Dharampal Singh Bhalothia/Aitihasik Kathayen/Sundarbai-Veer Singh

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ऐतिहासिक कथाऐं


रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया

ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो. 9460389546


कथा-9 सुन्दरबाई-बीरसिंह


सज्जनों ! बलभीरपुर में राजा भीम सिंह राज करते थे | उनके पुत्र बीरसिंह के स्त्री जाति के प्रति घृणा के विचार बचपन से ही हो गए थे | उसके रिश्ते की बात सोलापुर के राजा केसरी सिंह की राजकुमारी सुंदरबाई से चल रही थी ।

भजन-1 कथा परिचय

तर्ज : गंगा जी तेरे खेऽऽऽत में.......
आज दिखाऊँ आऽऽऽप को, बल विद्या अकल का खेल।
विदुषी नाऽऽऽर की, एक कथा सुनाऊँ मैंऽऽऽ।। टेक ।।
बलभीरपुर का बीर सिंह था, भीमसिंह का राजकुमार।
स्त्री जाति से घृणा के, बचपन से बन गये विचार।
पैर की जूती होती लुगाई, मूर्ख गन्दी मूढ़ गंवार।
तुलसीदास कबीर का भी, उसके ऊपर चढ़ग्या रंग।
नारी की छाया पड़ते ही, पल में अन्धा होत भुजंग।
उस नर की नहीं खैर रहे, जो जीवन भर नारी के संग।
भोगें इस संताऽऽऽप को, जो रहे मुसीबत झेल ।। 1 ।।
सुन-सुन ये रोजाना चर्चा, बीरसिंह के बदले खयाल।
त्रिया चरित्र कोई नहीं जाने, ये भी उसने सुनी मिसाल।
पति को मार सती बन जाती, ये नारी का अजब कमाल।
लड़की वाले रिश्ते के लिए, आवें बड़े-बड़े महीपाल।
राजकुमार का रिश्ता ले लो, भीमसिंह से करें सवाल।
बीरसिंह न्यू बोला पिताजी, मेरी शादी की बिल्कुल टाल।
कौन भुगते इस पाऽऽऽप को, पड़े काटणी जेल ।। 2 ।।
बीरसिंह के चाचा ताऊ, साथी संगी रिश्तेदार।
शादी के लिए राजकुमार को, समझावें थे बार-बार।
सबसे उत्तम गृहस्थ धर्म सै, इसी से चल रहा संसार।
ऋषियों ने मनुष्य जीवन के, आश्रम बना दिये चार।
गृहस्थ आश्रम सबसे बड़ा, तीनों का करे उद्धार।
बनकर के गृहस्थी जग में, फूलें और फलें नर-नार।
सुन-सुन वार्तालाऽऽऽप को, चल रही धक्का पेल ।। 3 ।।
पिता-माता दुखी मन में, चिन्ता करें दिन-रात।
एक ही बेटा था जिनके, बेटे नहीं पाँच सात।
वोह शादी से नाट गया, माने नहीं किसी की बात।
माता-पिता खुश होते, जब बेटे की चढ़ती बारात।
थोड़े दिन में आवे छुछक, पीछे-पीछे आवे भात।
रोजाना मनोरंजन होवे, फूला नहीं समावे गात।
कहे भालोठिया माँ बाऽऽऽप को, दीखे बढ़ती बेल ।। 4 ।।
== दोहा ==
बना बहाना सैर का, झटपट हो गये तैयार।
सोलापुर में आ गये, मंत्री और राजकुमार।।

वार्ता- सुंदरबाई के विचार सुनकर बीरसिंह अपने पिता से उससे शादी करने के लिए कहता है ।

भजन-2 कवि का

(सोलापुर के केसरी सिंह की राजकुमारी सुन्दरबाई)

