Dharampal Singh Bhalothia/Aitihasik Kathayen/Sardarbai-Moolchand

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ऐतिहासिक कथाऐं


रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया

ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो. 9460389546


कथा -1 सरदारबाई-मूलचन्द

सज्जनों ! सूबा गुजरात में रानीपुर राजधानी में राजा खेमराज राज करते थे । उसके दो बच्चे राजकुमार मूलचन्द व सरदारबाई राजकुमारी थी। राजकुमार शराबी व जुआरी था । दिल्ली के बादशाह शाहजहां का हाकिम रहमत खाँ टैक्स उघाने रानीपुर आता है ।

भजन-1: कथा परिचय

तर्ज : चौकलिया
रानीपुर राजधानी थी, कभी सूबा गुजरात में।
खेमराज महाराज, वहाँ की सत्ता उसके हाथ में।। टेक ।।
नियम पूर्वक काम राज में, नहीं कोई बदमाशी हो।
बदमाशी करने वाले को, फौरन मिलती फाँसी हो।
फौरन मिलती फाँसी हो, चाहे थानेदार खलासी हो।
थानेदार खलासी सारे, अफसर थे विश्वासी हो।
अफसर थे विश्वासी खुश था कोई नहीं उत्पात में।
उत्पाती माणस रहते थे, बन्द पड़े हवालात में ।। 1 ।।
दयावती पतिव्रता सती थी, खेम राज की रानी हो।
सरदार बाई एक लड़की थी, पढ़ी लिखी और स्यानी हो।
राजकुमार मूलचन्द, उसकी राजा को परेशानी थी।
जिसके कारण खेमराज को, हुई बहुत सी हानि थी।
शराब पीता जूआ खेलता रहता वो दिन-रात में।
और बहुत से गुण्डे रहते थे, मूलचन्द के साथ में ।। 2 ।।
एक रोज गुजरात का हाकिम, रानीपुर में आया था।
फौज साथ और रात-रात में, आके डेरा लगाया था।
भेज दिया हलकारा, राजा खेमराज बुलवाया था।
माल उघाने आया हूँ, न्यू रहमत खाँ फरमाया था।
जेलदार और नम्बरदार, सब बुला लिये पंचात में।
माल उघा के जल्दी दो, नहीं फर्क पड़े इस बात में।। 3 ।।
पाँच सात दिन ठहरूँगा, नहीं ज्यादा समय गंवाना हो।
रानीपुर का टैक्स उघाकर, जल्दी दिल्ली जाना हो।
हमारी खातिर दूध-दही, और बढि़या-बढि़या खाना हो।
ऊँटों के लिए न्यार मिले, और घोड़ों के लिए दाना हो।
इतना सुनके गुस्सा आ गया, खेमराज के गात में।
धर्मपाल सिंह बुरी गुलामी, देखी मखलूकात में ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! हाकिम रहमत खाँ ने एक दिन महल पर घूमती राजकुमारी को देखा व उसके सौन्दर्य पर मुग्ध हो जाता है ।

भजन-2 कवि का

तर्ज : चौकलिया
रहमत खाँ ने राजकुमारी, देखी करके गौर।
ऐसी लड़की दुनिया भर में, देखी नहीं कोई और।। टेक ।।
जितनी देर में कारीगर ने, दुनिया सकल बनाई।
त्यार करी ये लड़की जब, उतनी ही देर लगाई।
मृगां जैसे नैन बैन, सुन कोयल भी शरमाई।
महल के ऊपर घूम रही थी, खेमराज की जाई।
नरम कलाई, गजब बनाई, गर्दन जैसे मोर ।। 1 ।।
डोल के अपने खोल-खोल के, केश सुखावे थी।
मीठे स्वर में कभी कभी वो, गाना गावे थी।
तेल डाल और बाल-बाल, बिरवाल के बाहवे थी।
नहीं सहेली खड़ी अकेली, मन बहलावे थी।
निभावे थी वह रोजाना के, जितने नियम कठोर ।। 2 ।।
रहमत खाँ के पैदा हो गया, था दिल में काला।
इससे निकाह कराऊँगा, नहीं मेरी जान का गाला।
जो मैं असल पठान का बच्चा, करूँ नहीं अब टाला।
पूरी करो मुराद याद करूँ, या मेरे अल्लाह-ताला।
मतवाला सा हुआ फिरे था, नहीं चले था जोर ।। 3 ।।
प्रथम तो वोह कारीगर, कर देता फर्क शकल में।
शकल अगर दे बना कहीं, तो पावे कमी नसल में।
शकल का सुन्दर मिल जावे, तो टोटा रहे अकल में।
अकल शकल और नसल मिले, कोई बिरला है भूतल में।
धर्मपाल सिंह रूप जगत में, है इस मन का चोर ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! रहमत खाँ अपनी कुटिल योजनानुसार सरदारबाई को पाने के लिए मूलचन्द को जुए में हराने पर राजकुमारी को दांव पर लगाने की शर्त रखता है ।

