Dharampal Singh Bhalothia/Aitihasik Kathayen/Somwati-Chap Singh

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ऐतिहासिक कथाऐं


रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया

ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो. 9460389546


कथा-5 सोमवती-चापसिंह

वार्ता- सज्जनों ! दिल्ली के बादशाह अकबर के दरबार में शेरखान और बूंदी का चाप सिंह दो सिपहसालार थे। चाप सिंह बादशाह का विश्वासपात्र बन गया इससे शेरखान द्वेष रखने लग गया । वेद और कुरान में सच्चा ग्रंथ कौन सा है तथा खुदा व भगवान में तगड़ा कौन है इस बात को लेकर हिंदू मुसलमान में झगड़ा हो गया । बादशाह ने कहा झगड़ने में कोई फायदा नहीं है जिस परिवार में पतिव्रता नारी है संसार में वही बड़ा है, जो सच्चा मर्द होगा उसको पुरस्कार दूंगा और वह राज में सबसे बड़ा सरदार होगा ।

भजन-1 कथा परिचय

तर्ज : गंगा जी तेरे खेत मे...........
कथा सुनाऊँ आऽऽज मैं, एक पतिव्रता नार।
राजस्थाऽऽन में, थी बून्दी की रानीऽऽ।। टेक ।।
बैठे तखत पर बादशाह अकबर, दिल्ली के दरबार में।
देख नजारा, माहोल सारा, चर्चा थी नरनार में।
सारी जनता, में प्रसन्नता, सै इसकी सरकार में।
कोई सलाम, कोई राम-राम, कोई राजी हो नमस्कार में।
गुड इवनिंग, गुड मोर्निंग, कोई गुड नाइट के इन्तजार में।
मिला हस्त, कोई रहे मस्त, सब अपनों के सत्कार में।
अपने-अपने रिवाऽऽज में, था सबको अधिकार।
दीन-ईमाऽऽन में, नहीं किसी को परेशानीऽऽ ।। 1 ।।
नेक पंथ, कौन सच्चा ग्रंथ, सै वेद और कुरान में।
हो गया झगड़ा, कौन सै तगड़ा, खुदा और भगवान में।
मारें बोर, हो रहा शोर, सब चूर हुए अभिमान में।
बैठा मौन, समझावे कौन, नहीं बादशाह के ध्यान में।
आई मुश्किल , हो गई हलचल, हिन्दू मुसलमान में।
बजावें ताली, निकलें गाली, हर बन्दे की जबान में।
फिरकाप्रस्थ समाऽऽज में, किसी का नहीं एतबार।
हर इन्साऽऽन में, पावे बेईमानीऽऽ ।। 2 ।।
मुस्लिम सारे, लगावें नारे, गूँज रहे आसमान में।
दुनियाँ भर में, आज शिखर में, मान और सम्मान में।
बजे नकारा, राज हमारा, सारे हिन्दुस्तान में।
हिन्दु भाई, मारें दुहाई, आग्या जोश जबान में।
ऋषि-मुनि, हो गये गुनी, जो ज्ञान और विज्ञान में।
मिले उदाहरण, जिनके कारण, सबसे बड़े जहान में।
इस बेढंगी खाऽऽज में, रोज रहे तकरार।
झूठ तूफाऽऽन में, हुई बहुत हानिऽऽ ।। 3 ।।
सुन के रोळा, बादशाह बोला, के फायदा तकरार में।
करो शान्ति, मिटे भ्रान्ति, सुख आपस के प्यार में।
जंग जबानी, होती हानि, घर के बुरे व्यवहार में।
सबूत पुख्ता, हो पतिव्रता, नारी जिस परिवार में।
मेटूं झगड़ा, होजा खड़ा, सै वही बड़ा संसार में।
बात का सच्चा, मर्द का बच्चा, उसको दूँ पुरस्कार मैं।
उसकी कदर मेरे राऽऽज में, वो सबसे बड़ा सरदार।
पवित्र स्थाऽऽन में, सै भालोठिया ढ़ाणीऽऽ ।। 4 ।।
== दोहा ==
खड़ा सभा में हो गया, चापसिंह सरदार।
गढ़ बूंदी के महल में, पतिव्रता मेरी नार।।