तर्ज : चौकलिया
नाम था जिसका सुन्दरबाई, सुन्दर राजकुमारी थी।
सैर करण आ गई बाग में, साथ सहेली सारी थी।। टेक ।।
कोई फूलों की खुशबू लेकर, अपना मन बहलावे थी।
कोई पेड़ की डाल झुकाके, तोड़-तोड़ फल खावे थी।
कोई कूद पड़ी जल में, तालाब में बड़के नहावे थी।
कोई दो चार बैठगी मिलके गीत सुरंगे गावे थी।
कोई करे बुराई अपनी, टिप्पणी न्यारी-न्यारी थी ।। 1 ।।
एक न्यू बोली खोड़ बंटे थी, उस दिन हम रह गई सूती।
जिनको मिलगी खोड़ मर्द की, उनकी बोल रही तूती।
हमारे ऊपर रौब जमावें, पैर की बता रहे जूती।.
गन्दी-गन्दी गाली देते, कभी कहें सूरी कुत्ती ।
एक न्यू बोली गाली दे, मेरे लात कमर में मारी थी ।। 2 ।।
सुन्दरबाई न्यू बोली मैं, नई मिसाल बनाऊँगी।
पति को बस में करके मैं, बन्दर की तरह नचाऊँगी।
पैर की जूती नही रहूँ, मैं सिर की पाग कहाऊँगी।
बलभीरपुर के बीरसिंह से, मैं शादी करवाऊँगी।
मैंने सुना ये उसकी अब तक, शादी से इनकारी थी ।। 3 ।।
वेद शास्त्र सभी बतावें, ऊँचा दर्जा नारी का।
वीर विदुषी देवी भवानी, असल रूप महतारी का।
मातृ-शक्ति से होता, संचालन सृष्टि सारी का।
फिर दुनिया देखेगी तमाशा, ताकत आज हमारी का।
धर्मपालसिंह भालोठिया कहे, जग में धाक हमारी थी ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
बात सुनी सुन्दरबाई की, बीर सिंह के लागी चोट।
जो कुछ चर्चा चली बाग में, उसके मन में हो गई नोट।
कहो पिताजी से मंत्री जी, मेरी अब कर दो शादी।
शादी के लिए लड़की बता दो, केशरीसिंह की शहजादी।।

वार्ता- बीरसिंह शादी करके सुंदरबाई को घर ले आता है और आते ही उसे दोहाग दे देता है ।

भजन-3 कवि का

तर्ज : बार बार तोहे क्या समझाऊँ, पायल की झन्कार.......
बीर सिंह ने शादी कर, सुन्दर को दिया दोहाग।
बांस हाथ में, खड़ी महल पर, रोज उड़ावे काग।। टेक ।।
महल के चारों कोनों में, दही के कुण्डे चार धरे।
काग चोंच नहीं मारण पावे, हरदम रहें भरे।
जो नहीं इस पर अमल करे, दूँ लगा महल के आग ।। 1 ।।
धोला बाणा सूखा खाणा, रहे दोहागण का।
गीत सुरीले गये सामण के, खेल गया फागण का।
हरदम काम रहे जागण का, चाहे तीज चाहे फाग ।। 2 ।।
महल जनाना कहें, जहाँ युवरानी ठहराई।
सास नणद देवरानी जेठानी, कोई नहीं आई।
बेहोश हुई सुन्दर बाई, न्यू बोली फूटगे भाग ।। 3 ।।
शादी होके नई बहू जब, घर में आया करें।
घर कुणबे की औरत मिलके, रात जगाया करें।
पूरी रात भर गाया करें, वो टेम-टेम के राग ।। 4 ।।
बोला बीरसिंह जब तक, नहीं जादू चलावेगी।
चाहे जीओ सौ वर्ष, उमर भर काग उड़ावेगी।
जब तक नहीं दिखावेगी, मेरे सिर की बनके पाग ।। 5 ।।
अपने भविष्य के लिए कदम, वो सोच के धरती थी।
धर्मपालसिंह भालोठिया कहे, शर्म से डरती थी।
दो टेम सैर करती थी, वो गये छूट बगीचे बाग ।। 6 ।।

