्मपत्री बनाने के लिये पंडित जी को कहा। पंडित ने कहा जी कल बना दूँगा। दूसरे दिन पंडित जी आकर बोले, राजा क्या जन्मपत्री बनाऊँ ये बच्चा तो आपका सर्वनाश करने आया है। इसका एक ही बचाव है कि शीघ्र ही बच्चे को मरवादो ।

भजन-2 राजा मदनपाल का चपला रानी को सुझाव

तर्ज : पिया दे दे मनै कुल्हाड़ा, गात सूक के होगा माड़ा......
देखा पंडित जी ने पतरा, आया राज के ऊपर खतरा।
जिसको समझे अपना लाल ये, रानी तेरा मेरा काल ये।। टेक ।।
पैर के अन्दर छः अंगुली, ये खोट बताया भारी।
राज का तख्ता पलटेगा, नहीं जान की खैर हमारी।
प्यारी दिल थामे से थमता, तज दे अब बेटे की ममता।
जमता जहाँ जमावे खयाल ये, रानी तेरा मेरा काल ये ।। 1 ।।
ये बच्चा गर रहेगा जिन्दा, होती रहे ख्वारी।
इसको जल्दी मरवादो, हो दूर मुसीबत सारी।।
बिमारी बनके बच्चा आया, सुख इज्जत का करे सफाया।
पराया हो जावे धनमाल ये, रानी तेरा मेरा काल ये ।। 2 ।।
नहीं आज तक झूठी हुई, कभी पंडित जी की बानी।
अपनी भलाई चाहे तो, बच्चे की मिटा निशानी।
हानि लाभ नहीं पहचाने, उसको दुनिया मूर्ख माने।
जाने पशुओं जैसा हाल ये, रानी तेरा मेरा काल ये ।। 3 ।।
कहते-कहते राजा की, आँखों में आ गया पानी।
भालोठिया सुन बात पति की, रोई थी महारानी।
कहानी मत ना और बढ़ावे, रानी किसके लाड लडावे।
पावे दुःख भारी महीपाल ये, रानी तेरा मेरा काल ये ।। 4 ।।
== आनंदी ==
महारानी ने सोचा यहाँ अब,बात तेरी नहीं बनती है ।
गोद में ले बच्चे को,महल से बाहर निकलती है ।

वार्ता - महारानी पुलिस वालों के साथ बच्चे को लेकर जंगल के लिए चल पड़ती है -

भजन-3 कवि का

तर्ज – त्रिभंगी - देता आवाज, आती है लाज, घर वालो आज ....

