Dharampal Singh Bhalothia/Aitihasik Kathayen/Veermati-Jagdeo Kanwar

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ऐतिहासिक कथाऐं


रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया

ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो. 9460389546


कथा-3 बीरमती-जगदेव

सज्जनों ! एक समय में धारा नगरी राजधानी में राजा उदियादत राज करते थे । उनके सुलक्षणी व भगेलणी दो रानियां थी । उनके दो पुत्र बड़ी रानी सुलक्षणी का जगदेव कंवर व छोटी भगेलणी का रणधूल कंवर था । जगदेव कंवर की शादी टोडा टोंक के राजा बीरसेन की लड़की बीरमती से कर रखी थी । बड़े पुत्र जगदेव कंवर की ताजपोशी की घोषणा होने पर छोटी रानी भगेलणी राजा को बुलाकर उक्त घोषणा का विरोध कर जगदेव को बनोवास व रणधूल कंवर की ताजपोशी करवाने को कहती है । इस प्रकार जति सती की कहानी शुरू होती है ।

भजन-1 कथा परिचय

तर्ज : चौकलिया
नाम भूप का उदियादत था, धारानगरी राजधानी थी।
सुलक्षणी और भगेलणी, उस राजा के दो रानी थी।। टेक ।।
दो बेटे थे उदियादत के, बिल्कुल छोटा था परिवार।
वोह नर सुखी नहीं दुनिया में, जिस नर के होती दो नार।
बड़ी रानी थी सुलक्षणी, उसके बेटा जगदेव पंवार।
था रणधूलकंवर छोटा, जो भगेलणी का राजकुमार।
सुलक्षणी थी सादी भोली, भगेलणी बडी सयानी थी ।। 1 ।।
टोडा टोंक के बीरसेन की, बीरमती शहजादी थी।
उससे करदी राजा ने, जगदेव कंवर की शादी थी।
जगदेव को दूँ राज सौंप, राजा ने करी मनादी थी।
कल ही राज तिलक होगा, ये सबको बात बतादी थी।
भगेलणी ने राजा बुलवाया, उसको हुई परेशानी थी ।। 2 ।।
महल में देखा राजा ने, छोटी रानी बेहोश पड़ी।
आँख लाल, रहे बिखर बाल, नहीं बोलचाल खामोश पड़ी।
जैसे तो कोई सजा मौत के, चक्कर में निर्दोष पड़ी।
राजतिलक के विरोध में, वो दिखा रही थी रोस पड़ी।
हाल देख करके रानी का, राजा को हैरानी थी ।। 3 ।।
राजा बोला रानी जी आज, क्या हो गई तकलीफ बता।
कौन दवाई देगा जब तक, बिमारी का नहीं पता।
रानी बोली राजा सुनलो और किसी की नहीं खता।
जगदेव को दे बनोबास, रणधूल को दे राजसत्ता।
भालोठिया कहे जति सती की, हो गई शुरू कहानी थी ।। 4 ।।
== आनन्दी ==
रणधूलकंवर को राज मिला, जगदेव रहे बनोबास में।
सुलक्षणी सुन के रोई, छा गया सन्नाटा रणवास में।
आशीर्वाद लेने जगदेव, जब आया माँ के पास में।
माँ बोली मुझे जगह नहीं, अब धरती और आकाश में।।

वार्ता- सज्जनों ! सुबह रणधूल को राजतिलक हो गया और जगदेव को बनोवास का आदेश सुनाया गया। जगदेव वन जाने के लिए माँ से आशीर्वाद लेने गया । माँ सुलक्षणी बेटे से रोकर कहती है -

भजन-2 रानी सुलक्षणी व जगदेव का वार्तालाप

तर्ज : सजना मैं जांगी मेले में,बलमा मैं जांगी मेले में ........
बेटा तू मतना जा बन में, जगदेव तू मतना जा बन में।
तू मेरे जीवन की जोत, मरूँ बिन मौत, रे बेटा रहण दे।।
माता मैं जाऊँगा बन मैं, जननी मैं जाऊँगा बन में।
हुकम पिता का खास, मिला बनोवास, री माता जाण दे।। टेक ।।
रात-रात में बदल गया, सारा इन्तजाम पिताजी का।
राजतिलक रणधूल के हो, बनग्या प्रोग्राम पिताजी का।
बनोबास का मेरे लिये, मिलग्या पैगाम पिताजी का।
कांटा काढ़ लिया मौसी ने, हो गया नाम पिताजी का।
माता मैं जाऊँगा बन में, जननी मैं जाऊँगा बन में।
करेंगे लोग मजाक, कटी मेरी नाक, री माता जाण दे ।। 1 ।।
मेरे जीवन का मेरे लाड़ले, केवल एक सहारा तू।
बियाबान भयंकर बन में, फिरेगा मारा-मारा तू।
इससे अच्छा तो मेरे बेटा, रहता उमर कँवारा तू।
बहू कहाँ जावेगी, खोवे ठौड़ ठिकाना सारा तू।
बेटा तू मत ना जा बन में, जगदेव तू मत ना जा बन में ।
नहीं बहू ने ठौड़, मरेगी सिर फोड़, रे बेटा रहण दे ।। 2 ।।
करके मनादी मेरे पिता ने, गेर दिया मैं चक्कर में।
राजतिलक जगदेव का होगा, चर्चा हो गई घर-घर में।
बनोबास का हुकम मिल गया, तेरे कंवर को पलभर में।
दोषी कहेंगे लोग मनै, और नफरत हो नारी नर में।
माता मैं जाऊँगा बन में, जननी मैं जाऊँगा बन में।
मेरा आखिरी तोड़, ये सौ का जोड़, री माता जाण दे ।। 3 ।।
तेरे बिना इस घर में बेटा, माँ को कष्ट हमेश रहे।
पड़े बजाणी ड्यूटी जो, पटराणी का आदेश रहे।
भूप करे नहीं बात, मेरा दोहागण जैसा भेष रहे।
धर्मपालसिंह भालोठिया कहे, दिन और रात क्लेश रहे।
बेटा तू मत ना जा बन में, जगदेव तू मतना जा बन में।
सौकन के आजां पाँख, दिखावे आँख, रे बेटा रहण दे ।। 4 ।।
== आनन्दी ==