भजन-3 रहमत खाँ गुजरात के हाकिम का

तर्ज : मन डोले, मेरा तन डोले.......
मूलचन्द, देखो आनन्द, मंगवाले चौपड़-स्यार।
रे दो बाजी खेलें यार।। टेक ।।
वृथा जन्म लिया राजा के, राजों वाला काम नहीं।
शराब पीवें जूआ खेलें, कोई ऐसा प्रोग्राम नहीं।
गाने और नाचने वाली का भी, यहाँ इन्तजाम नहीं ।
जब तक महफिल नहीं होवे, जी लगे सुबह और शाम नहीं।
व्याकुल मन, होवे प्रसन्न, जब होवे जीत और हार।
रे दो बाजी खेलें यार ।। 1 ।।
खेल शुरू होने से पहले, शर्त तमाम लिखो भाई।
हार जीत का निकले जो, पूरा परिणाम लिखो भाई।
मैं हारा तो आपको दूँगा, ग्यारह गाम लिखो भाई।
तुम हारे तो सरदार बाई, मेरे नाम लिखो भाई।
नहीं झूठ बोल, करता मखौल, करूँ पूरे कोल करार।
रे दो बाजी खेलें यार ।। 2 ।।
शराब पी और शर्त लगाके, खेलन लगे खिलारी वो।
दाँव लगावें पासे डालें, दिखा रहे हुशियारी वो।
एक-एक के दाँव काट के, कहता जीत हमारी वो।
अपनी-अपनी ताकत दोनों, लगा रहे थे सारी वो।
अब के देख, दूँ गाड़ मेख, कहे रहमत खाँ मक्कार।
रे दो बाजी खेलें यार ।। 3 ।।
रहमत खाँ ने पासा लेकर, जोड़ हाथ में डारा था।
बोला मेरी किस्मत जागी, जब आया पौ-बारा था।
मूलचन्द था चूर नशे में, खेल बिगाड़ा सारा था।
धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, मूला बाजी हारा था।
फैंके दाने, आये तीन काने, नाव पड़ी मझधार।
रे दो बाजी खेलें यार ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
मूलचन्द अब हार के बाजी, अपने महल में आया था।
नशे के अन्दर टूल रहा, युवरानी ने धमकाया था।।

वार्ता- नशे में धुत मूलचन्द जुए में हार कर घर आता है तो युवरानी उसे धिक्कारती है ।

भजन-4 युवरानी का

तर्ज : भरण गई थी नीर राम की सूँ ...........
देख-देख तेरे कर्म राम की सूँ,
आवै सै मनै शर्म राम की सूँ ।। टेक ।।
खानदान घर के बच्चे, नशा नहीं किया करते।
शराब सुलफा गांजा भाँग, कभी नहीं पिया करते।
दूध मलाई सब्जी रोटी, खा के जीया करते।
न्यू कहे हमारा धर्म राम की सूँ ।। 1 ।।
जितने भी नशे हैं सब में, गन्दी है शराब पिया ।
बड़े-बड़े खोये इसने, राजा और नवाब पिया।
धन जोबन का नाश करे, खो दे सारी आब पिया।
खो दे अपना भ्रम राम की सूँ ।। 2 ।।
जगह-जगह शराबी के, सिर में पड़ें जूत पिया।
पड़ा सै गली में नंगा, बना हुआ भूत पिया।
देख लो तमाशा मुँह में, कुत्ते रहे मूत पिया।
पीवे गर्मा-गर्म राम की सूँ ।। 3 ।।
सबकी जड़ शराब जग में, जितनी भी बुराई पिया।
उसका सर्वनाश हुआ, जिस घर में ये आई पिया।
भालोठिया ने बात बड़े, काम की बताई पिया।
दुख पावे मेरा ब्रह्म राम की सूँ ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
मूलचन्द से सारी हकीकत, युवरानी जब सुन पाई।
बाँदी भेज के अपनी ननद, सरदार बाई बुलवाई।
सरदारबाई दीखते ही, युवरानी ने भरली कोली।
जुल्म गुजरगे प्रलय होगी, रोती-रोती न्यू बोली।

