Jat Chalisa
Wiki version of this book has been prepared by - Dayanand Deswal दयानन्द देसवाल |
प्रकाशक:
ओमपाल आर्य
पूर्व प्रवक्ता (संस्कृत)
गांव व डा० मिताथल (भिवानी)
वर्तमान - विद्या नगर, भिवानी-127021 (हरयाणा)
मो० 9467109716
मूल्य: 25 रुपये
मुद्रक:
आचार्य प्रिंटिंग प्रेस , दयानन्दमठ, गोहाना रोड, रोहतक-124001
फोन: 01262-276874, 277874
आरती जाट - देवता |
जय जग जाट हरे, स्वामी जय जग जाट हरे।
दो दो गज की मूंछे, कान्धै लट्ठ धरै।। जय।।
पंचों का सरपंच कहाये, हाथ रहे चलता। स्वामी।
देता भूत उतार तभी, जो तीन पांच करता।। जय।।
अन्न विधाता कहलाता तू, हे हलधर नामी। स्वामी।
तुम बिन बात बने ना मेरी, लट्ठमार स्वामी।। जय।।
चिलम-तम्बाकू और हुक्के की, धूप लगे तेरी। स्वामी।।
मठा-दही के साथ कलेवा, दो गुड़ की पेड़ी।। जय।।
तुम हो निशाचरों के मारक, निर्बल के साथी। स्वामी।।
सोया भूत जागता जाये, जै पड़ जावे लाठी।। जय।।
सूरजमल सी चाल चले तू, नाहर सा गरजे। स्वामी।
भगतसिंह बनकर तू इंकलाब करदे।। जय।।
दगाबाज और जालसाज के, भर देता भूसा। स्वामी।।
चोर, उचक्का, झूठा भागे, सात - सात कोसा।। जय।।
रोड़ा, राह बने ना कोई, जो खेंच कान देता। स्वामी।।
जब-उठै तलब दूध की, पी एक भैंस लेता।। जय।।
जो ये पढ़ै आरती जाट की, तो आरक्षण मिलज्या। स्वामी।।
साथ सभी के जाट हवासिंह का मन भी खिलज्या।।
समर्पण
तन मन धन से जिनका जीवन, जाति के हित अर्पित है।
‘जाट चालीसा’ सही जाट का, जाटो ! तुम्हें समर्पित है।।
दो शब्द |
आज के आपाधापी के इस युग में एक दूसरे को नीचा दिखाकर ऊपर बढ़ने की होड़ सी लगी हुई है। बहुत ही कम ऐसे महापुरुष मिलेंगे जो बिल्कुल निःस्वार्थ भाव से काम करने की भावना रखते हैं। यदि कोई सज्जन ऐसा काम करने भी लग जाए तो समाज की धारणा कुछ ऐसी बन चुकी है कि ऐसे व्यक्ति पर बड़ी कठिनता से विश्वास जम पाएगा। आज का समाज भिन्न-भिन्न वर्गों, दलों, सम्प्रदायों तथा जातियों में बंटा होकर अलग-अलग ढ़ंग से उनमें अपने आप को स्थापित करके पैसा या पद प्राप्त करना चाहता है। भोले भाले एवं सरल स्वभाव के लोग उनके चंगुल में फंसते रहते हैं तथा चालाक लोग चिकनी-चुपड़ी बातें लगाकर उनसे पैसा ऐंठते रहते हैं। तरह-तरह के षड्यन्त्र एवं ढोंग करके सीधे-साधे लोगों को अपने वाग्जाल में फंसाकर सरेआम लूटते रहते हैं। कुछ समाज के ठेकेदार समाज सुधार का नाम लेकर भिन्न-भिन्न तरीके से अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं परन्तु जब उनका असली चेहरा सामने आता है तो लोग हाथ मलते रह जाते हैं।
ऐसे ही समय में मेरी एक दिन पूर्व कमांडैंट (सी.आर.पी.एफ.) श्री हवासिंह सांगवान से मुलाकात हो गई। वो जाटों का इतिहास लिख रहे थे। मैंने उनसे जातिवादी दृष्टिकोण से उठकर समाज की बात करनी चाही तो वे कहने लगे कि आजकल समाज के ठेकेदारों की कमी नहीं हैं तथा अपनी-अपनी भिन्न-भिन्न जातियों के भी अनेक संगठन बने हुए हैं। यदि पिछड़े हुए हैं तो केवल जाट ही हैं जो जातियां जाटों के साथ मिलकर काम करती रही हैं उन सबने आरक्षण का लाभ मिल चुका है और वो जाट जाति से बहुत ही आगे निकल चुकी हैं। इसके इलावा उन सबने एक गैर जाट मंच भी बना लिया है जो कि केवल जाट से विरोध करना ही अपना कर्त्तव्य समझता है। अतः हमारा भी कर्त्तव्य बनता है कि हम भी जाटों में एकजुटता की चेतना जागृत करें तथा जाटों को जो आरक्षण से वंचित कर दिया है उसको फिर से प्राप्त करने का प्रयास करें। इसी प्रकार अन्य कई बातों से प्रभावित होकर मैं कमांडैंट हवासिंह के साथ जाट आरक्षण अभियान से जुड़ गया तथा जाटों को जागृत करने की मुहिम छेड़ दी। अब तक हम लगभग समस्त हरयाणा में भिन्न-भिन्न जगहों पर पंचायतें, रैलियां, नुक्कड़ सभाएं, महासभाएं आदि कर चुके हैं जिसके परिणामस्वरूप हरयाणे का जाट भी आरक्षण को समझ कर इसके लिए तत्पर होने लग गया है। हमने भिन्न-भिन्न स्थानों के जाटों से बात की तो ऐसा पाया कि-
- रोम-रोम में कौम जाट के भरी जवानी है।
- फिर भी बिखरी रहै यही इसकी नादानी है।।
अतः हमारी जाट जाति के गुणों को देखते हुए कुछ कविताओं के रूप में मैंने जाटों को समझने एवं समझाने का प्रयास किया है कहां तक सफलता मिलती है वह तो आने वाला समय ही बताएगा, क्योंकि-
- ना छंदों का ज्ञान मुझे, ना दोहा या चौपाई का।
- ना ही राग और ना ही रागनी, ना ज्ञान किसी कविताई का।।
- ना भाट, कवि, भजनी व सांगी, ना साधु संत वैरागी हूं।
- थोड़ी-थोड़ी जट विद्या से मैं बणग्या खट रागी हूं।।
- चलते-चलते सोते जागते ध्यान में कुछ आ जाता है।
- कभी-कभी लिख देने से वह छंद एक बन जाता है।।
इस जाट जागृति अभियान का उद्देश्य जाटों को एकजुट करना है। यदि जाट आपसी झगड़े, टांग खिचाई, ताश खेलना, नशे करना आदि व्यसनों को त्याग कर संगठित रूप से लक्ष्य बनाकर निकल पड़े तो हर असम्भव कार्य को सम्भव कर सकते हैं। इसी उद्देश्य की सफलता हेतु-
- जाट को आज जगाना है।
- भेड़ नहीं ये शेर हैं, इनको याद दिलाना है।।
- फिर से हुंकार लगा दो, अब बहरों को समझा दो।
- दुनियां को दिखला दो, जाट ना रहा दिवाना है।। जाट को.......
- आपस में लड़ना छोड़ो, हर दिल से दिल को जोड़ो।
- आगे ही आगे दौड़ो, गर फिर नाम कमाना है।। जाट को.......
जाट संतोषी ज्यादा है जो कि आलस्य का ही दूसरा रूप होता है। जाट की अभी तक भी लगभग यही धारणा रही है-
- देख बिराणी चौपड़ी क्यों ललचावै जी।
- रूखी सूखी खाय कै ठंडा पानी पी।।
जाट के घर गाय या भैंस होती है तो वह घी, दूध, दही, लस्सी, मलाई आदि खा-पीकर सदा मस्त रहता है। इसी में वह अपनी मूंछों पर मरोड़ी लगाकर, ठाठ बाठ से रहना समझता है और कहता है - जिसके घर काली, उसकै सदा दीवाली।
जाट के इसी संतोषी स्वभाव के कारण लुटेरा वर्ग फलता-फूलता रहा है, जो कि बिना कुछ परिश्रम किए ही कमेरा वर्ग को बहक फुसलाकर धार्मिक पाखण्डों द्वारा इनको ठग कर अथाह धन-सम्पत्ति इक्ट्ठी करता रहा है। इन बगुलाभगत ठगों का केवल एक ही उद्देश्य होता है - ‘राम-नाम रटना, पराया माल अपना।’ अथाह धन सम्पत्ति हो जाने पर भी इनको संतोष नहीं होता। ये सब चोर-चोर मौसेरे भाई होते हैं। इसके विपरीत प्रतिकूल परिस्थितियों में भी भोला-भाला जाट किसान निःस्वार्थ भाव से बगैर किसी फल की इच्छा से (जोकि इन पाखण्डियों द्वारा ही सिखाया हुआ होता है) अपना काम करने को ही धर्म समझता रहा है। यह सदा आडम्बरों से दूर रहता रहा है परन्तु फिर भी कभी-कभी इन पाखण्डियों के चुंगल में फंसकर तरह-तरह के अंधविश्वासों में अपने आपको ठगता रहता है। यह कुछ जाट की अज्ञानता के ही कारण होता है।
इतना कुछ होते रहने के बावजूद भी जाट को अगर जागृत कर दिया जाए, इसके संतोषी स्वभाव को छुड़ा दिया जाए तथा इनको प्रेरित करके अपनी जाति की गौरवगाथा बताकर ताकत व बलिदानों की पहचान करा दी जाए तो -
- जाट हिलादे, जाट मिलादे, जाट करादे ठाठ-बाट।
- जाट गिरादे, जाट उठादे, जाट दिलादे राजपाट।।
- और अगर जाट के जी में आज्या तो.....
