Kerora
Kerora (किरोरा) is a village and site of Jat Fort in Mehgaon tahsil of Bhind District in Madhya Pradesh.
Location
History
किरोरा स्टेट
ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है .... [पृ.565]: पंजाब से नीचे के देशों की ओर आने वाले शिवी वंशी जाटों का एक समूह बृज की पवित्र भूमि में आकर आबाद हुआ और किरार लोगों से उन्होंने हंसला को छीन कर अपना आधिपत्य कायम किया।
एक समय आया कि यह हंसेलियां वीर मध्य भारत में फैला। विदिशा निषिध देश के प्रभावशाली राज्य वंश खत्म हो चुके थे। अतः गोपगिरि के दक्षिण में इन लोगों ने अपना एक छोटा सा राज्य कायम कर लिया।
इनकी अनेकों पीढ़ियां शांति के साथ इस देश की जनता की रक्षा करते हुए अपनी कीर्ति को बढ़ा रही थी कि मराठे लोग प्रभाव में आए और महादजी सिंधिया की
[पृ.566]: अधीनता भी स्वीकार करनी पड़ी। सिंधिया के साथ जो संधि इस खानदान की हुई वह सम्मानपूर्ण थी।
इनकी दूसरी संधि जो ग्वालियर राज्य के कागजात में दर्द है, महाराजा दौलतराव सिंधिया से हुई। दौलतराव ने इनकी ताकत और समृद्धि को काफी करके संधि की।
उस समय के इस खानदान के सरदार अमानसिंह के पास किरोर और किटोरा आदि 10-12 गाँव ही रहने दिए गए थे और इसके एवज में 10 सवारों की सहायता सिंधिया सरकार के उपयोग के लिए इनके जिम्मे में रही।
राजा अमानसिंह जी के तीन बेटे हुए: रणधीरसिंह, मंगलसिंह और चतुरसिंह। उन्होंने आपस में रियासत को बांट लिया। राजा रणधीरसिंह जी ने अपनी बुद्धिमानी से उस लाग को भी खत्म करना करा लिया जो उनके जिम्मे 10 सवारों की थी।
रणधीरसिंह जी एक प्रभावशाली और तेजस्वी सरकार थे उनके पीछे अपरबलसिंह जी हुए जिनके पुत्र भगवंतसिंह जी भी काफी लोकप्रिय रईस हुए हैं। उनके पुत्र गंभीरसिंह जी और पौत्र केसरीसिंह जी हुए।
रणधीरसिंह जी के दूसरे दोनों भाई निसंतान स्वर्गवासी हुए इसलिए यह एस्टेट फिर संगठित हो गई। राजा केसरीसिंह के 2 पुत्र श्री विचित्रसिंह जी और रामसिंह जी हुए।
राजा विचित्रसिंह जी का जन्म संवत 1970 विक्रमी (1913 ई. ) का है। आपने सिंधिया स्कूल ग्वालियर से शिक्षा प्राप्त की है। आप एक सुयोग्य और जिंदादिल रईस हैं। आप इलाके में अत्यंत लोकप्रिय हैं। शिकार के चतुर खिलाड़ी हैं।
[पृ.567]: जनता आपको स्नेह करती है और आपकी उदारता काफी मशहूर है। ग्वालियर राज्य जाटसभा के महारथियों में आपका स्थान है। तमाम जाति में आपके लिए प्रेम है।
Notable persons
External links
References
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.565-567
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