Jogimara
Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.) |
Jogimara Caves (जोगीमारा गुफाएँ) are situated in Surguja district of Chhattisgarh. It is known for rock paintings of 300 BC.
Variants
Location
Jogimara Caves are situated 50 kms away from Ambikanagar in Surguja district in Ramagiri-Ramgarh hills. Jogimara Cave and Sita Bengra Cave are located in beautiful natural setting, mountainous jungle massive. To add to the effect, both caves are reached through natural tunnel. Even elephant can pass through this 55 m long tunnel – hence the name of this tunnel – Hathipol (Hatipal), "Elephant Cave".[1]
History
According to legends during their exile in these caves hid heroes of Ramayana epos – brothers Laxman, Rama and wife of Rama – Sita. Hence comes the name Sita Bengra – "Residence of Sita".[2]
जोगीमारा गुफाएँ
विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ...जोगीमारा गुफाएँ (AS, p.371) - भूतपूर्व सरगुजा रियासत के लक्षमणपुर से 12 वें मील पर रामगिरि-रामगढ़ पहाड़ी में जोगीमारा नामक शैलकृत गुफा है, जिनमें 300 ई.पू. के कुछ रंगीन भित्तिचित्र विद्यमान हैं। चित्रों का निर्माण काल डॉ. ब्लाख ने यहाँ से प्राप्त एक अभिलेख के आधार पर निश्चित किया है। जोगीमारा के भित्तिचित्र भारत के प्राचीनतम भित्तिचित्रों में से हैं।
ये चित्र गेरू और कालिख से बने हुए जान पड़ते हैं. चित्र धुंधले और भोंडे से हैं किंतु इसका कारण यह है कि किसी ने मूल चित्रों को सुधारने का प्रयास करने में उन्हें बिगाड़ दिया है जिसे असली चित्रों की स्पष्ट, सुंदर और पुष्ट रेखाएं ऊपर की भद्दी लकीरों के नीचे दब गई हैं. चित्रों में भवनों, पशुओं और मनुष्यों की आकृतियों का आलेखन किया गया है. चित्रों के किनारों पर मकर आदि जलजंतुओं का चित्रण है. जोगीमारा की चित्र शैली अर्धविकसित अवस्था में है किंतु उसमें अजंता की भावी उत्कृष्ट कला का क्षीणसा आभास दृष्टिगोचर होता है. जोगीमारा चित्रों में से कुछ जैन धर्म से संबंधित हैं. जोगीमारा गुफा के पार्श्व में ही सीताबोंगा नामक गुफा है जो प्राचीन काल में प्रेक्षागार या नाट्यशाला के रूप में प्रयुक्त होती थी. कुछ विद्वानों का मत है कि जोगीमारा गुफा प्रेक्षागार की नटियों का प्रसाधन कक्ष थी. किंतु यहां के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि यह गुफा वरुण के मंदिर के रूप में मान्य समझी जाती थी
जोगीमारा परिचय
जोगीमारा गुफाएँ छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक हैं। ये गुफ़ाएँ अम्बिकापुर (सरगुजा ज़िला) से 50 किलोमीटर की दूरी पर रामगढ़ स्थान में स्थित है। यहीं पर सीताबेंगरा, लक्ष्मण झूला के चिह्न भी अवस्थित हैं। इन गुफ़ाओं की भित्तियों पर विभिन्न चित्र अंकित हैं।
निर्माण काल: चित्रों का निर्माण काल डॉ. ब्लाख ने यहाँ से प्राप्त एक अभिलेख के आधार पर निश्चित किया है। सम्राट अशोक के समय में जोगीमारा गुफ़ाओं का निर्माण हुआ था। ऐसा माना जाता है कि जोगीमारा के भित्तिचित्र भारत के प्राचीनतम भित्तिचित्रों में से हैं। विश्वास किया जाता है कि देवदासी सुतनुका ने इन भित्तिचित्रों का निर्माण करवाया था।
चित्रों की विषयवस्तु: चित्रों में भवनों, पशुओं और मनुष्यों की आकृतियों का आलेखन किया गया है। एक चित्र में नृत्यांगना बैठी हुई स्थिति में चित्रित है और गायकों तथा नर्तकों के खुण्ड के घेरे में है। यहाँ के चित्रों में झाँकती रेखाएँ लय तथा गति से युक्त हैं। चित्रित विषय सुन्दर है तथा तत्कालीन समाज के मनोविनोद को दिग्दर्शित करते हैं। इन गुफ़ाओं का सर्वप्रथम अध्ययन असित कुमार हलधर एवं समरेन्द्रनाथ गुप्ता ने 1914 में किया था।
जोगीमारा गुफ़ाओं के समीप ही सीताबेंगरा गुफ़ा है। इस गुफ़ा का महत्त्व इसके नाट्यशाला होने से है। कहा जाता है कि यह एशिया की अतिप्राचीन नाट्यशाला है। भास के नाटकों के समय निर्धारण में यह पुराता देवदीन पर प्रेमासक्तत्त्विक खोज महत्त्वपूर्ण हो सकती है। क्योंकि नाटक प्रविधि को 'भास' ने लिखा था तथा उसके नाटकों में चित्रशालाओं के भी सन्दर्भ दिये हैं। यह विश्वास किया जाता है कि गुफ़ा का संचालन किसी सुतनुका देवदासी के हाथ में था। यह देवदासी रंगशाला की रूपदक्ष थी। देवदीन की चेष्टाओं में उलझी नारी सुलभ हृदया सुतनुका को नाट्यशाला के अधिकारियों का 'कोपभाजन' बनना पड़ा और वियोग में अपना जीवन बिताना पड़ा। रूपदक्ष देवदीन ने इस प्रेम प्रसंग को सीताबेंगरा की भित्ति पर अभिलेख के रूप में सदैव के लिए अंकित करा दिया।
संदर्भ: भारतकोश-जोगीमारा गुफाएँ