मतना रोको माँ, बेटे को, बन में जरूर जाऊँगा।

मैं हूँ पिता का आज्ञाकारी, उसका कहन पुगाऊँगा।।

वार्ता- सज्जनों ! जगदेव कहता है माँ अब तो जाना ही पड़ेगा। माँ जगदेव से लिपटकर कहती है -

भजन-3 रानी सुलक्षणी का

तर्ज : उड़जा उड़जा रे काले से काग ........
बेटा स्वार्थ का संसार , स्वार्थ बिन कोई साथी नहीं।। टेक ।।
स्वार्थ बिना चाचा ताऊ भाई नहीं, मात-पिता और चाची ताई नहीं।
बेटा स्वार्थ का परिवार, स्वार्थ बिना गोती नाती नहीं ।। 1 ।।
अपना सब हिस्सा हक छोड़ के, अगले घर गई रिश्ता जोड़ के।
बेटा बहन भाई का प्यार, स्वार्थ बिन आवे भाती नहीं ।। 2 ।।
बाजे बजे थे एक दिन शाम को, राजतिलक होगा राम को।
बेटा केकई पड़ी थी बीमार, घर में था दीया-बाती नहीं ।। 3 ।।
मौसी तो मांटी की भी हो बुरी, मुँह में राम जिसके कर में छुरी।
बेटा फौरन करती वार, दया तक उसको आती नहीं ।। 4 ।।
मौसी तो घर में विष की बेल सै, मौसी का सारा उल्टा खेल सै।
बेटा पल में ले घूँघट सार, पल में फिर ओल्हा-गाती नहीं ।। 5 ।।
अब तक तू खाया खेला मौज में, लाड करूँ थी रोज मैं।
बेटा देखा नहीं था बुखार, देखी थी सीळी-ताती नहीं ।। 6 ।।
नींद नहीं सै सौ-सौ कोस में, तेरे बिन मरजां मेरे बोस मैं।
बेटा मौत का करूँ इन्तजार, खाना भी अब मैं खाती नहीं ।। 7 ।।
भालोठिया की सच्ची बात सै, मौसी की कोई नहीं जात सै।
बेटा मौसी का करे एतबार, उसकी भी कोई जाति नहीं ।। 8 ।।

वार्ता- सज्जनों ! जगदेवकंवर आधी रात को चुपचाप बनोबास के लिए रवाना हो जाता है ।

भजन-4 जगदेवकंवर का

तर्ज : ले के पहला पहला प्यार.........
जब हो गई आधी रात, होने वाला था प्रभात।
धारा नगरी से चाल्या, जगदेवकंवर।। टेक ।।
माताजी को पता लगे, पीछे-पीछे दौड़ेगी।
कभी मुझे धमकावेगी, कभी हाथ जोड़ेगी।
छोड़ेगी नहीं मात, उसका दुख पावेगा गात।
उसके दुख में नहीं, आज कोई कसर ।। 1 ।।
बचपन के साथी मेरे, फिरेंगे तलाश में।
कौन बतावेगा मैं, गया बनोबास में।
पास में खेले रोज, वो देखेंगे मेरे खोज।
साथी कहेंगे हमारा, साथी गया किधर ।। 2 ।।
जन्मभूमि माता मेरी और जननी माई।
दोनो की जुदाई क्यों कर करूँगा समाई।
भाई छोटा करे राज, मेरा नहीं ठिकाणा आज।
मेरा एक ही सहारा, है तेरा ईश्वर ।। 3 ।।
पिताजी की पहली गलती, करदी मेरी शादी।
दूसरी गलती है राजतिलक की मनादी।
शहजादी का क्या हाल, कहाँ उसकी ससुराल।
दुखिया रहेगी तड़पती, वोह सारी उमर ।। 4 ।।
गृहस्थी जीवन का मेरा, खेल सारा खो गया।
धर्मपालसिंह कहे, एक घर से दो गया।
हो गया सवार, तेज घोड़े की रफ्तार।
चलता-चलता वो पहुँचा, टोडा टोंक नगर।। 5 ।।
== आनन्दी ==
तीजां का त्यौंहार रंगीला, आया सावण मास में।
थोड़ी सी गर्मी के बाद में, घटा चढ़ी आकाश में।
राजकुमारी बीरमती के, खुशी गात में छाई थी।
बान्दी भेज के सखी सहेली, अपने पास बुलाई थी।।

