Mera Anubhaw Part-1

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मेरा अनुभव (भाग-1)
(सन्–1956)

मेरा अनुभव (भाग-1) महाशय धर्मपाल सिंह भालोठिया (27.1.1926 - 8. 10.2009) द्वारा सन् 1956 में रचित पुस्तक है इसमें शिक्षा एवं समाज सुधार के गाने हैं।

कविवर की रचनाओं के प्रति दो शब्द

कविना च विभु: विभुना च कवि: । कविना विभुना च विभाती सभा ।।

अर्थात - कवि से कविता, कविता से कवि तथा कवि और कविता से सभा की शोभा बढ़ती है । पाठक प्रवर ! शास्त्रकार की इस युक्ति के अनुकूल कविवर चौधरी धर्मपाल सिंह भालोठिया की कविताएं हैं । श्री भालोठिया जी इस बात के इच्छुक नहीं हैं कि मैं उनका परिचय दूं । हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान की जनता इन्हें बहुत पहले से जानती है । जब यह सभा के मध्य में अपने सुमधुर स्वर से गान करते हैं तो सचमुच इनकी फुदकती, फड़कती, मुर्दों में जान फूँकने वाली, सोतों को जगाने वाली, निरुत्साहितों को उत्साहित करने वाली, रोतों को हंसाने वाली, जोशीली कविताएं सभा के श्रोताओं को मुग्ध कर देती हैं । मैं पाठक वृंद से आशा करता हूं कि कविवर की जोशीली कविताओं को पढ़ सुनकर अधिकाधिक लाभ उठाएंगे तथा कवि के उत्साह को द्विगुणित करेंगे ।

आपका

भरत कुमार शास्त्री सिं० भू०

किसकन्दा

२ - श्री धर्मपाल सिंह भजनोपदेशक ने अपनी कृतियों द्वारा जनजागृति का जो कार्य किया है वह प्रशंसनीय है । आपके भजन जनता के हृदय को स्पर्श कर गुमराहों को सही रास्ता बताने में सामर्थ्यशाली सिद्ध हुए हैं । आज के निर्माण युग में देहातों के विकास व जागृति हेतु जो पद आपने लिखे हैं वह अपनाने योग्य हैं । मुझे पूरी आशा है कि देश की प्रगति में, वैचारिक क्रांति में इस पुस्तक का स्थान होगा ।

तारीख २८-१०-१९५६

कमला बेनीवाल स्वास्थ्य व शिक्षा उप मंत्री जयपुर - राजस्थान ३ - श्री भालोठिया जी के भजन सुनने का एक से अधिक बार मौका मिला है । देहाती जनता में वर्तमान योजनाओं को सही तरीके से बिठाने, समाज में फैली हुई आर्थिक तथा सामाजिक असमानता को दूर करने आदि की जो झलक आपके भजनों में प्रस्फुटित होती है वह शायद ही अन्य सज्जन की कृतियों में उपलब्ध हो । देहाती भोले भाले लोगों में अधिक से अधिक आपके भजनों को फैलाया जावे यह मेरी कामना है ।

तारीख २८- १० - १९५६

संपतराम उप मालमंत्री (अलवर) जयपुर (राजस्थान)

मैंने अनेक बार श्री भालोठिया जी के भजन सुने हैं , यह जिस ढंग से अपने भजनों द्वारा देश की सही आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक स्थिति का चित्रण करते हैं उसका आम जनता के मानस पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। इनके भजनों से केवल मनोरंजन ही नहीं होता है बल्कि देश की और प्रांत की वास्तविकता जाहिर होती है । यह जो पुस्तक (मेरा अनुभव) नाम की छप रही है वास्तव में यह समयानुकूल है । अत: इस पुस्तक को हर एक नागरिक को पढ़ना व सुनना चाहिए। आशा करता हूं इनका यह संदेश हर घर और गांव में फैलेगा ।

तारीख २८-१०-१९५६

नाथूराम मिर्धा (जोधपुर) भूतपूर्व स्वायत्त शासन व वित्त मंत्री जयपुर - राजस्थान

मेरा अनुभव पुस्तक के गाने मैंने पढ़े। लेखक के ऐसे ऐसे अनेक गाने अनेक अवसरों पर मैं स्वयं लेखक के मुंह से सुनती रही हूं । बाल्यकाल से ही ग्राम जागरण, नारी जागरण, अछूतोद्धार आदि समस्याओं को लेकर इन्होंने सही मानों में देश सेवा के रचनात्मक कार्य में सहयोग दिया है। इनके भजन भोली-भाली तथा निरक्षर ग्रामीण जनता पर किस प्रकार और कितना प्रभाव डालते हैं यह मैं देख चुकी हूं । मुझे पूरी आशा है कि इनका यह प्रयास पूर्ण सफल होगा । इनकी इस सामयिक रचना से जनता पूरा लाभ उठाएगी ।