वार्ता- सज्जनों ! दरबार में चाप सिंह ने कहा गढ़ बूंदी में मेरी पतिव्रता नार है । शेरखान इसका विरोध करता है और चाप सिंह की बात को गलत सिद्ध करने के लिए 15 दिन की छुट्टी मांगता है ।

भजन-2 शेरखाँ का बादशाह को

तर्ज : सांगीत - मरण दे जननी, मौका यो ठीक बताया ......
ये गलत फैसला आपका, उठ शेरखान न्यू बोला।। टेक ।।
बादशाह सलामत सुनो, गौर करके मेरी बात।
आपने तारीफ करदी, फूल गया काफिर का गात।
दुनिया में कोई और नहीं, हिन्दू जैसी गन्दी जात।
औरत इसकी घर में बैठी, बदफैली करे दिन रात।
खुल्ले मुँह मेलों में फिरती, गीत गावे खुराफात।
किसी से भी कर लेती, मिन्टों में अपनी मुलाकात।
उदाहरण इसके बाप का, बेटी का दिया था डोला ।। 1 ।।
अपने ही दरबार में आज, अपनों का हुआ अपमान।
देखकर बेइज्जती अपनी, हर बन्दा हो गया हैरान।
पूरे ही मजहब के सिर पे, दीखेगा बैठा शैतान।
आप ऐसा कर दोगे ये, किसी को नहीं था ज्ञान।
मोहर ये पक्की लगादी, दिखादी अपनी पहचान।
खुदा ही मालिक अब अपना, अल्लाह ताला मेहरबान।
ये मसला नहीं चुपचाप का, पडग्या दुनिया में रोळा ।। 2 ।।
दुनिया के कोने-कोने में, जमी थी हमारी धाक।
आपने आज मार दिया, अपनी ही जड़ों में आक।
खतरे में इस्लाम आज, कटवादी हमारी नाक।
चापसिंह हिन्दू जाति में, सबसे गंदा है नापाक।
शराबी जुआरी दर-दर, छानता फिरे था खाक।
धरती पर थी जगह नहीं, आसमान में मारी डाक।
चल गया दाँव आज चाप का, दिया फैंक झूठ का गोला ।। 3 ।।
काफिर की तारीफ के, मेरी छाती में चुभैं सैं बोल।
बिल्कुल गये गुजरे घर की, टींगरी लाया था मोल।
इसके घर में आना जाना, मेरा पक्का मेल जोल।
आज मैं ऐलान करूँ, सभा में बजा के ढ़ोल।
पन्द्रह दिन की छुट्टी दे दो, झूठ की खोलूँगा पोल।
या तो उसको फाँसी दो, या मेरा करदो बिस्तर गोल।
कहे धर्मपाल सिंह पाप का, बेड़ा डूबे दिन धोला ।। 4 ।।

वार्ता-सज्जनों ! शेरखान द्वारा हिंदू जाति व चाप सिंह की पत्नी पर दोषारोपण करने पर चाप सिंह शेरखान से कहता है -

भजन-3 चापसिंह का

तर्ज : जब प्यार किया तो डरना क्या........
शेरखान क्यों जुल्म करे ।
पतिव्रता मेरी रानी पे, पापी झूठा दोष धरे।। टेक ।।
आर्य कन्या बचपन में, शिक्षा पाया करती हैं।
मात पिता दादा दादी का, कहन पुगाया करती हैं।
ध्याया करती उसको जो, सारी दुनिया का कष्ट हरे ।। 1 ।।
जिस दिन शादी होकर के, ससुराल में जाया करती हैं।
सुसरे को प्रणाम सास के, चरण दबाया करती हैं।
खाया करती फल सब्जी, घी दूध मलाई संतरे ।। 2 ।।
गैर मर्द से सपने में भी, नहीं बतलाया करती हैं।
जगत पति और अपने पति को, शीश झुकाया करती हैं।
नहाया करती सुबह उठ के, घर बरतन कपड़े सुथरे ।। 3 ।।
गुण्डे और बदमाशों को, नहीं शकल दिखाया करती हैं।
वक्त पड़े तो उनके सिर में, जूत लगाया करती हैं।
गाया करती भालोठिया के, गीत निराले रंग भरे ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! अब बादशाह अकबर शेरखान को पन्द्रह दिन की छुट्टी दे देता है। शेरखान पठान अपनी योजना को सफल बनाने के लिए अपने साथियों से विचार कर कोई कारगर दाँव-पेच तलाश करता है। किसी ने बताया अपने यहाँ नन्ही जान नाम की रंडी है और आपका काम पूरा कर देगी। शेरखान नन्ही जान के घर जाकर क्या कहता है-