वार्ता- सज्जनों ! सावन में तीजों के त्योंहार पर टोडा टोंक के महल में सहेलियों से बीरमती का बाग में चलने के लिए कहना-

गीत-5 बीरमती का

तर्ज- फिरकी वाली, तू कल फिर आना..................
सखी सब आओ, खिलरे सैं फूल बाग में, घल रही सै झूल बाग में।
सावण की बहार सै, आया हे तीजां का त्यौंहार सै।। टेक ।।
आओ सारी, करके त्यारी, सैर करांगी बाग में, बीरमती का कहन।
चलो सहेली, चम्पा चमेली, देर करो मत बहन।
पहन साड़ी, सब धापां सरती माड़ी, अब किसका इन्तजार सै ।। 1 ।।
आम की डाली, बैठी काली, मस्त रंगीले राग में, कोयल रही सै बोल।
पिया-पिया, करे पपहिया, रहा कलेजा छोल।
खोल बतावे,पिया की याद सतावे, पिया-पिया की पुकार सै ।। 2 ।।
बादल गरजे, हृदय लरजे, छाया सन्नाटा गात में, घटा चढी घनघोर।
बिजली चम-चम, बारिश रिमझिम, नाच दिखावे मोर।
शोर मचावें, दादुर भी धुनी सुनावें, पड़ने लगी फुहार सै ।। 3 ।।
बाग में बड़गी, झूले पै चढ़गी, जा पहुँची आकाश में, चाँद के पास चकोर।
बड़ी रंगीली, कभी हो ढीली, लरजे रेशम डोर।
और झुलावें, भालोठिया कहे गावें, ये सावण की मल्हार सै ।। 4 ।।
== दोहा ==
टोडा टोंक के बाग में, आया जगदेव पंवार।
घोड़ा बांध्या पेड़ के, सोवे था पैर पसार।।
== राधेश्याम ==
एक सखी न्यूं बोली बहन, कोई मर्द बाग में आन पड़ा।
आप सो रहा मस्ती में, और घोड़ा उसके पास खड़ा।
सखी दूसरी ने जब उस पर, पूरा अपना ध्यान दिया।
शक की सूई घूम गई, जगदेव कंवर पहचान लिया।।

वार्ता- सज्जनों ! जगदेव का टोडा टोंक के बाग में डेरा, सखियों का बीरमती से कहना -

भजन-6 सखियों का

तर्ज : दिल लूटने वाले जादूगर,अब मैंने तुम्हें पहचाना है.......
हे बीरमती, नहीं झूठ रती, तेरा लणिहार दिखाई दे।
सै तेरा पति, ले देख जति, जगदेव पंवार दिखाई दे।। टेक ।।
नहीं भूखे घर का छोरा सै, ये रूप रंग का गोरा सै।
दिखे इसा डठोरा सै, मैंने राजकुमार दिखाई दे ।। 1 ।।
मेरा सै पक्का खयाल सखी, किसी और की नहीं मजाल सखी।
सिर के नीचे ढ़ाल सखी, कर में तलवार दिखाई दे ।। 2 ।।
जो मेरा एतबार नहीं, तो दूर खड़ी क्या देख रही।
आप देख लो सही सही, तेरा भरतार दिखाई दे ।। 3 ।।
नहीं साथ में आया नाई हे, कोई चाचा ताऊ भाई हे।
मेरे इसी समझ में आई हे। घर में तकरार दिखाई दे ।। 4 ।।
ये वक्त नहीं इन्तजारी का, अब स्वागत कर ब्रह्मचारी का।
बिना पति के नारी का, सूना संसार दिखाई दे ।। 5 ।।
भालोठिया साफ बतावै हे, नहीं भेद बात में पावै हे।
यो साथ तनै ले जावै हे, नहीं करे उधार दिखाई दे ।। 6 ।।
== दोहा ==
बीरमती झट आ गई, जगदेव कंवर के पास।
देखते ही पतिदेव का, चेहरा हुआ उदास।
हाथ जोड़ कहे बीरमती, पतिदेव प्रणाम।
कैसे आना हो गया, क्या हुआ जरूरी काम।।

वार्ता- सज्जनों ! जगदेव कंवर बीरमती को अपने आने व बनोवास का पूरा ब्यौरा देता है ।