कुमारी प्रेमलता बी.ए.बी.टी. आचार्या, मातृ महाविद्यालय, भगवद्भक्ति आश्रम, रेवाड़ी

झंडा गायन - 1

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा ।।

सदा शक्ति सरसाने वाला, प्रेम सुधा बरसाने वाला ।

वीरों को हरसाने वाला, मातृभूमि का तन मन सारा ।। 1 ।।

स्वतंत्रता के भीषण रण में, लखकर जोश बढ़े क्षण क्षण में ।

कांपे शत्रु देख कर मन में, मिट जाए भय संकट सारा ।। 2 ।।

इस झंडे के नीचे निर्भय, लें स्वराज्य हम अविचल निश्चय ।

भारत माता की जय, स्वतंत्रता हो धर्म हमारा ।। 3 ।।

आओ प्यारे वीरो आओ, देश धर्म पर बलि बलि जाओ ।

एक साथ सब मिलकर गावो , प्यारा भारत देश हमारा ।। 4 ।।

इसकी शान न जाने पाए, चाहे जान भले ही जाए ।

विश्व विजय करके दिखलाएं, तब होवे प्रण पूर्ण हमारा ।। 5 ।।

झंडा ऊंचा रहे हमारा, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ।

राष्ट्रीय गान – 2

सत् सुख चैन की वर्षा बरसे, भारत भाग है जागा ।।

पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा, द्राविड़, उत्कल बंगा ।

चंचल सागर, विंध्य हिमालय, निर्मल जमुना गंगा ।

तेरे ही गुण गायें, तुझसे जीवन पायें, सब जन पायें आशा।

सूरज बनकर जग पर चमके, भारत नाम सुभागा ।

जय हे , जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे ।। 1 ।।

सबके दिल में प्रीत बसाये, तेरी मीठी बानी ।

हर सूबे के रहने वाले, हर मजहब के प्राणी ।

सब निज भेद मिटा के, गोद में तेरी आके, गूंथे प्रेम की माला।

सूरज बनकर जग पर चमके, भारत नाम सुभागा ।

जय हे , जय हे, जय हे , जय, जय, जय, जय हे ।। 2 ।।

सुबह सवेरे पंख पखेरू, तेरे ही गुण गायें ।

बास भरी वह मस्त हवायें, जीवन में रस लायें ।

बोलें सब जन प्यारे, जय आजाद हिंद के नारे, प्यारा देश हमारा ।

सूरज बनकर जग पर चमके, भारत नाम सुभागा ।

जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे ।। 3 । ।

भजन – 3

तर्ज :- मन डोले, मेरा तन डोले........

दुनिया में आ, शुभ कर्म कमा, है दो दिन का मेहमान रे,

ये दुनिया हो हो जानी है ।। टेक ।।

जन्म-जन्म के शुभ कर्मों से, नर तन चोला पाया ।

रंग रूप और देख जवानी, क्यों मन में गरभाया ।

घड़ी और पल, हो ज्या मुश्किल, करे वर्षों का सामान रे,

ये दुनिया हो हो जानी है ।। 1 ।।

दिन तो खोया बदफैली में, सो के रात गँवाई ।

इसी तरह से चाहता अपनी, सारी उमर बिताई ।

कर्मों का फल, होता है अटल, नहीं टाल सके इंसान रे,

ये दुनिया हो हो जानी है ।। 2 ।।

तन मन धन से जीवन में, कोई सेवा धर्म कमाले ।

जन-जन की सेवा करके तूँ , जीवन सफल बनाले ।

जाये समय निकल, होवे चल चल, फिर पछतावे नादान रे,

ये दुनिया हो हो जानी है ।। 3 ।।

एक रोज दुनिया से नाता, तोड़ के जाना होगा ।

धर्मपाल सिंह तेरी जगह, किसी और का गाना होगा ।

तज दे छल बल, हो आज या कल, तेरा चलने का ऐलान रे,

ये दुनिया हो हो जानी है ।। 4 ।।

भजन – 4 (प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू)

आज दुनिया पर प्रेम का जादू मार दिया फिलहाल तनै ।

भारत मां के सपूत बेटे धन्य धन्य जवाहरलाल तनै ।। टेक ।।

दिन और रात उजड़ता देखा भारत रूपी बाग तनै ।

ऐश अमीरी छोड़ के खेला आजादी का फाग तनै ।

नहीं आज तक किया किसी ने जितना किया है त्याग तनै ।

अंग्रेजों की जेल में गाये आजादी के राग तनै ।

देश के अर्पण कर दिया अपना जितना था धन माल तनै ।। 1 ।।

भारत का बच्चा बच्चा क्यों नहीं करैगा याद तनै ।

अपना घर बर्बाद किया और देश किया आजाद तनै ।

जात पात के दूर किए सब झगड़े और फिसाद तनै ।

भारतवासी एक मात की बना दिए औलाद तनै ।

अंग्रेजों की भारत में फिर नहीं गलने दी दाल तनै ।। 2 ।।

सदियों में धोया है आज गुलामी वाला दाग तनै ।।

दुनिया में ऊंची कर दी फिर से भारत की पाग तनै ।

फेर बाग में फल और फूल लगाए सब्जी साग तनै ।

प्रेम की बारिश बरसा के दी बुझा फूट की आग तनै ।

हाथ मिला के अंग्रेजों को देश से दिया निकाल तनै ।। 3 ।।

अंग्रेजों के जाने पर भी नहीं किया आराम तनै ।

दिन-दूना और रात चौगुणा करना पड़ा है काम तनै ।

भूमंडल को सुना दिया आज शांति का पैगाम तनै ।

वाणी से बस में कर लिए दुनिया के लोग तमाम तनै ।

जगतगुरु भारत होने की जिंदा करी मिसाल तनै ।। 4 ।।

होती देखी आपस में दुनिया की धक्कापेल तनै ।

एकता का संदेश दिया दी तोड़ फूट की बेल तनै ।

हाइड्रोजन उदजन बम किए परमाणु बम फेल तनै ।

प्रेम से जीतो दुनिया को एक अजब दिखाया खेल तनै ।

शांति से की ठंडी राइफल और तोपों की नाल तनै ।। 5 ।।

एक एक घड़ी देश सेवा में बिताई दिन और रात तनै ।

देश विदेशों में करवाई भारत की मुलाकात तनै ।

आत्मशक्ति की दिखलाई दुनिया को करामात तनै ।

हुई सपूती इस युग में बेटा जण भारत मात तनै ।

धर्मपाल सिंह भालोठिया कहै कर दिए अजब कमाल तनै ।। 6 ।।

भजन-5 (जीवन का सफर)

सेवा से करते जाना प्यार, रे नादान मुसाफिर ।

नैया को करते जाना पार, रे नादान मुसाफिर ।। टेक ।।

सेवा ना छोड़ देना, हिेम्मत ना तोड़ देना ।

वर्ना तू डूबेगा मझधार, रे नादान मुसाफिर ।। 1 ।।

नेकों की संगत करना,बदियों से हरदम डरना ।

जीते जी करना पर उपकार, रे नादान मुसाफिर ।। 2 ।।

जीवन में खुशबू भरजा, जग को सुगन्धित करजा ।

करना जो चाहे मौज बहार, रे नादान मुसाफिर ।। 3 ।।

बापू की शान रखना, भारत का मान रखना ।

देना हो सिर भी देना वार, रे नादान मुसाफिर ।। 4 ।।

जब तक है जोश जवानी, बिगड़ी हर बात बनानी ।

होने ना पाये अत्याचार, रे नादान मुसाफिर ।। 5 ।।

प्रेम की बूँद पिलाजा, खुश रंग कोई फूल खिलाजा ।

हल्का हो कुछ तो तेरा भार, रे नादान मुसाफिर ।। 6 ।।

जीवन अनमोल हीरा, मिट्टी ना रोळ वीरा ।

तुझको समझाया बारम्बार, रे नादान मुसाफिर ।। 7 ।।

सेवा से प्रीति रखना, इसका फल मुक्ति चखना।

सागर से ‘‘देश‘‘ हो बेड़ा पार, रे नादान मुसाफिर ।। 8 ।।

भजन – 6 (परिवर्तन की आँधी)

तर्ज-सांगीत- मरण दे जननी, मौका ये ठीक बताया .......

