Dharampal Singh Bhalothia/Aitihasik Kathayen/Taravati-Karna Singh

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search
Back to Index of the Book

ऐतिहासिक कथाऐं


रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया

ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो. 9460389546


कथा-7:तारावती-कर्ण सिंह

सज्जनों ! बिहार के राजधानी देवनगर में महाराजा महीपाल हुए हैं । उनकी महारानी ज्ञानवती, दो बच्चे राजकुमार विक्रम सिंह व राजकुमारी तारावती थी । पूरे राज्य में अमन चैन था किन्तु राजकुमार को टी.बी. की बीमारी थी । डॉक्टरों के कहने पर राजा महिपाल व महारानी उसे इलाज के लिए शिमला ले गए एवं राज-काज का कार्य वजीर सूचानन्द को सम्भला दिया और राजकुमारी तारा को भी घर छोड़ गये ।

भजन-1 कथा परिचय

तर्ज : चौकलिया
कभी सूबा बिहार के अन्दर, देवनगर राजधानी थी।
महीपाल महाराज हुए और ज्ञानवती महारानी थी।। टेक ।।
अमन चैन था राज के अन्दर, जुल्म का जोर नहीं था।
चार सौ बीस चालाक नहीं, कोई डाकू चोर नहीं था।
बिना रखवाली खेती थी, कोई सूना ढ़ोर नहीं था।
अफसर सारे न्यायकारी, कोई रिश्वतखोर नहीं था।
राज से बोर नहीं था कोई, अमन की खास निशानी थी ।। 1 ।।
दो बच्चे थे राजा के, नहीं ज्यादा बड़ी लंगारी थी।
विक्रमसिंह था राजकुमार, तारा राजकुमारी थी।
जवान बच्चे राजा को, शादी की चिन्ता भारी थी।
लेकिन राजकुंवर विक्रम के, टी. बी. की बीमारी थी।
यही एक लाचारी थी, जो राजा की हैरानी थी ।। 2 ।।
डॉक्टर बोला राजकुमार को, चाहो बचाना राजा।
शिमला लेकर चलो, यदि इलाज कराना राजा।
कुछ तो दवाई असर करें, कुछ फलों का खाना राजा।
कुछ वहाँ की आबो हवा भी, खो दे रोग पुराना राजा।
आज पड़ा पछताना राजा, पहले बात नहीं मानी थी ।। 3 ।।
सूचानन्द वजीर ने ये, सब प्रोग्राम बनाये थे।
राजकुमारी यहीं रहेगी, सब प्रबन्ध करवाये थे।
शिमला पहुँचे राजा, संग में राजकंवर को लाये थे।
कुछ सेना और महारानी, संग वैद्य डाक्टर आये थे।
धर्मपालसिंह भालोठिया, वहाँ बसा लई एक ढाणी थी ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! एक रोज शराब पीकर मंत्री सूचानन्द महल में चला गया और उसकी नियत बिगड़ी, राजकुमारी से छेड़-छाड़ करने लगा तो राजकुमारी वजीर को फटकारते हुए कहती है -