भजन-4 शेरखान का दूती से

तर्ज : जिया बेकरार है, छाई ये बहार है .......
सुन तेरा गुणगान मैं, आया नन्ही जान मैं।
करदे मेरा काम, तेरा नहीं भूलूँ अहसान मैं।। टेक ।।
सवारी साधन घोड़ा बग्घी , त्यार खड़ी मेरे पास में।
राणी पर जादू मारो, जा बून्दी के रणवास में।
इस पूरे अभियान में, दूँगा सब सामान मैं।
करदे मेरा काम, तेरा नहीं भूलूँ अहसान मैं ।। 1 ।।
जो बून्दी का महल जनाना, नक्शा बणा लिए सारा।
बाथरूम रसोई-घर सब, बैड रूम न्यारा न्यारा।
जोड़ी कितनी मकान में, पैड़ी कितनी सोपान में।
करदे मेरा काम, तेरा नहीं भूलूँ अहसान मैं ।। 2 ।।
रानी के बदन पर कोई, कुदरती निशान हो।
चापसिंह के हाथ का फिर, कोई भी सामान हो।
रखना उसको ध्यान में, ले लेना सम्मान में।
करदे मेरा काम, तेरा नहीं भूलूँ अहसान मैं ।। 3 ।।
चापसिंह फन्दे में फँस जा, मेरी हो पूरी मरजी।
धर्मपालसिंह भालोठिया कहे, सारा काम बने फर्जी।
बोला शेरखान मैं, करद्यूं तेरा कल्याण मैं।
करदे मेरा काम, तेरा नहीं भूलूँ अहसान मैं ।। 4 ।।

वार्ता-सज्जनों ! शेरखान सारा प्रबंध करता है और नन्ही जान दूती योजना अनुसार बूंदी को चलती है ।

भजन-5 कवि का

तर्ज - सत्यवान म्हारे ठहरण का इन्तजाम करिये .......
ठगनी चाली बून्दी का विचार करके।
अपने को ठग विद्या में होशियार करके।। टेक ।।
डोली का नमूना, बड़े गजब का बनवाया उसने।
तेल साबुन जेवर कपड़ा, जितना भी मंगवाया उसने।
शेरखान लाता गया, जो कुछ भी बताया उसने।
बालों में लगा के तेल, चोटी दो बनवाई उसने।
पट्टी भी जमाके, माँग रोऴी से भरवाई उसने।
आँखो में स्याही डाली, करके चतुराई उसने।
सुरमादानी लई साथ में, तैयार करके ।। 1 ।।
हाथों में हथफूल पहना, गजरा पहुँची कांगणी।
कडुले और छन्न-पछेली, पड़े नहीं मांगणी।
बाजूबन्द बाजूचोक, आंगी पर की आंगणी।
सोने की गंठी गलसरी, बटन हों जंजीर दार।
दो मोहरां की नांथ थी, बूजनी और बोरला सार।
छाती पर पड़ा था जिसके, नो लड़ का चन्दन हार।
महाराणी सी लागे थी, वो सिणगार करके ।। 2 ।।
फिट करवाया गात के मां, रेशमी रंगीला सूट।
माथे में लगाई बिन्दी, पैरों में सजे थे बूँट।
घेटी में दीखे था जाता, पाणी भरे थी घूँट।
जेवर कपड़े पहन करके, बैठ गई डोली में।
परी भी शरमावण लागी, फूल झड़ें बोली में।
परदा उठा चमका लागे, झल निकले ज्यों होली में।
जादूगरणी चली, तेज रफ्तार करके ।। 3 ।।
रास्ते में भूख लागे, खाने का सामान लिया।
मीठा और नमकीन साथ, कुछ सूखा पकवान लिया।
सुपारी इलायची जर्दा, चूना कत्था पान लिया।
कुदरती गुण न्यारा हो सै, लुगाई की जात में।
अपना जादू मारण खातर, मटके बात बात में।
वर्षों का बनाया मूड, पलटे एक ही रात में।
भालोठिया बणे सती, पति को मार करके ।। 4 ।।