भजन-7 जगदेव का

तर्ज : एक परदेशी मेरा दिल ले गया ........
के बूझेगी बीरमती, जो काम हो गया।
तेरा पति आज दुनिया में, बदनाम हो गया।। टेक ।।
नतीजा माँ की खामोशी का, बनग्या हाल मेरा दोषी का।
मौसी का आज पूरा, प्रोग्राम हो गया।
उसका खरा और माँ का खोटा, दाम हो गया ।। 1 ।।
आज तक काम किया नहीं खोटा, फिर भी मुझको मिला दिसोटा।
छोटा भाई भरत बना, मैं राम हो गया।
मेरे लिए वन जाने का पैगाम हो गया ।। 2 ।।
मौसी करे महल में मौज, माँ सिर धुन के रोवे रोज।
फौज करे क्या जनरल, नमक हराम हो गया।
मेरा पिताजी मौसी का, गुलाम हो गया ।। 3 ।।
चला प्रभात उठ के घर से, करा तकाजा माँ के डर से।
सफर से परेशान था, और घाम हो गया।
भालोठिया कहे बाग में, आराम हो गया ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! बीरमती जगदेव कंवर को बिना बुलाये अचानक आया देखकर शरमाती है और फिर चिंता में पड़ जाती है ।

भजन-8 बीरमती का

तर्ज : म्हारी रे मंगेतर नखरे वाली .......

शर्म की मारी मैं मर-मर जाऊँ।
आज मरी मैं बिना मौत, शर्म की मारी मैं।। टेक ।।
कुल बिना शर्म, भोम बिना नाज नहीं, पतिव्रता बिना पति की लाज नहीं।
करूँ रात दिन जोत, शर्म की मारी मैं ।। 1 ।।
कभी नहीं मैं कातिक न्हाई, नहीं मैं पतरा जंतरी दिखाई।
नहीं बूझे डाकोत, शर्म की मारी मैं ।। 2 ।।
के घर में कोई हुआ कबाड़ा, के हो गया आज देश लिकाड़ा।
जी खा गया मेरा गोत, शर्म की मारी मैं ।। 3 ।।
भालोठिया मेरा गीत सुनावे, मेरा खोट जरा भी पावे।
लूं काशी में करोत, शर्म की मारी मैं ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! बाग में से बीरमती का देर से घर आना और माँ का धमकाना -

भजन-9 राणी व बीरमती की वार्ता

तर्ज : चौकलिया
माँ बोली हे बीरमती, क्यों इतनी देर लगाई।
देर हुई न्यूं आज बाग में, आ रहा तेरा जमाई।। टेक ।।
मेरे जमाई का आने का, सुना था नहीं जिकर मैं।
जिकर करे था कौन आज, वो दिखे घणा फिकर में।
फिकर अभी से क्यों हो गया, वो सै नादान उमर में।
नादान उमर में छूटा घर, वो चलके आया सफर में।
सफर में चला एकला, क्यों नहीं लिया साथ में नाई।
नाई साथ में क्यों आवे, जब घर में रहे लड़ाई ।। 1 ।।
घर में लड़ाई कौन करे, जब तक जीवै सै राजा।
राजा की राणी रूसे, बुद्धि पर पत्थर आजा।
बुद्धि पर पत्थर आ जा तो, के बाड़ खेत नै खाजा।
बाड़ खेत नै खाज्या जिस दिन, बणे चोर का साझा।
इसा चोर कुण हुया बता, मेरे नहीं समझ में आई।
तेरे समझ में आ जागी जब, होगी लोग हँसाई ।। 2 ।।
लोग हँसाई क्यों होगी, के घर में आ गया टोटा।
टोटा घर में नंगा नाचे, दिन लागे जब खोटा।
खोटा दिन क्यों लाग्या सै, घर में एक भाई छोटा।
छोटा भाई राज करे और बड़े को मिला दिसोटा।
दिसोटा उसको क्यों मिलग्या, उसमें के गलती पाई।
पाई नहीं गलती उसमें, मौसी ने नीत डिगाई ।। 3 ।।
मौसी नीत डिगाले तो, के इतनी सजा सुनादे।
इतनी सजा में शुक्र मान, मौसी पल में मरवादे।
मरवादे तो तीन सौ दो में, उसको कौन बचादे।
बचे साफ, नही करे माफ, वो आँख्या तक फुड़वादे।
आँख फुड़ादे तो भालोठिया, क्यों कर करे समाई।
करनी पड़े समाई माँ, जब लागे नहीं दवाई ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! बीरमती की सहेलियां जगदेव कंवर से तरह तरह के प्रश्न करने लगी ।

गीत-10 सहेलियों का ताना

तर्ज : जमाई मेरो छोटो सो,मैं किस पर करूं गुमान.........
बटेऊ तनै जुल्म करे, तू बिना बुलाये आया।। टेक ।।
के तेरी माँ बीमार हुई, के भाइयाँ की तकरार हुई।
के अपना हुआ पराया ।। 1 ।।
के मारा बोल पड़ोसी ने, के आँख दिखाई मौसी ने
के राजा ने धमकाया ।। 2 ।।
के देर हुई तेरी शादी नै, के बुलवाया शहजादी ने।
के गुप्ती खत पहुँचाया ।। 3 ।।
के रूठा रिश्तेदार तेरा, के बिछड़ा जिगरी यार तेरा।
के धर के भूलग्या माया ।। 4 ।।
के गाणे का इश्क तेरे, के जिसकी सै चसक तेरे।
के भालोठिया नहीं पाया ।। 5 ।।