कांपे गात, हुई जब रात, पुलिस के साथ, चली महारानी जी ।।टेक ।।

कीमती कपड़े तार तार के सब आंगन में डाल दिए ।

जेवर जो कुछ थे दुखिया पर तन से सभी निकाल दिए ।

उठ बेटा यहां क्यों लेटा मां बेटा दोनों चाल दिए ।

धोखेबाज, लगाकर साज, कमला आज, करे मनमानी जी ।। 1 ।।

रे बेटा तनै कहां गेर दूं ना जमुना ना गंगा रे ।

न्यू रखने से मरे जडाया गात तुम्हारा नंगा रे ।

मुझको पल पल होगी मुश्किल तेरे बिना मेरे छंगा रे ।

मत माता को दोष बताइयो दुष्ट पोप की दंगा रे ।

किया उत्पात, लगाके घात, प्राण के नाथ, बने अज्ञानी जी ।। 2 ।।

चीते शेर भगेरे भेड़ियो मुझ दुखिया को खाइयो रे ।

या तदवीर बनाके कोई मेरा लाल बचाइयो रे ।

अरे सिपाहियो मेरे भाइयो मेरा तरस बटाइयो रे ।

बन मेहरबान, करो एहसान, बक्सो ज्यान, बनो आज दानी जी ।। 3 ।।

रख देती किसी पेड़ के ऊपर अगर आज सोता बेटा ।

कैसे चलूं छोड़कर तुझको तड़प तड़प रोता बेटा ।

अच्छा होता अगर यहां पर कोई दरिया होता बेटा ।

उसमें देती डाल मगरमच्छ ले मारें गोता बेटा ।

बनजा बात, मिले कुछ राहत, भालोठिया भ्रात, ले चलो ढाणी जी ।। 4 ।।

आनंदी

नौकर जब कहने लगे रानी मत कर देर ।

जल्दी महलों को चलो बच्चा यहां पर गेर ।

जबरदस्ती से बच्चा डाला फिर महल में आई है ।

लोग नगर के सो गए थे जब हाहाकार मचाई है ।


वार्ता- सज्जनों !रानी पुलिस वालों के साथ बच्चे को जंगल में डालकर महल में आती है और हाहाकार मचाती है । जब नगरी के सभी लोग सो गए तो चपला चुपके से आधी रात को महल से निकलकर जहां बच्चा डाला था वहां पहुंच कर अपने बेटे को छाती से लगा के रोकर न्यू कहती है-

भजन-4 चपला रानी का

तर्ज : ऊँची ऊँची दुनिया की दीवारें सैंया, तोड़ के जी......
बढि़या बढि़या राजा के सब, छोड़े महल मकान मैं, मकान मैं।
मैं आई रे, तेरे लिए, जंगल बियाबान में।। टेक ।।
मैं दुखियारी, विपदा की मारी, घर से आधी रात चली।
रात अन्धेरी, हो गई देरी, होने को प्रभात चली।
करती तहकीकात चली, आवाज पड़े कहीं कान में, कान में ।। 1 ।।
गया अन्धेरा, हुआ सवेरा, सूर्य का प्रकाश हुआ।
नहीं घबराई, दौड़ी आई,मुश्किल से तलाश हुआ।
ये सच्चा विश्वास हुआ, ली सूरत लगा भगवान में, भगवान में ।। 2 ।।
छाले पड़गे, काँटे गड़गे, नहीं रात भर सोई रे।
गोदी ठाके, छाती लाके, हूक मार के रोई रे।
बिना ईश्वर नहीं कोई रे, आज हमारा जहान में, जहान में ।। 3 ।।
मेरे कॅवर, मुख चुम्बन कर, रानी रूदन मचाती है।
मेरे लाल, सै बुरा हाल, ईश्वर बिना कौन हिमाती है।
धर्मपाल सिंह साथी सै, उसका मानूं अहसान मैं, अहसान मैं ।। 4 ।।
== आनन्दी ==

एक साधु ने देखा कोई, औरत रूदन मचाती है।

मुख चुम्बन कर बच्चे का, छाती से उसे लगाती है।

जहाँ पर रानी रोवे थी, वो साधु वहाँ पर आया है।

किस चक्कर में, पड़ी फिकर में,क्यों दुःख पाई काया है।।

वार्ता- जंगल में बच्चे के साथ औरत को हाल बेहाल रोता देख कर एक साधु वहां आता है और उसका पता ठिकाणा पूछता है ।