- यदि जाट कै जी मैं आज्या, धरती आसमां मिला दे जाट।
- आगे कदम बढ़ा ले तो, हर मंजिल सुलभ बना दे जाट।।
- हाथ से हाथ मिला ले तो, पर्वत भी ठा दिखला दे जाट।
- आपस के बैर भुला ले तो, सबको खुशहाल बना दे जाट।।
- कट-कट जो बढ़ता ही रहा, बस ज्या तो फूल खिला दे जाट।
- मिल जुल कै मेल बढ़ा ले तो, धरती को स्वर्ग बना दे जाट।।
- ओमपाल ज्ञान के दीप जला, ज्योत से ज्योत जलादे जाट।
पढ़ लिखकर हो ज्या अगर सफल, सच्चा इतिहास बना दे जाट।।
जाटों में कुछ चेतना आएगी, वे अपने ही इस जाट जागृति अभियान में बढ़-चढ़कर अग्रसर होंगे, इसी आशा के साथ जाट जाति का सदैव अपना-
- ओमपाल आर्य, पूर्व प्रवक्ता (संस्कृत)
जय जाट !
प्रस्तावना |
जब जनवरी 2008 में हमने हरयाणा में जाट आरक्षण की मुहिम चलाई तो मेरे चंद एक साथियों में से चौ० ओमपाल आर्य भी एक थे। इसी समय मुझे ज्ञात हुआ कि ओमपाल आर्य में साहित्य को समझने और गाना लिखने का टेलेंट भी है। इसलिए मैंने उन्हें जाट आरक्षण के बारे में एक कैसेट के लिए गाने लिखने का आग्रह किया तो इन्होंने तुरन्त ही चार गाने लिख कर दिए और इससे पहले इसी कैसेट के लिए मा० जयप्रकाश ने भी चार गाने दे रखे थे। इस प्रकार जाट आरक्षण के प्रचार के लिए ‘‘खड़ा हो ज्या जाट’’ नाम का कैसेट तैयार हो गया। इसी कैसेट की 12000 कैसेटें चै० उमरावसिंह सांगवान पूर्व ए.सी.पी. दिल्ली पुलिस ने तैयार करवाई जो लगभग पूरे हरियाणा और दिल्ली के जाटों में गूंजते रहे। इसी कैसेट के आधार पर 4000 सी.डी. भी तैयार करवाई जो प्रचार का माध्यम बनी। इसी टेलेंट को देखते हुए मैंने ओमपाल आर्य से जाटों के बारे में गाने लिखने के लिए आग्रह किया तो इन्होंने चंद ही दिनों में सैकड़ों गाने बनाकर तैयार कर दिए। इन्हीं गानों में से 40 गाने छांटकर एक ‘जाट चालीसा’ के नाम से पुस्तिका छपवाने का निर्णय लिया गया। परिणामस्वरूप यह ‘जाट चालीसा’ आज आपके हाथों में है, जिसका उद्देश्य जाट कौम में अपने अधिकारों के लिए जागृति पैदा करना है।
सभी जाट भाइयों से प्रार्थना की जाती है कि इस जाट चालीसा को घर-घर तक पहुंचाने का अपनी कौम का सेवा भाव से प्रयास करें तथा हर एक जाट भाई को यह अधिकार दिया जाता है कि इन गानों के आधार पर वे कैसेट/सी.डी. तैयार करवा सकते हैं।
जय जाट !
हवासिंह सांगवान
पूर्व कमाण्डैंट (सी.आर.पी.एफ.)
गांव व डा० मानकावास, तह० चरखी दादरी
जिला भिवानी (हरयाणा)
1. देव स्तुति |
ओम नमः श्री शिव शंकर को और पार्वती माता को।
पुष्टिदायक गऊमाता, जग जननी धरती माता को।।
तन मन धन प्रदान करनिए सब देवों को नमो नमः।
जो कुछ देते वही देव हैं उन देवों को सदा नमः।।
देवों से भी बड़े देव हरदम जो देते रहते हैं।
कष्ट कमाई, सदा बंटाई, जाट देवता नमो नमः।।
तीस हजार गांव कस्बों व शहरों में रहने वाले।
देश विदेशों में जाकर हर दुःख सुख सहने वाले।।
छः सौ खापों की चैधर कर न्याय सही करने वाले।
चार हजार गौत नातों से जाट सम्बन्ध रखने वाले।।
उस जाति का गर्व मुझे है जो सबसे बलवान है।
सदा कमा के खाने वाली हरदम रही महान् है।।
मैं जाटों की गौरव गाथा को सही सुनाना चाहता हूं।
उसका सच्चा इतिहास खाश सबको बतलाना चाहता हूं।।
धरती ही कर्म, धर्म धरती, धरती ही भरा खजाना है।
धरती ही जननी इनकी, धरती में अन्न उपजाना है।।
धरती ही रक्षा हित इनका होता सब ताना बाना है।
कभी सीम कभी सीमा पर जाटों को बैठा पाता हूं।।
सिर कलम चाहे हो जाए धरती की लाज बचाता हूं।।
भूखे प्यासे भी रहकर जो भरते हैं पेट जमाने का।
इनको कभी टेम नहीं मिलता, ना पीने का या खाने का।।
सुबह राम का नाम लिया फिर दिन और रात कमाने का।
सर्दी गर्मी बरसात भी हो आराम कभी नहीं पाने का।।
इन धरतीपुत्र जाटों की मैं बात बताना चाहता हूँ।
सुना-सुना के कथा इन्हें कुछ होश में लाना चाहता हूँ।।
2. मैं क्या चाहता हूँ ? |
चाह नहीं मुझे राजपाट धन दौलत और खजाने की,
ना मुक्ति की इच्छा है और ना ही स्वर्ग में जाने की।
जाति के गौरव गाथा के गीत बनाना चाहता हूँ,
गाने का कुछ ज्ञान नहीं, मैं फिर भी गाना चाहता हूँ।।
भूख गरीबी बेकारी ना बीमारी का नाम रहे,
अनपढ़ता अज्ञान मिटे ना चोर जार शैतान रहे।
धर्म देश से पहले जाति, ये बतलाना चाहता हूँ,
जो कुछ भी है जाति की खातिर भेंट चढ़ाना चाहता हूँ।।
दुर्गम हो चाहे कोई रास्ता, हवा चाहे अनुकूल ना हो,
कंकर, पत्थर बिखरे हों, चाहें ताप धूप व शूल भी हो।
आंधी वर्षा सर्दी गर्मी सें ना घबराना चाहता हूँ,
मैं धीरज के साथ सभी कर्त्तव्य निभाना चाहता हूँ।।
आन बान और शान की खातिर अर्पित है तन, मन व धन,
बिना आन और शान के यारों सब कुछ हो जाता है निर्जन।
दुःख से पीडि़त मानव मन में प्यार बढ़ाता चाहता हूँ,
वन, उपवन मैदानों में मैं फूल खिलाना चाहता हूँ।।
ढोंग और अन्धविश्वासों को जड़ से जमा उखाड़ेंगे,
लोभ और लालच के कारण दुनियां नहीं उजाड़ेंगे।
सुधरेंगे और सुधारेंगे यह अलख जगाना चाहता हूँ,
हर प्राणी की सांस-सांस में यह आस जगाना चाहता हूँ।।
ज्ञान और विज्ञान बिना ना और रास्ता न्यारा है,
सच्चा सुख भी वहां मिलेगा जहां पै भाईचारा है।
ओमपाल यह भविष्य हमारा है मैं यह समझाना चाहता हूँ,
दुनियां में अमन फैलाने का मैं सन्देश सुनाना चाहता हूँ।।
3. जाट कौन हैं ? (तर्ज - रागनी) |
शिव-पार्वती संवाद (देव संहिता के अनुसार)
पार्वती बुझै शिवजी तैं, जाट कौन ये होते हैं?
करते क्या, क्या खाते-पीते, और कहां ये सोते हैं ?