वार्ता- सज्जनों ! युवराणी को नणद सरदारबाई को दांव पर लगाने की हकीकत का पता लगने पर बेहद दुखी होकर अपनी नणद को बुलाकर उसके भाई की करतूत बताती है ।

भजन-5 युवरानी का सरदारबाई से

तर्ज : पारवा (खड़े बोल) .......
मेरी ननद तुम्हारे साथ में, आज हो गये जुल्म महान।। टेक ।।
बात ले सुन ले साची साची, तेरे सिर पै करड़ाई नाची।
काची नहीं उत्पात में, मिल गये जमीं आसमान ।। 1 ।।
तेरे भाई ने जुल्म कमाया, तुझको जिता जुए में आया।
छाया सन्नाटा गात में, मेरी हिलती नहीं जुबान ।। 2 ।।
रहमत ने चौपड़ बिछवाई, दोनों ने थी शर्त लगाई।
भाई तेरा हारा बात में, दी लगा दांव पर बहन ।। 3 ।।
गाली मिलें और लागें ताना, मुझे अच्छा नहीं लगता खाना।
आना नहीं हो गुजरात में, ले जायेगा रहमत खान ।। 4 ।।
खबर जब अपने पिता को होवे, मात भी सिर धुन-धुन के रोवे।
खोवे जिन्दगानी स्यात में, तज देगी अपने प्राण ।। 5 ।।
धर्मपालसिंह सुन के कहानी, आँखों में भर आया पानी।
जबानी फिर देहात में, कहे सुभाष चन्द्र साँगवान ।। 6 ।।
== आनन्दी ==
पहले तो सरदार बाई, चन्द मिनट खामोश हुई।
फिर चक्कर खाके पड़गी थी, पड़ते ही बेहोश हुई।।

वार्ता- सरदारबाई भाभी से जुए में दांव पर लगाने की बात सुनकर रोने लगी व कहती है -

भजन-6 सरदारबाई का

तर्ज:- शहजादी मनै मतना सतावै,मैं रमता राम फकीर,
भीख माँग के खावणिया ......
रोवण लागी सरदार बाई, सुन भाभी के बैन।
डबो दई बिन पानी में।। टेक ।।
डूबग्या भाई माँ का जाया, नीच ने कद का बैर बिसाया।
काया फूल की ज्यूँ कुम्हलाई, दिल हो गया बेचैन ।
दुखी हुई जिन्दगानी में ।। 1 ।।
रहमत राक्षस बेईमान, मैं हूँ आर्यों की संतान।
खानदान के लागे स्याही, भरे नीर से नैन।
करदी आज बेगानी मैं ।। 2 ।।
पिता ने विपदा भरणी होगी, परेशानी सिर धरणी होगी।
करणी होगी घोर लड़ाई, खून बहे दिन-रैन।
रानीपुर राजधानी में ।। 3 ।।
गेर दिया पापी ने जाल, कोई सुनता हो लियो निकाल।
धर्मपाल तू ले चल भाई, जगह तेरी बड़ी फैन।
रहा करूँगी मैं ढ़ाणी में ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
राजा ने अपनी बेटी की, शादी से इन्कार किया।
सेना बुलाई दिल्ली से, राजा पर हमला बोल दिया।।

सज्जनों ! राजा द्वारा सरदारबाई की शादी की शर्त नामंजूर करने पर रहमत खाँ सेना लेकर चढ़ाई कर देता है ।