दुनिया में कैसी गजब की आँधी आई ।। टेक ।।

धुआँधार धमधम करती हुई,पल में सिर पे आन चढ़ी ।

बाल्य अवस्था नहीं बुढ़ापा,बन बिल्कुल नौजवान चढ़ी ।

अपनी ताकत अजमाने को, ले पूरा सामान चढ़ी ।

मौत और जिन्दगी का युग में,लेकर एक तूफान चढ़ी ।

दुनिया वाले होश करो अब,करती ये ऐलान चढ़ी ।

भरे समुद्र सुखा दिये,पहाड़ों से कर मैदान चढ़ी ।

अपने और पराये की, करके पूरी पहचान चढ़ी ।

कितनों को जीवन दे गई और कितनों के ले प्राण चढ़ी ।

दिन दूनी और रात चौगुनी होती गई सवाई ।। 1 ।।

इस आँधी में भारत वर्ष से, अंग्रेजों का राज उड़ा ।

काफिर नीच गुलाम कुली और काले का इल्फाज उड़ा ।

हराम का खाने वालों का, चक्की चूल्हा छाज उड़ा ।

चिड़िया नहीं उड़ी, चिड़िया खाने वाला बाज उड़ा ।

भारतीयों पर लागू था, वह अंग्रेजी कानून उड़ा ।

इग्लैंड से बन कर आता, वह पूरा मजमून उड़ा ।

जुल्म से जनता का पिया था,आज वह सारा खून उड़ा ।

कन्ट्रोल से मिलने वाला ,चीनी कपड़ा चून उड़ा ।

जिसने पैर जमाया उसकी, पल में शान उड़ाई ।। 2 ।।

जनता से नफरत करते,वह मिस्टर और जनाब उड़े ।

गर्भ के अन्दर आते थे,वह राज ताज के ख्वाब उड़े ।

पीढ़ी दर पीढ़ी बनते वह,राजे और नवाब उड़े ।

वोट से राज चलेगा अब वह,जन्म के गलत हिसाब उड़े ।

राजाओं के बाद में, जागीरदारों की जागीर उड़ी ।

मस्तक में लिखवाकर लाये, वह सब की तहरीर उड़ी ।

गरीबों पर चलने वाली,जालिम की शमशीर उड़ी ।

सेवा नहीं उड़ी, आलसी बन्दों की तकदीर उड़ी ।

जिसको दी फटकार, नहीं दुनिया में मिली दवाई ।। 3 ।।

फिजूलखर्ची करने वालों की, बेढंगी चाल उड़ी ।

सुलफा और शराब अमल, रंडी भाण्डों की ताल उड़ी ।

गाय व बकरी उड़ी नहीं और घोड़ों की घुड़साल उड़ी ।

लाठी जेली उड़ी नहीं, बर्छी भाले और ढ़ाल उड़ी ।

छान झोंपड़ी उड़ी नहीं,कोठी बंगले गढ़ हाल उड़े ।

छप्पन भोग लगा करते वह,सोने चांदी के थाल उड़े ।

बिना भूख खाये जाते वह, तरह तरह के माल उड़े ।

निर्दोषों को फंसाने वाले,पारधियों के जाल उड़े ।

देशद्रोही गद्दारों की, करदी लोग हँसाई ।। 4 ।।

मृत्यु कर के बनते ही,लक्ष्मी होकर आजाद उड़ी ।

तिजोरियों में बन्द पड़ी रहने की आज मियाद उड़ी ।

बड़े बड़े पूंजीपतियों की, सम्पति जायदाद उड़ी ।

ईश्वर के दरबार से जालिम,जुल्मी की फरियाद उड़ी ।

साम्प्रदायिकता फैलाने वालों के प्रचार उड़े ।

अनुचित बातें लिखने वाले,कितने ही अखबार उड़े ।

छुआछूत बिमारी के आज,रोगी बेशुमार उड़े ।

धर्म नहीं उड़ने वाला, पर धर्म के ठेकेदार उड़े ।

स्वार्थी उड़ने लगे, धर्म की देने लगे दुहाई ।। 5 ।।

आँधी मतना समझ बावले,इन्कलाब की छाया है ।

परिवर्तन है विश्व में, आँधी का रूप बनाया है ।

जन जागृति का युग के, घर घर में बिगुल बजाया है ।

जिसने इसको नहीं पहचाना,वही आज पछताया है ।

युग को पलटा खाता देखकर, परिवर्तन भूगोल हुआ ।

किसी की बात अधूरी रह गई,किसी का पूरा कौल हुआ ।

किसी का वक्त बुरा आया,किसी के लिये अनमोल हुआ ।

किसी की जड़ पाताल गई, किसी का बिस्तर गोल हुआ ।

धर्मपालसिंह वक्त मुताबिक, शोभा दे कविताई ।। 6 ।।

भजन-7

भारत के नौजवान अपने कर्तव्य को पहचान ।

भलाई आपकी ।। टेक ।।

करते अपनी याद पुरानी, भारत की मशहूर कहानी ।

बल में और होशियारी में, पड़ी थी दुनिया सारी में ।

दुहाई आपकी ।। 1 ।।

स्वर्ग निशानी था देश हमारा, आसमान में चमका सितारा ।

रोज सलाम करते थे, मुल्क तमाम करते थे ।

बड़ाई आपकी ।। 2 ।।

जब से आई फूट बीमारी, तभी से बिगड़ी दशा तुम्हारी ।

दुर्योधन ने जुल्म ढाया, बाद में कुछ जयचन्द लाया ।।

तबाही आपकी ।। 3 ।।

रही जो छुआछूत देश में, बजेगा घर-घर जूत देश में ।

परदाफाश कर देगी, देश का नाश कर देगी ।

लड़ाई आपकी ।। 4 ।।

अब भी वक्त है होश संभालो, पिछडे़ हुओं को गले लगालो ।

पिछली माफ हो जागी, अगली साफ हो जागी ।

बुराई आपकी ।। 5 ।।

यदि किया नहीं खयाल आपने, परहेज को दिया टाल आपने ।

कौन फिर डॉक्टर आवे, नहीं कोई वैद्य बतलावे ।

दवाई आपकी ।। 6 ।।

