Humorous Jokes in Haryanavi/नाई, चमार आदि दूसरी जातियों पर चुटकुले
खात्ती की बहू
एक बार एक गांव में एक खात्ती ने अपनी घरवाली की पिटाई कर दी । खात्तिण जा पहुंची कूऐं में छ्लांग लगाने - पर कूऐं पर पहुंच कर वो डर गई और वहीं बैठ कर रोने लगी । गांव की कुछ और औरतें वहां पर इकट्ठी हो गई और उससे पूछने लगी - "आंहे, खात्ती नै तू क्यूकर पीटी - उसनै तेरै थप्पड़ मारे, लात-घूसे मारे अक डंडे ?"
खात्तिण सुबक-सुबक कै बोल्ली - "उस अनपूते धोरै के राछां का तोड़ा सै ?"
खात्ती - बढ़ई
तोड़ा - कमी
भैंस की खरीददारी
पहली बार ब्याई हुई भैंस को "खार-की" कहा जाता है ।
कई चमार भैंस खरीदने एक गांव में चले गए, उनको एक "तुरत की ब्याई" भैंस की जरूरत थी । एक जगह घणे सारे जाट हुक्का पीवैं थे । एक चौधरी नै बूझ लिया - " रै कित जाओ सो ?"
एक चमार बोला - "चौधळी साब, एक भैंस लेणी सै"
चौधरी - किसी (कैसी) भैंस लोगे ?
चमार - ब्या रही हो चाहे कितनी-ऐं बै, पर लेणी सै खार-की !!"
चमार की ससुराल
एक चमार पैदल चलता-चलता सात कोस दूर अपनी ससुराल पहुंच गया । उसकी सास बूझण लागी - "बेटा, पाहयां (पैदल) आया सै के?"
चमार नै जवाब दिया - "ना, पहल्यां चार कोस तै पाहयां चाल्या, पाछै नहर की पटड़ी पै चढ़ लिया" !!
बाद में उसकी साळियों ने उसके साथ मजाक करने की सूझी । रोटी बनाते वक्त आटे में कुछ लोगड़ (रुई) मिला दिया और उसकी रोटियां बना कर उसकी थाली में रख दी । भूखा मरता वो सारी रोटी खा-ग्या । फिर बाद में उसकी एक साली बोली - " देख हे, यो तै लोगड़ नै बी खा-ग्या" । दूसरी बोली - "मरै सै भूखा, यो तै सौड़ नै बी खा ज्यागा !!
भोले चमार
घीसू चमार गहरी नींद में सोवै था । उसनै आपणी भैंस एक कच्चे कोठड़े में बांध राखी थी । रात नै चोर आये, उन्हैं कच्ची भीत का कुछ हिस्सा तोड़ दिया अर भैंस नै खोल ले गये ।
आगलै दिन घीसू गया थाने में रिपोर्ट लिखवावण । थानेदार ने बूझा - रै, किस टाइम हुई चोरी ?
घीसू घबरा कै आपणी तोतळी जुबान में बोल्या -
अळ साहब, तारे भौंसें थे, कुत्ते चमकैं थे अर भैंस नै तोड़ कै चोर भीत नै ले-गे !!!
(असल में सही वाक्य यूं होना चाहिए था : साहब, तारे चमक रहे थे, कुत्ते भौंक रहे थे, और भीत (दीवार) को तोड़कर चोर भैंस को ले गए ।)
"गऊ-का-जाया"
एक चमार ने सोचा कि कुछ नया किया जाये । उसने दो दरांती लेकर अपनी दोनों कनपटियों के साथ जोर से बाँध ली और अपनी चमारी से बोला - "अळ, देख मेरे सींग, ईब मैं आंक्कल (सांड) बण-ग्या" । चमारी बोली - "न्यूं बणें तैं के हो सै ? कुछ कर-कै तै दिखा !"
