Jat Itihas By Dr Ranjit Singh/Wiki Editor Note

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जाट इतिहास (प्रथम खंड) (महाभारत काल से 1857 ई. तक)
लेखक: डॉ रणजीतसिंह, प्रकाशक: आचार्य प्रकाशन, दयानंदमठ, रोहतक, 1980

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विकी एडिटर नोट

डॉ रणजीत सिंह द्वारा प्रस्तुत जाट इतिहास में यह माना गया है कि जाट आर्य हैं, आर्य वंशज हैं और क्षेत्रीय हैं। यह सभी भारतीय लेखकों का मत है। जाट जाति के दो प्रमुख गुण बताए गए हैं- एक तो वह किसी एक सत्ता को देर तक सिर झुकाकर नहीं मान सकते और दूसरा यह है कि वह धार्मिक या सामाजिक रूढ़ियों की अत्यंत दासता से घबराते हैं। यह माना गया है कि श्री कृष्ण द्वारा स्थापित ज्ञातिसंघ से जाट की उत्पत्ति हुई है। पुस्तक में जाटों के गोत्र तथा जाटों की उत्पत्ति के संबंध में युक्ति-प्रमाण-पूर्वक समुचित समाधान किया है। जिस देश अथवा जाति का इतिहास नहीं होता वह देश अथवा जाति कभी उन्नति नहीं कर सकती।

भारत की राजनीति में जाटों के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। जाट जाति का अतीत गौरवपूर्ण था। इनकी स्वतंत्रता सत्ता को मानते हुए मुगलों, अफ़गानों, राजपूतों और मराठों को इनसे संधी करनी पड़ी हैं। प्रस्तुत इतिहास की पुस्तक में जाटों के विकास की कहानी महाभारत काल से आरंभ की गई है क्योंकि महाभारत में जाटों में पाए जाने वाले गोत्रों का गणों के रूप में उल्लेख पाया गया है। इतिहास समाज को प्रेरणा देता है और यही इस पुस्तक का उद्देश्य है।

पुस्तक के कुछ आंशिक पृष्ठ कुछ अध्यायों में दिये गए हैं।