Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu/Do Shabd

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Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, Agra, 2004

Author: Dr Ompal Singh Tugania

Publisher - Jaypal Agencies, Agra-282007


दो शब्द

जाट जाति एक आदिकालीन जाति है जिसकी अपनी अनेक विशिष्ट व्यवस्थाएं हैं और इन अनुपम व्यवस्थाओं के कारण ही विश्व धरातल पर जाट समुदाय की अलग पहचान है. इसकी संरचना भी अपने आप में बेजोड़ और अनेक विशिष्ट मान बिंदुओं पर आधारित है जिनके बिना जाट समुदाय की कल्पना करना भी संभव नहीं है. चार आश्रमों, चार पुरुषार्थों और 16 संस्कारों से ओतप्रोत जाट समुदाय निसंदेह अद्भुत है. इस की उपाधि, बौंक, गोत्र, वंश और खाप व्यवस्थाएं अपनी कोई सानी नहीं रखती. इस जाति ने अपने लिए कुछ सामाजिक मापदंड भी स्वयं ही निश्चित कर रखे हैं जिन्हें पीढ़ी दर पीढ़ परखा जाता है. यह संरचना इतनी जटिल है कि इसमें अधिक परिवर्तन संभव ही नहीं है. जाट समुदाय की प्रमुख व्यवस्थाएं, प्रमुख मान बिंदु, विशिष्ट आदतें और व्यवहार, सादगी और भोलापन, वीरता और धीरता, त्याग और बलिदान की भावना के कारण ही तो इसे दुनिया जाट देवता कहती है. यह समाज अपने गोत्र वंश और खाप पर बड़ा गर्व करता है. सभी लोग गोत्र के लोग ही भाई की तरह होते हैं.

इन विशिष्ट मान बिंदुओं की अनभिज्ञता के कारण ही अक्सर कहीं न कहीं विवाद खड़े होते रहते हैं तथा स्वजनों को सामाजिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है. उपाधि, बौंक, गोत्र, वंश, खाप, गोत्रावली आदि व्यवस्थाएं जाट समुदाय की प्राचीन धरोहर हैं जिनका ज्ञान सभी को होना ही चाहिए ताकि अनावश्यक विवादों से बचते हुए जाट समुदाय अपने गौरवशाली परंपराओं को बनाए रखें.

मुझे आशा है कि स्वजन मेरे इस प्रयास से लाभान्वित होंगे तथा पुस्तक को पढ़कर आवश्यक सुझाव भी प्रेषित करेंगे.

लेखक


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