वार्ता- दूती चाप सिंह की भुआ बन कर बूंदी महल में पहुंच जाती है ।

भजन-6 दूती (नन्ही जान) का रानी सोमवती से

तर्ज : होगा गात सूक के माड़ा, पिया दे दे मनैं कुल्हाड़ा.......
दूती गढ़ बून्दी में आई, रानी को आवाज लगाई।
मेरी बेटी फाटक खोलिये, अपनी फूफस के पा धो लिये।। टेक ।।
पवित्र जल से धोके बेटी, चरण दबाइये मेरा।
मेरे चरण टिके तैं तेरा, हुआ पवित्र डेरा।
तेरा कदम धर्म पै चलिये, दूधों न्हाइये पूतों फलिये।
प्रेम वचन मुँह बोलिये ।। 1 ।।
तेरी शादी में नहीं आवण का, यो सै कारण सच्चा।
मैं जापे में सोवे थी और मेरी गोदी में था बच्चा।
जच्चा गावें रोज लुगाई, और महलों में बटी मिठाई।
गई भूल कई दिन हो लिये ।। 2 ।।
दिल्ली से गया मेरा भतीजा, बन मेरा लणिहार।
उस दिन भी बेटी मेरा था, बच्चा सख्त बीमार।
त्यार हो करके मैं नाटी, झाल दिल अपने की डाटी।
बीमारी में दुःख ढ़ोलिये ।। 3 ।।
मेरा भतीजा मेरे आगे, जो करता तेरी बड़ाई।
ले-ले बेटी एक सौ एक रूपया, तू मुँह दिखाई।
आई घर का काम छोड़के, तड़के जांगी भाग दौड़ के।
आज घी के दीये जोलिये ।। 4 ।।
सास बहू दोनों महलों में, करें प्रेम की बात।
भालोठिया कहे बतलावांगी, बेटी सारी रात।
गात फूला नहीं समावे, बेटी मतना देर लगावे।
हे जल्दी रोटी पोलिये ।। 5 ।।

वार्ता- सज्जनों ! रानी का शक दूर करने के लिए दूती अपना पूरा परिचय देती है और अपना काम भी बनाने के लिए मौका देख रही है।

भजन-7 नन्ही जान दूती का

करके याद पुरानी हे, बेटी मैं आई आपके पास।। टेक ।।
भतीजा लागै सै मेरा चाप, मेरा भाई था इसका बाप।
बून्दी की महारानी हे, मेरी भावज थी तेरी सास ।। 1 ।।
बेटी दूर सासरा मेरा, अब सै वही आसरा मेरा।
मांडा की राजधानी हे, कोस बून्दी से एक सौ पचास ।। 2 ।।
हे सोहाग बना रहे तेरा, योहे आशीर्वाद सै मेरा।
सुखी रहे जिन्दगानी हे, मेरी ईश्वर से अरदास ।। 3 ।।
बेटी मैं कल घर जाऊँगी, फेर पता नहीं कब आऊँगी।
दे दे कोई निशानी हे, याद करूँगी बारहमास ।। 4 ।।
नहाती साथ स्नानघर में, निशानी तिल की आई नजर में।
खुशी हुई मनमानी हे, अब बन जागी पूरी आस ।। 5 ।।
नक्शा आपके घर का चाहूँ, मैं भी इसा महल बनवाऊँ।
सुन के बेटी मेरी बाणी हे, उसमें मेरा रहे निवास ।। 6 ।।
बेटी मत करिये इनकारी, दे भाई की रूमाल कटारी।
समय आवणी जानी हे, निशानी बनी रहेगी खास ।। 7 ।।
हे तेरी जितनी सुनी बड़ाई, मेरे आज हुई भरपाई।
भालोठिया लिखे कहानी हे, गावे राजेन्द्र इतिहास ।। 8 ।।

वार्ता-सज्जनों ! रानी वचनों में आके रूमाल कटारी और महल का नक्शा दे देती है। नन्ही जान दूती दिल्ली में आकर ये शेरखान को देती है। शेरखान ये दरबार में दिखाता है और क्या कहता है-