भजन-2 राजकुमारी तारा का सूचानन्द वजीर से

तर्ज- सत्यवान म्हारे ठहरण का इन्तजाम करिये ........
मंत्री जी कुछ होश करके, बात करिये।
मेरे साथ में मतना तू, उत्पात करिये।। टेक ।।
चौदह साल बनवास, गये रघुराई देख।
उसके साथ बन में गई, जनक की जाई देख।
रावण ने जुल्म किया, सीताजी चुराई देख।
इसी कारण सेना, श्री राम ने सजाई देख।
होकर के तैयार करी, लंका पर चढ़ाई देख।
सोने की बतावे लंका, खाक में मिलाई देख।
रामायण के याद सभी, हालात करिये ।। 1 ।।
पम्पापुर में बाली और सुग्रीव दो भाई देख।
उनकी भी कहानी एक, याद मेरे आई देख।
बाली ने भाई के संग में, नीचता दिखाई देख।
उसने घर में घाली अपने, भाई की लुगाई देख।
सुग्रीव ने घटना, श्री राम को बताई देख।
राम के हाथों से हुई, बाली की सफाई देख।
उनकी याद कहानी, दिन और रात करिये ।। 2 ।।
कौरव और पाण्डव यहाँ, हुए थे बलदाई देख।
इनमें हुआ दुर्योधन, था बड़ा अन्याई देख।
पांडवों पर डाली जिसने, रोजाना तवाई देख।
द्रोपदी को पकड़ जिसने, सभा में बुलाई देख।
बड़े-बड़े योद्धा बैठे, नंगी कर नचाई देख।
जिसके कारण हुई, महाभारत की लड़ाई देख।
कौरवों जैसी, मत अपनी हइयात करिये ।। 3 ।।
और भी अनेकों घटना, सुनी और सुनाई देख।
जिसने भी छेड़ी, बहन बेटियाँ पराई देख।
हुआ बदनाम, जिसकी नहीं, निशानी पाई देख।
कामी कुत्ता तू भी, झूठी करता है अंघाई देख।
तेरे जो बीमारी उसकी, करादूँ मैं दवाई देख।
एक साथ करदूँ ब्याह और मुकलावा सगाई देख।
भालोठिया मत गन्दे से, उत्पात करिये ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! सूचानन्द वजीर ने राजकुमारी से माफी मांगकर जान बचाली । वजीर अब राजा रानी से अपने बचाव में झूठा शिकायती पत्र राजा को लिखता है ।

भजन-3 सूचानन्द वजीर का

तर्ज : पारवा (खड़े बोल) .......
हो हो सुनो महीपाल महाराज, बात कुछ कही नहीं जाती।। टेक ।।
कभी महल में नहीं मिलती है, राजकुमारी तारा।
पता नहीं कहाँ पर रहती, दिन रात फिरे आवारा।
हो हो सब लोग करें एतराज, बात कुछ कही नहीं जाती ।। 1 ।।
कभी-कभी महलों के अन्दर, महफिल होती भारी।
शराब उड़ती नाच और गाने, रंगत न्यारी न्यारी।
हो हो बजते हैं सुरीले साज, बात कुछ कही नहीं जाती ।। 2 ।।
एक रोज मैंने महल के अन्दर, जा करके समझाई।
ले तलवार चढ़ी छाती पर, मनै मारने आई।
हो हो मेरी निकली नहीं आवाज, बात कुछ कही नहीं जाती।। 3 ।।
चिट्ठी मेरी मिलते ही, तुम जल्दी घर पर आओ।
धर्मपालसिंह भालोठिया कहे, तारा को मरवाओ।
हो हो नहीं इसका और इलाज, बात कुछ कही नहीं जाती ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! वजीर का पत्र जब राजा को मिलता है तो राजा का चेहरा विकराल हो गया। रानी और राजकुमार को भी पता लगने पर सबको गुस्सा आ गया बोले जल्दी घर चलो ।

सभी रात को ही देवनगर घर पर आ जाते हैं। राजा बेटी को फटकारते हुए कहता है -

भजन-4 राजा का बेटी से

तर्ज : तेरे मन की गंगा और मेरे मन की जमना का.........
हे मैं बात सुनी जब तेरी, जल हुई गात की ढे़री।
बोल बेटी, बोल तैं क्यों, चाळा कर दिया।। टेक ।।
आर्य कुल की, बेटी कभी नहीं, अलग धर्म से होती हे।
उनके मन मन्दिर में हमेशा, जगी धर्म की ज्योति हे।
पोती उनकी होकर क्यों, मुँह काला कर दिया।।
बोल बेटी........।। 1 ।।
जब तक आब रहेगी उसमें, रहे चमकता मोती हे।
आब गई फिर मोती नहीं, कीमत में हुई कटौती हे।
खोती कीमत पूँजी राख, दिवाला कर दिया।।
बोल बेटी...........।। 2 ।।
जो पकें धर्म भट्टी में नहीं, विपदा देख के रोती हे।
कुटिल हँडोरी, चुगल चटोरी, झूठे झगड़े झोती हे।
ढ़ोती भार मक्कार, ज्यान का गाला कर दिया।।
बोल बेटी.........।। 3 ।।
करके गलती, आँख मसलती, मुँह आँसू से धोती हे।
किया पाप, नहीं होगा माफ, तू बेल पाप की बोती हे।
टोहती के भालोठिया, जुल्म कुढ़ाला कर दिया।।
बोल बेटी..........।। 4 ।।