पूरा जो कर दोगे बापू का कहना,फिर तो तुम आनन्द से रहना ।

अमरीका ईरान से, आवै इंगलिस्तान से ।

सगाई आपकी ।। 7 ।।

करलो आज प्रेम आपस में, दुनिया होगी आपके बस में ।

जहाँ धर्मपाल सिंह जावे, घूमकर दुनिया में गावे।

कविताई आपकी ।। 8 ।।

भजन - 8 (जाति का जंजाल)

तर्ज :- सांगीत- एजी एजी जगत में आयेगा तूफान ........

एजी एजी नहीं ये, बात समझ में आई ।

अलग अलग दुनिया में मनुष्य की, किसने जात बनाई ।। टेक ।।

सृष्टिकर्ता ने अपनी, रचना ये रचाई देखो ।

जन्म से मनुष्य की जाति, एक ही बनाई देखो ।

न्यारी न्यारी जाति कहीं, लिखी नहीं पाई देखो ।

गुण कर्मो से वर्ण चार, वेदों ने बताई देखो ।

लेकिन आज मनुष्यों की लो, सुनाऊँ मैं बात यहाँ ।

घर-घर में है जाति और मजहब का उत्पात यहाँ ।

ज्यों केले के पात में है, पात-पात में पात यहाँ ।

न्यूं मनुष्यों की जात में है, जात-जात में जात यहाँ ।

सुनो ध्यान से भाई ।। 1 ।।

ब्राह्मण बनिया जाट खाती, रैबारी सुनार कहीं ।

अहीर गुर्जर राजपूत, दरजी और मणियार कहीं ।

बाजगर डाकोत माली, सक्का और कहार कहीं ।

लीलगर सिकलीगर तेली, धोबी और लुहार कहीं ।

मोगिया मेरात पटवा, बादी बेलदार कहीं ।

बावरिया बागरिया भाण्ड, बोरिया सुथार कहीं ।

कानूनगो गडरिया जागा, बणजारा कुम्हार कहीं ।

नायक और खटीक भंगी, धाणक और चमार कहीं ।

जात की पडे़ दुहाई ।। 2 ।।

गाडिया लुहार चीता, हेला आदिवासी कहीं ।

कालबेलिया और मीणा, कंजर कोली सांसी कहीं ।

मजहबी और मदारी मोची, कूचबन्द पासी कहीं ।

डाबगर बिदाकिया और, खानगर मिरासी कहीं ।

अहेरी ठठेरा रैगर, तीरगर बलाई कहीं ।

रामदासिया साधसांतिया, चामठा नट राई कहीं ।

खारोल जुलाहा कनबी, खांट कंगी नाई कहीं ।

स्यामी मेर बोला भाट, जोगी और गुसाई कहीं ।

जन्म से बना कसाई ।। 3 ।।

बारगी बागरी जटिया, जाटव कुंजर गौड़ कहीं ।

गवारिया गरासिया, कोरिया गोधी ओड़ कहीं ।

वाल्मीकि गांछा मेहतर, ढोली बांसफोड़ कहीं ।

तगा और मरहटा, सिख खत्री रवा रोड़ कहीं ।

महाब्राह्मण घंचानी, मेहर मेघवाल कहीं ।

मेव क्यामखानी घोसी, जाति के चाण्डाल कहीं ।

सरभंगी नैरिया रावत, खटका सिंगीवाल कहीं ।

पिंजारा लखारा रावल, बदेरा कलाल कहीं ।

मुसलमान ईसाई ।। 4 ।।

जब से हुआ मजहब और जाति का प्रचार यहाँ ।

तब से भारतीयों की होने लगी, मिट्टी ख्वार यहाँ ।

जाति और मजहबों की, हुई भरमार यहाँ ।

आपस में हुआ ऊंच, नीच का व्यवहार यहाँ ।

होने लगा छोटे और, बडे़ का सवाल देखो ।

फूट की बीमारी ने यहाँ, डेरे लिए डाल देखो ।

बुरे कर्म करे आखिर, ऊँचे घर का लाल देखो ।

अच्छे कर्म करे लेकिन, जाति से चांडाल देखो ।

खुदी हजारों खाई ।। 5 ।।

लेकिन भारत वीरो ये है, वक्त की आवाज देखो ।

इन्कलाब आ रहा है, भूमण्डल में आज देखो ।

हमको भी बदलना होगा, अपना ये समाज देखो ।

छोड़ने पडेंगे गन्दे, रीति व रिवाज देखो ।

बडे़ होना चाहो बनके, छोटों के हिमाती देखो ।

छोटों की सेवा करके, बनते हैं पंचाती देखो ।

सेवा ही दुनिया में आज, सरदार बनाती देखो ।

धर्मपाल सिंह एक सेवा, काम आती देखो ।

कर दिन रात भलाई ।। 6 ।।

भजन-9

भारत के वीरो, अदना अमीरो, छोड़ो छुआछूत,

अब तो जाने दो ।

सदियाँ बीती, हुई फजीती, मिलते हैं सबूत,

अब तो जाने दो ।। टेक ।।

भाई व बहना, मानो ये कहना, इसमें भला है आपका ।

ऊँच नीच का भेद मिटाकर,काम करो इंसाफ का,ना होगा कोई अछूत,

अब तो जाने दो ।। 1 ।।

सेवा करते, विपदा भरते, काम किये क्या पाप के।

जगत पिता की सृष्टि में सब,बेटे हैं एक बाप के, जात पात का भूत,

अब तो जाने दो ।। 2 ।।

तज दो ये भ्रान्ति, होवे सुख शान्ति, इसमें आपकी शान है।

अगर आप से नही़ं मानोगे,तो कानूनी ऐलान है, लगेंगे सिर में जूत,

अब तो जाने दो ।। 3 ।।

जितने हो भारती, बनो परमार्थी, गाओ गीत सब प्यार के।

धर्मपालसिंह भालोठिया कहे,गुरू बनो संसार के, देश के बनो सपूत,

अब तो जाने दो ।। 4 ।।

भजन – 10 (छुआछूत का खंडन)

तर्ज:-सांगीत- एजी एजी जगत में आयेगा तूफान …….