कैसे जन्मे, कौन पिता और कौन हुई महतारी है?
जन्म स्थान कहां है इनका और कैसे गणधारी हैं?
चाल चलन व धर्म कर्म पूजन में कैसे होते हैं।।
करते क्या...........
शंकर बोले पार्वती से, हे देवी धर ध्यान सुनो,
जट जाति का जन्म कर्म मैं सत्य कहूं कर कान सुनो।
सीधा सरल स्वभाव है इनका, कर्म ही धर्म समान सुनो,
हरदम मेहनत करने वाले ना करते अभिमान सुनो।।
दूध-दही घी खान-पान है, टाट खाट पै सोते हैं।।
करते क्या...........
निडर व बुद्धिमान, पराक्रमी, श्रेष्ठ और सत्यवादी हैं,
देवों, दिक्पालों, भूपालों से पहले आबादी है।
संघ बनाके रहवै इकट्ठे, चाहवैं सदा आजादी हैं,
जागरूक, बलवान गजब पोशाक पहनते सादी हैं।।
सबसे बड़ी उपाधि से ये छत्रधारी होते हैं।।
करते क्या...........
सृष्टि के आदि में घटना एक घटी ये भारी है,
मालिक की माया से प्रगट हुआ पुरुष चमत्कारी है।
ब्रह्मपुत्र दक्ष की कन्या गणी बनी महतारी है,
जट जाति जड़ जगती की फिर बनी ये प्रजा सारी है।।
यह अद्भुत इतिहास सुना शिव शंकर जी खुश होते हैं।।
करते क्या.....
देव-पुरुष, विद्वान्, ब्राह्मण यह नहीं बताना चाहते हैं,
इतिहास पुराणों में झूठे-मूठे किस्से लिखवाते हैं।
देव संहिता में लिखी हुई ये बातें सदा छिपाते हैं,
सत्य बात जाटों की कहते हुए बहुत शर्माते हैं।।
ओमपाल सुना ये हाल जाट का बाग-बाग हो जाते हैं।।
करते क्या.....
4. विकास कैसे ? (तर्ज: मन्नैं आवै हिचकी.......) |
सुनो सही इतिहास जाट का, सुनो सही इतिहास।
कैसे हुआ विकास और फिर कैसे हुआ विनाश।।
हेरः आर्यव्रत था देश हमारा भूमण्डल पै राज,
छोटे-छोटे रजवाड़ों पै एक बड़ा महाराज।
रहा जो चक्रवर्ती खास।।
कैसे हुआ............
सोने की चिडि़यां कहलाता था यो देश हमारा,
धन धान्य सम्पन्नता का था बहुत बड़ा भण्डारा।
एक ही ईश्वर में विश्वास।।
कैसे हुआ............
घी-दूध की नदियां बहती थी कुदरत की माया,
भारत का व्यापार इस सारे भूमण्डल में छाया।
ऐसा रहा सदा प्रयास।।
कैसे हुआ............
इसी सम्पन्नता के कारण यहां आने लगे लुटेरे,
मुगल मठान अंग्रेजों के संग आए बहुत घूमेरे।
होते रहे युद्ध अभ्यास।।
कैसे हुआ............
पर आपस की फूट के आगे हम होग्ये लाचार,
लूटते पिटते रहे ना फिर भी छोड़ सके अहंकार।
इसलिए दासों के हुए दास।।
कैसे हुआ............
5. जाट का छोरा कैसा है ? |
हरदम है बेताज बादशाह, ना परवाह है लाठ की।
बालक हो चाहे छैल गाभरू, उमर चाहे हो साठ की।।
मूंछ मरोड़ी लाकै चालै, होता गजब डिठौरा सै।
हाली, पाली और रूखाली, सही जाट का छोरा सै।।
लंबी गर्दन नाक नुकीली, ऊंचा तगड़ा और बलवान।
चौड़ी छाती बदन गठीला, सही जाट की यही पहचान।।
चाल ढ़ाल मस्तानी होती, रंग से गौरा-गौरा सै।
बड़ा सजीला और रौबिला, सही जाट का छोरा सै।।
परहित में जो जान गंवा दे, अर्पित करदे तन मन धन।
खून पसीना बहा-बहा के, कर सकता सबको प्रसन्न।।
भूखा प्यारा रहकर भी, हिम्मत से भरा बखौरा सै।
सबकी रक्षा करने वाला, सही जाट का छोरा सै।।
स्वस्थ शुद्ध तन मन है इसका, नेक है इसका चाल चलन।
दया दृष्टि रखने वाला, सब जीवों को दे जीवन।।
ना ईर्ष्या व द्वेष का इसके अंदर कोई ढिंडौरा सै,
बाहर भीतर सदा एकसा, सही जाट का छौरा सै।।
6. जाट की सही पहचान |
आन-बान और शान की खातिर, तज देता जो प्राण है।
यही सही पहचान जाट की, यही सही पहचान है।।
देव वही जो देता रहता, कदे रहवै ना ठाली है।
अन्न-जल, सब्जी, दूध-दही-घी और देता हरियाली है।।
माली व रखवाली सबका, सबसे सदा महान् है।।
यही सही पहचान.........
मेहनत से यह कमा-कमा कै, खाता और खिलाता है।
पुलिस फौज में भर्ती होकै, सदा देश हित जाता है।।
ना पीछे कदम हटाता है और करता सही कमान है।।
यही सही पहचान.........
झट दे करै फैसला सबका, ना तेरा ना मेरा है।
सर्वमान्य सबको होता है, ना धर्म-कर्म का फेरा है।।
पंच जहां परमेश्वर होता, सबका रखता ध्यान है।।
यही सही पहचान.........
ईर्ष्या, द्वेष, कलह और झगड़े फैली फूट बीमारी है।
इसलिए यह तगड़ी जाति सबसे नीचे जा रही है।।
नहीं समझ में आ रही इसकै लगती नहीं लगाम है।।
यही सही पहचान.........
ओमपाल क्या ख्याल जाट को कैसे कहा लुटेरा था?
यही लुटेरा बणा दिया तो रहग्या कौन कमेरा था?
पाट्या कौनी बेरा उसका, होग्ये हम हैरान हैं।।
यही सही पहचान.....
7. जाट सबका सरदार |
जाट! तूं था सबका सरदार।
एक हाथ में हल रहा तेरे, दूजे में तलवार।।
जितने भी आक्रांता आए, मारपीट के तनै भगाए।
ना ले जाने पाए यहां से धन दौलत भण्डार।।
जाट तूं ........
कासिम, तुगलक, हिटलर, आया गौरी चाहे सिंकदर।
बाबर, अकबर, औरंगजेब ने, मानी तुझसे हार।।
जाट तूं........
बनके जो व्यापारी बंदर, चलके आए सात समंदर।
लोहगढ़ के उस किले के अंदर, झेल सके ना वार।।
जाट तूं........
तेरी अनुपम कथा पुरानी, बनके रह गई एक कहानी।
जानी कुछ अनजानी बन गई, बैरी बने हजार।।
जाट तूं........
टूट-फूट ने दे दिया घेरा, तूं कहलाया एक लुटेरा।
ओमपाल समय का फेरा, क्या करले करतार।।
जाट तूं........
ठाठ-बाट जाट जमींदार के गए।
जीतते रहे थे अब वे हार क्यों गए?
8. आया समय - जाटोत्थान का |
आया देखो आया यह समय जाट उत्थान का।
एक नया संदेशा लाया इस जाट वीर बलवान का।।
आरक्षण अभियान चला इसे गांव-गांव पहुंचाना है।
हर आंगन उपवन बन जाए हर घर को महकाना है।
नई रोशनी लाया भारत माता की शान का।।
आया देखो........
भारत के कोने-कोने में डंका यही बजाना है।
जाटों की गौरव गाथा को मिल जुल करके गाना है।।
भूमण्डल में पहुंचाना हम सबके लक्ष्य महान् का।।
आया देखो........
राज्य, जिला, हर नगर गांव के जाटों करके होश सुनो,
उठो, जागो, आगे भागो तन मन में भर जोश सुनो।
आपस के भेद मिटाना, यह सत्य वचन एक काम का।।
आया देखो....
नर-नारी, बूढ़े-बालक सब मिलजुल जोर लगाएंगे।
ओमपाल कर ख्याल जाट सब आरक्षण सुख पाएंगे।
गाएंगे अजब तराना पिफर सदा मान सम्मान का।।
आया देखो........
9. नए-नए रास्ते कैसे बनाए जाएंगे ? |
'(तर्ज: झूठ बोले कौवा काटे.....)'
जाट गाभरू छैल म्हारे जब आगै आवैंगे।
नए-नए रास्ते बना-2 के कदम बढ़ाएंगे।।
पढ़ लिखके हुशियार बनैं, गुण अवगुण पहचान सकैं।
लाभ-हानि और जमा-घटा के हर नुक्तों को जान सकैं।
ज्ञान और विज्ञान समझने जब लग जावैंगे।।
नए-नए रास्ते........