वार्ता - बेटी तारावती गिड़गिड़ाती रही किन्तु राजा ने कुछ भी नहीं सुनी, वजीर की बात सही मानकर उसे दरिया में फिकवाने की योजना बनाई ।

भजन-5 कवि का

तर्ज : एक परदेशी मेरा दिल ले गया.........
सुनी नहीं बेटी की, एक भी बात राजा ने।
करी बक्से में बंद, मोस के गात राजा ने।। टेक ।।
जो मंत्री ने लिखी कहानी और किसी की एक ना मानी।
जबानी उसी से करली, तहकीकात राजा ने ।। 1 ।।
पिता-पिता कह करके पुकारी, क्या भाई की गई बीमारी।
बेचारी रही रोती, किया उत्पात राजा ने ।। 2 ।।
ज्यों बिल्ली ने चूहा पकड़ा, कर फुरती पंजो में जकड़ा।
तगड़ा लगाया उसी तरह का, घात राजा ने ।। 3 ।।
सूर्य अस्त अन्धेरी छाई, सोवें शहर के लोग लुगाई।
उठवाई जल्लादों से, थी रात, राजा ने ।। 4 ।।
भूप के मन में शंका आई, कभी भालोठिया करे रिहाई।
गिरवाई दरिया में, जा के साथ राजा ने ।। 5 ।।

वार्ता- सज्जनों ! रानी रोती रही, राजा और राजकुमार ने जल्लादों को बुलवाके एक बक्सा मंगवाया और उसमें तारा बंद करवादी । जल्लादों से उठवाके आधी रात को नदी में गिरवादी ।

भजन-6 कवि का

तर्ज : पिया दे दे मनै कुल्हाड़ा, गात सूक के होग्या माड़ा.......
देखी ईश्वर की गति न्यारी, एक राजा की राजकुमारी।
बेचारी फँसी मौत के जाल में, दुखिया डाली नदी की झाल में।। टेक ।।
राजा रानी राजकँवर को, करड़ाई ने घेरा।
सूचानन्द बेईमान करा तनै, दिन में घोर अन्धेरा।
तेरा भला नहीं होने का, नहीं तू सुख की नींद सोने का।
लाया खोट लखीने लाल में, दुखिया डाली नदी की झाल में ।। 1 ।।
आज तलक जो घूमी बाग में, करी थी अैस महल में।
अजब निराली चमक धमक, नहीं कमी थी चहल पहल में।
टहल में दासी पाया करती, नित्य पकवान बनाया करती।
खाया करती स्वर्ण-थाल में, दुखिया डाली नदी की झाल में ।। 2 ।।
हे ईश्वर तेरी गतिविधि का भेद नहीं पाया।
साँच को आँच नहीं होती, न्यू ऋषियों ने फरमाया।
बताया तेरा न्याय अटल सै, चाले नहीं कपट और छल सै।
फल सै यथा योग्य हर काल में, दुखिया डाली नदी की झाल में।। 3 ।।
हे न्यायकारी अर्ज हमारी, सुनियो अंतर्ज्ञानी।
दूध का दूध बना देना तू, अलग दिखादे पानी।
दानी और दाता तुही सै, सबका पालनहार तुही सै।
तुही सै भालोठिया के स्वरताल में, दुखिया डाली नदी की झाल में ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! सन्दूक बहते-बहते जंगल में आ गया। वहाँ पालियों ने उसे बाहर निकाला और सन्दूक को खोला तो लड़की को होश आ गया, तभी वहाँ एक राजकुमार आया उसे देखकर पाळी भाग गये। उसके बाद राजकुमार कर्ण सिंह के पूछने पर राजकुमारी बताती है -

