Joginder Singh Sahnan

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Joginder Singh Sahnan

Joginder Singh Sahnan (Sibedar) (26.09.1921-23.10.1962), PVC, became martyr on 23.10.1962 during Indo-Pak War-1962. He was from Mehakalan village of Moga District in Punjab. Unit: 1 Sikh Regiment.

सूबेदार जोगिंदर सिंह सहनान

सूबेदार जोगिंदर सिंह सहनान

26-09-1921-23-10-1962

परमवीर चक्र (मरणोपरांत)

वीरांगना - श्रीमती गुरदयाल कौर बंगा

यूनिट - 1 सिख रेजिमेंट

टोंगपेंग ला की लड़ाई

ऑपरेशन लेगहॉर्न

भारत-चीन युद्ध 1962

सूबेदार जोगिंदर सिंह सहनान का जन्म 26 सितम्बर 1921 को ब्रिटिश भारत में संयुक्त पंजाब के मोगा जिले के मेहाकलन गाँव में सरदार शेर सिंह एवं बीबी कृष्णन कौर के परिवार में हुआ था। 28 सितंबर 1936 को एक रंगरूट के रूप में वह भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। प्रशिक्षण के पश्चात उन्हें 1 सिख बटालियन में सिपाही के पद पर नियुक्त किया गया था। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में बर्मा मोर्चे के युद्ध में भाग लिया था, 1947-48 के भारत-पाक युद्ध में श्रीनगर के युद्ध में भाग लिया था। वर्ष 1962 तक क्रमशः पदोन्नत होते हुए वह सूबेदार रैंक पर पदौन्नत हो चुके थे। बटालियन में उनके अनुशासन और अनुकरणीय युद्ध कौशल के लिए उनका अत्यधिक सम्मान किया जाता था।

1962 के युद्ध में भारतीय सेना युद्ध के लिए तैयार नहीं थी। हथियारों, गोला बारूद की भारी कमी के उपरांत भी भारतीय सैनिक और अधिकारी अत्यंत वीरता और उत्साह से भरे हुए थे। 20 अक्टूबर 1962 को चीन ने नेफा के अरूणाचल में नामका चू मोर्चे पर कुचल डालने वाले संख्या बल के साथ भारतीय स्थितियों पर आक्रमण किया। नामका चू की लड़ाई में भारतीय 7 इंफेंट्री ब्रिगेड चीनियों से लड़ते हुए समाप्त हो गई। इसके पश्चात चीनी सेना तवांग की ओर बढ़ीं।

23 अक्टूबर 1962 को सूबेदार जोगिन्दर सिंह तवांग में के बमला अक्ष पर टोंगपेंग ला क्षेत्र में एक शिखर पर अपनी कंपनी के साथ तैनात थे। प्रातः साढ़े पांच बजे चीनी सेना ने बमला पर प्रथम आक्रमण किया। चीनी सेना पूरे एक डिवीजन की संख्या में थी जबकि उसके सामने भारत की मात्र 1 सिख कंपनी थी। इस कंपनी का नेतृत्व सूबेदार जोगिंदर सिंह कर रहे थे। चीनीयों का उद्देश्य आगे बढ़ते हुए तवांग तक पहुंचने का था।

प्रथम आक्रमण सूबेदार जोगिंदर सिंह की कंपनी झेल गईं, उसमें चीनियों को कोई सफलता नहीं मिली। उन्हें भारी क्षति हुई और उन्हें थम जाना पड़ा। कुछ समय पश्चात ही चीनीयों ने द्वितीय आक्रमण किया। उस आक्रमण का सामना भी सिख कंपनी ने वीरता से किया। परंतु द्वितीय आक्रमण जोगिंदर सिंह की अर्ध कंपनी को हताहत कर गया और वह स्वयं भी घायल हो गए। उनकी जांघ में गोली लग गई थी फिर भी वह मोर्चा नहीं छोड़ने पर अडिग थे। उनके नेतृत्व में कंपनी भी पूर्ण मनोबल के साथ डटी हुई थी, यद्यपि कंपनी के अनेक सैनिक घायल हो चुके थे।

तभी चीनीयों ने तृतीय आक्रमण किया। सूबेदार जोगिंदर सिंह ने मशीन गन से गोलियां चलानी आरंभ कर दीं । उस आक्रमण में भी चीनियों को भारी क्षति हुई। सूबेदार जोगिंदर सिंह ने लगभग 52 चीनियों को मार गिराया, परंतु चीनी निरंतर आगे बढ़ते जा रहे थे और सूबेदार जोगिंदर सिंह की कंपनी का गोलियों का भण्डार खत्म हो गया। ऐसे में, सूबेदार जोगिंदर सिंह और उनके सैनिक "जो बोले सो निहाल, सत् श्री अकाल" का युद्धघोष करते हुए अपने बंकरों से बाहर आए और चीनी सेना पर टूट पड़े। उन्होंने संगीनों से अनेकों चीनीयों को मार गिराया परंतु शत्रु की संख्या अधिक होने से सूबेदार सिंह और उनके शेष सैनिक शत्रु द्वारा बंदी बना लिए गए।

यह सच था कि भारत वह मोर्चा हार गया परंतु सूबेदार जोगिंदर सिंह ने अंतिम क्षणों तक जो वीरता प्रदर्शित की, वह अद्भुत थी। सूबेदार जोगिंदर सिंह युद्धबंदी बना लिए गए, चीनियों की कैद में उनके घावों में संक्रमण व शीतदंश होने से वह वीरगति को प्राप्त हुए।

चीनियों ने ना तो उनका शव भारत को सौंपा, और ना ही उनके बारे में कोई सूचना दी। जब चीनियों को सूबेदार जोगिंदर सिंह को परमवीर चक्र से सम्मानित किए जाने का संज्ञान हुआ तो उन की वीरता का सम्मान करते हुए 17 मई 1963 को पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनकी अस्थियां 1 सिख बटालियन को सौंपी गई थी।

चित्र गैलरी

स्रोत

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ


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