भजन-7 कवि का

तर्ज : चौकलिया
रहमत खाँ ने रानीपुर पै, करदी तुरंत चढ़ाई।
उधर से राजा खेमराज ने, करदी शुरू लड़ाई।। टेक ।।
कुछ सैनिक तो रहमत खाँ, लाया था अपने साथ में।
और कुछ सैनिक दिल्ली से, बुलवाये रात-रात में।
मैं समझे था बात हमारी, बनज्या बात-बात में।
लेकिन खेमराज की सै, करड़ाई मेरे हाथ में।
गात में गुस्सा नहीं समावे, होती नहीं समाई ।। 1 ।।
मूलचन्द ने सोचा यहाँ, नहीं पार बसावे तेरी।
रहमत खाँ से जाके मिलग्या, नहीं लगाई देरी।
घर का नाश करा करता, जिस कुल में होज्या बैरी।
अपने हाथों अपने कुल की, मार लगादे ढ़ेरी।
गेरी फौज शहर के चारों ओर फिरे अन्याई ।। 2 ।।
राजा खेमराज ने भी पूरा प्रोग्राम किया था।
सजा के अपनी सेना, लड़ने का इन्तजाम किया था।
थोड़े से सैनिक थे फिर भी, दिल से काम किया था।
मार-मार दुष्टों का जंग में, कत्ले-आम किया था।
संग्राम किया था ऐसा जंग में, खून की नदी बहाई ।। 3 ।।
दो हजार फौजी थे रहमत खाँ के लड़ने वाले।
वीर पाँच सो खेमराज के, लड़ रहे थे मतवाले।
गिनती में थोड़े थे पर लड़ने में करगे चाले।
एक से एक बढ़े था आगे, चला रहे थे भाले।
भालोठिया कहे किले में नहीं सरदारबाई पाई ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
रहमत खाँ की फौज से खेमराज की हार हुई।
रात अन्धेरी सरदारबाई निकल महल से पार हुई।

सज्जनों ! युद्ध में खेमराज की हार होने पर सरदारबाई अंधेरी रात में महल से निकल कर एक गहरे वन में पहुँच जाती है ।

भजन-8 सरदार बाई का

== आनन्दी ==
महलों में रहने वाली, कभी बाग बगीचों में खेली।
भगवां बाणा धार लिया आज, साधु की बणगी चेली।
रहमत खाँ ने चार पाँच बन्दे, भेज दिये तलाश में।
मूलचन्द भी साथ किया था, घूम रहे बनोबास में।
डेरे से थोड़ी दूर एक दिन, सरदारबाई घूम रही ।
चन्दनावती का राजकुमार, बैरीसिंह आ गया वहीं।।

वार्ता-सज्जनों ! सरदारबाई जंगल में एक साधु के डेरे में पहुंच जाती है । एक दिन सरदारबाई डेरे के पास घूम रही थी वहां पर चन्दनावती के राजकुमार बैरीसिंह से मुलाकात होती है ।

भजन-9 सरदारबाई बैरीसिंह का सवाल जवाब-

तर्ज : चौकलिया
कौन देश घर गाम तेरा, जंगल में फिरे अकेली।
यो ही सै देश घर गाम मेरा, मैं साधु की चेली।। टेक ।।
साधु की चेली बणने तैं, बट्टा लगे जात में।
जात में बट्टा क्यों लागे, के देखा फर्क बात में।
बात में फर्क यह देखा, तेरे और ना कोई साथ में।
साथ में और कौन आवे, जब पड़जा विपदा गात में।
गात में विपदा क्यों पड़गी, क्यों छूटे महल हवेली।
महल हवेली छूट गये, मेरी छूटी सखी सहेली ।। 1 ।।
सखी सहेली क्यों छूटी, क्यों विपदा पड़गी तन में।
तन में विपदा पड़ी इसी, कोई काची नहीं विघन में।
विघन इसा के हुआ बता, क्यों छाई उदासी मन में।
मन में उदासी छाया करे, जब चौड़े लुटज्या दिन में।
लुटने वाला ढंग नहीं, तू बनी फिरे अलबेली।
अलबेली तू कहले, हुई मेरे साथ में धक्का-पेली ।। 2 ।।
धक्का पेली कौन करे, आज किसकी शामत आई।
शामत नहीं किसी की आई, जुल्म करें अन्याई।
अन्याई कुण बणग्या उसकी, करद्यूँ तुरंत सफाई।
सफाई तुरंत करो उसकी, दुष्टों ने घणी सताई।
सतावणियाँ कौन दुनिया में, जिसका हो दाता बेली।
बेली जब तक दाता था, मैं राज घरों में खेली ।। 3 ।।
खेलण वाली राज घरों में, बनी फिरे कंगाल।
कंगाल बणी फिरूं सूँ, मेरा लूट लिया धनमाल।
धनमाल लूट लिया, ऐसा आज कौन बना चांडाल।
चांडाल बन गया रहमत खाँ, कर दिया जुल्म कमाल।
भालोठिया कहे खामखाँ तनै, आन फकीरी ले ली।
ढ़ाणी क्यों ना पहुँच गई, क्यों तन पै विपदा झेली ।। 4 ।।
== दोहा ==
बैरीसिंह बोला देवी जी, मेरा कहन पुगाना तू।
मेला अम्बा जी का दस दिन बाद,बारह बजे तक आना तू।।

