Lothal

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Ahmedabad district map

Lothal (Hindi: लोथल, Gujarati: લોથલ) is situated near the village of Saragwala in the Dholka taluka of Ahmedabad district in Gujarat, India. It is one of the most prominent cities of the ancient Indus valley civilisation. Located in Bhāl region of the modern state of Gujarat and dating from 2400 BCE.

Variants

  • Lothal लोथाल, जिला अहमदाबाद, गुजरात, (AS, p.822)

Location

Lothal is situated near the village of Saragwala in the Dholka taluka of Ahmedabad district. It is six kms (south-east) of the Lothal-Bhurkhi railway station on the Ahmedabad-Bhavnagar railway line. It is also connected by all-weather roads to the cities of Ahmedabad (85 km), Bhavnagar, Rajkot and Dholka. The nearest cities are Dholka and Bagodara.

Map of Lothal

Meaning

The meaning of Lothal (a combination of Loth and (s) thal) in Gujarati to be "the mound of the dead" is not unusual, as the name of the city of Mohenjo-daro in Sindhi means the same. People in villages neighbouring to Lothal had known of the presence of an ancient town and human remains.

History

Before the arrival of Harappan people (c. 2400 BCE), Lothal was a small village next to the river providing access to the mainland from the Gulf of Khambhat. The indigenous peoples maintained a prosperous economy, attested by the discovery of copper objects, beads and semi-precious stones. Ceramic wares were of fine clay and smooth, micaceous red surface. A new technique of firing pottery under partly oxidising and reducing conditions was improved by them—designated black-and-red ware, to the micaceous Red Ware. Harappans were attracted to Lothal for its sheltered harbour, rich cotton and rice-growing environment and bead-making industry. The beads and gems of Lothal were in great demand in the west. The settlers lived peacefully with the Red Ware people, who adopted their lifestyle, evidenced from the flourishing trade and changing working techniques. Harappans began producing the indigenous ceramic goods, adopting the manner from the natives. [1]

लोथाल

लोथाल (AS, p.822): जिला अहमदाबाद, गुजरात में स्थित है. 1954-55 के उत्खनन में एक प्राचीन ढूह से हड़प्पा संस्कृति (=सिंधु घाटी सभ्यता) के अवशेष प्राप्त हुए हैं. इनमें पांच हड़प्पा-मुद्राएं भी हैं. इस उत्खनन से सिद्ध हो गया है कि ई. सन् से 3-4 सहस्त्र वर्ष प्राचीन हड़प्पा सभ्यता का विस्तार गुजरात तक तो अवश्य ही था. [2]

लोथल परिचय

यह गुजरात के अहमदाबाद ज़िले में 'भोगावा नदी' के किनारे 'सरगवाला' नामक ग्राम के समीप स्थित है। खुदाई 1954-55 ई. में 'रंगनाथ राव' के नेतृत्व में की गई। इस स्थल से समकालीन सभ्यता के पांच स्तर पाए गए हैं। यहाँ पर दो भिन्न-भिन्न टीले नहीं मिले हैं, बल्कि पूरी बस्ती एक ही दीवार से घिरी थी। यह छः खण्डों में विभक्त था।

नगर दुर्ग: लोथल का ऊपरी नगर था नगर दुर्ग विषय चतुर्भुजाकार था जो पूर्व से पश्चिम 117 मी. और उत्तर से दक्षिण की ओर 136 मी. तक फैला हुआ था।

बाज़ार और औद्योगिक क्षेत्र: लोथल नगर के उत्तर में एक बाज़ार और दक्षिण में एक औद्योगिक क्षेत्र था। मनके बनाने वालों, तांबे तथा सोने का काम करने वाले शिल्पियों की उद्योगशालाएं भी प्रकाश में आई हैं। यहाँ से एक घर के सोने के दाने, सेलखड़ी की चार मुहरें, सींप एवं तांबे की बनी चूड़ियों और बहुत ढंग से रंगा हुआ एक मिट्टी का जार मिला है। लोथल से शंख के कार्य करने वाले दस्तकारों और ताम्रकर्मियों के कारखाने भी मिले हैं। लोथल नगर में जल पुनर्शोधित कर काम में लाया जाता था एक बूंद जल व्यर्थ नहीं जाता था.