वार्ता- सज्जनों ! बीरसिंह ने अपनी पूरी शर्त बतादी । वह बोला जब तक सुन्दरबाई शर्त पूरी नहीं करेगी मैं महल में नहीं आऊँगा। इतना कहकर बीरसिंह महल से निकल के चल दिया। अब सुन्दरबाई अपनी योजना बनाने में व्यस्त हो गई और सुन्दरबाई राजा भीम सिंह की फौज में रतनसिंह के नाम से भर्ती हो गई ।

भजन-4 कवि का

तर्ज : पियाजी दे दे मैं ने कुल्हाड़ा,गात सूक के होगा माड़ा ......
आ गया राजा का फरमान, आओ देशभक्त नौजवान।
आज भर्ती हो जाओ फौज में, हरदम नोट रहेंगे गोज में।। टेक ।।
फौजी का अनुशासित जीवन, हुआ करे बेदाग।
फौजी के हाथों में सुरक्षित, अपने देश की पाग।
त्याग और तपस्या न्यारी, होती देश की जिम्मेवारी।
प्यारी ड्यूटी बजाओ हर रोज में, हरदम नोट रहेंगे गोज में ।। 1 ।।
फौजी सच्चा देश भक्त, दुश्मन पर गोले दागे।
देख के फौजी को दुश्मन, मैदान छोड़ के भागे।
आगे तनखा लें सरकारी, फिर पेन्शन होजा माहवारी।
सारी जिन्दगी रहोगे मौज में, हरदम नोट रहेंगे गोज में ।। 2 ।।
आया एक नौजवान एक दिन, सुन भर्ती का रोला।
फिजीकल में पास हुआ , जब उसको नापा तोला।
बोला सच्ची बात कहूँगा, चाहे कितने कष्ट सहूँगा।
रहूँ मैं दुश्मन की खोज में, हरदम नोट रहेंगे गोज में ।। 3 ।।
सुन्दरबाई भर्ती हो गई, बता रतनसिंह नाम।
चान्द मारी करी फौज की, कर लिया सारा काम।
ड्यूटी देवे शाम-सवेरा, त्यौंहार आ गया था दशहरा
कह रहा धर्मपाल आसोज में, हरदम नोट रहेंगे गोज में ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
रतनसिंह और बीर सिंह, इन दोनों की मिलगी जोड़ी।
घूम के आवें दूर-दूर तक, ले अपने घोड़ा-घोड़ी।।
आया दशहरा राजा ने, अपना दरबार लगाया है।
हथियारों की करो सफाई, न्यू राजा ने फरमाया है।।

वार्ता- दशहरा के त्यौहार पर राजकुमार फौज के साथ शिकार खेलने जंगल में जाता है ।

भजन-5 कवि का

तर्ज : मन डोले, मेरा तन डोले.......(नागिन)
आया दशहरा, खिलग्या चेहरा, सजा लिये हथियार।
बीरसिंह खेलण चला शिकार।। टेक ।।
राजकॅवर चढ़ा हाथी पर और घोड़ों पर चढ़े सवार।
तीर कमान पड़ा गल में और हाथों में नंगी तलवार।
रतनसिंह चल रहा साथ में, बीरसिंह का खिदमतगार।
जहाँ शेर की गुफा बनी थी, बन में रहे खड़े ललकार।
था दिल में डर ,वोह शेर बब्बर ,कदे पहले करदे वार।
बीरसिंह खेलण चला शिकार ।। 1 ।।
जहाँ शेर का डेरा था वहाँ, ऊँचे-ऊँचे खड़े पहाड़।
कहीं पर ऊँचे-ऊँचे दरखत, कहीं धरती पर झुण्डे झाड़।
हमला कर दिया बीरसिंह पै, शेर बब्बर ने मारी दहाड़।
राजकुँवर पड़ा धरती पर, हाथी मारे था चिंघाड़।
बोला रतन, कुछ करूँ यतन, अब हो गई मौत सवार।
बीरसिंह खेलण चला शिकार ।। 2 ।।
जितने साथी आये साथ में, सबका खून हुआ ठंड़ा।
नहीं झाड़ा ताबीज काम दे, नहीं चाले डोरी गंडा।
वक्त के ऊपर काम दे गया, रतनसिंह का हथकण्डा।
शेर मार के पति बचा लिया, जीत का फरके था झण्डा।
बेहोश पड़े, वो हुए खड़े, सब कर रहे जय-जयकार।
बीरसिंह खेलण चला शिकार ।। 3 ।।
बीरसिंह कहे रतनसिंह मैं, आपका भूलूँ नहीं अहसान।
आदम देह में प्रगट होके, मेरे लिए आया भगवान।
मौत के मुँह में मेरे बदले, आपने अपनी झोंकी जान।
जन्म लिया दोबारा मैंने, दिया आपने जीवनदान।
शेर मार , लाये शिकार , करे भालोठिया प्रचार।
बीरसिंह खेलण चला शिकार ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
बड़ी बहादुरी से उसने ये, शेर का किया शिकार था।
अपने मिशन में रतनसिंह का, ये पहला चमत्कार था।।
राजा और रानी दोनों के, दिल में भारी प्यार था।
बीरसिंह भी रतनसिंह का, बन गया पक्का यार था।।
इन्ही दिनों में आ गया, कुम्भ का मेला हरिद्वार था।
मेला देखण रानी ने, राजा को कर लिया तैयार था।।