एजी एजी सुनना, ध्यान से बात हमारी ।

भारत वासी दूर करो, ये छुआछूत बीमारी ।। टेक ।।

सृष्टिकर्ता ने अपनी, रचना ये रचाई देखो ।

जन्म से मनुष्य की जात, एक ही बनाई देखो ।

कोई भी निशानी नहीं, न्यारी लगाई देखो ।

फिर भी क्यों न आपके, समझ में बात आई देखो ।

भेद है तो आप करके, सभा में विचार देखो ।

कौन ब्राह्मण बनिया है, कौन है सुनार देखो ।

कौन जाट राजपूत, कौन है चमार देखो ।

कौन धाणक भंगी नायक, कौन है कुम्हार देखो ।

है कौन निशानी न्यारी ।। 1 ।।

देख लिया दुनिया में सब, एक है इन्सान देखो ।

पाँच कर्म इन्द्री और पाँच होती ज्ञान देखो ।

अंग पर निशानी जितनी, होती है समान देखो ।

नाप और रंग में कुछ, भेद है श्रीमान देखो ।

किसी के भी घर में पैदा, होती है संतान देखो ।

जन्म से जाति का करते, झूठा अभिमान देखो ।

कर्म से होती है, ऊँच नीच की पहचान देखो ।

मनुष्य का मनुष्य क्यों फिर, करता है अपमान देखो ।

अकल गई क्यों मारी ।। 2 ।।

बनना चाहो देश के गर, लाडले सपूत आज ।

घर-घर से मिटानी पडे़गी, छुआछूत आज ।

देश से भगाओ, साम्प्रदायिकता का भूत आज ।

क्योंकि इससे फूट रोग, बना है मजबूत आज ।

इसी कारण बजने लगा, घर-घर में जूत आज ।

जितने हम बरबाद हुए, इसी की करतूत आज ।

जब तक ये बीमारी रहे, बैठे नहीं सूत आज ।

पीछे तक के आज हमको, मिलते हैं सबूत आज ।

होती रही ख्वारी ।। 3 ।।

भूलनी पड़ेगी हमको, पीछे वाली बात आज ।

माननी होवेगी एक, मनुष्य की जात आज ।

इससे अधिक और क्या, फिर होवेगा उत्पात आज ।

कुत्तों से भी बुरा किया, मनुष्यों के साथ आज ।

या तो अपने आप समझो, पूरा मजमून आज ।

छुआछूत विरोधी, बन गया कानून आज ।

जेल में खाओगे बैठे, सरकारी चून आज ।

धर्मपाल सिंह का फिर, जलेगा खून आज ।

हालत देख तुम्हारी ।। 4 ।।

भजन-11 (कर्म की महत्ता)

तर्ज:- दया कर दान भक्ति का..........

किसी को कौम से मोहब्बत , किसी को नाम प्यारा है ।

हमें तो एक दुनिया में, मनुष्य का काम प्यारा है ।। टेक ।।

किसी को आनन्द लूट में, किसी को मजा फूट में ।

हमें तो चारों कूंट में, अमन सुबह शाम प्यारा है ।। 1 ।।

कोई धन जोड़ के धरता , जमीं में छोड़ के मरता ।

हमें तो जो दान करता है, वो कुटुम्ब तमाम प्यारा है ।। 2 ।।

कोई माने कर्मचन्द ने, कोई ईसा मोहम्मद ने ।

बताया जो दयानन्द ने, वही प्रोग्राम प्यारा है ।। 3 ।।

लगे क्यों लड़-लड़ के मरने, चले सुख शान्ति करने ।

दिया दुनिया को जवाहर ने, वही पैगाम प्यारा है ।। 4 ।।

दया न थी जागीरदारों को, लूटते थे काश्तकारों को ।

बचाया इन बेचारों को, श्री कुम्भाराम प्यारा है ।। 5 ।।

करो धर्मपालसिंह सेवा, एक दिन पाओगे मेवा ।

काम से पार हो खेवा, नहीं ये चाम प्यारा है ।। 6 ।।

भजन-12 (बात की करामात)

तर्ज:- सांगीत-एजी एजी जगत में आयेगा तूफान .........