नगर दुर्ग के पश्चिम की ओर विभिन्न आकार के 11 कमरें बने थे, जिनका प्रयोग मनके या दाना बनाने वाले फैक्ट्री के रूप में किया जाता था। लोथल नगर क्षेत्र के बाहरी उत्तरी-पश्चिमी किनारे पर समाधि क्षेत्र का, जहां से बीस समाधियां मिली हैं। यहाँ की सर्वाधिक प्रसिद्व उपलब्धि हड़प्पाकालीन बन्दरगाह के अतिरिक्त विशिष्ट मृदभांड, उपकरण, मुहरें, बांट तथा माप एवं पाषाण उपकरण है। यहाँ तीन युग्मित समाधि के भी उदाहरण मिले हैं। स्त्री-पुरुष शवाधान के साक्ष्य भी लोथल से ही मिले है। लोथल की अधिकांश क़ब्रों में कंकाल के सिर उत्तर की ओर और पैर दक्षिण की ओर था। केवल अपवाद स्वरूप एक कंकाल का दिशा पूर्व-पश्चिम की ओर मिला है।

बन्दरगाह अथवा गोदी बाड़ा (Dock Yard): बन्दरगाह लोथल की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में से है। इस बन्दरगाह पर मिस्र तथा मेसोपोटामिया से जहाज़ आते जाते थे। इसका औसत आकार 214x36 मीटर एवं गहराई 3.3 मीटर है। इसके उत्तर में 12 मीटर चौड़ा एक प्रवेश द्वार निर्मित था। जिससे होकर जहाज़ आते-जाते थे और दक्षिण दीवार में अतिरिक्त जल के लिए निकास द्वार था।

लोथल में गढ़ी और नगर दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हैं। अन्य अवशेषों में धान (चावल), फ़ारस की मुहरों एवं घोड़ों की लघु मृण्मूर्तियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इसके अतिरिक्त अन्य अवशेषों में लोथल से प्राप्त एक मृदभांड पर एक विशेष चित्र उकेरा गया है जिस पर एक कौआ तथा एक लोमड़ी उत्कीर्ण है। इससे इसका साम्य पंचतंत्र की कथा चालाक लोमड़ी से किया गया है।

यहाँ से उत्तर अवस्था की एक अग्निवेदी मिली है। नाव के आकार की दो मुहरें तथा लकड़ी का अन्नागार मिला है। अन्न पीसने की चक्की, हाथी दांत तथा पीस का पैमाना मिला है। यहाँ से एक छोटा सा दिशा मापक यंत्र भी मिला है। तांबे का पक्षी, बैल, खरगोश व कुत्ते की आकृतियां मिली है, जिसमें तांबे का कुत्ता उल्लेखनीय है।

यहाँ बटन के आकार की एक मुद्रा मिली है। लोथल से 'मोसोपोटामिया' मूल की तीन बेलनाकार मुहरे मिली है। आटा पीसने के दो पाट मिले है जो पूरे सिन्धु का एक मात्र उदाहरण है।

उत्खननों से लोथल की जो नगर-योजना और अन्य भौतिक वस्तुए प्रकाश में आई है उनसे लोथल एक लघु हड़प्पा या मोहनजोदाड़ो नगर प्रतीत होता है। सम्भवतः समुद्र के तट पर स्थित सिंधु-सभ्यता का यह स्थल पश्चिम एशिया के साथ व्यापार के दृष्टिकोण से सर्वात्तम स्थल था।

संदर्भ: भारतकोश-लोथल

References

  1. S. R. Rao (1985). Lothal. Archaeological Survey of India. p. 5.
  2. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.822

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