वार्ता- सज्जनों ! दशहरे के त्योंहार पर शिकार खेलते समय शेर को मार कर रतन सिंह बीरसिंह के प्राण बचाता है, इससे दोनों में निकटता बढ़ गई । उधर रानी राजा को कुम्भ के मेले के लिए तैयार कर लेती है और सखी सहेलियों से कहती है -

गीत-6 रानी का सहेलियों से

तर्ज : साथण चाल पड़ी हे, मेरा डब डब भर आया नैंण.......
देखण चालो हे, कुम्भ का मेला हरिद्वार ।। टेक ।।
वहाँ ऋषि महात्मा आवेंगे, वेदों की कथा सुनावेंगें।
हो जीवन का उद्धार। देखण चालो........।। 1 ।।
वहाँ आवें बड़े-बड़े राजा, बाजेंगे अलग-अलग बाजा।
कोई आवें जागीरदार। देखण चालो.......।। 2 ।।
वहाँ जनता आवे भारी हे, गृहस्थी कोई मठधारी हे।
कोई बड़े-बड़े साहूकार। देखण चालो........।। 3 ।।
राजा भी भरा उमंग में हे, ले फौज चलेगा संग में हे।
ले अपने हथियार। देखण चालो.........।। 4 ।।
मैं जाऊँ नहीं अकेली हे, सब साथ में चलें सहेली हे।
लाडो भी हो गई त्यार। देखण चालो........।। 5 ।।
वहाँ भालोठिया भी आवेगा, वो नये-नये गीत सुनावेगा।
वहाँ सुने धर्म प्रचार। देखण चालो.........।। 6 ।।

वार्ता- सज्जनों ! राजा भीम सिंह अपने काफिले को लेकर हरिद्वार के लिए रवाना हो गया। घर पर राजकुमार बीरसिंह को छोड़ दिया। पीछे से हसनगढ़ के राजा मानसिंह ने मौका देखकर बलभीरपुर पर चढ़ाई करदी और बीर सिंह मुकाबला नहीं कर सका । बलभीरपुर पर कब्जा कर लिया और बीरसिंह को हवालात में बैठा दिया। भीम को पता लगा, चिन्ता में रतनसिंह से कहता है ।

