Melukote
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Melukote (मेलूकोटे) in Pandavapura taluk of Mandya district, Karnataka, in southern India, is one of the sacred places in Karnataka. The place is also known as Thirunarayanapuram. It is built on rocky hills, known as Yadugiri, Yadavagiri and Yadushailadipa, overlooking the Cauvery valley.
Location
Melukote is about 51 km from Mysore and 133 km from Bangalore.
Variants
- Tonnura (तोन्नूर) (मैसूर) (AS, p.412)
- Yadavadri (यादवाद्रि) = Yadavagiri यादवगिरि (AS, p.771)
- Yadavagiri यादवगिरि = yadavadri यादवाद्रि, मैसूर (AS, p.771)
- Melukote मेलूकोटे, मैसूर, (AS, p.759)
- Thirunarayanapuram
- Yadugiri,
- Yadushailadipa,
History
Early in the 12th century, the great Srivaishnava saint Ramanujacharya took up his residence and lived in this location for about 14 years. It thus became a prominent centre of Srivaishnavism. Large numbers of Iyengar Brahmins migrated and settled in the region, forming the Mandyam Iyengar community. People of Melkote do not celebrate Deepawali (the festival of lights) till date since November 10th 1790 (Naraka Chaturdashi). It was the date when Tipu Sultan slaughtered in many cruel ways more than 800 Mandyam Iyengars of this town. People of Melukote thus do not celebrate Deepawali but mourn on the festival of lights every year.[1]
Cheluvanarayana Swamy Temple
Melukote is the location of the Cheluvanarayana Swamy Temple, with a collection of crowns and jewels which are brought to the temple for the annual celebration. On the top of the hill is the temple of Yoganarasimha. Many more shrines and ponds are located in the town. Melukote is home to the Academy of Sanskrit Research, which has collected thousands of Vedic and Sanskrit manuscripts.[1]
Early in the 12th century, the famous Srivaishnava saint Sri Ramanujacharya, who hailed from Tamil Nadu, stayed at Melukote for about 12 years. It has thus become a prominent centre of the Srivaishnava sect.
तोन्नूर
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...तोन्नूर (AS, p.412) मैसूर में मोती तालाब के निकट स्थित एक छोटा-सा ग्राम है, जिसका प्राचीन नाम 'यादवगिरि' है। यादवगिरि को 'मेलूकोटे' भी कहा जाता था। देवगिरि के यादव नरेशों के नाम से ही यह स्थान प्रसिद्ध था। यहाँ प्राचीन समय में सेनाशिविर था। 1099 ई. में दक्षिण के प्रसिद्ध दार्शनिक तथा धर्माचार्य रामानुज, चोल नरेश करिकाल के अत्याचार से बचकर यादवगिरि के राजा विष्णुवर्धन की शरण में आकर रहे थे।
मेलूकोटे
विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ...मेलूकोटे (मैसूर), (AS, p.759) - मैसूर नगर से 35 मील दूर है. यह प्रसिद्ध स्थान प्राचीन --यादवगिरी-- आज भी अतीत के गौरव को अपने ऐतिहासिक अवशेषों में संजोए हुए है. इस [पृ.760]: नगर की सड़कें जिन पर पत्थर जड़े हैं लगभग 900 वर्ष प्राचीन हैं. दक्षिण के प्रसिद्ध दार्शनिक संत रामानुजम को यही कल्याणी सरोवर के तट पर नारायण की मूर्ति प्राप्त हुई थी जो यहां के प्रमुख मंदिर में प्रतिस्थापित है. यहां के प्राचीन स्मारक-- गोपाल राय का विशाल तोरण जो 500 वर्ष पुराना होता हुआ भी आज भी शिल्प का अद्भुत उदाहरण है, प्राचीन दूर की टूटी-फूटी दीवारें वेद पुष्करणी नामक सरोवर तथा अनेक शिलालेख. रामानुज इस स्थान पर लगभग 12 वर्ष तक रहे थे और यहां निवास करते हुए उन्होंने अपने दार्शनिक विचारों का प्रचार किया था. वे यहां 1089 ई. में राजा विष्णुवर्धन की शरण में आकर रहे थे. मार्च मास में वैरामुड़ी नामक उत्सव यहां मनाया जाता है. इसमें देवता की मूर्ति को एक सातसौ वर्ष पुराने हीरक-मुकुट से अलंकृत किया जाता है जिससे होयसल नरेश में भेंट किया था. कहते हैं कि मुकुट में अमूल्य रत्न जड़े हुए हैं. (देखें तोन्नूर, यादवगिरि)
यादवगिरि
विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...यादवगिरि = यादवाद्रि, मैसूर (AS, p.771) मैसूर से 30 मील की दूरी पर स्थित है। इसे 'मेलूकोटे' भी कहा जाता है। इसी स्थान पर तोन्नूर नामक ग्राम बसा हुआ है। देवगिरि के यादव नरेशों के नाम से ही यह स्थान प्रसिद्ध था। प्रसिद्ध दार्शनिक तथा धर्माचार्य रामानुज, चोल नरेश करिकाल के अत्याचार से बचकर यादवगिरि के राजा विष्णुवर्धन की शरण में आकर रहे थे।
External links
References
- ↑ Joshi, Padmaja. "Exclusive: Why does Melkote go dark every Diwali?". India Today. Padmaja Joshi.
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.412
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.759
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.771