वार्ता- सज्जनों ! साधु से आज्ञा लेकर बैरीसिंह के कहे अनुसार सरदारबाई अम्बाजी के मेले के लिए चल पड़ती है ।

भजन-10 कवि का

तर्ज : एक परेदेशी मेरा दिल ले गया...........
सरदार बाई चली रात को, ले ईश्वर का नाम।
बारह बजे पहुँचना तड़के, अम्बा जी के धाम।। टेक ।।
मुझे वहाँ बैरीसिंह मिल जांगे, मेरे सब संकट टल जांगे।
खिल जांगे वोह फूल सूकगे, लाग-लाग के घाम।
ज्यों भादों की झाँझली में, आके बरसे राम ।। 1 ।।
क्योंकर पार लगेगा खेवा, खुद भाई हो गया दुख देवा।
मेवा सारी मिले थी बाग में, नहीं लगैं थे दाम।
मेज के ऊपर धरे रहैं थे, सेव संतरे आम ।। 2 ।।
साधु जी की आज्ञा ले ली, कोई ना साथी चली अकेली।
सखी सहेली जिनमें खेली, आवें याद तमाम।
बाग के अन्दर घूमा करती, रोज सुबह और शाम ।। 3 ।।
साधु जी को शीश नवाके, चली थी तन पै कष्ट उठाके।
जाके कह दूँ बैरीसिंह से, दुःख की कथा तमाम।
धर्मपाल सिंह वक्त पड़े पर, तुम भी देना काम ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
बियाबान में चली जा रही, जोर की आँधी आई थी।
रास्ता छूटा पहाड़ों में, सरदारबाई घबराई थी।
हार के बैठ गई, अपने ईश्वर से ध्यान लगावे थी।
एक गीत के माध्यम से, अपना दुःख दर्द सुनावे थी।।

वार्ता- सरदारबाई पहाड़ों में रास्ता भटक गई और एक जगह बैठ कर ईश्वर से अरदास करती है -

भजन-11 सरदारबाई का ईश्वर से

तर्ज : मेरा दिल ये पुकारे आजा, मेरे गम के सहारे आजा.......
मेरी टेर सुनो अविनाशी, तुम हो घट-घट के वासी।
है मझधार में नैया, तुम बिन कौन खिवैया ।। टेक ।।
आपके दरबार में इन्साफ, होता है, होता है।
हमने सुना जहाँ कहीं पाप, होता है, होता है।
निर्बल की सुन फरियाद, करते भक्तों की इमदाद।
नहीं लाई देर जरा सी ।। 1 ।।
एक रोज सीता जी सताई, रावण ने, रावण ने।
लोभ दिया खंजर से डराई, रावण ने, रावण ने।
रावण वीर था बंका, मिलादी खाक में लंका।
आज लोग उड़ावें हाँसी ।। 2 ।।
भरी सभा में केश पकड़ के मुक्का, मारा था, मारा था।
द्रोपदी ने प्रभू आपको रूक्का, मारा था, मारा था।
पापी दुर्योधन, जो करता था विघन।
मरा वो सत्यानाशी ।। 3 ।।
आज मैं भी जुल्मों का शिकार, हो गई, हो गई।
घर और गाँव छोड़ के फरार, हो गई, हो गई।
धर्मपाल सिंह मेरा, हो गया जंगल में डेरा।
बन गई मैं बनवासी ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
इसको टोहने वालों की, आवाज दूर से आई है।
पकड़ो पकड़ो पकड़ो इसको, बड़ी मुश्किल से पाई है।।