पढ़ण लिखण के साथ बोलना जब इनको आ जावैगा,
समझ-समझ कै हर उलझन को एकदम से सुलझावैगा।
कभी ना धेखा खावैंगे और नाम कमावैंगे।।
नए-नए रास्ते........
खेल-कूद में सफल रहैंगे, कभी ना हिम्मत हारैंगे,
तन मन से अर्पण हो अपना असली वक्त विचारैंगे।
सभी संवारैं काम सफलता हरदम पावैंगे।।
नए-नए रास्ते........
ओमपाल तत्काल संभल पहले आरक्षण पाना है,
हर मुद्दे को बारी-बारी हल करके दिखलाना है।
मिल जुल हाथ मिलाकै अब सब जौर लगावैंगे।
नए रास्ता बना-बना कै कदम बढ़ावैंगे।।
10. करो विचार नहीं तो पछताओगे |
(तर्ज: होए मैं सदके जावां)
जाट सभा में शामिल होके बैठो करो विचार, नहीं तो पछताओगे।
मिल जुल सोच समझके चालो, करो नहीं तकरार, नहीं तो पछताओगे।।
धोखेबाजी कौन करै सै, देता कौन सहारा सै?
हरदम साथ निभाने वाला, मित्र कौन हमारा सै?
जानो और पहचानो सबको, रहो सदा हुशियार, नहीं तो........
जिसने न देखा कदे खेत भी, होता किसा अनाज है?
हेरा-फेरी करने वाला बना आज महाराज है।
दगाबाज से टक्कर लेने सदा रहो तैयार, नहीं तो........
किसान हमारे जवान हमारे, फिर भी हम दुःख पाते हैं,
कामचोर, चालाक, चौपड़ी भी दो-दो बर खाते हैं,
पाखण्डी बुगला भक्तों से रहो सदा होशियार।। नहीं तो........
प्यारे-प्यारे बालक म्हारे, दिन और रात कमाते हैं,
सुख-सुविधा और समय बिना वे सदा पिछड़ते जाते हैं।
ऐसी तकनीक सिखाओ उनको, पिफरैं नहीं बेकार।। नहीं तो........
जनरल डिब्बे में पफंस रहे हैं, सीट सुरक्षित करी नहीं,
उनमें बैठे इसे लोग सैं, जिनकी हरकत खरी नहीं।
रिजर्व सीट कराके अपनी बनजाओ हकदार।। नहीं तो........
जाटों खाट खड़ी हो ज्यागी, नहीं तो मेल बढ़ालो तुम,
छोड़कै सब आराम नगर घर गाम-गाम में जा लो तुम।
हाथ मिलाओ ओमपाल सै करो कौम प्रचार।। नहीं तो........
11. आरक्षण हमारा अधिकार है |
(तर्ज: रागनी)
आरक्षण कोई मांग नहीं है, जाटों का अधिकार है।
बिना खेत हल कहां चलैगा, जाट हुआ बेकार है।।
ऊपजाऊपन खत्म हुआ, ना साधन रहा सिंचाई का,
खाद बीज भी महंगे होगे, बढग्या दाम दवाई का।
बैलों की जगह ईब ट्रैक्टर करते काम बिजाई का,
गाड़ी की जगह चली ट्राली ल्यावैं माल ढुलाई का।।
झाड़-बोझड़े मिटगे सारे, बढ़गी खरपतवार है।। बिना खेत........
एक साल साढ़ु में डांगर-ढौर चराएं जाते थे,
उनमें देशी खाद खिंडा कै कई बर बाहे जाते थे।
नौ बर मंडा, दस बर गंडा खेत खुदाए जाते थे,
गेहूं शरबती चना गोचनी, खूब उगाए जाते थे।।
भर-भर गाड़ी लाते थे, अब घटगी पैदावार है।। बिना खेत........
सुबह शाम करैं काम खेत में, दिन में पढ़ने जाते हैं,
होती घणी थकान रात पढ़ते-पढ़ते सो जाते हैं।
धर सकते ना ध्यान पढ़ाई में, नंबर कम आते हैं,
जाट लाडले, बिना दाखिले, दर-दर धक्के खाते हैं।।
जाते हैं बस पुलिस फौज में, दूर हुआ घरबार है।। बिना खेत........
पढ़ लिखकै जो बणगे अफसर, चालैं रोज हवाई मैं,
आधे आरक्षण में आके, करते मौज मलाई मैं।
आधां मैं तैं आधे रहगै, सदा जौर अजमाई मैं,
इधर पड़ां तो कुआं झेरा, उधर पड़ां तो खाई मैं।।
हेरः ओमपाल फिर भी ये कहते, समता का अधिकार है।।
बिना खेत हल कहां चलैगा, जाट हुआ बेकार है।।
12. श्री छोटूराम की बात |
मान ले रै जाट के दो बात मान ले
श्री श्री छोटूराम की किसान मान ले,
बोलना ले सीख दुश्मन को पहचान ले।।
दरिया जैसा दिल है तेरा पर्वत सी मजबूती है,
तूपफानों सी तेजी है और गति नदी सम होती है।
ज्योति है सूरज सी तेरी तूं सही ज्ञान ले।।
बोलना ले........
पीर, पफकीर, गुरु और चेला, तूं ही मालिक, बन्दा है,
शासक और शासित भी तूं ही, तूं ही साईं होन्दा है।
तेरे से सब कुछ जिन्दा है, ऐसा जान ले।।
बोलना ले........
हीन भावना त्याग जरा, उठ जाग और आवाज लगा,
तूं बेचारा नहीं रहेगा, जीने का ले सही मजा।
दगाबाज को देओ सजा ऐसा कर ध्यान ले।।
बोलना ले........
ओमपाल हक जो है म्हारा वो लेना सरकार से,
एक साथ मिल जुलकै मांगो बड़े प्रेम और प्यार से।
नहीं तो पिफर ललकार के लेने की ठान ले।।
बोलना ले........
13. जाट सरदार |
ऐ जाट वीर इस धरती पर तुझसा सरदार कहां होगा?
तेरी शक्ति से बढ़कर गुण का भण्डार कहां होगा?
जब से जीवन में आया तूने किस-किस ने आधार दिया,
माँ, गऊ मां और धरती मां, इन तीनों से प्यार किया।
इनसे बढ़कर और तेरा किसने उपकार किया होगा?
तेरी शक्ति.......
बैल के गैलां कमा-कमा तनैं अन्न धन के भण्डार भरे,
चलते चलते थके जाट तो घोड़े के स्वार बने।
फिर तेरे घरबार बने तेरा दरबार सजा होगा?
तेरी शक्ति.......
खोजी बनकर घूम गया तूं, नभ, जल, थल, मैदानों में,
हिम्मत कर चलता ही रहा तूं, हिमगिरी और खादानों में।
ए आदि ऋषि, धरती पुत्र, वैदिक आधार लिया होगा?
तेरी शक्ति......
ओमपाल तत्काल संभल उस गौरव को पहचान जाट,
भेड़ों में से निकल तूं अपनी शेर शान पहचान जाट।
मान चाहे मत मान जाट, इस बिन उ(ार कहां होगा?
तेरी शक्ति.......
14. कैसे थे जाट ? |
जाटों की बात कर लो, बातें बता रहा हूँ।
क्या-क्या थे ठाठ सुन लो, सबको सुना रहा हूँ।।
हीये ही इनके उपजा था ज्ञान का भण्डारा,
ऋषियों ने जो दिखाया वेदों का सार सारा।
देखो जरा नजारा दर्शन करा रहा हूं।।
क्या-क्या थे.....
बुद्धि व बल से मिलके गणराज्य थे बनाए,
न्यायप्रिय राजा प्रजा के हित लगाए।
बलिदान कर दिखाए, सच्ची बता रहा हूं।।
क्या-क्या थे.....
धन-धान्य की तो वर्षा होती रही सदा ही,
घी-दूध की भी नदियां कहते यहां बहाई।
सोने की चिडि़यां का ही दर्शन करा रहा हूं।।
क्या-क्या थे.....
ऊंचे पहाड़ों में से नदियों को खोद लाए,
जंगल थे या मरूस्थल, मैदान कर दिखाए।
घर ग्राम थे बसाए, खापों में जा रहा हूं।।
क्या-क्या थे.....
सरताज देश अपना खुशहाल था ये सारा,
ज्ञान में गुरु था विज्ञान था अपारा।
ओमपाल डंका म्हारा बजता दिखा रहा हूं।।
क्या-क्या थे.....