भजन-8 शेरखाँ का

तर्ज:-ऊँची ऊँची दुनिया की दीवारें सैयां तोड़ के.......
सुन्दर-सुन्दर चापसिंह, तेरे देखे महल मकान मैं।
मैंने देखी रे, देखी तेरी बून्दी राजस्थान में।। टेक ।।
मैं बून्दी में पहुँच गया, जब राजमहल के पास में।
पता चला जब रानी को, मुझे बुला लिया रणवास में।
उल्लास में थी रानी, ये सब दीखे था मुस्कान में ।। 1 ।।
नहाने और खाने पीने का, देखा ठाठ तमाम था।
नहीं नौकर की वहाँ जरूरत, नहीं बाँदी का काम था।
इन्तजाम वहाँ सब रानी का था, देख हुआ हैरान मैं ।। 2 ।।
जिसको तू पतिव्रता बतावे, उसकी ये करतूत सै।
मैं झूठा निकलूँ तो मार, मेरा सिर तेरा जूत सै।
सबूत सै ये ल्याया निशानी, रूमाल और कृपाण मैं ।। 3 ।।
धर्मपालसिंह भालोठिया कहे, बुरा अन्त शैतानी का।
शेरखान कहे मैं नहीं करता, कभी एतबार जनानी का।
रानी के बदन पर देखा, तिल का खास निशान मैं ।। 4 ।।

वार्ता-सज्जनों ! शेरखान महल का नक्शा रूमाल कटारी बादशाह को दे देता है। सब दरबारी देख रहे हैं। शेरखान बोला मैंने मेरा वायदा पूरा कर दिया। चापसिंह ने मान लिया कि ये सब सामान मेरा है। बादशाह चापसिंह को पन्द्रह दिन की छुट्टी देता है और बोला पन्द्रह दिन बाद आपको फाँसी होगी। चापसिंह बून्दी में आया रानी स्वागत के लिए आई। चापसिंह ने रानी को धिक्कार कर जन्मभूमि को शीश झुकाकर वापिस दिल्ली के लिए घोड़ा दौड़ा दिया।

भजन-9 रानी का चापसिंह से

आज कौन खता हुई मेरी, हो पियाजी, सुन बोल आपका मरगी।। टेक ।।
सुन-सुन उठे बदन में आग, क्योंकर ला दिया कुल के दाग।
पाग झुकी क्यों तेरी, हो पियाजी के मैं अनहोनी करगी ।। 1 ।।
आपने जो कुछ वचन सुनाया, मेरे नहीं समझ में आया।
काया जल हुई ढ़ेरी हो पियाजी, धरती पाणी की भरगी ।। 2 ।।
किसी दुश्मन ने चुगली खाई, मेरी झूठी करी बुराई।
आई मनै अन्धेरी हो पियाजी, दिल की खुशी बिखरगी ।। 3 ।।
मैंने नहीं किया उत्पात, बतादे भालोठिया सब बात।
नाथ करो मत देरी, बता खता मैं डरगी ।। 4 ।।

वार्ता-सज्जनों ! रानी सोमवती भगवां साड़ी पहन जोगन बन कर बांदी को साथ लेकर दिल्ली के लिए रवाना ।

भजन-10 कवि का

तर्ज : नगरी नगरी द्वारे द्वारे, ढ़ूँढूँ रे सांवरिया......
बढि़या बढि़या जेवर कपड़े, धर दिये थे रणवास में।
गढ़ बून्दी की रानी चाली, पिया की तलाश में।। टेक ।।
जोगण बनके चाली राणी, खाक रमाई थी तन में।
चलते-चलते साँझ हो गई, डेरा लगा लिया वन में।
मन में खतरा नही रहे, थी बाँदी उसके पास में ।। 1 ।।
सूट रेशमी तार दिये थे, भगवां बाँध लई साड़ी ।
अपना नाम बसन्ती और, बाँदी का नाम धरा माड़ी।
झाड़ी झुण्डे खड़े जंगल में, बिस्तर ला लिया घास में ।। 2 ।।
मंजिल-मंजिल चलते-चलते, रानी दिल्ली में आई।
सुना चापसिंह ने पतिव्रता, अपनी रानी बतलाई।
आजमाई जा शेरखान कहे, लाया निशानी खास मैं ।। 3 ।।
चापसिंह झूठा पाया वो, तड़के टूटेगा फाँसी।
शेरखान इनाम लेगा, उसको मिल रही शाबासी।
तलाशी करली भालोठिया, थी रानी जिस तलाश में ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! रानी को पता लगा कल दरबार में शेरखाँ को इनाम मिलेगा । खान ने गाने वाले बुलाये हैं, बून्दी का राजा चापसिंह फांसी टूटेगा। रानी संगीत विद्या में बड़ी माहिर थी साथ में अपना सितार भी था। बसंती (सोमवती) और माड़ी (बान्दी) भी दरबार में आ गई। उसको भी एक गीत का समय मिल गया।