एजी एजी जगत में, सबसे बड़ी है बात ।

बात के ऊपर मरते देखे, दुनिया में दिन रात ।। टेक ।।

बात पै ही हरिश्चन्द्र, बन भंगी के दास गये ।

बात पै ही फूल तोड़ने, बाग में रोहतास गये ।

बात पै ही राजा दशरथ, तज जीवन की आस गये ।

बात पै ही राम लक्ष्मण, सीता बनवास गये ।

बात पै ही भरत करने राम को तलाश गये ।

बात पै ही रावण लेकर सीताजी को खास गये ।

बात पै ही रामचन्द्र, कर लंका का नाश गये ।

बात पै ही हनुमान, सीताजी के पास गये ।

जहाँ थी सीता हवालात । जगत में........ ।। 1 ।।

बात पै ही पुष्कर बना, राज का अधिकारी देखो ।

बात पै ही नल राजा, बना था भिखारी देखो ।

बात पै ही बन में राजा, बना था शिकारी देखो ।

बात पै ही छूटे बंगले, महल और अटारी देखो ।

बात पै ही गई हाथी, घोडों की सवारी देखो ।

बात पै ही पल में हुई, जंगल की तैयारी देखो ।

बात पै ही संग में चली, दमयन्ती बेचारी देखो ।

बात पै ही दमयन्ती ने, हिम्मत नहीं हारी देखो ।

चाहे दुख पावे गात । जगत में....... ।। 2 ।।

बात पै ही महाभारत की, मिलती है तहरीर देखो ।

बात पै ही पांडव चले, बनकर के राहगीर देखो ।

बात पै ही खींचा गया, द्रोपदी का चीर देखो ।

बात पै ही अर्जुन चला, लेकर अपना तीर देखो ।

बात पै ही जख्मी हुआ, भीष्म का शरीर देखो ।

बात पै ही हुआ भाई, भाईयों का आखीर देखो ।

बात पै ही कृष्ण अर्जुन, बने थे फकीर देखो ।

बात पै ही दांत तोड़ने, लगा कर्णवीर देखो ।

दुनिया में विख्यात । जगत में.......।। 3 ।।

बात पै ही महाराणा प्रताप सिंह भी मरता रहा ।

बात पै ही भूखा प्यासा, वनों में विचरता रहा ।

बात पै ही घास खाके, अपना पेट भरता रहा ।

बात पै ही अकबर से, लड़ाई रोज करता रहा ।।

बात पै ही एक रोज, सूरजमल सम्राट चले ।

बात पै ही लाल किला, तोड़ने को जाट चले ।

बात पै ही रणभूमि में, करते मारकाट चले ।

बात पै ही दिल्ली जीत, पुष्कर के घाट चले ।

साथ किशोरी मात । जगत में.......।। 4 ।।

बात पै ही फतेहसिंह और जोरावर दो भाई देखो ।

बात पै ही पड़ी दोनों, बच्चों पर तबाही देखो ।

बात पै ही बादशाह ने, शक्ति अपनाई देखो ।

बात पै ही बच्चों ने नहीं, कायरता दिखाई देखो ।।

बात पै ही देश और, धर्म के रखवाले बने ।

बात पै ही अनमोल, जिन्दगी पर चाले बने ।

बात पै ही दोनों बच्चे, मौत के हवाले बने ।

बात पै ही हँसते-हँसते, भीतों के मसाले बने ।

बात में है करामात । जगत में...... ।। 5 ।।

बात पै ही बालक मूलशंकर जी बैरागी बना ।

बात पै ही दादा भाई, नोरोजी बड़भागी बना ।

बात पै ही नेहरू जैसा, कौन यहाँ त्यागी बना ।

बात पै ही सुभाष जैसा, देशभक्त बागी बना ।।

बात पै ही देश के, हजारों वीर जेल गये ।

बात पै ही उनके साथ, गाँधी और पटेल गये ।

बात पै ही कितने वीर, जान पर खेल गये ।

बात पै ही भालोठिया कहे, भर-भर रेल गये ।

देशभक्त विलात । जगत में....... ।। 6 ।।

भजन – 13

तर्ज:- चौकलिया

देशभक्त दुनिया में देश भलाई करते आए ।

पापी नीच कुटिल बदमाश बुराई करते आए ।। टेक ।।

दशरथ घर में पुत्र जन्मे पिता के आज्ञाकारी ।

राम लक्ष्मण और भरत शत्रुघ्न बिगड़ी बात संवारी ।

इनसे किया विरोध गई थी रावण की मति मारी ।

पंचवटी से हड़ के ले गया सीता जनक दुलारी ।

अपने कर्तव्य का पालन रघुराई करते आए ।

रावण सीता जी पर रोज तवाई करते आए ।। 1 ।।

श्री कृष्ण महापुरुष हुए थे योगी और ब्रह्मचारी ।

गीता ज्ञान दिया दुनिया को पढ़ते हैं नर नारी ।

कृष्ण जी के साथ कंस ने जुल्म किए थे भारी ।

हवालात में बंद किए कृष्ण के पिता महतारी ।

फिर भी श्री कृष्ण महाराज समाई करते आए ।

खुद के कर्म कंस की आप सफाई करते आए ।। 2 ।।

पांडू राजा के पाँच पुत्र संतोषी वीर खिलारी ।

राक्षसों के दुश्मन थे वह दीनों के हितकारी ।

कौरव खुदगर्जी में फंस गए जाने दुनिया सारी ।

क्या मांगें यह राजताज कै पांचों बनो भिखारी ।

भाइयों की इज्जत वह पांचों भाई करते आए ।

दुर्योधन दिन-रात जुल्म अन्यायी करते आए ।। 3 ।।

दिल्ली राज का मालिक था जब पृथ्वीराज बलकारी ।

देश की रक्षा करने में जिन कभी न हिम्मत हारी ।

जयचंद ने मोहम्मद गौरी को लिख लिख चिट्ठी डारी ।

चिट्ठी मिलते ही गौरी ने ली कर दिल्ली की तैयारी ।

गौरी के संग पृथ्वीराज लड़ाई करते आए ।

उसी गौरी की जयचंद नीच सहाई करते आए ।। 4 ।।

महाराणा प्रतापसिंह रहा सारी उमर फरारी ।

वक्त मुसीबत साथ रहे बच्चे और प्राण प्यारी ।

खुद भाई था मानसिंह भाई से की गद्दारी ।

गद्दारी का बुरा नतीजा होती रही ख्वारी ।

महाराणा अकबर पर रोज चढ़ाई करते आए ।

उसी अकबर से मानसिंह अस्नाई करते आए ।। 5 ।।

देखा बना गुलाम देश घर-घर में फूट बीमारी ।

बापूजी ने देश के अंदर आत्मशक्ति धारी ।

देश के हित बापूजी ने जेलों में उमर गुजारी ।

देशद्रोही देशभक्त से चिड़ते रहे अनारी ।

धर्मपाल सिंह कवि रोज कविताई करते आए ।

सुभाष वीर शहीदों की बड़ाई करते आए ।। 6 ।।

भजन-14 (चंचल मन)

तर्ज:-सांगीत - मरण दे जननी, मौका यो ठीक बताया......