भजन-7 राजा भीम सिंह का

तर्ज : आजा नन्द के दुलारे हो .......
बेटा रतन बचाले रे, उजड़ गया घर मेरा ।। टेक ।।
हम तो बैठे हरिद्वार में, दुश्मन आया चढ़के ।
राज के ऊपर कब्जा कर लिया, लूट मचाई बड़के ।
पड़ के सो गये रखवाले हो, उजड़ गया घर मेरा ।। 1 ।।
बीरसिंह आज पड़ा जेल में, कुल के लगाया दाग ।
जब से सुनी खबर अनहोनी, लगी बदन में आग ।
भाग अपना आजमाले रे, उजड़ गया घर मेरा ।। 2 ।।
आया दशहरा बीरसिंह, जब खेलण गया शिकार ।
जिससे काटी शेर की गरदन, वोह ले ले तलवार ।
धार उसके लगवाले रे, उजड़ गया घर मेरा ।। 3 ।।
मेरा घर परिवार आज, दुश्मन का बना गुलाम।
भालोठिया कहे तेरे बिना, नहीं बनेगा बिगड़ा काम।
नाम जग में कमाले रे, उजड़ गया घर मेरा ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! राजा की बात सुन रतन सिंह जोश में आ गया और बोला चिन्ता मत करो आप यहीं डेरा लगाये रखें । मैं पाँच दिन में ही ये काम कर दूँगा और फिर आप सबको ले जाऊंगा । इसके बाद रतन सिंह (सुन्दरबाई) सोलापुर अपने पिता केसरी सिंह के पास आया और कहने लगा -

भजन- 8 जवाब सुंदरबाई का

तर्ज : बहनों सुनो लगा कर ध्यान, यहां की नारी कैसी थी ------

पिताजी सुनो मेरी फरियाद, करो उद्धार बेटी का ।। टेक ।।

आज बेटी पर संकट आया, राजपाट सब हुआ पराया ।

शत्रु ने कर दिया बर्बाद, घर परिवार बेटी का ।। 1 ।।

हमारे साथ हो गया धोखा और दुश्मन को मिल गया मौका ।

जेल में आपका दामाद, पड़ा भरतार बेटी का ।। 2 ।।

करो सब फौज मेरे साथ में , तीर तोप बंदूक हाथ में ।

थोड़ी सी करदो इमदाद, हो बेड़ा पार बेटी का ।। 3 ।।

भालोठिया इतिहास बना दे, कुछ जोशीले गीत सुना दे ।

नहीं जब तक हो घर आजाद, जीवन बेकार बेटी का ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! राजा ने तत्काल बेटी को फौज, हथियार व अनमेशन देकर बलभीरपुर पर हमला बोला । लड़ाई में हसनगढ़ के मानसिंह को परास्त कर बलभीरपुर पर पुनः कब्जा कर लिया । रतन सिंह ने बीरसिंह को जेल से छुड़वाया ।

भजन-9 आल्हा

बात सुनी बेटी की, राजा केसरी सिंह ने किया विचार।
धीरज धर्म मित्र और नारी, आपत्ति काल परखिये चार ।। टेक ।।
बेटी की नहीं मदद करूँ तो, मेरा जीना सै धिक्कार।
अपनी फौज सौंप दी सारी, दे दिया अनमेशन हथियार ।। 1 ।।
सेनापति बन सुन्दरबाई , हाथी पर हो गई सवार।
पैदल पलटन चली साथ में, जिसकी संख्या कई हजार ।। 2 ।।
कितने ही सैनिक चढ़े घोड़ों पर, नंगी सूंत रहे तलवार।
कर दिया हमला था शत्रु पर, पल की नहीं लगाई बार ।। 3 ।।
क्षत्रिय टूट पड़े दुश्मन पर, होने लगी थी मारो-मार।
बलभीरपुर की गली-गली में, बहने लगी खून की धार ।। 4 ।।
भग्गी पड गई थी दुश्मन की, कितने ही फौजी हुए फरार।
रतनसिंह ने राजधानी पर, अपना कर लिया था अधिकार ।। 5 ।।
बीरसिंह को बाहर निकाला, हवालात का खोला द्वार।
हरिद्वार से राजा रानी, आ गया था पूरा परिवार ।। 6 ।।
शहर में घर-घर मनी दीवाली, खुशी मनावें नर और नार।
गली-गली घर-घर में हो रही, रतन सिंह की जय-जयकार।। 7 ।।
रतनसिंह से हाथ मिलाके, करे नमस्ते राजकुमार।
बोला मेरे लिए रतनसिंह, आया ईश्वर का अवतार ।। 8 ।।
धर्मपालसिंह भालोठिया कहे, भीम ने लगा लिया दरबार।
होथ जोड़कर बोला रतनसिंह, मेरी छुट्टी करो स्वीकार ।। 9 ।।