गीत:-11 बसंती (सोमवती) जोगन का

तर्ज- सावन आया हे, म्हारा जोड़ी रा भरतार...... ..
सबसे आला हो, स्वामी आपका दरबार, दयालु देखा सबसे निराला हो।। टेक ।।
ऊपर नीचे आगे पीछे देखा करके गौर ।
जितनी तेरी शक्ति, इतनी देखी नहीं कोई और।
तू ही रखवाला हो, स्वामी तू ही है पालनहार ।। 1 ।।
ऐसी जगह नहीं कोई, जहाँ पर तेरी नहीं नजर हो।
ऐसी बात नहीं कोई, जिसकी आपको नहीं खबर हो।
नहीं देखा ताला हो, तेरा खुल्ला रहे द्वार ।। 2 ।।
आपकी सी.आई.डी. का, देखा अजब कमाल।
आपसे छुपकर जा नहीं सकता, कोई माई का लाल।
पड़ा आपसे पाला हो, फिर उसकी होती हार ।। 3 ।।
आपके दरबार में जो, कोई सवाली आया।
फरियाद सुनी जाती उसकी, वह कभी न खाली आया
गोरा चाहे काला हो, समझो सबको इकसार ।। 4 ।।
आपने जो दिया फैसला, बना कफन की कील।
दुनियाँ में धक्के खालो, कहीं होती नहीं अपील।
नहीं होता टाला हो, वो डूबेगा मझधार ।। 5 ।।
भालोठिया कहे तीन लोक में, आपकी जय-जयकार।
जहाँ रोशनी जावे आपकी, रहे नहीं अन्धकार।
रटूँ मैं माला हो, मेरा करदो बेड़ा पार ।। 6 ।।

वार्ता-सज्जनों ! जोगन (सोमवती) अब बादशाह को शेरखान के बारे में क्या कहती है -

भजन-12 बादशाह-जोगन वार्तालाप

तर्ज : चौकलिया
गाने वाली कुछ भी मांगो, दूँगा वही इनाम।
इनाम नहीं लूँ ,करदो मेरा एक छोटा सा काम।। टेक ।।
काम चाहे तू सौ करवाले, सै मेरे हाथ में राज।
राज हाथ में इसीलिए, मैं करूँ विनती आज।
विनती आज करे क्यों, चाहे सिर पै धरवाले ताज।
ताज नहीं लूँ, मूल दिवादे, नही मांगूँ मैं ब्याज।
ब्याज मूल का के झगड़ा, तू किस्सा बता तमाम।
तमाम किस्सा वही बतावे, डिफाल्टर का जाम ।। 1 ।।
जाम कौनसे डिफाल्टर का, मैं उसकी पाडूँ फीत।
फीत फाड़ दो शेरखान की, उसकी बिगड़ी नीत।
नीत सुधर जागी उसकी, जिस दिन होवे तेरी जीत।
जीत नहीं होगी मेरी तो, मैं उल्टे गाऊँ गीत।
गीत उल्टे गावेगी तो, मैं हो ज्यां बदनाम।
बदनामी तैं डर लागे तो, मेरे दिवादे दाम ।। 2 ।।
दाम आपके दे दे यो सै, माणस इज्जतदार।
इज्जतदार रूपया एक दिन, लाया एक हजार।
हजार आपके ब्याज सहित दे, नहीं करे इनकार।
इनकार कर दिया तो मैं, करवा दूँगा गिरफ्तार।
गिरफ्तारी का डर लागै, जब सुनूँ जेल का नाम।
नाम जेल का नहीं बुरा है, जेल पवित्र धाम ।। 3 ।।
धाम पवित्र नहीं देखूँ, नोटां की कर दूँ टाल।
टाल करे क्यों नोटां की, के आया मुफ्त का माल।
माल मुफ्त का नहीं आया, नहीं थी घर की टकसाल।
टकसाल तेरे घर की कर दूँ, तू बन जागी मालोमाल।
मालोमाल मैं बनी रहूँ, जब तक राजी सै राम।
राम भरोसे धर्मपाल सिंह, वही करे इन्तजाम ।। 4 ।।
== दोहा ==
गाने वाली की सुनी, अकबर ने अरदास।
लूट मचादी राज में, ओ शेरखान बदमाश।।