भजन-5 साधु का

तर्ज : हे हे,देवकी के जतन बनाऊँ मैं .......
हे हे, अपना हाल बता दे हे।
कहाँ पर तेरा पीहर, कहाँ ससुराल बता दे हे।। टेक ।।
दूर तक घर गाँव नहीं, भयंकर उजाड़ बेटी।
कहीं पर सै झील, कहीं ऊँचे-ऊँचे पहाड़ बेटी।
कहीं पर सै झाड़ी, कहीं खड़े झुँडे झाड़ बेटी।
कहीं मस्त ऊँट खड़े, पीस रहे जाड़ बेटी।
चीते और भगेरे बोलें, शेरों की दहाड़ बेटी।
जंगल सारा गूँजे, हाथी मारते चिंघाड़ बेटी।
हे हे, क्यों बिखरे बाल बता दे हे ।। 1 ।।
जन्म-भूमि कहाँ, तेरा कौन सा घर गाम बेटी।
माताजी बुलाया करती, क्या लेकर के नाम बेटी।
अपने खानदान का, तू पता दे तमाम बेटी।
जंगल में बिचरना फिरना, सुबह और शाम बेटी।
तेरे बिना कौनसा, जो नहीं बना काम बेटी।
खाने पीने सोने का सै, कहाँ इन्तजाम बेटी।
हे हे, के सै जाल बता दे हे ।। 2 ।।
चेहरे पर उदासी, तेरा काँप रहा गात बेटी।
लड़ा सै पति या तेरे रूसे पिता और मात बेटी।
या फिर कहीं बिछड़ी, तेरी सखियों की जमात बेटी।
डरे ना बतादे अपनी, सच्ची-सच्ची बात बेटी।
किस पापी ने तेरे संग में, करा उत्पात बेटी।
गोदी में बच्चे को लेके, फिरती दिन रात बेटी।
हे हे, यो किसका लाल बता दे हे ।। 3 ।।
किस चक्कर में फिरे आज, बनी तू दीवानी बेटी।
तेरी तरह कोई नहीं, फिरती है जनानी बेटी।
राज ताज तख्त किसने, खोसी राजधानी बेटी।
देख लिया होगा सारा, जंगल घूम घूम बेटी।
बेटे को खिलावे, गावे गीत झूम झूम बेटी।
कभी तू लडावे लाड, मुख चूम-चूम बेटी।
हे हे, कहे धर्मपाल बता दे हे ।। 4 ।।
== दोहा ==
साधु ने चपला रानी का, सुन लिया सारा हाल।
आश्रम पर लाके बच्चे का, नाम धरा हरपाल।
लालन-पालन में बीत गए, वहां पर ग्यारह साल ।
भारी विपदा पड़ी एक दिन साधु करग्या काल ।।

वार्ता- सज्जनों ! अब चपला को आश्रम पर रहते ग्यारह साल हो गए कि एक दिन साधु चल बसा । अब रानी ने साधु का दाह संस्कार और हवन करवाया। इसके बाद रानी चिंता में पड़ जाती है ।

भजन-6 चपला रानी का

तर्ज : पारवा (खड़े बोल) .....
== दोहा ==
एक दिन आये बाग में, रात को दो बदमाश।
उठा ले गए रानी को, वो अपने रहवास ।।
उधर सवेरे बाग में, उठा था हरपाल।
हाहाकार मचा रहा, होकर के विकराल।।

वार्ता- सज्जनों ! यहाँ से पाँच कोस की दूरी पर हरिपुरा नाम का कस्बा था। इसमें जालिमसिंह नाम का एक दस नम्बरी बदमाश था। वह एक दिन रात को रानी को उठा ले गया और एक कमरे में बन्द करदी। उसी रात को उस बदमाश का जवान बेटा पेट दर्द से मर गया। अब तो बहुत से लोगों का उसके घर पर आना जाना लगा रहा। रानी मौका देखकर वहाँ से निकल गई। उधर हरपाल सुबह उठा तो मां के नहीं मिलने पर विलाप करते हुए कहता है -

भजन-7 हरपाल का

बोला राजकुमार रो के, री आजा मेरी प्यारी माँ।। टेक ।।
खाना पीना किया शाम को, बिस्तर झाड़ बिछाया।
छाती के लाकर न्यूं बोली, सोजा रे मेरी माया।
पाया अकेला उठा सो के, री आजा मेरी प्यारी माँ ।। 1 ।।
बियाबान में आकर के, साधु का लिया सहारा।
चन्द रोज में साधुजी भी, हुआ राम का प्यारा।
न्यारा गया वो हमसे होके, री आजा मेरी प्यारी माँ ।। 2 ।।
मेरे कारण कष्ट सहे, तनै कितने रोज गुजारे।
छोड़ गई तू जंगल में, बता आज किसके सहारे।
सारे संकट हैं दिन दो के, री आजा मेरी प्यारी माँ ।। 3 ।।
साधुजी की याद मनै, रोजाना करती तंग।
तू भी बिछुड़ गई माता, आज हुआ रंग में भंग।
लावे धर्मपालसिंह टोहके, री आजा मेरी प्यारी माँ ।। 4 ।।
दोहा