15. जाट सोना कैसे उगाता है ? |
बड़ी मेहनत कमा करके जाट सोना उगाता है।
कलेजा उठ जाता है, जब वह कस्सी बैठाता है।।
सदा ऊंचे व नीचे खेत को करता रहे समतल-2
दिन में जोतकर बोकर रात पानी लगाता है।
खरीदा खाद था महंगा, बीज बाजार से लाया-2
नकली है नहीं उगता हाथ माथे लगाता है।।
किया जो खेत में पैदा, ढेर मण्डी में लग जाता-2
सेठ मुट्ठी में भर-भर कर खड़ी बोली लगाता है।।
उठाकर खेत से गन्ना ये मिलों में पहुंचा देता-2
पसीना छूट जाता है कि वो पर्ची थमाता है।
ओमपाल ऐसा हाल जाटों का दीवानों सा-2
पंडा घुस के घर अंदर, सेठ बाहर से खाता है।।
16. सफलता कैसे मिलेगी ? |
(तर्ज: हमारा इरादा तो कुछ भी ना था......)
इकट्ठे हो जरा जोर लगा दो, सफलता तुम्हारे सिराहने खड़ी है।
टूट-फूट और बैर भुला दो, आरक्षण की आगी घड़ी है।।
जब तक ना विश्वास करोगे, अपना सदा विनाश करोगे।
विकास की सीढ़ी सीधी उठा दो, वो बिल्कुल तुम्हारे पास खड़ी है।।
दल बल सबल जाट बहुतेरा, इसको कैसे कहा लुटेरा?
बब्बर शेर बनकै दिखला दो, ताकत तुम्हारी बहुत बड़ी है।।
आरक्षण अधिकार हमारा, लेना है इसको दोबारा।
ऐसा नजारा जरा दिखा दो, कोई नहीं करनी गड़बड़ी है।।
पद पैसा लालच को छोड़ो, सब भाईयों से नाता जोड़ो।
ओमपाल इसा ख्याल बना दो, प्रेम प्यार की यही लड़ी है।।
वीर धीर बलवान जाट !
बस झटका एक लगाना है।
ना रूकना, झुकना भी नहीं,
गर आरक्षण को पाना है।।
17. जाट गौरव का डंका |
(तर्ज: झूठ बोले कौवा काटे......)
जाट बहादुर मिल जुल के अब जौर लगाना है।
फिर से अपने गौरव का डंका बजवाना है।।
सदा कमेरा रहा जाट कैसे कह दिया लुटेरा है।। कैसे कह.....
मददगार निर्बल का है, पर सदा घमण्डी घेरा है-4
डाकू चोर लूटेरों को तो सबक सिखाना है।। फिर से......
राज रहे, महाराज रहे और जाट सदा सरताज रहे।
पर इनके आगै पाछै भी लगे खूब दगाबाज रहे-4
साथ छोड़ जो भाग गए, उनको समझाना है।। फिर से......
धन वैभव से सदा देश का भरै जाट भण्डारा है-2
सीमाओं पर कटै मरै हरदम दुश्मन ललकारा है-4
झंडा ऊंचा किया और भी शिखर चढ़ाना है।। फिर से.......
चूस-चूस के खून जाट का बन बैठे जो सेठ महान्-2
चालाकी षड्यन्त्र कर-कर जाट को मारा सिर कै तान-4
बिना ज्ञान ना दिया ध्यान, खो दिया ठिकाना है।। फिर से........
श्री छोटूराम की बात मान कै, सच्चाई का ध्यान धरो-2
पढ़ लिखकै लो सीख बोलना, दुश्मन की पहचान करो-4
ओमपाल एक हो, बढ़े चलो, गर नाम कमाना है।। फिर से.......
18. जाट का व्यवहार |
अरे-रे, ओ, वीर जाट सरदार।
क्यों तेरे अनुकूल रहा ना, तेरा यह व्यवहार?
देख जरा अपनी काया को, घटती हुई धन और माया को।
क्यों तेरी औलाद भटकती, फिरै यहां बेकार?
बंद करो अब टांग खिचाई, दुश्मन क्यों भाई का भाई।
ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध से तेरा, हुवः न बेड़ा पार।।
सच्चा मित्र ना पहचाना, दुश्मन तेरा तनै नहीं जाना,
करता रहा काम मनमाना, पाल रहा अहंकार।।
क्यों आलस प्रमाद में सोया, समय कीमती हरदम खोया।
फूट विघ्न का बीज है बोया, धोया घर परिवार।
पढ़ो लिखो और ज्ञान बढ़ाओ, मिल जुल गीत खुशी के गाओ,
ओमपाल कमाओ खाओ, लेके आरक्षण अधिकार।।
बजा दिया है बिगुल, भाई जाटो ! आरक्षण अभियान का।
मिलजुल सब शामिल हो जाना, अब समय नहीं आराम का।।
19. जाट-आजादी के बाद |
(तर्ज: रागनी)
आजादी के बाद जाट कै ना आई किमे रसाई।
स्वप्न रहे अधूरे सारे खुशहाली ना पाई।।
जात-पात और धर्म कर्म का मीठा जहर पिलाया जा,
हर कुकर्म की मिलै ट्रैनिंग भ्रम इसा फैलाया जा।
कट्टरता दकियानूसी और भ्रष्टाचार बढ़ाया जा,
अशिक्षा, शोषण, कुपोषण बढ़ता साल सवाया जा।।
विवश और बदहाल अधिकतर अब भी लोग लुगाई।। स्वप्न रहे......
बेबस, बेघर लाचारों की संख्या कई हजार हुई,
दीन, दुखी, बीमारों की भी लाईन कई तैयार हुई।
डाकू, चोर, लुटेरा पैं ए मेहरबान सरकार हुई,
उनकी ए बिल्डिंग और फैक्ट्री धन बल की भरमार हुई।।
वो जीत गए म्हारी हार हुई ना दर्द की लगै दवाई।। स्वप्न रहे......
छैल गाभरू जवान जाट के अंग सहित विकलांग हुए,
पढ़ लिखकै भी नहीं नौकरी ऐसे मस्त मलंग हुए।
लाखम लाख खड़े पगड़ंडी पशुओं से भी तंग हुए,
जेब कटै, बटमार जुआरी बने जेल में बंद हुए।।
ढंग हुए बेढंग जाट के दंग हुए हम भाई।। स्वप्न रहे......
अंड-बंड, पाखण्ड में पड़कै भटकै कौम हमारी,
सत्संगा की हवा लागगी बहकै सब नरनारी।
दिन में काग रात नै उल्लू मार रहे किलकारी,
राज करैं यमराज आज तो मरगे सब दरबारी।।
ओमपाल हितकारी बातें कहीं-कहीं देवैं दिखाई।। स्वप्न रहे......
20. जाट आरक्षण-कानूनी अधिकार |
(तर्ज: आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं.....)
आरक्षण में आना जाट का कानूनी अधिकार है।
यो हक इसको मिलना चाहिए, जो असली हकदार है।।
जय जाट जवान की, जै जाट किसान की।।
संविधान के अनुसार कुछ शर्तें गई बनाई हैं,
आरक्षण मिलने की केवल दो ही शर्त बताई हैं।
एक सामाजिक पिछड़ापन और दूजी शर्त पढ़ाई है,
ना आर्थिक आधार यहां पर देता कहीं दिखाई है।।
दोनों शर्त जरूरी पूरी करै जाट जमींदार है।। यो हक.......
पिछड़ेपन में और दूसरी जात कौन सी आई है,
लुहार, सुनार, कुम्हार व सैनी, धोबी, तेली, नाई हैं।
खाती और मनियार व गूजर, यादव और गुसाई हैं,
रहन, सहन एकसार सभी का मेलजोल में भाई हैं।।
आपस में हुक्का, पानी, खाना, दाना एकसार है।। यो हक.......
जाट कोई भी कहीं रहे उन सबका एक व्यवहार है,
दिल्ली, राजस्थान, हिमालच, एम.पी., जमना पार है।
इन राज्यों के जाटों को आरक्षण का अधिकार है,
हरियाणा का जाट नहीं इनसे ज्यादा साहूकार है।।
एक कौम मैं भेद बढ़ा क्यों फर्क करै सरकार है।। यो हक.......
और दूसरी बात सुनो जो होती शर्त पढ़ाई की,
सोलह दूणी आठ बता कै करते बात हंसाई की।
जमा जाट का जाट बता कै करते नहीं सुनाई भी,
पढ़ने की फुर्सत ना मिलती रहती सौच कमाई की।।
गुणा, घटा, हांसल पाई में पिछड़ा यह सरदार है।। यो हक.......
ओमपाल अब हाल जाट का बिना कमाई घटिया है,
घटती गई जमीन बिना यह दीन हीन व दुखिया है।
कदे सुनाई हुई नहीं बेहाल हुआ यह मुखिया है,
हवा देखता रहा सदा ही पूर्वा है या पिछवा है।।
सुखिया रहा नाम का केवल दुःख दर्दों की मार है।। यो हक.......
21. जब जाट खड़ा हो जावैगा |
(तर्ज: हट ज्या ताऊ पाछै नै.......)