वार्ता- सज्जनों ! बीरमती का पति के साथ जाने के लिए माँ से तैयार करने के लिए कहना -

भजन-11 बीरमती का

तर्ज : सावन की मल्हार - बाजन लगे समर के ढोल .......
एरी री माँ, तू कर बेटी ने त्यार, साथ पति के जाऊँगी।। टेक ।।
सीता थी पतिव्रता रंग में, बन में गई राम के संग में।
एरी री माँ, मैं पतिव्रता नार, अपना धर्म निभाऊँगी ।। 1 ।।
साथ में दमयंती गई नल के, जंगल देखा पैदल चलके।
एरी री माँ, पूजेगा संसार, सती का दर्जा पाऊँगी ।। 2 ।।
यहाँ पतिव्रता हुई अनेक, जिनका रहा चरित्र नेक।
एरी री माँ, उदाहरण मिले हजार, ताजा मिसाल बनाऊँगी ।। 3 ।।
घर में करती रोज स्नान, अब घर में हो जंगल बियाबान।
एरी री माँ, मिले नदी की धार, उसमें गोते लगाऊँगी ।। 4 ।।
घर में खाती रोज मिठाई, चपाती चटनी दाल फराई।
एरी री माँ, पेड़ मिलें फलदार, तोड़-तोड़ फल खाऊँगी ।। 5 ।।
धर्मपालसिंह हाथ जोड़ के, सब तैं मिले थी दौड़-दौड़ के।
एरी री माँ, कर बेटी से प्यार, फेर पता ना कब आऊँगी ।। 6 ।।

वार्ता- सज्जनों ! जगदेव बीरमती के प्रस्थान के समय नगरी के लोगों द्वारा विदाई ।

भजन-12 कवि का

तर्ज : सत्यवान म्हारे ठहरण का इन्तजाम करिये ........
जगदेव चला दो तीन रोज, आराम करके।
चली साथ में बीरमती, प्रोग्राम करके।। टेक ।।
रानी ने बुलावा दिया, बेटी की विदाई का।
नगरी के घर-घर में छोरा, भेज दिया नाई का।
छोरी ने हो चाव, सहेली चाची और ताई का।
समाचार मिलते ही फिर, सखी सहेली सारी आगी।
भरती और इमरती सरती, पार्वती सिणगारी आगी।
भगवानी नाराणी खजानी,सत्यवती हरप्यारी आगी।
धापां भी आगी थी, घर का काम करके ।। 1 ।।
जितने भी नगरी के मुखिया, वो सारे नर-नारी आगे।
झाबर खेता भरतू नेता, गोपीचन्द गिरधारी आगे।
छोटे बड़े कर्मचारी, सरकारी अधिकारी आगे।
मिलते-मिलते टाइम इनको, हो गया था ढाई का।
भाभी की आँखों में आँसू, दिल उझले था भाई का।
राजा रानी सिर पुचकारें, बेटी और जमाई का।
ये भी पाँव चुचकारें थे, प्रणाम करके ।। 2 ।।
बीरमती अब महल चौबारे, चाली सारे छोड़ के।
जितनी भी सहेली सब तैं, मिली दौड़-दौड़ के।
करे थी नमस्ते सब तैं, हाथ जोड़-जोड़ के।
सब तैं पहले करतब अपने, घोड़ों के दिखाये थे।
करड़ी कर लगाम, सरपट चाल में चलाये थे।
तीन-चार चक्कर, पूरी नगरी के लगाये थे।
छोड़ दिये फिर सीधे, नरम लगाम करके ।। 3 ।।
लोगों की शुभ कामना, ये रहें कुशल और मंगल में।
दौड़ रहे घोड़े, जैसे कम्पीटीशन के दंगल में।
थोड़ी देर में बड़गे आके, घणे भयंकर जंगल में।
बीरमती बोली पियाजी, लाग्या होण अन्धेरा सै।
घोड़े चरावें खाना खावें, यहीं रात का डेरा सै।
भालोठिया कहे जगदेव बोला, यही इरादा मेरा सै।
चलें सवेरे, रात को विश्राम करके ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! जंगल में एक जगह रात को डेढ़ बजे जगदेव ने हमलावर शेर को और बीरमती ने शेरनी को मार कर जंगल के अन्य जीवों के लिए अमन चैन कर दिया ।