वार्ता- सज्जनों ! बीरसिंह बोला रतन सिंह छुट्टी मत जाओ। रतन सिंह बोला आपके तो घर नहीं लेकिन मुझे अपना घर याद आ गया। अतः मैं घर जरूर जाऊँगा ।

भजन-10 बीरसिंह का

तर्ज-शर्म की मारी मैं मर मर जाऊँ -----

रतन सिंह तन मन धन मेरा,
तेरे पर कुर्बान, कहानी अमर रहे।। टेक ।।
जब मेरे पर संकट आया, आपने मेरा प्राण बचाया।
भूलूँ नहीं अहसान, कहानी अमर रहे ।। 1 ।।
मात-पिता साला बहनोई, आप बिना नहीं मेरा कोई।
दुनिया में इन्सान, कहानी अमर रहे ।। 2 ।।
आपका अपना नाम हाथ पर, लिख दो पता तमाम हाथ पर।
तन पर रहे निशान, कहानी अमर रहे ।। 3 ।।
कहे रतनसिंह घर जाऊँगा, फिर आऊँ या नहीं आऊँगा।
दूँ नहीं गलत जबान, कहानी अमर रहे ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! रतन सिंह घोड़े पर चढ़ के चला, यह सब बीरसिंह देख रहा था। जहाँ सुन्दरबाई को दोहाग दे रखा था उसी महल में रतन सिंह आ गया। घोड़ा बांधा उसे चारा दाना-पानी डाला। अन्दर जाके कपड़े बदले और साड़ी बाँध कर सुन्दरबाई(रतन सिंह) कमरे से बाहर बैठ गयी। पीछे पीछे बीरसिंह आया और गुस्से में सुन्दरबाई को बोला -

भजन-11 बीर सिंह सुन्दरबाई वार्तालाप

तर्ज : चौकलिया
बीरसिंह सुन्दरबाई को, बोला देकर गाली।
गाली मत दो पति देव, निर्दोष तेरे घरवाली ।। टेक ।।
घरवाली नहीं मेरी, तेरा और कोई घरवाला।
घरवाला सै वही मेरा, जिसके डाली वरमाला ।
वर माला सै लोग दिखावा, भीतरले में काला।
काला नहीं मेरे भीतर में, आपका रहे उजाला ।
उजाला नहीं रहे जिस दिन,मावस की रात हो काली।
काली रात अमावस की में, रोशनी करे दीवाली ।। 1 ।।
दीवाली उस घर में नहीं जो, होता महल दोहागी।
दोहाग दिया उस दिन से बता, कौनसी मर्यादा त्यागी ।
त्यागी सब मर्यादा मेरी, जिस दिन तू घर में आगी।
आ गई मैं घर में उस दिन, तकदीर आपकी जागी ।
जागी कहाँ तकदीर, मेरे दुश्मन को मिलगी ताली।
ताली मेरे हाथ में घर की, रोज करूँ रखवाली ।। 2 ।।
रखवाली का लोग दिखावा, तेरा बहाना झूठा ।
झूठा बहाना समझ, मेरे ऊपर से भरोसा उठा ।
उठा भरोसा आज मेरा, दुश्मन ने खजाना लूटा।
लूटा खजाना क्यों कर, नहीं महल का ताला टूटा ।
टूटा ताला मेरे महल का, हुआ खाजाना खाली।
खाली खजाना कौन करे, नहीं आया चोर कुचाली ।। 3 ।।
कुचाली इससे कौन बुरा, जो बड़ग्या मेरे घर में।
घर में दुश्मन कौन बड़ा, मेरे आया नहीं नजर में ।
नजर में तेरे रहे रात-दिन, प्राण बसे उस नर में।
नर-नारी का भूलगी रिश्ता, ध्यान रहे ईश्वर में ।
ईश्वर में ध्यान बतावे क्यों, आँखों में स्याही घाली।
घाली स्याही नहीं भालोठिया, दवा आँखों में डाली ।। 4 ।।