भजन-7 राजकुमारी तारा का राजकुमार कर्ण सिंह से

तर्ज : चौकलिया (कालंगड़ा)
आसमान ने गिरा दईऽऽऽ, धरती ने झेली कोन्याऽऽऽ।
मात-पिता घर गाम नहीं, मेरे सखी सहेली कोन्या।। टेक ।।
मनुष्य जन्म प्राणी मात्र में, सबसे न्यारा हो सै।
अलग-अलग हिस्सों में, इसका भाईचारा हो सै।
कोई ब्रह्मचारी, किसी को बाणा, भगवां प्यारा हो सै।
कोई गृहस्थी बन जावे, कोई जन्म कॅवारा हो सै।
कठिन गुजारा हो सै, मेरे कोई मन का मेली कोन्याऽऽऽ।। 1 ।।
किसी-किसी के जीवन की कोई, झलक निराली हो सै।
मालिक रहे खजाने का और हाथ में ताली हो सै।
कोई खुशी में मस्त रहे, घर में खुशहाली हो सै।
मनचाहा भोजन हो उसके, सदा दीवाली हो सै।
बुरी कंगाली हो सै, मैं कभी खाई खेली कोन्याऽऽऽ।। 2 ।।
जंगल में फिरने वाली की, के जिन्दगानी हो सै।
के कीमत सै वृथा उसकी, नष्ट जवानी हो सै।
कोई वक्त पर चीज मिले नहीं, खींचातानी हो सै।
ऐश करे जो महल के अन्दर, वोह महारानी हो सै।
अति परेशानी हो सै, मेरे महल हवेली कोन्याऽऽऽ।। 3 ।।
क्षत्रिय जन्म लेते हैं, जब जब धर्म की हानि हो सै।
पापी दुष्ट मलेच्छों की फिर, खतम निशानी हो सै।
धर्म के ऊपर मरते उनकी, अमर कहानी हो सै।
भालोठिया तेरे गाने से तेरी, रोशन ढ़ाणी हो सै।
दाना पानी हो सै, इसी कोई और अकेली कोन्याऽऽऽ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! ये अमरकोट का राजकुमार कर्ण सिंह था। वह लड़की को घोड़े पर बैठा कर अपने घर ले आया और महल में रहने का इन्तजाम कर दिया। राजकुमार एक दिन बोला देवी मेरा प्रस्ताव है कि यदि आप मेरे से शादी करलें तो मैं अपनी सगाई छोड़ दूँ । वह बोली आपकी सगाई कहाँ हुई है ? राजकुमार बोला देवनगर के राजा महीपाल की राजकुमारी तारा से। तारा बोली मैं तैयार हूँ, आप मेरे साथ घर चलो मैं सबसे मिलकर बात करूँगी लेकिन वजीर कहता है -