भजन-13 कवि का

तर्ज : मन डोले, मेरा तन डोले.........
चारों ओर, जंगल में शोर, था समय रात का डेढ।
हुई दो शेरों की मुठभेड़।। टेक ।।
बियाबान भयंकर जंगल, हाथी खड़े चिंघाड़ें थे।
कहीं पर काले नाग पड़े थे, कहीं अजगर मुँह पाड़ें थे।
चीता शेर बघेरा बोलें, कहीं पर शेर दहाड़ें थे।
जो कोई बन्दा आवे भूल में, उसको रोज पछाड़ें थे।
लिया घेर ,जंगली ने फेर , दिया असली शेर को छेड़।
हुई दो शेरो की मुठभेड़ ।। 1 ।।
दहाड़ सुनके जंगली की, झट हो गया जगदेव खड़ा।
वार शेर का रोक लिया, दी उसके आगे ढ़ाल अड़ा।
हमला बोल दिया क्षत्रिय ने, होकर के बेधड़क लड़ा।
सिर न्यारा और धड़ न्यारा, उस केहरी का दो जगह पड़ा।
तेज धार, हो गई पार , झट सोड़ सी दई उधेड़।
हुई दो शेरों की मुठभेड़ ।। 2 ।।
आई गरज के सिंहनी, अब उसका भी खेल दिखाऊँ मैं।
क्षत्रिय बोला बीरमती, नहीं इस पै हाथ उठाऊँ मैं।
गरजी थी क्षत्राणी बोली, अब नहीं देर लगाऊँ मैं।
इसका नम्बर मेरा सै, जो पल में ढ़ेर बनाऊँ मैं।
नहीं करी देर , दिया बना ढेर , जैसे मारें बकरी भेड़।
हुई दो शेरों की मुठभेड़ ।। 3 ।।
इस खूँखार शेर की, इस जंगल में दहशत भारी थी।
इसकी खुराक में रोजाना, एक जीव की बारी थी।
अमन चैन हो गया जंगल में, मिटी मुसीबत सारी थी।
शेर जति ने मार दिया था, सती ने सिंहनी मारी थी।
धर्मपाल, अब प्रातःकाल, घोड़ों के लगाई एड़।
हुई दो शेरों की मुठभेड़ ।। 4 ।

वार्ता- सज्जनों ! दोनों अब चलकर पाटण शहर में आते हैं । वहाँ शहर से बाहर तालाब पर बीरमती को छोड़कर मकान तलाशने जगदेव शहर में गया। पाटण में जामवती दूती को बीरमती का पता लगता है। वह उसको चक्कर में लेने का प्लान बनाती है। लालकंवर कोतवाल के लड़के का दूती के घर आना जाना था वह सारे प्रबन्ध करता है और दूती तालाब पर जाती है ।

भजन-14 दूती का तालाब पर पहुँचना

तर्ज : ऊँची ऊँची दुनिया की, दीवारें सैंया तोड़ के जी, तोड़ के......
बीरमती की उस ठगणी ने, कोली भरली दौड़ के।
मैं आई हे, तेरे लिए सारे काम छोड़ के।। टेक ।।
साँची कहूँ, आज बेटा-बहू, तुम क्योंकर भूल गये रस्ते।
जगदेवकंवर जब पहुँचा घर, ये खबर दई हँसते-हँसते।
करी नमस्ते मौसाजी से, उसने हाथ जोड़के ।। 1 ।।
सुनी बात मैं, खुशी गात में, फूली नहीं समाई हे।
प्रेम भाव में, तेरे चाव में, रोटी भी नहीं, खाई हे।
भूलगी मुँह दिखाई हे, न्यू बोली थी मुँह मोड़ के ।। 2 ।।
गोद में बच्चा, बणगी जच्चा, नहीं आई तेरी शादी में।
रोज लुगाई, गावें बधाई, फर्क पड़ा आजादी में।
बंटवाई प्रसादी में हे, गून्द के लड्डू फोड़ के ।। 3 ।।
पकड़ हाथ, ले चलूँ साथ, अब मतना लावे देर बहू।
घर में चलके, सब तैं मिलके, बतलावांगी फेर बहू।
तेरे तैं करूँ मेर बहू, अब सब तैं नाता तोड़के ।। 4 ।।
आया घर जगदेव कंवर, तू साथ में क्यों ना आई हे।
धर्मपाल सिंह देख ढंग, बतलावें लोग लुगाई हे।
होती लोग हँसाई हे, फिर बट्टा लागे खोड़ के ।। 5 ।।

वार्ता- सज्जनों ! जामवती दूती बीरमती को जगदेव की मौसी बता कर घर ले गई। शाम को दूती ऊपर कमरे में खाना लेकर बीरमती के पास जाती है किन्तु बीरमती पति को बुलाने की कहती है -