वार्ता- बीरसिंह सुंदरबाई पर शक करता है उसी शक को दूर करने के लिए वह कहती है -

भजन-12 सुन्दरबाई का

तर्ज : जरा सामने तो आओ छलिये.....
जरा होश में बोलो सजना, क्यों दीवे तले अन्धेरा।
इस महल में आज बतादे, कौन आया दुश्मन तेरा।। टेक ।।
आमदनी कम खर्चा ज्यादा, हो घर-घर फूक तमाशा।
अविश्वास पति-पत्नी का, वहाँ नरक का बासा।
आज करदो तोड़ खुलासा, जी दुख पावै सै मेरा ।। 1 ।।
दुश्मन को नहीं जगह, चाहे हो रिश्तेदार आपका।
गैर मर्द नहीं घुसे महल में, चाहे हो यार आपका।
सै घरबार आपका, ये नहीं गुंडों का डेरा ।। 2 ।।
महल में आना गैर मर्द का, हाँसी खेल नहीं सै।
कौन अकल का अन्धा, जिसको दीखे जेल नहीं सै।
इन तिलों में तेल नहीं सै, न्यू सारे जग ने बेरा ।। 3 ।।
गैर आदमी का शक आपको, अपने आप हो गया।
धर्मपालसिंह भालोठिया कहे, मनसा पाप हो गया।
ये मुझको पाप हो गया, भुगतूँ सूँ शाम सबेरा ।। 4 ।।

वार्ता- रतन सिंह को महल में जाते हुए देखकर बीरसिंह क्रोधित हो सुंदरबाई से कहता है -

भजन-13 बीरसिंह का

तर्ज : सांगीत - मरण दे जननी, मौका यो ठीक बताया ........
मैंने देख लिया रणवास में, आज मेरा दुश्मन आया ।। टेक ।।
अनाथ बन के आया एक दिन, मेरे पिता के पास में।
फौज में भर्ती करलो राजा, आया करके आस मैं।
जीवनदान समझो मेरा, बात बताऊँ खास मैं।
हाथ जोड़ के करूँ, राजा आपसे अरदास मैं।
दर-दर धक्के खाता फिरूँ, सर्विस की तलाश में।
छुट्टी नहीं चाहिए ,सेवा करूँ बारह मास मैं।
बन के रहूँगा दास मैं, मुश्किल से मौका आया ।। 1 ।।
मेरे पिता ने दया करी थी, भर्ती कर लिया फौज में
चान्दमारी पूरी करली, इसने थोड़े रोज में।
कभी-कभी ये तनखा लेता, नोट रहें थे गोज में।
एक रोज हम शिकार खेलण, गये थे आसोज में।
रतनसिंह था साथ हमारे, चलता मस्ती मौज में।
बन के अन्दर घूम रहे थे, हम केहरी की खोज में।
चुपके-चुपके घास में, बैठा सिंहनी का जाया ।। 2 ।।
हमले की तैयारी करके, गरज के आया था शेर।
हाथी पर दोहाथड़ मारी, पल की नहीं लगाई देर।
साथी सारे लेट गये, शेर ने लिया मैं घेर।
देखते ही देखते, इस रतन सिंह ने बदला गेर।
ढ़ाल से बचाव करा, ईश्वर ने सुनी थी टेर।
गरदन पर तलवार मारी, शेर का बनाया ढे़र।
मैं आया होश हवास में, खड़ा रतनसिंह वहाँ पाया ।। 3 ।।
माता-पिता मेला देखण, गये थे सब हरिद्वार।
मौका देखकर शत्रु ने, राज पर किया अधिकार।
जेल में बन्द करके मुझे, खूब करी लूटमार।
रतनसिंह फिर शोलापुर से, लाया फौज और हथियार।
बलभीरपुर के मैदान में, जंग हुआ धुआँधार।
धर्मपालसिंह भालोठिया कहे, दुश्मन गया सीमा पार।
आज उसकी करूँ तलाश मैं, घर मिलग्या बसा बसाया ।। 4 ।।
== दोहा ==
सुनी बात पतिदेव की,सुन्दरबाई हैरान ।
मेरे बिना इस महल में,नहीं कोई इंसान ।।
== आनन्दी ==
(बीरसिंह सुन्दरबाई से बोला)
जल्दी महल से बाहर कर, मैं रतनसिंह को मारूँगा।
दुश्मन मेरा नहीं सौंपा तो मैं, तेरा शीश उतारूँगा।।