भजन-8 वजीर का

तर्ज : गंगा जी तेरे खेऽऽत में.......
त्रिया चरित्र जाऽऽल में, फँस गया राजकुमार।
ये छलिया नाऽऽर सै, मत खैर समझ अपनीऽऽ।। टेक ।।
आज तक त्रिया चरित्र, जान सका नहीं कोय।
अपना पति मार करके, अपने आप सती होय।
मिनट में हँसती है खूब, मिनट में देती है रोय।
देखा नहीं गोरख धंधा, बीरां का निराला सै।
जीत नहीं सका, जिसका इनसे पड़ा पाला सै।
जो उनके फँदे में फँसग्या, ज्यान का गाळा सै।
काळा सै कुछ दाऽऽळ में, ये दें सूते न मार ।। 1 ।।
जिस दिन आप ल्याये उस दिन, था इसके घरबार नहीं।
माता पिता चाचा ताऊ, कोई था परिवार नहीं।
कहे थी अकेली, मेरे कोई रिश्तेदार नहीं।
आज कहती मेरी ,जन्मभूमि राजधानी सै।
पिता मेरे राज करें, माताजी महारानी सै।
कोठी बंगले महल खड़े, धन दौलत पुरानी सै।
कहानी सै मेरे खयाऽऽल में, सब झूठी बेकार ।। 2 ।।
मुझे तो लगता है, किसी डाकू की छोरी सै ये।
खाया सै पराया माल, जीभ की चटोरी सै ये।
जंगल में फिरी सै अब तक, जन्म की हँडोरी सै ये।
इसके साथ जाना समझो, खैर नहीं ज्यान की।
छानते फिरोगे खाक, जंगल बीयाबान की।
बतावे कहानी कौन, इसके खानदान की।
श्रीमान की पड़ताऽऽल में, हम होते फिरे ख्वार ।। 3 ।।
राजकुमार मंत्री बात, वक्त की बताया करे।
बिना विचारे जो करता है, वोह पीछे पछताया करे।
काम बिगाड़े आपणो और दुनिया को हँसाया करे ।
इससे अच्छा पहले मैं, इसके साथ जाऊँगा।
आपके बदले में ज्यान, खतरे में फँसाऊंगा।
या फिर अपने साथ समझो, लगन लेकर आऊँगा
भालोठिया उस चाऽऽल में, कभी न होगी हार ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! राजकुमार ने तारा के साथ वजीर को भेज दिया। जंगल में रात को ठहर गये और राजकुमारी का अलग तम्बू लगवा दिया। अब ये वजीर रात को तारा के पास गया और बोला राजकुमारी ये राजकुमार तो शराबी और जुआरी है इससे शादी करके पछतावोगी, इसके राज को तो मैं चला रहा हूँ, इससे अच्छा तो आप शादी मेरे से करलें। तारा बोली ठीक है लेकिन तभी तम्बू का रस्सा वजीर के गले में डाल दिया और अपनी कटार से उसका नाक काट दिया, बोली शोर करेगा तो सिर उड़ा दूँगी। अब ये तारा यहाँ से चलदी। कुछ देर में ये वजीर उठा, एक सिपाही को मार दिया और शोर कर दिया बोला रे उठो तारा तो भाग गई। वजीर ने राजकुमार को रिपोर्ट दी महाराज बडी खुँखार थी, मेरा तो नाक ही काटा है आपको ज्यान से मारती। राजकुमार ने वजीर से कहा राजा महीपाल को बताके मेरी शादी शीघ्र करो। राजा महीपाल को शादी के लिये पत्र लिखा। महीपाल को पत्र मिला, उसने मंत्री से बात की और कहा तारा तो मरवा दी अब क्या करें ? तब मंत्री बोला क्या कर्ण सिंह ने तारा देखी थी ? राजा बोला नहीं, तब मंत्री ने कहा तो ब्याह दे दो, मेरी लड़की से शादी कर देंगे। शादी तय हो गई, राजकुमार कर्ण सिंह की बरात चढ़ी, रात को बन में डेरा लगा दिया। पास में ही कहीं गाणे की आवाज आई, बोला रे कोई गवैया लाओ। सिपाही गये, गाने वाला साधु तारापुरी (राजकुमारी तारा) और एक साथ में आया। राजकुमार साधु के गाने से प्रसन्न होकर साधु को साथ चलने के लिए कहता है ।

भजन- 9 राजकुमार कर्ण सिंह का

तर्ज : फिरकी वाली, तू कल फिर आना..........
अलफी वाले, तू कल फिर आना, सुनेंगे तेरा गाना।
मैं ले चलूँगा साथ में, जोड़ी अपनी सजेगी बारात में।। टेक ।।
सुन्दर रूप अनूप दिया, उस कारीगर करतार ने, सिर पै लम्बे केश।
मीठी बोली, गजब की गोली, कौन तेरा घर देश।
भेष सुहाना, शोभा दे भगवां बाणा, तेरे गोरे गोरे गात में।।
जोड़ी अपनी......... ।। 1 ।।
लेके झोली, चिमटा डोली, आटा लाओ मांग के, घर-घर मारो हूक।
सोजा खाके, काचे पाके, राख लपेटे तू टूक।
भूख सतावे, धरती में लेट लगावे, तू मोडां की जमात में।।
जोड़ी अपनी.......।। 2 ।।
पेठा निराला, आगरे वाला, भुजिया बीकानेर की, खोहे के पकवान।
होगी सेवा, खाइये मेवा, बन मेरा मेहमान।
पान मिठाई, तू खाइये बालूशाही, मनचाही दिन रात में।
जोड़ी अपनी .......।। 3 ।।
भालोठिया बिना, ब्याह शादी में, फीका रंग बारात का, नहीं कोई सत्संग।
लूंडे नाचें, गुंडे माचें, कर रहे सैं हुड़दंग।
जंग छिड़ग्या, मदवे तै मदवा भिड़ग्या, खुश घूँसे और लात में।
जोड़ी अपनी........।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! साधु तारापुरी (राजकुमारी तारा) बोला बारात में नहीं चलूँगा, बाबा नहीं जाने देंगे। राजकुमार बोला मैं इजाजत ले लूँगा, साधु बोला ठीक है।