दिल डटता कोनी, डाटूँ सूँ रोज भतेरा ।। टेक ।।

कभी मन चाहे मेरे, छात पर अटारी हो ।

कभी मन चाहे मेरे, मोटरकार लारी हो ।

कभी मन चाहे मेरे, हाथी की सवारी हो ।

कभी मन चाहे मैं, धरती पर ना पैर धरूँ ।

कभी मन चाहे मैं, आसमान की सैर करूँ ।

कभी मन चाहे मैं, जहाजों में माल भरूँ ।

कभी-कभी मन चाहे हो, चढणे नै उलेल बछेरा ।

दिल डटता कोनी..........।। 1 ।।

कभी मन चाहे मेरे, बाग में शिवाला हो ।

कभी मन चाहे मेरे, कन्धे पर दुशाला हो ।

कभी मन चाहे मेरे, साग में मसाला हो ।

कभी मन चाहे मेरे, बैठक बंगले नोहरे हों ।

कभी मन चाहे मेरे, दूध के बखोरे हों ।

कभी मन चाहे मेरे, पाँच सात छोरे हों ।

कभी-कभी मन न्यूँ चाहे, यहाँ घूमे जा लठ मेरा ।

दिल डटता कोनी.........।। 2 ।।

कभी मन चाहे मेरे, करोड़ों की कमाई हो ।

कभी मन चाहे मेरे, बढ़िया सी असनाई हो ।

कभी मन चाहे मेरे, खाणे को मिठाई हो ।

कभी मन चाहे मैं, अच्छे-अच्छे काज करूँ ।

कभी मन चाहे मैं, दुनिया का राज करूँ ।

कभी मन चाहे मैं, नखरे और मिजाज करूँ ।

कभी-कभी मन न्यूँ चाहे, मेरा हो अरबों का डेरा ।

दिल डटता कोनी.......... ।। 3 ।।

कभी मन चाहे मैं, साहूकार अमीर बनूँ ।

कभी मन चाहे मैं, निर्मोही फकीर बनूँ ।

कभी मन चाहे मैं, देश का वजीर बनूँ ।

कभी मन चाहे मैं, गाँधीजी की गैल बनूँ ।

कभी मन चाहे मैं, नेहरू या पटेल बनूँ ।

कभी मन चाहे मैं, भगतसिंह दलेल बनूँ ।

‘सुभाष’ कहे मन चाल, करूँ चरखी में दूर अंधेरा ।

दिल डटता कोनी.......... ।। 4 ।।

भजन-15 (मन की अस्थिरता)

== दोहा ==

मन लोभी मन लालची, मन चंचल मन चोर ।

मन के मते न चालिये, पलक-पलक मन ओर ।।

तर्ज:- चौकलिया

शील सबर संतोष बड़ा कोई, देख लियो आजमा के ।

उसी ठिकाणे आना हो, दुनिया में धक्के खाके ।। टेक ।।

सुनियो सजनों बात मेरे, एक आई याद पुरानी ।

घर-घर में चर्चा होती, ये है मशहूर कहानी ।

जहाँ तक मेरा विचार, बात ये झूठी नहीं बखानी ।

बिना विचारे काम करे, होती है आखिर हानि ।

फिर पछताये क्या बनता, गलती पर ध्यान लगाके ।

उसी ठिकाणे आना हो .........।। 1 ।।

लहटूरा शुभ नाम कहीं, एक सज्जन पुरूष कहाया ।

साधारण बुद्धि का मनुष्य, ईश्वर ने अजब बनाया ।

घर में देवी जी ने रोज, नया तूफान उठाया ।

खान-पान पहरान पति का, नाम पसंद नहीं आया ।

इससे पीछा कब छूटेगा, कहन लगी पछताके ।

उसी ठिकाणे आना हो ........।। 2 ।।

झगड़ा होता देख किसी ने, देवी को समझाया ।

किसी गाँव में एक बन्दे का, लक्खी नाम बताया ।

चली वहाँ से लक्खी के घर, आके डेरा लगाया ।

टूटी खटिया लोहे की परात, चूल्हा फूटा पाया ।

सुबह ही लक्खी चून माँगणे, चाल्या झोली ठाके ।

उसी ठिकाणे आना हो .........।। 3 ।।

यहाँ से किसी ने देवी जी, घर सूरा के पहुँचाई ।

सूरा के घर आ देवी ने, मन में खुशी मनाई ।

उस पर हमला कर दिया था, आ गये पड़ौसी भाई ।

लात व घूँसा मार-मार के, मरम्मत खूब बनाई ।

दिन छिपते ही भागा सूरा, अपनी जान बचाके ।

उसी ठिकाणे आना हो .........।। 4 ।।

इतने में एक बन्दे का कहीं, अमरा नाम बताया ।

अमरा नाम सुना देवी के, तन में आनन्द छाया ।

कितना सुन्दर नाम है इसकी, अमर रहेगी काया ।

लेकिन आप जानते हैं, ईश्वर की अदभुत माया ।

रात को अमरा मर गया, सुबह ही आ गये लोग जलाके ।

उसी ठिकाणे आना हो .........।। 5 ।।

जगह-जगह धक्के खाये, नहीं कहीं मिले घी बूरा ।

आखिर हो लाचार चली, बोली वहीं पटेगा पूरा ।

लक्खी चून माँगता देखा, भागता देखा सूरा ।

अमरा भी मैनें मरता देखा, पति भला लहटूरा ।

कहे धर्मपालसिंह चरण पकड़ लिए, लहटूरा के आके ।

उसी ठिकाणे आना हो.........।। 6 ।।

भजन-16 (गद्दारी)

तर्ज:- चौकलिया

भाईयों के संग गद्दारी कर, कहो कौन सुख पाया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा, अन्त समय पछताया ।। टेक ।।

एक भयानक बन में रहता, शेर बड़ा बलशाली ।

शेर गया कहीं जंगल में और गुफा पड़ी थी खाली ।

गीदड़ और गीदड़ी आ गये, शाम थी होने वाली ।

दो बच्चे थे साथ में उनके, उमर थी जिनकी बाली ।

खाली गुफा देख गीदड़ ने, अपना डेरा लगाया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा..........।। 1 ।।

पूरी रात शेर जंगल में, करता रहा घुमाई ।

हुआ सवेरा उसने अपने, घर की सुरत लगाई ।

गीदड़ को जिस वक्त शेर, दिया आता हुआ दिखाई ।

कहने लगा भगवान आज ये, कहाँ से आफत आई ।

बचने के लिए गीदड़ ने, फिर कैसा दाँव चलाया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा..........।। 2 ।।

जोर से बोला बनरानी, ये बच्चे क्यों चिल्लाते ।

बोली सिंह पछाड़ ये बच्चे, भूखे रूदन मचाते ।

शाम को लाया मांस शेर का, उसको क्यों नहीं खाते ।

बन रानी कहे नहीं खाने को, ताजा मांस मँगाते ।

गीदड़ बोला ठहर जरा, एक शेर नजर में आया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा..........।। 3 ।।