वार्ता- सुंदरबाई बीरसिंह की शंका का निवारण करते हुए अपनी रतन सिंह बनने की सम्पूर्ण कहानी सुनाती है ।

भजन-14 सुन्दर बाई का

तर्ज : भरण गई थी नीर राम की सूँ.......


छोड़ चाहे दे मार हो पियाजी।
दिखा दिया चमत्कार हो पियाजी।। टेक ।।
बात सुनके आपकी, मैं हो गई हैरान पिया।
मेरा चाहे शीश उतारो, ले लो मेरी ज्यान पिया।
मेरे बिना महल में, नहीं दूसरा इन्सान पिया।
झूठा धरो क्यों भार हो पियाजी ।। 1 ।।
जिस दिन शादी करके लाये, दे दिया दोहाग पिया।
धोला बाणा सूखा खाणा, रोज उड़ाऊँ काग पिया।
बिना खोट दी मार चोट, न्यू तन में लागी आग पिया।
करती रही इन्तजार हो पियाजी ।। 2 ।।
शिकार खेलण गये आप, था जंगल सुनसान पिया।
शेर ने जब हमला किया, पड़गे सारे जवान पिया।
मैंने मारा आपको मिला था जीवनदान पिया।
शेर का किया शिकार हो पियाजी ।। 3 ।।
राज पै कब्जा कर बैठा, हसनगढ़ का मान पिया।
आपको पकड़ के डाला, जेल के दरम्यान पिया।
शोलापुर से फौज लाई, लड़ने का सामान पिया।
आजाद किया घर बार हो पियाजी ।। 4 ।।
बाग में एक दिन गये थे, घूमण दोनों साथ पिया।
आपने लिखा था नाम, देखो मेरा हाथ पिया।
धर्मपालसिंह भालोठिया कहे, नहीं मैं अनाथ पिया।
आप बने मेरे यार हो पियाजी ।। 5 ।।

वार्ता- सुंदरबाई की कहानी सुनकर बीरसिंह नतमस्तक हो गया ।

भजन-15 बीरसिंह का

तर्ज : बार बार तोहे क्या समझाऊँ........
सुन्दरबाई मान गया मैं, तू पतिव्रता नार।
गुण नहीं भूलूँ जीवन में, रहूँ तेरा ताबेदार।। टेक ।।
वीर विदुषी मातृ-शक्ति, देवी भवानी तू, भवानी तू।
तारा द्रोपदी दमयन्ती, सीता की निशानी तू, निशानी तू।
मैं सेवक और रानी तू , रहूँ सेवा में तैयार ।। 1 ।।
जो फेरां पर बचन भरे, करी वादा खिलाफी मैं, खिलाफी मैं।
झूठा दोष लगा के बनग्या मनसा पापी मैं, पापी मैं।
मांग रहा सूँ माफी मैं, दे दे बनके दातार ।। 2 ।।
देख देख कर तेरा चमत्कार, मेरा मन बदल गया, बदल गया।
स्त्री से नफरत करता, वो जीवन बदल गया, बदल गया।
मेरा बचपन बदल गया, अब नहीं करूँ अहंकार ।। 3 ।।
धर्मपाल सिंह भालोठिया ने, लिखदी अमर कहानी, अमर कहानी।
कहीं लिखी मिल जावेगी, कहीं चर्चा रहे जबानी, रहे जबानी।
मिल गये आज दूध पानी, दो अलग अलग थी धार ।। 4 ।।

सज्जनों ! इस प्रकार एक वीर विदुषी नार ने अपने चमत्कार से पुरुष को उसके अहंकार का आभास कराते हुए समानता का दर्जा प्राप्त किया और सम्पूर्ण स्त्री जाति का मान बढ़ाया ।


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