अब वह डेरे में आये, बारात में जाणे के लिये गुरूजी ने मना कर दिया। अब तो बनड़े ने रखड़ी, कंगन तोड़ के फेंक दिये और बोला -

भजन-10 बनड़े राजकुमार कर्ण सिंह का

तर्ज- आजा नन्द के दुलारे हो .....
बाबा चेला बनाले हो, शरण तेरी मैं आया।।
भगवां बाना लगे सुहाना, मन मेरे में बसग्या।
खुल गया ताला, हुआ उजाला, ज्ञान का दीपक चसग्या।
फँस गया आज बचाले हो। शरण तेरी मैं आया ।। 1 ।।
गुरू की बाणी हो कल्याणी, भव से पार उतारे।
मुक्ति पावे फिर नहीं आवे, हो ज्यां जय-जय कारे।
थारे वचन निराले हो। शरण तेरी मैं आया ।। 2 ।।
पिता मात और बहन भ्रात, ये हैं मतलब के साथी।
बच्चे नारी झूठी यारी, नहीं कोई गोती नाती।
भाती आँख चुराले हो। शरण तेरी मैं आया ।। 3 ।।
धर्मपालसिंह अंग अंग में, ज्ञान की गंगा आई।
गोते मारूँ जन्म सुधारूँ, हो जा मन की चाही।
छाई नींद जगाले हो। शरण तेरी मैं आया ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! अब महन्त ने सोचा ये तो महापाप हो जावेगा। राजकुमार नहीं जायेगा तो तेल बान की हुई लड़की फेरों बिना रह जायेगी तो पाप मुझे लगेगा। अब तो रखड़ी कंगना उठा के राजकुमार को दे देता है, बोला बेटा ले जाओ तारापुरी को । अब बारात आगे चली, देवनगर के छोटे छोटे बच्चे साधु के रथ को देखकर बोले -

भजन-11 देवनगर के बच्चों का

तर्ज : चौकलिया
देवनगर के गोरे किसा, आनन्द सा छा रह्या सै।
बनड़े तैं भी सुथरा एक, बाबाजी आ रह्या सै।। टेक ।।
बेशक अपने राजा ने जो, घर लड़का अपनाया सै।
जन्म लिया राजा के इसलिए, राजकंवर कहलाया सै।
आज हमारे राजा के जो, बनड़ा बनके आया सै।
राजकुँवर से एक मोडे का, रंग और रूप सवाया सै।
पाया सै किते टोहे तैं, इसा ढंग बतारह्या सै ।। 1 ।।
अपने मन में किसी से कम नहीं, एक बाराती सै।
चाचा ताऊ भाई बन्धु, कोई गोती नाती सै।
बहनोई दादा फूफा और शामिल भाती सै।
यार दोस्त जो बनड़े का, कोई प्यारा साथी सै।
हाथी सै रथ बहल, कोई घोड़ी को नचारह्या सै ।। 2 ।।
लाखों तारे आसमान में, अपनी चमक दिखावैं सैं।
एक चाँद की चमक देखके, सब फीके पड़ जावैं सैं
इस तरह हर एक बाराती, अपना रूप बनावै सै।
लेकिन उस ब्रह्मचारी से, कोई सुथरा नहीं बतावै सै।
आवै सै कोई कोई, निराली शान बनारह्या सै ।। 3 ।।
ये कहावत सै बड़ी पुरानी, छुपती नहीं छुपाने से ।
बाराती माँ जन्मा करती, कोई बनता नहीं बनाने से।
अपनी नगरी हुई पवित्र, इस साधु के आने से।
भगवान भी खुश होता है, इस सुन्दर भगवां बाणें से।
गाने से भालोठिया जग में नाम पा रह्या सै ।। 4 ।।

वार्ता- सज़्जनों ! बारात ठहरा दी। जब बारात लेने डेरे में आये तो राजा ने साधु को देख कर बोला जी साधु को एक बार रणवास में भी भेजो। रानी जी भी सत्संग की शोकीन है। साधु रणवास में चला गया। नाई फेरां का बुलावा दे गया। राजकुमार नहीं गया । दुबारा नाई आकर बोला जी फेरों में देर हो रही है तो कर्ण सिंह ने कहा -