रो रहा था जिस जगह पर वह लड़का हरपाल ।

खेलते कूदते आ गए वहां भीलों के लाल ।।

वार्ता- अब जहाँ हरपाल रो रहा था वहाँ पर भील आये और हरपाल को अकेला पाकर अपने डेरे में ले गये।

भजन-8 भीलों के बच्चों का

देते नहीं दिखाई, जिसके माई और बाप।
एक बच्चा वन में, रो-रो करे विलाप ।। टेक ।।
माँ-माँ कहके रूदन मचावे, कदे कहे मेरा जी दुख पावे।
काँप रहा सै गात, एक बच्चा वन में रो-रो करे विलाप ।। 1 ।।
कभी-कभी वो मारे रूक्का, आजा री माँ मर गया भूखा।
कौन किया मैनें पाप, बच्चा वन में रो-रो करे विलाप ।। 2 ।।
आस पास कोई गाम नहीं सै, घर कुणबे का नाम नहीं सै।
बैठा अकेला आप, बच्चा वन में रो-रो करे विलाप ।। 3 ।।
भालोठिया कहे जल्दी जाओ, उसको यहाँ उठा के लाओ।
मिट जावे संताप, बच्चा वन में, रो-रो करे विलाप ।। 4 ।।

वार्ता- हरपाल का भीलों में पालन पोषण होने लगा व भीलों की फौज में घुड़सवारी आदि की ट्रेनिंग लेने लगा ।

भजन-9 कवि का

तर्ज : बार बार तोहे क्या समझाऊँ........
हे भगवान दयालु तेरी, लीला अपरम्पार।
भील भीलणी राजकंवर के, बन रहे पालनहार ।। टेक ।।
छोटे बड़े जितने भी घर में, भारी प्यार दिखाते, दिखाते।
बूढ़ा-बूढ़ी, बेटा-बेटा, कहके पास बुलाते, बुलाते।
खाना खिलाते, दूध पिलाते, इच्छा के अनुसार ।। 1 ।।
खेल-कूद बचपन में सारा, रहा था बीत मौज में, मौज में।
कभी-कभी ट्रेनिंग लेता, भीलों की बड़ी फौज मै, फौज मै।
बना गजब का चन्द रोज में, घोड़े का सवार ।। 2 ।।
जिसका खानदान क्षत्रिय, नहीं कोई कमी नसल में, नसल में।
तन में जिसके दौड़ रहा, राजा का खून असल में, असल में।
बने एक दिन बल में अकल में, भीलों का सरदार ।। 3 ।।
साधु संत की सेवा जो कोई, करता मान ऋषि का,ऋषि का।
समय हाथ से नहीं जाने दे, मिलता लाभ इसी का, इसी का।
भालोठिया कहे समय किसी का, करता नहीं इन्तजार ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! अब रानी आजाद होकर आश्रम में आई। वहाँ हरपाल नहीं मिला। बेटे की तलाश में रानी घूमती फिरती राम नगर की गलियों में आ गई । यहाँ की रानी भीमकोर ने महल से उसे देखा और उसके पास आकर बोली -