चमार अपने झौंपडे के पास गया और उसकी छान को लगा अपने 'सींगों' से खुरचने । पास ही उसका चूल्हा जल रहा था - छान (झौंपड़ी) से कुछ फूस चूल्हे में गिर पड़ा और आग लग गई | दोनों दरांती उलझ गई छान में और चमार लगा चिल्लाने । चमारी भी चिल्लाई - बचाओ, बचाओ ! चमारी की चिल्लाहट सुनकर गाँव के लोग वहां भाग कर आये । कईयों ने चमारी से पूछा - इसकै के हो-ग्या?
चमारी बोली "अळ, यो गऊ का जाया मरैगा जळ कै !!!
"तन्नैं आगली बै कोनी ल्यावां"
एक बै भाई, एक गाम में चमारां कै कोए छोटे बाळक की मौत हो गई । अर दोफाहरै-सी चाल पड़े उसनै दाबण ।
जब पहुंच गए बणी में, तै भूंडू चूड़े नै एक बड्डा-सा खढ़ा खोद दिया । उस खढ़े नै देख कै कल्लू चमार बोल्या - "ए... यो तै भोत बड्डा खढ़ा, इसमैं तै दो बाळक आ-ज्याँ !!
दूसरा चमार बोल्या - देख, कितणा भूंडा बोल्या सै, तन्नैं आगली बै कोनी ल्यावां !!
मां का जमाई !
भाने चमार का छोरा सुक्खा निरा अनाड़ी था । उसका ब्याह भी हो गया पर उसको ‘बटेऊ’ और ‘जमाई’ का फर्क पता नहीं था ।
सुक्खा अपनी ससुराल गया और वहां उसको खूब खांड-बूरा नसीब हुई । दो दिन बाद जब वो अपने गांव उल्टा आया तो उसकी मां ने उसको रोटी और चटनी खाने को दी । उसनै मां को कहा - "मां, थोड़ी सी बूरा घाल दे" । मां बोली - "बेटा, बूरा तै जमाई कै घाल्या करैं" ।
सुक्खा बोला "तै जमाई समझ कै घाल दे बूरा" !!
"तू क्यूकर रांड हो-गी?"
घासी चमार का एक ही बेटा था - भूंडू (जो कि ब्याह राख्या था) । भूंडू था निरा बावळी-बूच ।
घासी चमार का देहान्त हो गया और उसकी घरवाली रोते-रोते जोर-जोर से चिल्लाती रही - हाये, मैं रांड हो गई, हाये मैं...."
एक महीने बाद जब भूंडू शाम को गांव के बाहर "जंगल-जोहड़" खातिर गया तो वहां गांव के कुछ नौजवान मिले, उसतैं बोले - "अरै भूंडू, थोडी हाण पहल्यां तेरी बहू तै रांड हो-गी ।"
भूंडू भाग कर घर आया जहां उसकी मां और उसकी बहू दोनों बैठी थी । भूंडू जोर-जोर से रो कर अपनी मां तैं बोल्या - "ऐ मा, सारा गाम कहै सै अक या तै रांड हो-गी" । उसकी मां बोली "तू तै यो रहया मेरै धोरै, फिर तेरी बहू क्यूकर रांड हो-गी?"
भूंडू फिर सुबकता-सुबकता बोल्या "मेरा बाबू मरया उस दिन बी तै मैं तेरै धोरै-ए बैठ्या था, फिर तू क्यूकर रांड हो-गी?"