भजन-12 राजकुमार कर्ण सिंह का

तर्ज : तेरे द्वार खड़ा एक जोगी..........
मैं जब ले लूँगा फेरा।
ना मांगु सोना चाँदी, ल्यादो बाबाजी मेरा।। टेक ।।
करके ल्याया बात मैं, रखूँगा साथ में, तीन रोज मेरे पास।
खुवाऊँगा मेवा मैं, करूँगा सेवा मैं, रहूँ चरण का दास।
प्रकाश हो मन मन्दिर में, दूर हो अन्धेरा ।। 1 ।।
ले गये रणवास में, करा विश्वास मैं, नहीं करा एतबार।
लौट के आया नहीं, किसी ने बताया नहीं, हो गया कहीं फरार।
एक बार दूर से, दिखादो उसका चेहरा ।। 2 ।।
उसके बिना जीऊँ नहीं, पानी तक पीऊँ नहीं, सुनलो मेरी बात।
आप कहो शादी है, मैं कहूँ बरबादी है, कटके मरे बारात।
उत्पात मेरे साथ में, क्यों करते हो बखेरा ।। 3 ।।
उमर उसकी थोड़ी थी, मेरी उसकी जोड़ी थी, सुन्दर बना शरीर।
उसकी याद में, हो जाऊँ बरबाद मैं, सुनलो बात अखीर।
फकीर बिना भालोठिया, सूना पड़ा डेरा ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! साधु तारापुरी (तारा) राजकुमार कर्ण सिंह से कहती है महाराज आ जाओ मैं आराम से हूँ। राजकुमार झट चल पड़ा। तारा कपड़े बदल कर बनड़ी बनगी। फेरे हो जाते हैं। राजा ने तभी बारात विदा करदी। बारात को चढ़ाते समय राजा हाथ जोड़कर बोला जी मेरी कोई गलती हो तो माफ कर देना। राजकुमार बोला कोई गलती नहीं, मेरा साधु ल्या दो। राजा तारा से बोला बेटी अब इनका पेटा भर देना तो तारा कहती है -

भजन-13 राजकुमारी तारा का

तर्ज : सत्यवान के घरां चाल दुख भरा करेगी सावित्री......
मेरे पास में ल्याओ, मैं साधु का पता बताऊँगी,
हो मेरी ज्यान।। टेक ।।
इलाज करावण भाई का, पिता शिमला लेकर ध्याया।
माताजी भी साथ गई, मुझे राज काज सम्भलाया।
सूचानन्द वजीर महल में, शराब पीकर आया।
मैंने उसकी मरम्मत की, ले माफी प्राण बचाया।
काया बख्शी, बणगी दानी, के बेरा दुख पाऊँगी,
हो मेरी ज्यान ।। 1 ।।
उस कपटी ने चिट्ठी भेजी, लिखी शिकायत मेरी।
मात पिता भाई घर पहुँचे, नहीं लगाई देरी।
बक्से के अन्दर बन्द करी, मैं रोई थी बहुतेरी
नदी के अन्दर गिरवाई, छाई जब रात अन्धेरी।
घेरी मौत ने, बतादो अब तो क्यों कर प्राण बचाऊँगी,
हो मेरी ज्यान।। 2 ।।
संदूक बहती दूर आ गई, जंगल बियाबान।
पालियों ने बाहर निकाली, मेरे बचाये प्रान।
आप बिठा घोड़े पर मुझको, लाये थे श्रीमान।
अमरकोट के महल की देखी, अजब निराली शान।
पकवान एक से एक गजब, कहो किसको साथ जिमाऊँगी,
हो मेरी ज्यान ।। 3 ।।
मैंने कहा चलो साथ, आपने ब्याह का जिकर चलाया।
आपके मंत्री जी के नाक का, किसने करा सफाया।
जंगल में से आप जो साधु , गाने वाला ल्याया।
भालोठिया ने उससे आपका, ब्याह संस्कार कराया।
पाया नहीं तो अब मैं फिर, मोडे का भेष बनाऊँगी,
हो मेरी ज्यान ।। 4 ।।

सज्जनों ! इस प्रकार शादी के बाद राजकुमारी तारा देवी ने अपनी साधु तारापुरी बनने तक की सम्पूर्ण कहानी राजकुमार कर्ण सिंह को सुनाई व दोनों खुशी-खुशी देवनगर से अमरकोट आ जाते हैं ।


Back to Index of the Book