वार्ता- सज्जनों ! सरदारबाई को ढूँढने वालों की दूर से आवाज सुनाई देती है ।

भजन-12 सरदारबाई के टोहने वालों का

तर्ज : शहजादी मनै मतना सतावै,मैं रमता राम फकीर ........
जाने वाली ठहर, आ लिया, बस धरती का ओड़।
आगे मतना कदम धरै।। टेक ।।
जहाँ पर जाना था वहाँ जा ली, अब ये जगह आखिरी आ ली।
चाली भगवां बाणा पहर, ली अपनी खुद किस्मत फोड़।
अब बिन आई मौत मरै ।। 1 ।।
रहे हम फिरते मारे-मारे, जंगल पहाड़ देख लिये सारे।
सारे देखे गाम शहर, देख लिए कुवे और जोहड़।
तू यहाँ जंगल में फिरै ।। 2 ।।
अब मत आगे कदम उठावे, नहीं तो और घणी दुख पावे।
खावे मिले नहीं यहाँ जहर, जो तज दे तू अपनी खोड़।
हो दुनिया तै दूर परै ।। 3 ।।
कोई नहीं आज तेरा हिमाती, कहाँ गया धर्मपाल सिंह साथी।
गाती सुनती मीठी बहर, आस तू उसकी भी दे छोड़।
वो ईश्वर के भजन करै ।। 4 ।।
== राधेश्याम ==
पकड़ने वालों का मुखिया भी, राजकुमार मूलचन्द था।
पकड़ हाथ सरदार बाई का, न्यू बोला मति मंद था।
रहमत खाँ को जा पकड़ावें, आगे वो इन्तजाम करे।
उसका काम बनादूँ पूरा, मेरे भेंट इनाम करे।।

वार्ता- सज्जनों ! पकड़ने वालों का मुखिया भाई मूलचन्द को देख कर सरदारबाई उस से छोड़ने की याचना करती है -

भजन-13 सरदारबाई का मूलचन्द से

तर्ज : चौकलिया (कालंगड़ा)
मतना पकड़ो दुखियारीऽऽऽ, बेबे माँ-जाई नैऽऽऽ।
मूलचन्द तू मत पकड़ावे, गऊ कसाई नै।। टेक ।।
चाव पुत्र का किया करें, दुनिया में पिता और मात।
बिना पुत्र के फिरें भटकते, जीवन में दिन-रात।
तूने अपने मात-पिता के, साथ किया उत्पात।
तेरे कारण कैदी बन, आज भोग रहे हवालात।
साथ दुष्ट के करे, आज तू सरदारबाई नैऽऽऽ।
कुल की लाज शर्म नहीं, सोची अन्याई नै ।। 1 ।।
मात-पिता ने लाड़ करे, बचपन में गोद खिलाया।
सेव संतरे मक्खन मिश्री, घी और दूध पिलाया।
खाने पीने और कपड़े पर, पैसा खूब लुटाया।
हुई पढ़ाई शुरू तेरी, धन बादल ज्यूं बरसाया।
लुटवाया घर बीरा, तेरे ब्याह सगाई नैऽऽऽ।
सौंप दुष्ट को आया, नीच तू अपनी ब्याही नै ।। 2 ।।
तेरे जैसे नालायक को, ईश्वर जल्दी ठाले।
बिना बात उत्पात करे, क्यों बान्ध रहा सै पाले।
अपने खोटे दाम हों, क्या करें परखने वाले।
घर का मालिक घर फूँके, दुनिया में कौन बचाले।
काले मुँह क्यों होते आज, तेरी देख बुराई नैऽऽऽ।
पैदा होते ही क्यों नहीं, लिया उठा बिलाई नै ।। 3 ।।
घर और गाम छोड़ दिया तेरा, बनी फिरूँ बनवासी।
हो विश्वास अगर चोरी का, ले ले मेरी तलाशी।
यदि कहीं डाका मारा हो और कोई बदमाशी।
या मैं खून किया होवे तो, तुड़वादो चाहे फाँसी।
प्यासी बहन पिलादे पानी, धर्म हो भाई नैऽऽऽ।
धर्मपालसिंह कौन भुलादे, तेरी भलाई नै ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
जंगल में से भीलों की, एक गाड़ी भाड़े करली थी।
लड़की पिंजरे में बन्द करी, आगे की सूरत धरली थी।
दो पाली साथ लिए गडवाले, रानीपुर को जावैं थे।
इनाम के भूखे ये पाँचों, आपस में बतलावैं थे।।

वार्ता- सज्जनों ! रहमत खाँ के गुंडे एक भीलों की गाड़ी भाड़े कर रानीपुर के लिए चल दिये लेकिन रास्ते में इनाम के चक्कर में आपस में खूनी संघर्ष में मारे गये । मूलचन्द अकेला गाड़ी लेकर आगे चलता है।

