Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu/Baunk

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Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, Agra, 2004

Author: Dr Ompal Singh Tugania

Publisher - Jaypal Agencies, Agra-282007


अध्याय 2. बौंक

अध्याय-2:सारांश

उपाधियों का स्थाई होना, उपाधि का कई पीढ़ियों तक अपनाया जाना, बौंक की शर्तें, बौंक, उपाधि और गोत्र के बीच की कड़ी, बौंक का अस्तित्व

पृ.4.

[पृ.4}: जब कोई उपाधि स्थाई रूप धारण कर अगली पीढ़ी द्वारा प्रयोग होने लगती है तो वह बौंक का रूप धारण कर जाती है. प्राय: चार पांच पीढ़ियो में लगातार प्रयोग की जाने वाली उपाधि ही बौंक के रूप में स्थापित हो जाती है. उदाहरणार्थ, माना किसी व्यक्ति को धन्ना सेठ की उपाधि मिल गई है और उसके जीवन में उसने अगली जितनी पीढ़ियाँ इस धन्ना सेठ नामक उपाधि का प्रयोग करेंगी वे सब धन्ना सेठ बौंक के अंतर्गत आ जाएंगी.

दूसरे शब्दों में उपाधि प्राप्त व्यक्ति की मृत्यु के बाद जीवित पीढ़ियाँ यदि वही उपाधि प्रयोग करती रहती हैं तो वह उपाधि उनका बौंक बन जाती है. पंडित मोतीलाल जी की पैतृक जमीन, जायदाद कश्मीर में नहर के पास थी अतः उन्हें नेहरू की उपाधि मिल गई. अब वही उपाधि उनके परिवार जनों के लिए वह बौंक चुकी है.

गांव शिकोहपुर, बागपत जिला, उत्तर प्रदेश के महान वेद प्रचारक, समाज सुधारक, स्व. श्री पिरथी सिंह के नाम के साथ जुड़ी बेधड़क नामक उपाधि अब बौंक बन चुकी है. और उनके पौत्र सहदेव सिंह, जो जाने माने आर्य भजन-उपदेशक हैं, इसी उपाधि का प्रयोग कर रहे हैं. यह भी सच है कि सभी उपाधियां बौंक नहीं बन सकती. कुछ उपाधियाँ व्यक्ति के जीवन के साथ, सरकार परिवर्तन के साथ, महान सांस्कृतिक उथल-पुथल के साथ, प्राकृतिक आपदा के कारण अल्पकालिक होने से, छीन लिए जाने से, सहर्ष वापिस कर देने से, सजा या देश निकाला मिलने आदि अनेक कारणों से अगली पीढ़ी तक नहीं पहुंच पाती हैं. अतः जो उपाधियां अगली पीढ़ियों में प्रसारित हो जाती हैं केवल वही बौंक बन जाती हैं अन्य नहीं.

प्राय: बौंकों के मोहल्ले पट्टी बन जाते हैं जैसे अंधों का मोहल्ला, सबला पट्टी, नन्हिया पट्टी, मोहल्ला सूंडयान, नरु पट्टी आदि. बौंक वास्तव में उपाधि और गोत्र के बीच की कड़ी है. उपाधि व्यक्ति के जीवन में ही प्रचलित रहती है जबकि बौंक कई पीढ़ियों तक चलता है और यह तभी समाप्त होता है जब यह गोत्र का रूप धारण कर लेता है या फिर अपना अस्तित्व समाप्त कर दूसरे बैंकों, गोत्रों में समाहित हो जाता है. इसकी एक यह भी विशेषता है कि यह वापिस उपाधि में नहीं बदल सकता परंतु गोत्रों में बदलने के लिए बौंक का कई पीढ़ियों तक चलते रहना इसकी एक अनिवार्य शर्त है.


अध्याय-2.बौंक, समाप्त

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