भजन-10 रानी भीमकोर का

तर्ज : सत्यवान का कहा मान, दुख भरा करेगी सावित्री,
हो मेरी ज्यान.......
मैं देख अचम्भे में पड़गी, तू अपना हाल बतादे हे,
हे मेरी बहन।। टेक ।।
भेष तेरा भिखमंगो जैसा, राजों जैसा चेहरा हे।
किस विपदा में फिरे भटकती, पता नहीं कुछ तेरा हे।
जिसके लागे वोही जाणे, नहीं और किसी ने बेरा हे।
तेरी शकल को देख-देख, जी दुख पावे सै मेरा हे।
तेरे साथ में जो जो बीती, महल में चाल बतादे हे,
हे मेरी बहन ।। 1 ।।
लक्षण ऐसे बता रहे सैं, दुख पड़ गया कोई मोटा हे।
हारी बीमारी आ गई हो, या घर में आ गया टोटा हे।
या फिर अपने जीवन में कोई, कर्म किया तनै खोटा हे।
जिस कारण फिर तेरे पति ने, दे दिया उमर दिसोटा हे।
दिल दरिया उझला आवै सै, उठे झाल बतादे हे,
हे मेरी बहन ।। 2 ।।
नहीं बालक नहीं बूढ़ी, तेरी बिल्कुल उमर जवान हे।
रंग और रूप गजब का तेरा, चन्दा जैसी शान हे।
जवान उमर में बीर अकेली, हुआ करे परेशान हे।
बट्टा लागे खानदान के, मान चाहे मत मान हे।
कहाँ पर तेरा पीहर सै,कहाँ पर ससुराल बतादे हे,
हे मेरी बहन ।। 3 ।।
न्यू तो मैं भी जानूँ सूँ, कोई लागी चोट मर्म की हे।
होणी बनी होण की खातिर, जो हो रेख कर्म की हे।
अपने घर में सच्ची बताना, नहीं सै बात शर्म की हे।
साथ निभाऊँ जीवन भर, तूँ मेरी बहन धर्म की हे।
अपनी कहानी दुनिया में,गाके धर्मपाल बता दे हे,
हे मेरी बहन ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! चपला को भीमकोर महल में ले आती है और कहती है कि तू मेरी धर्म की बहन है। जीजी मैं छोटी और तू बड़ी है। बेटे जगमोहन की शादी के गीत गाने हो रहे हैं। जीजी आप इनमें शामिल रहा करो, बस तुम्हारा यही काम है। जगमोहन की शादी में रंग चाव देखकर रानी को अपने बेटे की याद आती है ।

भजन-11 कवि का

तर्ज : चौकलिया
जग मोहन की शादी में, सब औरत गाना गावें थी।
चपला रानी को अपने, बेटे की याद सतावे थी ।। टेक ।।
कोई कहे थी बनड़ा म्हारा, असली लाल किरोड़ी सै।
कोई कहे थी बे-माता ने, कोई कमी नहीं छोड़ी सै।
कोई कहे थी बनड़े की, बड़ाई गाऊँ उतनी थोड़ी सै।
कोई कहे थी बनड़े बनड़ी की, सारस के सी जोड़ी सै।
लीलू बैठ गया चौकी पर, पिट्ठी मसल नहलावे थी ।। 1 ।।
राजकुमार की शादी में, सब आ गया था भाईचारा।
सारे रिश्तेदार आ गये, यार दोस्त जिगरी प्यारा।
भांति-भांति की बनी मिठाई, भरा हुआ था भण्डारा।
गावणिये मनोरंजन करते, साज-बाज भी था सारा।
कहीं जनाने गीतों की, आवाज कानों में आवे थी ।। 2 ।।
राजा और रानी दोनों को, सता रही चिन्ता भारी।
ढुकाव पर बनड़े को देखण, आवेगी नगरी सारी।
देख शकल, होजा हलचल, सब करें अचम्भा नर-नारी।
छोरी नटजा फेरा तैं, तो बात बिगड़ जागी सारी।
इसी फिकर में इन दोनों को, रोटी भी नहीं भावे थी ।। 3 ।।
हुई घुड़चढ़ी बरात चढ़गी, राजा मंत्री रहे सम्भाल।
भीलों की नगरी आई थी, जंगल चारों ओर विशाल।
खड़ा बीच में भीलों के, मंत्री ने देख लिया हरपाल।
मोड़ बान्ध हरपाल कंवर के, बनड़ा बना दिया तत्काल।
भालोठिया कहे बारात सारी, बेहद खुशी मनावे थी ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! बल्लभगढ़ में बारात पहुँची। राजा ने स्वागत किया। रतनकोर की शादी हरपाल से हो गई। राजा ऋषिपाल ने फिर राजकुमारी को विदा कर बारात चढ़ा दी। राजा सुरेन्द्र ने हरपाल को जहां भीलों का डेरा था उस जंगल में छोड़ दिया । रतनकोर को राजा सुरेन्द्र की रानी भीमकोर महल में ले आई । रात को जगमोहन अपने महल में गया ।