तिप्पन चमार
अब तो भोले-भाले चमार कम ही रह गए हैं । सच्ची बात है - एक गांव में एक चमार हुआ करता था जिसका नाम था ’तिप्पन’ । गर्मी के दिन थे, रात को अपनी मूंज की चारपाई पर लेटा था, हल्की सी गुदड़ी बिछा रखी थी । खटमलों ने उसे सोने न दिया । गुस्से में आकर बोला "अळ सुसळो, आज के तै तुम नहीं, के मैं" । और अपनी गुदड़ी जमीन पर रखकर उसको आग लगा दी । सारे गांव को यह खबर लग गई और आज भी गांव वाले चटकारी लेकर यह कहते हैं:
"तिप्पन चमार तेरी गूदड़ी जळै"
"अळ के करूं किसान मेरै जूं सी लड़ैं"
बुलडोजर
गांव के बाहर सड़क पर चमार ने एक बुलडोजर चलता देख लिया । उसने पहली बार बुलडोजर देखा था । उसने सोचा कि यह कोई रेल का इंजन होगा । हांफता-हांफता घर आया और घरवालों को बोल्या - "सारे के सारे छात्यां (छतों) पै चढ़ ज्याओ, एक रेल राह भूल रही सै" !!
मौज
एक बै दो चमारां के छोरे एक मोटरसाईकिल पै बैठे जावैं थे । चलाणियां ने एकदम तैं खड़े ब्रेक मारे अर पाच्छै बैठे छोरे नै बोल्या - "उतर ! पाच्छै एक मूमफळी पड़ी सै, ठा ले ।"
वो छोरा ठा ल्याया । मूमफळी फोड़ी, उसमैं दो दाणे लिकड़े । एक-एक दाणा दोनुआं नै ले लिया ।
आगला बोल्या "आपणी गैल रहगा तै न्यूं ऐं मूमफळी खावैगा अर मौज करैगा !!"
पंचायत - ब्याह की समस्या
घणे साल पहल्यां की बात । गाम में पंचायत हुई - उसमैं मुद्दा यो था अक ब्याह में टाइम घणा लागण लाग-ग्या, इसका के समाधान हो?
सारा गाम इकट्ठा हो-ग्या । सरपंच नै कही अक भाई सलाह दो । किसै नै कही कि बाजे पै रोक लगा दो - ये नाचण आळे भोत घणा टाइम लेवैं सैं । किसै ने कहया अक पांच आदमियां की बारात होनी चाहिये । एक बोल्या कि पंडित तैं कहो अक फेरे करवावण में कम टाइम लगावै ।
घीसू चमार बोल्या - अळ औळ (और) बात तै साळी (सारी) ठीक सैं, पळ (पर) ब्याह में सब-तैं घणा टाइम लेवैं सैं भाती - अळ ये भाती गाम के होणे चाहियें !!
"एक तै जरूर मरैगी"
मूळा कुम्हार की दो छोरी न्यारे-न्यारे गामां में ब्याह राक्खी थी । एक बै मूळा दोनूं छोरियां तै मिलण-फेटण चल्या गया ।
पहल्या वो बड्ड़ी छोरी धोरै गया, उन्हैं कुछ खेती-बाड़ी कर राक्खी थी, वो बोल्ली - बाबू, ईब-कै रामजी नहीं बरस्या, तै मैं तै कतई मर-गी, ईब-कै हमनै खेती घणी कर राखी सै ।
मूळा दूसरी छोरी धोरै गया, तै वो बोल्ली - बाबू, ईब-कै भांडे घणे पाथ राखे सैं, जै रामजी बरस ग्या, तै मैं मर-गी ।
मूळा घरां आ-कै आपणी कुम्हारी तैं बोल्या - भागवान, चून (आटे) का कट्टा त्यार कर ले, एक छोरी तै जरूर मरैगी !!