भजन-14 कवि का

तर्ज : सांगीत - मरण दे जननी, मौका यो ठीक बताया .......
इस अपस्वार्थ ने बड़े-बड़े घर खोये।। टेक ।।
महाभारत में मिलता, इसी रोग का प्रमाण देखो।
कौरव और पाँडवों का, फोटू मेहरबान देखो।
अपस्वार्थ में हुए सारे, मौत के सामान देखो।
कृष्ण जी न्यू बोले रे, दुर्योधन कहना मान भाई।
अपस्वार्थ में खोवे मतना, दीन और ईमान भाई।
लेकिन एक नहीं माना, दुर्योधन शैतान भाई।
दुर्योधन देश के अन्दर, बीज फूट के बोये ।। 1 ।।
इसके बाद एक और जयचन्द की मिसाल देखो।
गजनी से बुलाया गोरी, अपनी चिट्ठी डाल देखो।
आपकी इमदाद करूँ, लिखा सारा हाल देखो।
गौरी की भारत पर ये, फिर आखिरी चढ़ाई थी।
जयचन्द के कहने पर, उसने लड़ी ये लड़ाई थी।
कन्नौज की फौज सारी, इमदाद में आई थी।
देश का नाश कराके खुद भी, नींद सदा की सोये ।। 2 ।।
अपस्वार्थ में मूलचन्द ने, लीनी आँख मींच भाई।
कुलघाती उत्पाती घर में, पैदा हो गया नीच भाई।
इसी कारण युद्ध हुआ, बाप बेटे बीच भाई।
जब आपस में बदली आँख, तलवार ली खींच भाई।
मैदान में लड़े खूब, जाड़ भींच-भींच भाई।
रानीपुर के खेतों में, खून से बना कीच भाई।
अपने कुल का नाश कराके, आप बाद में रोये ।। 3 ।।
अपस्वार्थ की बीमारी के, ये पाँचों बीमार देखो।
इनाम के भूखे सारे, हो गये थे तैयार देखो।
चलने लगी आपस में, पाँचों की तलवार देखो।
गडवाला भागा था, इनकी देख के तकरार भाई।
लड़ते-लड़ते एक बचा, मारे गये चार भाई।
वोह भी आगे चलके बना, शेर का शिकार भाई।
धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, झूठे झगड़े झोये ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
मूलचन्द चला गाड़ी लेकर , सिर पै रात झुकी काली।
लड़की पिंजरे में बन्द देखके, आगे भड़क उठे पाली।
मूलचन्द की पीट-पीट के, उसकी दी थी रड़क निकाल।
फिर लड़की से बतलाये थे, बहन बतादे सारा हाल।।

वार्ता- सज्जनों ! मूलचन्द सरदारबाई को लेकर जा रहा था । रास्ते में पाळी मिले वो पिंजरे में बन्द लड़की को देख कर भड़क गये और मूलचन्द को पीटने लगे लेकिन सरदारबाई ने कहा उसे ज्यान से मत मारो । सरदारबाई से पूछने पर वह अपनी हकीकत बता कर अम्बाजी के धाम पर पहुँचाने के लिए कहती है -

भजन-15 सरदारबाई का पालियों से

तर्ज : चौकलिया (कालंगड़ा)