भजन-12 कवि का

महल में आया जगमोहन, जहाँ सोवे थी रतनकोर।
आ गया कमरे में ।। 1 ।।
कालू को देखा रतना ने, मेरा पति नहीं, कोई और।
आ गया कमरे में ।। 2 ।।
जोर जोर से चिल्लाई, पकड़ो-पकड़ो चोर।
आ गया कमरे में ।। 3 ।।
जगमोहन फिर भाग लिया, घर कुणबा सुन के शोर।
आ गया कमरे में ।। 4 ।।
भालोठिया देख ड्रामा ये, हो गया बिल्कुल बोर।
आ गया कमरे में ।। 5 ।।

वार्ता- सज्जनों ! घरवालों ने रतनकोर को शान्त किया और चपला को उसके पास समझाने को भेजा। चपला से रतनकोर का कहना-

भजन-13 रतनकोर का

तर्ज:-एक परदेशी मेरा दिल ले गया........
माताजी मछली मर जाती, ताल के बिना।
न्यू मर जागी रतनकोर, हरपाल के बिना ।। टेक ।।
शादी हुई मेरी जिसके साथ में, प्राण बसे उस प्राणनाथ में।
ज्यान हाथ में, अन्त करूँगी, काल के बिना ।। 1 ।।
होती रात, अन्धेरा घोर, तड़फे चान्द के बिना चकोर।
कमजोर आदमी मरजा, रोटी दाल के बिना ।। 2 ।।
जो कमरे में ऊपर आया, मेरा नकली पति बनाया।
घबराया जी, रहूँ इसी ससुराल के बिना ।। 3 ।।
माताजी कुछ राह बताना, मेरा असली मिले ठिकाना।
धर्मपाल तू मत गाना, स्वर ताल के बिना ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! रानी हरपाल का नाम सुनकर समझ गई कि जिससे राजकुमारी की शादी हुई है वह मेरा बेटा हरपाल ही है परन्तु इसको अब तो इसी घर में रहना होगा ।

भजन-14 चपला का

तर्ज : कोठे पर बैठी मैना .........
आपकी कहानी मेरी बेटी, मैं जान गई ।। टेक ।।
राजकुमार कमरे में आया, आपने चोर बता धमकाया।
झुकी शर्म से घेटी, हे मैं जान गई ।। 1 ।।
राजा रानी इसी फिकर में, बहू रहे नहीं अपने घर में।
हरदम रहे कमेटी, हे मैं जान गई ।। 2 ।।
पिया-पिया रही बोल रात भर, असली पिया का मिला नहीं घर।
नहीं तू चैन से लेटी, हे मैं जान गई ।। 3 ।।
भालोठिया कहे क्यों घबराती, हिम्मत का सै राम हिमाती।
पल में मुसीबत मेटी, हे मैं जान गई ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! रतनकोर चपला से बोली माताजी मेरा व्रत है। आज मेरे पास कोई नहीं आवे। रतनकोर अब पंलग का निवार निकालकर एक मजबूत रस्से के सहारे महल से नीचे उतर कर जंगल में चली जाती है । इस बात से नाराज होकर चपला को भी महल से निकाल दिया । वह जंगल में एक साधु के आश्रम पर प्याऊ लगा लेती है ।

भजन-15 कवि का

जंगले से लिया बांध निवार , रतनकोर नीचे आई।। टेक ।।
रात घिरी थी सिर पै काली, शहर में धीरे-धीरे चाली।
आ गई जब नगरी से बाहर , पकड़ली जंगल की राही ।। 1 ।।
महल में अनगिन नौकर पाते, नये-नये पकवान बनाते।
आते ब्याहली के लणिहार , मेरे भतीजे और भाई ।। 2 ।।
रहे थे वन में शेर दहाड़, हाथी मारें थे चिंघाड़।
झाड़ और झुण्डे बेशुम्मार , देखकर रतना घबराई ।। 3 ।।
गरज के आया था एक शेर, पेड़ पर चढ़ी करी नहीं देर।
टेर सुनो दीनबन्धु करतार , सिर पै करड़ाई छाई ।। 4 ।।
भालोठिया एक बीजबान, लेकर आया तीर कमान।
तानकर दिया शेर को मार , अब बनजा मन की चाही ।। 5 ।।