भजन-15 बीरमती का

तर्ज- तेरे द्वार खड़ा एक जोगी..........
माँ पति बुला दो मेरा ।
बिना पति के इस घर में, दीखै सै घोर अन्धेरा।। टेक ।।
राज करे भाई छोटा, बड़े को मिला दिसोटा, ये है नई मिसाल।
चल करके पति मेरा, बाग में लगाया डेरा, पहुँच गया ससुराल।
तीन चार रोज रहा, महल में बसेरा, माँ पति बुलादो मेरा ।। 1 ।।
पति जी के साथ आई, छोड़े मात पिता भाई, छोड़ दिया परिवार।
उनका होवेगा आना, साथ में खावेंगे खाना, मैं पतिव्रता नार।
भरतार बिना माताजी यो, सूना लागे डेरा, माँ पति बुलादो मेरा ।। 2 ।।
पति का उजाला घर में, होता है निराला घर में, बिना पति अंधकार।
रंग दुनियादारी का, पति बिना नारी का, है सूना संसार।
बार-बार का बहाना, झूठा दीखे तेरा, माँ पति बुलादो मेरा ।। 3 ।।
अर्ज बार-बार मेरी, लगा रही हेरा फेरी, क्या है पति का हाल।
पति नहीं आया माता, भेद नहीं पाया माता, ये कोई गहरी चाल।
भालोठिया कहे घर दीखै सै, बिना पानी का झेरा, माँ पति बुलादो मेरा ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! अब थोड़ी देर में लालकंवर का बीरमती के कमरे में जाना -

भजन-16 कवि का

वीर क्षत्राणी ने, सुमर लिया करतार।। टेक ।।
देखी दूती की चालाकी, तन में नहीं रही बाकी।
लिया रूप बना खूँखार , वीर क्षत्राणी ने ।। 1 ।।
लाल कॅवर ऊपर चढ़ग्या, कमरे के अन्दर बड़ग्या।
देख लिया बदकार , वीर क्षत्राणी ने ।। 2 ।।
बोला था गन्दी बानी, भड़क उठी थी क्षत्राणी।
लिया था शीश उतार ,वीर क्षत्राणी ने ।। 3 ।।
जो कमरे के अन्दर आया, धड़ से शीश अलग पाया।
मारे सिपाही चार , वीर क्षत्राणी ने ।। 4 ।।
चारों और पुलिस फिरगी, सिंहनी कमरे में घिरगी।
कर लिए बन्द द्वार , वीर क्षत्राणी ने ।। 5 ।।
भीतर का कुण्डा जड़के, खड़ी किवाड़ों के अड़के।
छोड़ी नहीं उधार , बीर क्षत्राणी ने ।। 6 ।।
भालोठिया कहे मरदानी का, बनग्या था रूप भवानी का।
करे वार पर वार , वीर क्षत्राणी ने ।। 7 ।।

वार्ता- सज्जनों ! जगदेव तालाब पर गया बीरमती वहाँ पर नहीं मिली । वहां सुना बीरमती एक रण्डी के मकान में बन्द है उसने पाँच आदमी मार दिये और वहाँ पुलिस का घेरा है। जगदेव वहाँ आया, घोड़े देखे और पता लगा बीरमती अन्दर है तो दरवाजे पर आकर कहता है -

भजन-17 जगदेव का

तर्ज : पारवा (खड़े बोल) .......
हो हो मेरी प्यारी फाटक खोल, बाहर तेरा भरतार खड़ा।। टेक ।।
अच्छी जगह देख मैंने, तालाब के ऊपर छोड़ी।
तू नहीं पाई मैं न्यू समझा, आज बिछड़गी जोड़ी।
हो हो तू करगी बिस्तर गोल, मैं सोचे था बेकार खड़ा ।। 1 ।।
सुना एक रण्डी के घर में, रहते थे बदमाश।
एक देवी ने मार-मार, दी बना पाँच की लाश।
हो हो वहाँ फिरे पुलिस का टोल, आगे थानेदार खड़ा ।। 2 ।।
जिन दुष्टों की आपने, दी मार के मिटा निशानी।
उसके बाद में आपने क्या, खोई अपनी जिन्दगानी।
हो हो यश नो में कुछ तो बोल, करूँ सूँ मैं इन्तजार खड़ा ।। 3 ।।
आपकी जननी माता का, करूँ बार-बार धन्यवाद।
उस माता की कूख फलो, जिसकी अैसी औलाद।
हो हो सारी दुनिया में पोल, दिखावे का संसार खड़ा ।। 4 ।।
यदि आप छल कपट समझती, है कोई हेरा फेरी।
बीरमती सै तेरा पति, मैं कहूँ कसम खा तेरी।
हो हो मैं करता नहीं मखौल, खास जगदेव पंवार खड़ा ।। 5 ।।
जति सती की बात जगत में, होती नहीं पुरानी।
धर्मपालसिंह भालोठिया ने, लिख दी अमर कहानी।
हो हो सुरेश छन्द न तोल, रहे गावण नै तैयार खड़ा ।। 6 ।।

वार्ता- सज्जनों ! बीरमती के कमरे से बाहर आते ही पुलिस दोनों को गिरफ्तार कर लेती है। राजा ने हत्या के आरोप में इन पर गिरड़ी चढ़ा कर मारने का आदेश सुनाया। यह फैसला सुन कर नगरी में मातम छा गया ।