जब जाट खड़ा हो जावैगा, तब सब कुछ पा जावैगा।
जब तक ना जौर लगावैगा, तब तक कुछ भी ना थ्यावैगा।।
दो शर्तों से मिलै आरक्षण, सामाजिक, शैक्षिक पिछड़ापन,
जाट इन्हीं में आवैगा, यहां से कौन हटावैगा।।
मंडल एक कमंडल लाया, ‘चिल्लन’ ‘गुटका’ जाट बताया।
जब नकली शब्द हटावैगा, तब आरक्षण मिल जावैगा।।
फिर गुरनाम आयोग बनाया, पिछड़ेपन में जाट ठहराया।
जब ध्यान तेरा ना जावैगा, तो लागू कौन करावैगा।।
चार साल तक रहा यह लागू, सुत्ता जाट हुआ ना जागु।
जै न्यूंए नाम कटावैगा, धरती में गड़ता जावैगा।।
आरक्षण अधिकार हमारा, लेना चाहते हम दोबारा।
अब रोक ना कोई पावैगा, अभियान सफलता पावैगा।।
भाई-बन्धु, यारे-प्यारे, इकट्ठे हो लो अब तुम सारे।
जाट उड़ै-ए जावैगा, जड़ै हुक्का पानी थ्यावैगा।।
पद पैसा ही मान बढ़ाता, आन-बान और शान बढ़ाता।
ओमपाल ध्यान जब आवैगा, तब गीत खुशी के गावैगा।।
22. जागैंगे जब जाट देवता |
(तर्ज: झूठ बोलै कव्वा काटै.......)
जागैंगे जब जाट देवता धरती हालैगी,
इनके पाछै-पाछै जनता सारी चालैगी।
शिवजी के गण जाट सभी हैं, पार्वती महतारी है,
गण अधिपति गणेश रहे हैं, (इसलिए) लम्बी नाक हमारी है।
डमरू बजने की तैयारी है, इसे जगालेगी।।
इनके पाछै...........
हनुमान से हाथ हैं इनके पर्वत को भी ठालेंगे,
अंग सभी अंगद जैसे हैं, जौर से पैर जमालेंगे।
कमर कसी तो अधर पधर चहुं ओर घुमालेंगी।।
इनके पाछै...........
छाती है सूरजमल जैसी जवाहरसिंह से हैं बलवान,
नाहरसिंह और शहीद भगतसिंह जैसी इनकी हिम्मत मान।
आन बान और शान से बहरों को बुलवालेगी।।
इनके पाछै...........
सूत्ते पड़े देव हैं इनकी देवठणी जब आवैगी,
घंटे और घडि़याल बजा कै इनकी ज्योत जलावैगी।
ओमपाल दाल गल जावैगी जब नजर उठा लेगी।।
इनके पाछै...........
23. आज मौका है |
(तर्ज: मनै आवै हिचकी..........)
आज यो मौका आ रह्या सै,
मिल कै आरक्षण जाटो ! लेना दोबारा सै।
पढ़ लिखकै भी सीट सुरक्षित कोन्या हुवः हमारी,
आच्छा पद तो बिल्कुल मुश्किल नहीं नौकरी थ्यारी।
कोन्या हुवः गुजारा सै।।
मिलकै........
धरती भी घटते-घटते, बिस्वे रहगे दो-तीन,
उसपै-ए सारे कुणबै की बाजी जावै सै बीन।
चढ़गी गोड़ै गार्या सै।।
मिलकै........
गुरनाम सिंह आयोग जै लागू होज्या पिफर दोबारा,
जी मैं जी आ जावै होज्या थोड़ा घणा गुजारा।
बचा बस यही सहारा सै।।
मिलकै........
ओमपाल कर ख्याल जाट सब मिलजुल जोर लगादो,
यो कानूनी हक म्हारा सबनै जाकै समझा दो।
बख्त लिकड़ता जा रह्या है।।
मिलकै........
24. खुशहाली की बाट में |
(तर्ज: नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे......)
एक नहीं, दस बीस नहीं, कुल बासठ साल गुजार दिए।
खुशहाली की बाट-बाट में, जाट जान तैं मार दिए।।
आजादी अधिकार हमारा मिलके लाया नारा था,
कदम से कदम मिलाके चाले देश सभी नै प्यारा था।
वतन के अर्पण तन मन धन कर, प्राण सभी नै वार दिए।।
खुशहाली.............
अटक कै रहैगी आजादी तो कोठी कार दुकानों में,
अकल मार कै खाण लगे इसी होड़ लगी बेईमानों मैं।
बिकण लगे ऊंचे दामां में एम.एल.ए. मठ मार गए।।
खुशहाली.............
चैर-जार, बदमाश लूटेरे करै मौज सरकारी क्यों?
निर्धन, भूखे परेशान विवश सहते हैं महामारी क्यों?
दुःखी जाट नरनारी क्यों हैं, युवक सभी बेकार हुए।।
खुशहाली.............
कला, ज्ञान-विज्ञान बिना इन्सान नहीं एक पाई का,
न्याय शून्य नैतिकता से सम्मान गिरा हर भाई का।
ओमपाल ना बख्त समाई का, कुछ करने को तैयार हुए।।
खुशहाली.............
25. होश में आओ |
(तर्ज: दिल के अरमां आंसुओं में बह गए)
जब तलक तुम होश में ना आओगे,
तब तलक दुःख ही उठाते जाओगे।।
बाह दिया, बोया था, जो कुछ हो गया,
कर लिया संतोष सिर पर ढो लिया,
सो गया मदहोश उठ ना पाओगे।।
तब तलक......
कौन सा हक, कौन है ले जा रहा?
असली पैसा पास क्यों नहीं आ रहा?
समझोगे ना और ना समझाओगे।।
तब तलक......
खा पी लिया, बाजी लगाई ताश की,
आपस में लड़ते रहे, बकवास की।।
आपसी विश्वास ना बढ़वाओगे।।
तब तलक......
जाट का अब एक ही आधार है,
आरक्षण ही बच गया उपचार है।
ओमपाल संग प्रचार करने जाओगे,
तब तलक कुछ चैन सा पा जाओगे।
26. अगर जाट जमींदार ना होते ? |
(तर्ज: ए मेरी बावली कौम अगर दयानन्द ना होते।)
इन सारी कौमां मैं अगर जमींदार ना होते।
तो ये धन धान्या तैं भरे हुए भण्डार ना होते।।
बालक बूढ़े नर और नारी, हरदम काम करै हर क्यारी,
फल-फूलों व तरकारी के बाजार ना होते।।
तो ये धन....
खेत से पैदा करै किसान, इन्हीं के बालक बन बलवान।
बनैं देश की शान, सफल घरबार ना होते।।
तो ये धन....
अन्न ही जीवन का आधार, इसी से चलता है संसार।
अन्न बिन अफसर और सरकारों के दरबार ना होते।।
तो ये धन....
रोटी कपड़ा और मकान, ना मिल सकते बिना किसान।
ओमपाल बिना अन्नदान सफल त्यौहार ना होते।।
तो ये धन....
जो हिचक गए सो पीछै रह गए जनाब।
जिसने लगाई ऐड वो खंदक से पार था।
27. जाटो संभलो |
जाटों, जरा संभल के आगे कदम बढ़ाना-रे जाटो !
हम कम हैं ना किसी से अहसास यह कराना, रे जाटो !!
मेहनत से काम करते, बहा खून व पसीना-2
सोना उगाते उसको-2, यों ही ना लूटाना, रे जाटो।
जंगल में करते मंगल, दंगल वहीं जमाते-2
खाते हैं हक हमारा-2, उनको तो ये बताना, रे जाटो।
मिल जुल के हम सभी जो प्रयास कर चलेंगे-2
आकाश चूम लेंगे-2 ताशों को छोड़ आना, रे जाटो।
दम में है दम हमारे, हम ना किसी से हारे-2
सबके हैं हम सहारे, हर घर में जा सुनाना, रे जाटो।।
ओमपाल हक हमारा, जब तक ना मिल सकेगा-2
तब तक ही दिल से दिल को यों ही मिलाते जाना, रे जाटो।।
28. जाट गर डगमगाते रहे |
(तर्ज: तुम अगर साथ देने का......)
तुम अगर इस कदर डगमगाते रहे, तो हरदम गमों को भूलाना पड़ेगा।।
अपने ही सपने सजाते रहे, मार खा-खा के सिर को बचाना पड़ेगा।।
रक्षक तुम्हीं सारे संसार के, अन्न जल देते सभी को बड़े प्यार से।
निकलता सभी कुछ तेरे द्वार से, उसको ना यों ही लुटाना पड़ेगा।।
पेट भर कर जिसे तूं जिलाता रहा, वो खाता रहा तूं खिलाता रहा।
जाट कह-कह तुझे जो खिजाता रहा, उसे काबू में करके दिखाना पड़ेगा।।
माल तुमने दिया, वो मालामाल है, खाल खिंचगी तेरी तूं तो कंगाल है।
ऐसे जंजाल में तू फंसा ही रहा, जाल उसका कटा के बगाना पड़ेगा।।
तेरे खेतों में उगती ये बाड़ी रही, किसकै साड़ी रही, कुण उघाड़ी रही,
फुलवाड़ी तेरी ये उखाड़ी गई, उसको कसम से बचाना पड़ेगा।।
ओमपाल ख्याल तुमने किया ही नहीं, कुछ लिया ही नहीं, उसने दिया भी नहीं।
मरा भी नहीं तूं जिया भी नहीं, अब उजड़े चमन को बसाना पड़ेगा।।
29. हिम्मत से सफलता |
(तर्ज: दिल के अरमां......)