वार्ता- सज्जनों ! वीर हरपाल ने शेर को मार दिया । तभी पेड़ से उतरते समय रतनकोर का पैर फिसल गया । नीचे गिरने से चोट लगने पर वह बेहोश हो गई। सवेरा हो गया, होश में आने पर वह बोली पानी दो। हरपाल झट चपला की प्याऊ पर आया और बोला माताजी पानी लेकर जल्दी चलो। चपला ने जब पानी पिलाया तब रतनकोर को होश आया। अब क्षत्रिय वीर के पैर छूने के लिए रतनकोर झुकी और हरपाल के पैर में छः अंगुली देखी तो वह कहती है -

भजन-16 रतनकोर का

तर्ज : सावन का महीना, पवन करे शोर ......
पैर में देखी छः अंगुली और गौर से देखा चेहरा।
रतनकोर झट समझ गई, हरपाल पति सै तेरा ।। टेक ।।
गले में हार , मुकुट था सिर पै, गठजोडा़ था पड़ा कमर पै।
एक दिन मेरे पिता के घर पै, गया बांध के सेहरा ।। 1 ।।
पकड़ा मेरा हाथ-हाथ में, प्राण बसे मेरे प्राणनाथ में।
बल्लभगढ़ में मेरे साथ में, लिया आपने फेरा ।। 2 ।।
रात अन्धेरी जुल्म गुजरगे, आप मेरे संग धोखा करगे।
जंगल में चुपचाप उतरगे, जहाँ भीलों का डेरा ।। 3 ।।
रानी उतारण आई बहल में, आ मेरी बेटी चाल महल में।
चौबीस घण्टा रहे टहल में, दासी शाम-सवेरा ।। 4 ।।
एक दिन रात अन्धेरी छाई, मैंने एक स्कीम बनाई।
भालोठिया कहे नीचे आई, नहीं किसी ने बेरा ।। 5 ।।

वार्ता- सज्जनों ! रतनकोर अपने पति हरपाल को पहचान कर महलों की बजाय उसी के साथ रहने की जिद्द करती है, उसके जवाब में हरपाल कहता है -

भजन-17 हरपाल सिंह का

तर्ज : तू राजा की राजदुलारी, मैं सिर पै लंगोटे वाला सूँ .........
तू राजा की राजकुमारी, फिरता भील आवारा मैं।
अपना साथ नहीं निभे, जंगल में करूँ गुजारा मैं ।। टेक ।।
तीर कमान रहे गल में, घोड़े की करूँ सवारी मैं।
भीलों में रह करके सीखी, शस्त्र विद्या सारी मैं।
मेरा निशाना नहीं चूके, बना इतना गजब शिकारी मैं।
बूढ़े भील को गुरू मानकर, रहता आज्ञाकारी मैं।
तू महलों की रहने वाली, फिरता मारा-मारा मैं।
अपना साथ नहीं ....।। 1 ।।
जब तक राजा नहीं बनूं, करली प्रतिज्ञा न्यारी मैं।
कहीं भी शादी नहीं करवाऊँ, रहूँ पक्का ब्रह्मचारी मैं।
मीठे के लालच में आके, गलती करदी भारी मैं।
तेरे साथ में फेरे लेकर, लेली राड़ उधारी मैं।
सपना समझ लिए शादी नै, तू न्यारी, सूँ न्यारा मैं।
अपना साथ नहीं........।। 2 ।।
किसी सेठ का लूट खजाना, लाऊँ दौलत भारी मैं।
अनमेशन और फौज बना, करूँ लड़ने की तैयारी मैं।
छोड़ दे तू मेरा पीछा, मांफी मांगू लाचारी में।
नहीं मिलेंगे माल मलीदे, ठंडा पानी झारी में।
पील और पिंजू फल जंगल के, खाऊँ मान छुहारा मैं।
अपना साथ नहीं.......।। 3 ।।
अहसान करो देवीजी अब, नहीं मानुं बात तुम्हारी मैं।
दो-दो दिन नहीं मिले खाण नै, रोवेगी इन्तजारी में।
तेरे बाप के घर भिजवा दूँ, यही बात विचारी मैं।
राजकुमार से शादी करदे, लूटो मौज अटारी में।
भालोठिया से बूझलिए, सूँ नहीं किसी का प्यारा मैं।
अपना साथ नहीं........।। 4 ।।