== दोहा ==
पकड़ पुलिस ने दोनों पर, सख्त बनाया केस।
केस देख दिया भूप ने, मौत का आदेश।।
== आनन्दी ==
राजा बोला दो दिन छुट्टी, तीसरे रोज मरवादो ।
ले जाकर खूनी मैदान में, इन पर गिरड़ी फिरवादो।।
लोगों ने ये सुना फैसला, नगरी में मातम छाया।
भूखे लोग सो गये, खाना नहीं किसी ने भी खाया।।
नगर के मुखिया लोगों ने, प्रार्थना सभा बुलाई थी।
हाथ जोड़कर इनके लिए, ईश्वर से दुआ मनाई थी।।

वार्ता- सज्जनों ! नगरी के लोग सुबह खूनी मैदान में आये, वहां दोनों को देखकर लोगों का विलाप -

भजन-18 नगरी के लोगों का

तर्ज : चौकलिया
सारस के सी जोड़ी, कल थोड़ी सी देर में।
ज्यान की दाल दली जागी, गिरड़ी के फेर में।। टेक ।।
ठाली बैठ घड़े सैं दोनों, जग औतारी ने।
पड़ग्या मंदा, देख के चन्दा, सूरत प्यारी ने।
जन्म लिया जब नारी सती और ब्रह्मचारी ने।
घर-घर मंगल गाया होगा, नगरी सारी ने।
मिली बधाई, बटी मिठाई, इनकी मेर में ।। 1 ।।
आज तलक देखी नहीं, ऐसी जोड़ी कमाल की।
होनी चाहिए इनकी उमर, हजारों साल की।
आज देखते झाँकी, हम त्रेता के काल की।
ऐसी जोड़ी थी सीता और दशरथ के लाल की।
पड़े लखीणे लाल आज, कुरड़ी के ढ़ेर में ।। 2 ।।
जिसमें खोज नहीं बुद्धि का, अपने आप में।
खानदान डूबेगा, इस राजा का पाप में।
सदमा भारी, नगरी सारी, पड़ी विलाप में।
जा छूटे डोर, नहीं चले जोर, के पश्चाताप में।
जति सती को सजा मिले, नहीं कमी अन्धेरे में ।। 3 ।।
हे ईश्वर इस राजा को, तू ज्ञान दे दिये।
ये जोड़ी अनोखी, इसको जीवन-दान दे दिये।
भारत के घर-घर में, ऐसी सन्तान दे दिये।
धर्म पर मरने की शक्ति, भगवान दे दिये ।
भालोठिया कोई कमी नहीं, सिंहनी और शेर में ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! स्वामीभक्त घोड़े ने अपने स्वामी पर आफत आई देखकर रस्सा तोड़कर दौड़ते हुए धारा नगरी पहुँच गया। वहां पर उदियादत महाराज ने स्थिति को भांप कर घोड़े पर चढ़कर एड़ लगाई। घोड़ा महाराजा को सीधा पाटन शहर ले आता है । उदियादत महाराज सारी जानकारी पता कर राजा जगत सिंह के पास जाता है और उसे सही जानकारी देता है ।

भजन-19 कवि का

तर्ज : चौकलिया
स्वामीभक्त घोड़े ने, धणी पर देखी आफत आई
उछल-कूदकर ठाण फोड़ दिया, करता नहीं समाई।। टेक ।।
घिरा देख अपने मालिक को, एकदम रस्सा तोड़ा।
आँख बचाकर निकल गया, और तेज गति से दौड़ा।
पकड़ो-पकड़ो करते रह गये, सबको पीछे छोड़ा।
धारा नगरी पहुँच गया, जगदेव कंवर का घोड़ा।
जोड़ा बिछुड़ गया इसका, नगरी में धूम मचाई ।। 1 ।।
जगदेव के घोड़े की चर्चा, हो गई थी घर-घर में।
के अनहोनी हुई आज, के विपदा पड़ी कंवर में।
उदियादत महाराज महल में, सोवे था बिस्तर में।
आवाज सुनी घोड़े की, बाहर आया था पलभर में।
सफर में साथ लिए साथी, घोड़े के एड़ लगाई ।। 2 ।।
घोड़ा चल पाटण में आया, जामवती के द्वार।
सुनी कहानी राजा बोले, हो गये जुल्म अपार।
जगतसिंह महाराज का था, लगा हुआ दरबार।
उदियादत महाराज आ गया, नहीं लगाई बार।
जति सती की जगत के, दरबार में हुई सुनाई ।। 3 ।।
जहाँ मौत की त्यारी थी, वहाँ भूप जगतसिंह आया।
इनको मौत सजा नहीं होगी, ये सन्देश सुनाया।
इस घटना में शामिल नहीं, जगदेव पंवार बताया।
दुष्ट मार के बीरमती ने, अपना धर्म बचाया।
भालोठिया कहे गलती सारी,जामवती की पाई ।। 4 ।।

सज्जनों ! राजा ने दरबार लगाया व घटना पर विचार कर दोनों को निर्दोष घोषित किया । पुलिस सुस्ती का जायजा लिया तथा आगे ऐसी घटना न होने पाये उसके निर्देश दिये। इस प्रकार जति सती की जीत हुई ।


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