हिम्मत से हर काम होते हैं सफल।
बदल दो नजरें, नजारे जां बदल।।
निर्बल की दारू ना कोई है दवा,
हर समय प्रतिकूल चलती है हवा।
ऊंघता रहता ना मिलता कोई फल।। बदल दो.......
नासमझ, चुपचाप जाता तूं किधर?
समय के अनुसार तूं व्यवहार कर।
कर फिकर अपनी ना जाएगा फिसल।। बदल दो.......
तू ठगों के जाल में फंसता रहा,
वो शिकंजों में तुझे कसता रहा।
हंसता रहा कर-कर के तुझसे ही वो छल।। बदल दो.......
उठ जाग, आंखें खोल निद्रा त्याग दे,
ओमपाल भर हुंकार कर आवाज दे।
लूटने वालों के फन्दों से निकल।।
बदल दो नजरें, नजारे जां बदल।।
निराशा के पेट कभी आशा नहीं होती।
हौंसले और विश्वास से मिलते सदा मोती।।
30. जाट बणा भिखारी |
(तर्ज: भारत के नरनारी जय बोलो दयानन्द की)
जाट ठाठ थे तेरे तूं बणग्या आज भिखारी है।
तूं किसका फिरै बहकाया तेरी किसनै अक्कल मारी है।।
आरक्षण के चक्रव्यूह में अभिमन्यु फंसवाया है,
चारों तरफ से घेर लिया तनैं नहीं रास्ता पाया है।
ना थ्याया कोई सहारा कितनी होगी लाचारी है।।
तूं किसका.....
धर्म कर्म का भ्रम फैला इसा बीज बिघ्न का बोया है,
अंड-बंड पाखण्ड बढ़ा कै उनके बीच डूबोया है।
धोया है इसा गजब का तेरः चौगर्दः अंधियारी है।।
तूं किसका.....
सूत्यां कै तो जनै काटड़े जागैंगे सो पावैंगे,
जब तक इकट्ठे नहीं रहोगे दुःख ही बढ़ते जावैंगे।
ढावैंगे जौर जुल्म से इसी बढ़णे लगी बीमारी है।।
तूं किसका.....
ओमपाल ना दाल गलैगी जब तक सिर ना जोड़ोगे,
फोड़ा बढ़ता जाएगा जब तक तुम उसे ना फोड़ोगे।
दौड़ोगे इधर उधर ही ऐसा हुक्म हुआ सरकारी है।।
तूं किसका.....
31. जाट की धड़कन |
दुःख दर्द मेहनत की धड़कन जड़ै देती नहीं दिखाई।
उड़ै कोए भी चीज मिलै ना सांस से सस्ती भाई।।
क्या कोई जाट किसान कभी बिन कर्म किए रह पाता?
खून-पसीना बहा-बहा के, हरियल फसल उगाता,
रात अंधेरी सर्दी गर्मी में सींच के उसे बढ़ाता।
पकी फसल को काट-काढ कै मण्डी तक ले जाता,
मंडी में मुट्ठी भर-भरकै बोली जाती लाई।।
दुःख दर्द.......
बढ़ती देख कपास सांस भी लेण नहीं वो पाता,
अपने खून को काला कर गेहूं को लाल बनाता।
सारी चमड़ी गला-गला जीरी पै जौर लगाता,
गन्ने में रस मीठा, पर जीवन नीरस बन जाता।।
दुनियां को धनवान बनावै धोरै ना एक पाई।।
दुःख दर्द.......
एक-एक पूंजा बांट-बांट कै बाण बनाने वाले,
एक-एक धागा सूत कात कै थान बनाने वाले।
ईंट बना गारा मिट्टी के मकान बनाने वालो,
तरह-तरह के उपयोगी सामान बनाने वाले।।
बालक रहैं बिलखते गूदड़ बिन टूटी चारपाई।।
दुःख दर्द.......
सीमा पर दिन रात चौकसी पहरा देने वाले,
सुपनां में बीबी बच्चों की शकल दिखाने वाले।
भूख, प्यास और मौत का हरदम साथ निभाने वाले,
झूठे मूठे झगड़ां में भी जान गंवाने वाले।।
ओमपाल आकाश है ऊपर नीचे उनकै खाई।।
दुःख दर्द.......
32. जाट की नांव |
(तर्ज: चन्द्रावल)
बीच भंवर जो फंसी हुई है, उस नैया को पार लगा दो।
डगमग-डगमग डोल रही जो, उसका एक आधार बना दो।।
कहैं जाट का जाट खिजाते, सोलह दूणी आठ बताते,
सोलह पर बिन्दी लगवाकै, पूरे एक सौ साठ गिनादे।।
म्हारे जाट गाभरू छैल छबीले, बिना काम जो हो रहे ढीले,
किल्ले तो कम हुए हैं तुम्हारे, पढ़ण लिखण पर जौर लगा दो।।
आरक्षण बिना चलै ना चारा, लेना यह अधिकार हमारा।
यही बचा बस एक सहारा, मिलजुल इसे लेके दिखला दो।।
ओमपाल तत्काल संभल के, भरो चेतना बाहर निकल के।
बिना अकल जो विकल हो रहे, उन सबके भी हाथ मिला दो।।
33. जाट एकता |
(तर्ज: कविता)
हिम्मत है तो आगे आओ, फिर ना पीछे कदम हटाओ।
गर शेर जाट के बच्चे हो, और नहीं कान के कच्चे हो।
सच्चे हो तन मन से तो, इकट्ठे हो के कदम बढ़ाओ।।
फिर ना............
बिखरे रहे तो हम निर्बल हैं, करो एकता तभी सफल हैं,
अदल बदल करने की ताकत है, तो कुछ करके दिखलाओ।।
फिर ना............
पढ़ो लिखो विद्वान् बनो तुम, खेल कूद बलवान बनो तुम,
जाटों की एक शान बनो तुम, बिल्कुल ना मन में घबराओ।।
फिर ना............
ताश खेलना कर्म नहीं है, खाट तोड़ना धर्म नहीं है,
ऐल फैल सब छोड़ के भाईयों, आरक्षण पर जोर लगाओ।।
फिर ना............
ओमपाल क्या ख्याल तुम्हारा, कैसे बिगड़ा हाल तुम्हारा,
क्यों वर्ग हुआ कंगाल तुम्हारा, समझो और सबको समझाओ।
हिम्मत है तो आगे आओ, फिर ना पीछे कदम हटाओ।।
34. सिर पर भरोटा |
हाथ दरांती कांधै कस्सी सिर पर जबर भरोटा सै।
सारी उमर कमाने वाला फिर भी तेरः टोटा सै।।
पहर कै तड़कै उठ खेत में जा कै जोटा लावै सै,
बासी-कुसी जो कुछ थ्यावै, उड़ैए बैठ की खावै सै।
दोसर तेसर चौसर करके खेत न बोवै बाहवै सै,
बीज खाद दे सही बख्त पै, फेर तूं पाणी लावै सै।।
तेरी घरआली भी आवै सै, चाहे गोद में बालक छोटा सै।।
सारी उम्र....
देख-देख तूं राजी होवै फसल बढ़ै जब खेतां मैं,
उठा कसोला खोदी लावै घास उगै जब खेतां मैं।
भाग-भाग कै दूर भगावै जैं डांगर पावै खेतां मैं,
खेत पकै जब खुश हो जावै मौज मनावै खेतां मैं।।
रेतां में रूल जावै सै जब औला बरसै मोटा सै।।
सारी उम्र....
सुनार, लुहार, कुम्हार हैं भाई, सैनी गूजर खाती भी,
सब एक साथ कमाने वाले, हैं सुख दुःख के साथी भी।
होक्का पानी एक सभी का एक ही गौती नाती भी,
ऊठ बैठ थी सदा एकसी, रही एकसी जाति भी।
यह बात समझ ना आती रै भाई कौण बड़ा कुण छौटा सै।।
सारी उम्र..
म्हारी फूट का फायदा ठा हम इनतैं कर दिए न्यारे सैं,
इनको ले लिया आरक्षण में हामनैं दूर भगारे सैं।
दोधारी तलवार मार के जाट ज्यान तैं मारै सैं,
इधर रहे ना उधर हमारे धड़ तैं शीश उतारे सैं।
ओमपाल सिंह गा रहै सैं यो जुल्म हो लिया मोटा सै।।
सारी उम्र....