वार्ता- रानी चपला अपने दुखों की सारी कहानी बेटे हरपाल और रतनकोर को सुनाती है ।

भजन-18 चपला रानी का

तर्ज:-चौकलिया
दिल उझला चपला रानी का, झाल डटे नहीं डाटी।
आइये रे हरपाल मेरे, जा माँ की छाती पाटी।। टेक ।।
आँसू छलक रहे आँखो में, नहीं खुशी का पार।
लगा लिया छाती के बेटा, लम्बे हाथ पसार।
माँ की ममता जाग उठी और उमड़ रहा था प्यार।
मोह ने इतना जोर किया, गई निकल दूध की धार।
भार मुसीबत का हटग्या, और मिटगी थी औचाटी ।। 1 ।।
मदन पाल राजा के घर में, जन्मा तू मेरे लाला।
थाली बाजी बंटी मिठाई, महल में हुआ उजाला।
राजा की मति मार दई, मौसी ने कर दिया चाळा।
हुई रात जब माँ बेटे को, घर से बाहर निकाला।
पाला पड़े गजब जंगल में, रात अन्धेरी काटी ।। 2 ।।
जंगल में एक साधु ने लिया, देख हमारा हाल।
दोनों को आश्रम पर लेकर, आया था तत्काल।
छठी मनाई हवन किया, तेरा नाम धरा हरपाल।
साधु तनै पढ़ाया करता, बीत गये ग्यारह साल।
काल करग्या साधु एक दिन, तबियत हो गई खाटी ।। 3 ।।
रात आखिरी थी जिस दिन, तू मेरी गोद में लेटा।
मुझको उठा ले गये डाकू, बिछड़ गये माँ बेटा।
चारों डाकू अलग-अलग कर, उनका भर दिया पेटा।
ऐसी घुट्टी पिला दई, नहीं एक-एक से फेटा।
मेटा झगड़ा जहर मिला, दी खुवा दाल और बाटी ।। 4 ।।
रामनगर में आगई मैं, दर-दर के धक्के खाके।
रानी ले गई अपने महल में, धर्म की बहन बनाके।
नकली पति जगमोहन देखा, रतनकोर ने आके।
निकल गई चुपचाप रात को, एक दिन मौका पाके।
धमका के मनै काढ़ दई थी, बार-बार मैं नाटी ।। 5 ।।
एक दिन हो लाचार हार के, जंगल में चिता बनाई।
इसमें जल के मर जाऊँ, मेरे यही समझ में आई।
साधु भागा आया बोला, ठहरो-ठहरो माई।
लाकर अपने कूवे पर, उसने प्याऊ लगवाई।
पाई जहाँ पर, गई वहाँ पर, अड़ी करम की टाटी ।। 6 ।।
चपला बोली गया हाथ से, मानकपुर का राज।
पिता आपका कमला मौसी, पड़े जेल में आज।
हाथी घोड़े माल खजाना, गये तखत और ताज।
सदावर्त लावणिये हो गये, रोटी के मोहताज।
ताज तखत आज गये हाथ से, हो गई रे-रे माटी ।। 7 ।।
हरपाल सिंह ने करी चढ़ाई, ले भीलों की टोली।
मानकपुर पर कब्जा कर लिया, जेल फटा फट खोली।
कमला रानी बाहर निकल, चपला की भरली कोली।
मैंने जुल्म करे बेटा, हरपाल मार दे गोली।
भालोठिया ने सुलझा दी, ये कच्चे सूत की आंटी ।। 8 ।।

सज्जनों ! हरपाल ने भीलों की सेना को साथ लेकर दुश्मन को परास्त कर मानकपुर को आजाद करवाया और पिता मदनपाल और मौसी कमला को जेल से छुड़वाया । मौसी अपनी गलती मानकर चपला से गले मिली। इस प्रकार हरपाल के कारण राजा मदनपाल को अपनी खोई हुई विरासत प्राप्त हुई ।


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