जाट का गुड़ और तेली की बोतल
एक बै जाट और तेली नै आहमी-साहमी (आमने-सामने) दुकान खोल ली - जाट नै गुड़ की अर तेली नै तेल की ।
एक दिन दोफाहरे ताहीं उनकी किस्सै की बिक्री ना हुई, तै दोनूंआं नै यो फैसला करया अक बारी-बारी एक दूसरे की दुकान पै जा-कै एक दूसरे की बोहणी करवा देवैंगे ।
तै पहल्यां तेली गया जाट की दुकान पै, अर बोल्या - "भाई, एक बोतल गुड़ दिये" । जाट बोल्या - "अरै बावळी-बूच, गुड़ बोतल के हिसाब तैं नहीं, किलो के हिसाब तैं मिल्या करै - जा फिर दुबारा आ ।"
तो तेली फिर आया और बोल्या - "भाई, एक किलो गुड़ दिये बोतल में" ।
जाट फिर बोल्या - "ना भाई, तेरै तै कोनी समझ आई, तू न्यूं कर अक तू बैठ मेरी दुकान पै - अर मैं गुड़ लेण आऊंगा" ।
तेली जाट की दुकान पै बैठ-ग्या अर जाट आया गाहक बन कै ।
जाट बोल्या - भाई, एक किलो गुड़ दिये ।
तेली सुनते ही बोल्या - "बोतल ल्याया सै" ?
जाट और राजपूत
एक बै जाट और राजपूत में बहस छिड़ गई अक कौन बड्डा । जाट बोल्या- बता तू क्यूकर बड्डा ?
राजपूत - मैं ठाकुर, अर राजपूत ।
जाट - मैं चौधरी, अर आंडी जाट ।
राजपूत - मैं छत्री (क्षत्रिय) ।
जाट - मैं तम्बू !
राजपूत - यो 'तम्बू' के होवै है ?
जाट - यो तेरी 'छतरी' का फूफा !!
चौधरी अर 'कुकरेजा साहब'
बात पै बात कहण मैं, बात म्हां तैं बात काढ़ण मैं अर आपणी बात नै ऊपर राखण मैं जाट कौम का कोए मुकाबला नहीं । अर उसमैं भी जै रोहतकिया जाट हो तै साहमीं आळे की खैर नहीं ।
एक बै रोहतक की एक कालोनी प्रेम नगर में एक चौधरी का लंब्रेटा स्कूटर किमै खराब सा हो रहया था अर वो गळी में उसकै किक मारण लाग रहया था - खिच...खिच..खिच - पर स्कूटर स्टार्ट ए ना होवै था । चौधरी कै पसीना आ-ग्या अर वो न्यूं बी सोचण लाग-ग्या अक लोग के कहैंगे - पुराणा खटारा स्कूटर ले रहया सै ।
इतने में उसका पंजाबी पड़ौसी "कुकरेजा साहब" आ-ग्या । चौधरी नै स्कूटर गैल उलझा ओड़ देख कै स्वाद लेण का जी कर-ग्या, धोरै आ-कै बोल्या -
कुकरेजा - चौधरी साहब, स्कूटर खराब हो-ग्या के ?
या बात सुण-कै चौधरी का जाटपणा ताजा हो-ग्या अर बोल्या - "थारी बी तै छोरी भाज-गी थी पाछलै साल" ।
कुकरेजा कै करंट सा लाग्या अर बोल्या - चौधरी, या के बात होई ?
चौधरी - भाई, न्यूं-ऐं बात म्हां तैं बात लिकड़ा करैं सैं - वो थारा नुकसान था, यो म्हारा सै !!
तलै धलती-धालती (धरती-धारती) कोन्या
एक ब चमार अर चमारी छात प सुत्ते थे ! रात न मी अर आंधी आगी ! दोनु ताव्ले ताव्ले गुड्डे समेटन लाग गे ! आंधी त वा बांस आली सीढ़ी पड़ गी थी ! जुकर ए चमार न तावल तावल म सीढ़ी प पाँ धरा , सीधा आँगन म जा क गध पड्या !
पड्या पड्या अपनी बहु न बोल्या , एल ! देखिये ध्यान त उतरिये तलै धलती-धालती (धरती-धारती) कोन्या मखा !!
.
Dndeswal 14:41, 20 May 2008 (EDT)
Back to Index Humorous Jokes in Haryanavi