35. छोटूराम की दो बात - कविता |
छोटूराम जी कह गए तूं दो बातों को मान।
एक बोलना सीख दूसरा दुश्मन को पहचान।।
तनै ना सीखा बोलना ना करी कोए पहचान।
इसीलिए तूं आज तक होता रहा बिरान।।
पढ़ण लिखण में भी तेरा कोनी लागै ध्यान।
बिना पढ़े ना हो सकै कोई भी पहचान।।
ज्ञान और विज्ञान बिन बनै नहीं इन्सान।
तकनीकी शिक्षा बिना चलै ना कोई काम।।
मंडी में तेरः पड़ै एक डांडी की मार।
तेरी कमाई खा रहा पेटल साहूकार।।
पाखण्डी घर में घुसा कर-कर मीठी बात।
तनै बहकावै रात-दिन तूं पांई लावै हाथ।।
पेट पुजारी का भरा, तेरः नहीं जुबान।
तेरे घर का ढो लिया सारा ए सामान।।
तेरी कमाई खा रहा सारा मुल्क जहान।
रक्षक सीमा पर रहै बेटा तेरा जवान।।
तेरे कारण ही रहा हरदम देश महान्।
फिर भी तेरा घटता रहा मान और सम्मान।
ओमपाल अगर जमींदार यों होता रहा कंगाल।
तो एक दिन ऐसा आएगा सब होंगे बेहाल।।
36. चल आगे कदम बढ़ा |
(तर्ज: जिस नर में आत्मशक्ति......)
ना पीछे कदम हटाना है, आगे ही बढ़ते जाना है।
तब तक ना चैन मिले हमको, जब तक ना मिले ठिकाना है।।
जब तक हर दिल में धड़कन है, तन मन में सांस बदन में है।
तन में है या उपवन में है, चल-चल के चमन खिलाना है।।
तब तक......
चाहे दूर कहीं भी जाना हो, चाहे कितना ही कष्ठ उठाना हो।
ना शर्माना घबराना हो, मिल-जुल के जौर लगाना है।।
तब तक......
ना गम कोई जलन मरन का हो, हर दम में दम भगवन का हो।
भय-भूत के सिर पर जूत लगा, हर दिल से उसे भगाना है।।
तब तक......
ओमपाल संभल के चलता चल, एक लक्ष्य बना के बाहर निकल।
तब ही तूं होगा रे जाट, सफल। ना रूक जाना घबराना है।।
तब तक......
37. उठ खड़ा हो जाट |
अरे, रे तूं उठ खड़ा हो जाट,
ताश खेल कुछ हाथ ना आता, क्यों करता उत्पात?
धरती तेरा धाम रहा है, काम सुबह और शाम रहा है,
कभी नहीं आराम रहा है, अब क्यों तोड़ै खाट?
अरे........
सबसे ज्यादा रहा कमेरा, भरता पेट सभी ने बेरा।
देश का रक्षक बेटा तेरा, चौकन्ना दिन रात।।
अरे........
टूट-फूट और बैर भूला दे, एक जुट हो सब हाथ मिला दे।
सारी दुनिया को दिखला दे, वही ठाठ और बाट।।
अरे........
आरक्षण है लक्ष्य हमारा, लेना है अब यह दोबारा।
एकमत होके लगा दे नारा, मान मेरी ले बात।।
अरे........
ओमपाल तत्काल संभल के, हक म्हारा लेना मिलजुल के।
खुल के बोलो बड़े जौर से, जय भारत जय जाट।।
अरे........
38. जाट जवान सावधान! |
(तर्ज: क्या मिलिए, ऐसे लोगों से......)
जिस कौम में युवा सजग होते, वहां मिलती सदा सफलता है।
जिस और जवानों का रूख हो, उस ओर जमाना चलता है।।
संकल्प कर लिया जब कोई, आगे को कदम बढ़ाने का।
उसको ना कोई रोक सके, ना पीछे कदम हटाने का।
हिम्मत से चलने वाले का ना कभी कलेजा हिलता है।।
जिस ओर......
वह पथ क्या पथिक कुशलता क्या, जिसमें बिखरे कुछ शूल न हो।
नाविक की धैर्य परीक्षा क्या, जब धाराएं प्रतिकूल ना हों।
रेगिस्तानी तूफानों में जो गिरता नहीं, संभलता है।।
जिस ओर......
जिस पथ पे कदम बढ़े तेरा, वहां शूल फूल बन जाएंगे।
जोश होश के साथ धूल में भी सोना उपजाएंगे।
आपस में हाथ मिलाने से, हर मंजिल पै फल मिलता है।।
जिस ओर......
मिट्टी तो है क्या चीज, ये मिलके सभी मरूस्थल ढा देते।
कंकर पत्थर का क्या कहना, पर्वत को अधर उठा देते।।
ओमपाल संभल कर चल दें तो संसार ये सारा हिलता है।।
जिस ओर......
39. प्रचार तंत्र |
प्रजातंत्र में एक तंत्र होता है प्रचार का।
इसका काम सरलता से देना होता समाचार का।।
यह सफेद को काला करके सच को झूठ बना देता।
अफवाहों की हवा चला उसको तूफान बना देता।।
जीती हुई बाजी को भी यह मजा चखा दे हार का।।
इसका काम...........
जाट के साथ अगर किसी का भी झगड़ा हो जाता है।
दोष चाहे दूसरों का हो पर दोष जाट पर आता है।।
जाति विशेष, दबंगों का यह काम है अत्याचार का।।
इसका काम...........
दोषी को निर्दोष और निर्दोष को दोषी ठहराते।
खापों और पंचायती फैसलों को फतवा ये फरमाते।
खोट जाट पर मंढ़वाते तालीबानी तकरार का।।
इसका काम...........
बिन कलम के जाटो! जनता होती गूंगी बहरी है।
पड़ै कलम की मार धार तलवार से होती गहरी है।।
लिखा ‘लुटेरा’ सिर नीचा कर दिया जाट सरदार का।।
इसका काम...........
ओमपाल पढ़ लिखकर जाटों इतना ज्ञान बढ़ाओ तुम।
तर्कशील बन सही फैसले खापों के करवाओ तुम।।
इस तंत्र को समझाओ तुम ना करें काम बेकार का।।
इसका काम...........
40. खाट छोड़ दे जाट |
(तर्ज: रागनी)
उठ संभल छोड़ दे खाट जाट तेरी खागे लोग कमाई।
तूं क्यां की देखः बाट जाट तेरी लुटती रही कमाई।।
तूं तो सारी उमर कमाया, तेरः हाथ किमे ना आया।
तनैं तो बासी कुसी थ्याया, और ये खागे दूध मलाई।।
तनैः सबकै कर दिए ठाठ, कहवैं तनैं सोहल दूणी आठ।
तेरी टूटी फूटी खाट है, इनके गद्दे पलंग रजाई।।
उठ संभल छोड़ दे ताश, करैं क्यों बिल्कुल सत्यानाश।
तेरा छोरा एम.ए. पास, उसनै नहीं नौकरी थ्याई।
क्यों कर रह्या सै देर, ईब तूं बण ज्या बब्बर शेर,
टेम नहीं सै फेर क्यों बणग्या भीगी हुई बिलाई।।
तनैः हवासिंह समझावै क्यों ना तूं उसके धोरै जावै।
यो ओमपाल भी गावै बता के तेरः समझ मैं आई।।
शहीदों को श्रद्धांजलि (तर्ज: दया कर दान भक्ति का.....)
देश के उन शहीदों का सभी सम्मान करते हैं।
जो लाए थे यह आजादी उन्हें प्रणाम करते हैं।।
सींचा था जिन्हें भारत को खूनों से पसीनों से।-2
उन्हीं को रख के सिर माथे दिलों में ध्यान धरते हैं।। जो लाए.......
सहा दुःख था, कटी गर्दन पर पीछे ना कदम रखे।-2
हंस-हंस के जो फांसी को चूम स्वीकार करते हैं।। जो लाए.....
साहसी थे वे शेरों से गरज कर शौर करते थे।-2
उन्हीं के कारनामों का आज गुणगान करते हैं।। जो लाए.......
मिली किनसे थी आजादी, स्वामी कौन बन बैठे?-2
डाकू चोर घर भरते, पराया माल चरते हैं।। जो लाए.......
स्वार्थ लोभ लालच में फंसे, बढ़गी है मक्कारी।-2
सपने उन शहीदों के तो गलियों में भटकते हैं।। जो लाए.......
बढ़ाओ प्यार का आंचल, सिखाओ सार जीवन का।-2
‘पाल’ जो त्याग कर सकते वही तो महान् बनते हैं।। जो लाए.......
किसे खबर थी किसे यकीं था ऐसे भी दिन आएंगे।
जीना भी मुश्किल होगा और मरने भी ना पाएंगे।।
हम जैसे बर्बाद दिलों का जीना क्या और मरना क्या?
आज तेरी महफिल से उठे, कल दुनियां से उठ जाएंगे।।
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