वार्ता-सज्जनों ! बादशाह जोगन (सोमवती) से सारी हकीकत सुनकर शेरखान से कहता है-

भजन-13 बादशाह अकबर का

तर्ज : जरा सामने तो आवो छलीये, छुप छुप छलने में क्या राज है........
जरा सामने तो आओ रे शेरा, नम्बर एक शैतान तू।
मेरे राज में लूट मचाई, अब बन बैठा धनवान तू।। टेक ।।
आज बना तू शेरखान, जो कभी नाम था शेरा।
आमदनी कम खर्चा ज्यादा, इसमें शक था मेरा ।
था दीवे तले अन्धेरा, छुपा रहा बेईमान तू ।। 1 ।।
कभी तेरा घर होता था, भिखमंगो जैसा डेरा।
देख-देख हैरान रहै था, मैं कोठी बंगला तेरा।
मनै आज पाटग्या बेरा, असली नहीं पठान तू ।। 2 ।।
इस जोगन ने आज बताया, तू सबसे बड़ा लुटेरा।
तेरा हो गया फीका चेहरा, मान चाहे मत मान तू ।। 3 ।।
इस जोगन के रूपैये दे दे, यो़हे सै काम भलेरा।
नहीं तो बिस्तर गोल बने, तू करड़ाई ने घेरा।
कहे भालोठिया शाम-सवेरे, इसका करदे भुगतान तू ।। 4 ।।

वार्ता-सज्जनों ! शेरखान बादशाह से जोगन द्वारा स्वयं पर लगाए गए आरोपों पर सफाई प्रस्तुत करता है ।

भजन-14 शेरखाँ का

तर्ज : जिसने करी दगा की कार, दगा उनके गल आन पड़ी ..........
मेरी बात सुनो सुलतान, झूठी ये गाने वाली।। टेक ।।
जाणूं इसका नाम नहीं मैं, देखा इसका गाम नहीं मैं।
नहीं मैं नोट लिए श्रीमान, झूठा सांग भरे ठाली ।। 1 ।।
यो अन्दाज बादशाह मेरा, इसका मिले सड़क पर डेरा।
इसके घर का नहीं मकान, नहीं घर का लोटा थाली ।। 2 ।।
मांग-मांग के करे गुजारा, कहाँ से दे दिया नोट उधारा।
ये नारी उस पशु समान, जिसके नहीं होता पाली ।। 3 ।।
कहाँ से आ गई धूरत, देखी नहीं आज तक सूरत।
रंग में भंग करे शैतान, ये जालिम तेरह ताली ।। 4 ।।
जिसने किया कोई घोटाला, उसकी दाल में होता काला।
मैं सुन के हो गया हैरान, मेरी दाल नहीं काली ।। 5 ।।
हजूर मैं कसम खुदा की खाऊँ, कदम मक्का की ओर उठाऊँ।
लेकर बोला हाथ कुरान, देखी नहीं नखरे वाली ।। 6 ।।
भालोठिया रहा देख तमाशा, अब हो जागा तोड़ खुलासा।
फंसग्या फन्दे में शेरखान, झूठा बेईमान जाली ।। 7 ।।

वार्ता-सज्जनों ! जोगन ने शेरखान से बूंदी जाने के जवाब पर सवाल किया ।

भजन-15 सोमवती का

तर्ज : सत्यवान के घरां चाल, दुख भरा करेगी सावित्री .........

