Khan Ahmadpur

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Khan Ahmadpur (खान अहमदपुर) is a village in tahsil Barara of Ambala district in Haryana.

Location

It is located on NH-344 highway.

Jat Gotras

It is a village of Jat Sikhs

History

खान अहमदपुर नेशनल हाइवे-344 पर बसा जट्‌ट सिखों का एक छोटा सा गांव है। आबादी लगभग ढाई हजार है। जिला अम्बाला के बराड़ा खंड का गांव खान अहमदपुर के हर परिवार से एक-दो युवक सेना में रहकर देश सेवा कर रहे हैं। उसी परिवार से एक-दो सेना से सेवानिवृत्त भी हुए हैं। स्थिति यह है कि इस गांव के किसी भी परिवार में जब भी कोई बच्चा जन्म लेता है तो उस परिवार को लोग उसी समय से उस बच्चे को सेना में भर्ती करवाने के सपने देखने लगते हैं। और वह बच्चा युवा अवस्था में पहुंचते ही खुद को सेना के लिए तैयार करने में जुट जाता है। इस गांव के निवासी यही कहते हैं कि उनका जन्म तो देश सेवा के लिए ही हुआ है। गांव से इस समय करीब 400 युवा सेना में रहकर देशसेवा में जुटे हैं। सूबेदार स्वर्ण सिंह बताते हैं कि उनके परिवार के तीन सदस्य सेना में अपनी सेवाएं देकर सेवानिवृत्त हो चुके हैं, वहीं अब भी घर के तीन सदस्य सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

सुविधाओं से वंचित

अगर बात सुविधाओं की करें तो यह गांव काफी पिछड़ा है। पूर्व सरपंच जरनैल सिंह जैली बताते हैं कि गांव में बस अड्‌डा भी नहीं है। उन्होंने बताया कि इस गांव में बसें नहीं रुकती। उन्होंने बताया कि अब भी गांव के युवा फौज से छुट्‌टी पर आते हैं तो उन्हें या तो दोसड़का या फिर थाना छप्पर उतरना पड़ता है। उन्होंने बताया कि गांव की काफी बेटियां पढ़ाई के लिए शहरों में जाती हैं। बसें नहीं रुकने के कारण बेटियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

चीन युद्ध में शहीद हुए थे दो फौजी

1962 में चीन युद्ध में देशराज और कृष्ण लाल शहीद हुए थे। इसी गांव के बलवंत सिंह, दिवंगत सूबेदार सरदार सिंह और अवतार सिंह को उनकी नौकरी के दौरान सेना मेडल से भी नवाजा गया था। रिटायर्ड कैप्टन जोगिंद्र सिंह और कैप्टन भूपेंद्र सिंह ने बताया कि इस समय भी करीब तीन दर्जन रिटायर्ड कैप्टन हैं। गांव के लगभग एक दर्जन नौजवान अब भी भारतीय सेना में कैप्टन के पद पर तैनात हैं।

गांव में नहीं रुकती बसें

गाँव के हर परिवार से कोई न कोई सेना में अपनी सेवाएं दे रहा है। गाँव मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। बैंक व डाकखाना न होने से लेनदेन करने में परेशानी होती है। वहीं गाँव में बसें न रुकने से भी गाँव की लड़कियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस बारे में कई बार रोडवेज विभाग को लिखा जा चुका है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। - राजिंद्र कौर, सरपंच खान अहमदपुर।[1]

Notable persons

External links

References


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