के बूझोगे दुखियारी काऽऽ, हाल पालियोऽऽऽ।

दिल दरिया उझलेगा, डटे नहीं झाल पालियो ।। टेक ।।


मेरी ओड़ के भले-भले, इन्सान मर लिये।

परोपकारी दानी और, धनवान मर लिये।

हुई नक्षत्री-भूमि सब, बलवान मर लिये।

धर्म की शिक्षा देते वो, विद्वान मर लिये।

नौजवान मर लिए, करते प्रतिपाल पालियोऽऽऽ।। 1 ।।

जहाँ कहीं दुख सतियों को, शैतान देते थे।

वीर बहादुर वहाँ पर अपनी, ज्यान देते थे।

नहीं किसी को नाजायज, नुकसान देते थे।

शरण में आये हुए को, जीवनदान देते थे।

जलपान देते जो मिलता, कंगाल पालियोऽऽऽ।। 2 ।।

आज मुझे इस जंगल में, बदमाश मिल गये।

मेरे लिए तो धरती और आकाश मिल गये।

जिनके डर से छुपती थी, वोह खास मिल गये।

दर-दर फिरते, करते मेरी तलाश मिल गये।

दो सांस मिल गये, टल गया भूचाल पालियोऽऽऽ।। 3 ।।

अम्बाजी के धाम पर, जो मुझे पहुँचा दोगे।

गुण नहीं भूलूँ, मेरा इतना कहन पुगा दोगे।

अपने साथी संगी, उन सबको समझा दोगे।

मेरे साथ सिर्फ दो की, ड्यूटी लगवा दोगे।

गाना सुनियो, मिले वहाँ, धर्मपाल पालियोऽऽऽ।। 4 ।।

== आनन्दी ==

बैरीसिंह जब अम्बाजी के, धाम पै चलके आया था।

अनमेशन हथियारों सहित, फौज साथ में लाया था।

राजकुमार ने देखा यहाँ, नहीं आई राजकुमारी थी।

महन्त जी से बात करे और मन में चिन्ता भारी थी।।

वार्ता- सज्जनों ! उधर अम्बाजी के धाम पर तय समय में सरदारबाई के न आने से बैरीसिंह को चिन्ता हुई इतने में पाळी उसे लेकर आ गये ।

भजन-16 चन्दनावती के राजकुमार बैरीसिंह का

तर्ज : बार बार तोहे क्या समझाऊँ........
हो गई कोई अनहोनी बाबा, बोला राजकुमार।
नहीं आई वो राजकुमारी, हो गये जुल्म अपार ।। टेक ।।
उसको देख-देख बाबा, मेरे दुख हो गया मन में, मन में।
दुश्मन से बदला लेलूँ, मेरे आग लगी, तन में, तन में।
वन में मेरी बात हुई, करता उसका इन्तजार ।। 1 ।।
नहीं कहीं वो गये घरां की, कोई हन्डोरी सै, हन्डोरी सै।
नहीं कोई बिना मां-बापां की, बनी चटोरी सै, चटोरी सै।
राजघरों की छोरी सै, ये था उसका आकार ।। 2 ।।
गाड़ी लेकर मेले में, फिर आ गये थे पाली, थे पाली।
हल्ला पड़ग्या मेले में, ये आ गये कौन कुचाली, कुचाली।
लड़की पिंजरे में डाली, ये सैं पक्के बदकार ।। 3 ।।
लड़की बोली गैर नहीं, ये सैं मेरे भाई, मेरे भाई।
इनकी मेहरबानी से मैं, मेले में आई, आई ।
धर्मपालसिंह दे-दे गवाही, ये मेरे मददगार ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! अब चन्दनावती के राजकुमार बैरीसिंह ने अनमेशन हथियारों व फौज सहित सरदारबाई को साथ लेकर रानीपुर में रहमत खाँ की फौज पर हमला कर दिया ।

भजन-17 कवि का

तर्ज - शुभ कर्मों की कमाई कै के रोली लागै सै .......

लड़ते क्षत्रियों के छोरे, हो रही धम धम धम धम धम ।। टेक ।।
दोनों ओर की तलवार, होने लगी मारोमार।
गोली चलने लगी ऐसे, जैसे बारीश झम झम झम।
लड़ते आर्यों के छोरे......।। 1 ।।
बैरीसिंह की बम करती, चाली धम धम धम करती।
बिसमल्ला करे मुसल्ला, अल्ला मारे गये हम।
लड़ते आर्यों के छोरे......।। 2 ।।
जैसै काटे खेत किसान,ऐसे करते हैं शैतान।
बोले यमन के लाली तोड़े फोड़े, मारे गये हम।
लड़ते आर्यों के छोरे.......।। 3 ।।
दुश्मन गेर के हथियार, होने लगे थे फरार।
आखिर कर लिये बन्द किवाड़, बाकी गये थे सहम।
लड़ते आर्यों के छोरे.......।। 4 ।।

सज्जनों ! लड़ाई में रहमत खाँ की फौज को हरा दिया और रहमत खाँ को पकड़ लिया। राजा खेमराज व रानी को जेल से छुड़वाया। रहमत खाँ को दिल्ली के बादशाह शाहजहां के हवाले किया। बादशाह ने हाकिम की करतूत सुनकर रहमत खाँ का सिर उड़वा दिया । बैरीसिंह की शादी नहीं हुई थी अतः राजा खेमराज ने अपनी बेटी सरदारबाई का विवाह बैरीसिंह से कर दिया ।


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