बून्दी गया तू कब मेरा बनके मेहमान बतादे रे, ओ शेरखान।। टेक ।।

आज बना अनजान सभा में, कसम खुदा की खाई।
कुरान हाथ ले तीन कदम, मक्का की ओर उठाई।
बादशाह के आगे अपनी, दे दी आज सफाई।
हजूर आज तक नहीं, बिल्कुल अनजान लुगाई।
रूमाल पति का कब लाया, उसकी कृपान बता दे रे,ओ शेरखान ।। 1 ।।
नहीं जाने तो आज बता दूँ, लिख ले पता तमाम।
मैं पतिव्रता नारी सूँ, गढ़ बून्दी मेरा मुकाम।
फोटू देख पति का, भोजन करूँ सुबह शाम।
चापसिंह की रानी, मेरा सोमवती सै नाम।
मेरे महल का नक्शा कौन लाया शैतान बता दे रे, ओ शेरखान ।। 2 ।।
तूने मेरे महल में जालिम, भेजी एक जनानी।
मेरे पति की भुआ बनगी, माण्डा की महारानी।
बनके मेरी फूफस बोली, मीठी मीठी बानी।
रूमाल कटारी मेरे पति की, ले गई खास निशानी।
मेरे बदन पर देखा किसने तिल का निशान बता दे रे, ओ शेरखान ।। 3 ।।
एक हफ्ते तक मेरे महल में, जिसने मौज उड़ाई।
कभी बना करता हलवा, कभी जाती खीर बनाई।
कभी स्पेशल सब्जी बनती, होती दाल फराई।
बाथरूम में मेरे साथ में, रोज बैठ के नहाई।
भालोठिया कहाँ गई आज वो नन्ही जान बता दे रे,ओ शेरखान ।। 4 ।।

वार्ता-सज्जनों ! बादशाह ने शेरखान से कहा तेरे षड्यंत्र का भंडाफोड़ हो गया है और रानी सोमवती पतिव्रता नारी है ।

भजन-16 अकबर का

तर्ज : बार बार तोहे क्या समझाऊँ, पायल की झन्कार.........
बादशाह अकबर न्यू बोल्या, झूठी तेरी मरोड़।
शेरखान तेरे षड्यंत्र का, हो गया भण्डाफोड़।। टेक ।।
थोथा चणा बाजै सै घणा, ये सुना जबानी सै, जबानी सै।
घणा गरजता जो बादल, नहीं उसमें पानी सै, पानी सै।
हुई नाहक परेशानी सै, तनै गलत लगाई होड़ ।। 1 ।।
गढ़ बून्दी की सोमवती, पतिव्रता नारी सै, नारी सै।
राजा चापसिंह को उसका भरोसा भारी सै, भारी सै।
जोड़ी कितनी प्यारी सै, कुदरत ने मिलाया जोड़ ।। 2 ।।
चापसिंह की समाज में, आज छवि निराली सै, निराली सै।
सोमवती के हाथ में, जिसके घर की ताली सै, ताली सै।
नगरी भाग्यशाली सै, जहाँ गया बाँध के मोड़ ।। 3 ।।
परीक्षा में हो गया पास, शुभ घड़ी मुहूर्त सै, मुहूर्त सै।
जो कोई इनके दोष लगावे, झूठा धूर्त सै, धूर्त सै।
एक सूरत सै, कारीगर ने बना दई दो खोड़ ।। 4 ।।
पतिव्रता सैं जिनके घर में, वो घर न्यारे सैं, न्यारे सैं।
झूठा दोष लगावणिये, दुनिया में हारे सैं, हारे सैं।
तैं जितने पैर पसारे , नहीं उतनी लम्बी सोड़ ।। 5 ।।
धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, साँच को आँच नहीं, आँच नहीं।
शेरखान अब तेरी चलेगी, तीन और पाँच नहीं, पाँच नहीं।
जिसके मुँह में साँच नहीं, दूँ उसको फाँसी तोड़ ।। 6 ।।

सज्जनों ! शेरखान के षड्यंत्र का पता लगने पर बादशाह ने शेरखान को फांसी तोड़ने का हुक्म दिया और चाप सिंह को फौज का प्रधान सेनापति बना दिया । इस प्रकार रानी सोमवती की सूझबूझ से चाप सिंह को फांसी तोड़ने से बचा लिया गया और अपने धर्म की रक्षा की ।


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