शेर ने जब ये बात सुनी, उसकी तबियत घबराई ।

सिंह पछाड़ और बनरानी से, भाग कर जान बचाई ।

आगे शेर को इसी गीदड़ का, मिला पड़ौसी भाई ।

गजब किया उसने अपने, भाई की चुगली खाई ।

घर का भेदी लंका ढ़ावे, वही कर दिखलाया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा..........।। 4 ।।

चला शेर के साथ में गीदड़, खुशी मनाई भारी ।

सिंह पछाड़ ने देखा, सुमरे दीनों के हितकारी ।

बन रानी इन बच्चों के आज, हो गई क्या बीमारी ।

बोली बच्चे भूखे मरते, रात बीतगी सारी ।

सिंह पछाड़ कहे भेजा नौकर, शेर यहीं बुलवाया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा..........।। 5 ।।

शेर ने जब ये बात सुनी, नहीं रहा था जोश बदन में ।

जैसे तैसे करके बड़ग्या, भाग-दौड़ के बन में ।

पीछे-पीछे आया गीदड़, हँसता आवे मन में ।

क्यों सिंहनी का दूध लजाया, धूल तेरे इस तन में ।

यदि वह होता इसा शिकारी, क्यूँ नहीं मुझको खाया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा..........।। 6 ।।

तेरे बिना नहीं बन का राजा, और कोई जंगल में ।

हिम्मत करले तेरा ये मसला, करवाऊँगा हल मैं ।

करले तू विश्वास तेरे संग, नहीं करने का छल मैं ।

यदि नहीं एतबार तेरी ले, पूँछ बांध मेरे गल में ।

अब के कर इन्तजाम शेर ने, अपना कदम उठाया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा..........।। 7 ।।

सिंह पछाड़ ने देखा अबके, भाई ने करा चाळा ।

हिम्मते-मर्दे मददे-खुदा, अपना हथियार संभाला ।

बनरानी अबके नौकर ने, शेर के फँदा डाला ।

धर्मपालसिंह सुन केहरी का, ढीला हुआ मसाला ।

मारा शेर ने घसीट गीदड़, करणी का फल पाया ।

गद्दारी का बुरा नतीजा..........।। 8 ।।

भजन-17 (नारी जागृति)

तर्ज:- दया कर दान भक्ति का...........

उठो अब देश की बहनों, तुम्हें भी काम करना है ।

अपने देश भारत को, स्वर्ग का धाम करना है ।। टेक ।।

सुनो छोटी बड़ी बहना, इतना मान लो कहना ।

पहन लो विद्या का गहना, यही इन्तजाम करना है ।। 1 ।।

बनो दुर्गा भवानी तुम, बनो झाँसी की रानी तुम ।

पढो उनकी कहानी तुम, वही प्रोग्राम करना है ।। 2 ।।

यदि पैदा करो संतान, योद्धा दानी और विद्वान ।

अपनी कोख से हनुमान, भरत और राम करना है ।। 3 ।।

बनो श्री जनक दुलारी तुम, बनो दमयन्ती प्यारी तुम ।

देवकी बन महतारी तुम, पैदा घनश्याम करना है ।। 4 ।।

बनी कृष्णा कुमारी तुम, कभी नहीं हिम्मत हारी तुम ।

विदुषी बनके नारी तुम, जगत में नाम करना है ।। 5 ।।

लगादो घर घर में आवाज, बदलना होगा सकल समाज ।

जेवर परदे का रिवाज, खतम तमाम करना है ।। 6 ।।

मिटादो आपस की तकरार, झुकेगा फिर सारा संसार ।

घर-घर विद्या का प्रचार, सुबह और शाम करना है।। 7 ।।

कहे धर्मपाल सिंह आओ, देश की शान बन जाओ ।

आम का आम बनाओ, गुठली का दाम करना है ।। 8 ।।

राजस्थान की ओर

भजन – 18

तर्ज:– एजी एजी जगत में आयेगा तूफान -------

एजी एजी बनी रहो कांग्रेस सरकार ।

राजस्थान प्रांत की चर्चा सुनो सभी नर नार ।। टेक ।।

परदायत हुकूमत का था कभी इंतजाम यहां ।

राजा और वजीर करते बंगलों में आराम यहां ।

फैशन और शराब के थे शौकीन तमाम यहां ।

जनता रहती मूर्ख भूखी नंगी और गुलाम यहां ।

जुल्मों का अंत कभी होता है जरूर देखो ।

चौबीस घंटे नशे में जो रहा करते चूर देखो ।

समय का तकाजा आया बने मजबूर देखो ।

आज उनका गलियों में बिखरता है नूर देखो ।

भिक्षुक बने सरदार ।। 1 ।।

कांग्रेस ने राजस्थान प्रांत यह बनाया यहां ।

बाईस रियासतों को आपस में मिलाया यहां ।

राजाओं से चुपचाप इस्तीफा लिखवाया यहां ।

जितने थे ठिकाने उनको ठिकाने लगाया यहां ।

आजतक पशुओं की भांति जीवन बिताया देखो ।

उनको आज कांग्रेस ने बोलना सिखाया देखो ।

रात दिन के अनहोने जुल्मों से बचाया देखो ।

थोड़े दिन के अंदर अंदर पलट दी काया देखो ।

आ रही अजब बहार ।। 2 ।।

आज की हुकूमत जैसी जनता कहे आई नहीं ।

पंचवर्षीय योजना भी किसी ने बनाई नहीं ।

कहत में सहायता दी जो अभी तक बताई नहीं ।

रकम और भूँगे की पहले हुई थी रिहाई नहीं ।

कांग्रेस सरकार ने ली हमसे एक पाई नहीं ।

कैंप खोल खोल गउएं किसी ने चराई नहीं ।

बीमारों को घूम कर दी इस तरह दवाई नहीं ।

नंगों को दे कपड़ा करी और ना सहाई नहीं ।

जो थे बे घरबार ।। 3 ।।

कांग्रेस सरकार ने काम किया भारी यहां ।

सांड और झोटों को दी सहायता न्यारी यहां ।

लंगड़े लूले लावारिस थी अंधों की ख्वारी यहां ।

पंद्रह रुपए इनको मिलने लगे माहवारी यहां ।

जापे में जो भूखी औरत रोवे थी बेचारी देखो ।

उनको भी इमदाद जो करती आहोजारी देखो ।

बाहर नहीं जाने दिया कोई भी नर-नारी देखो ।

गांवों में मजदूरी मिली नौकरी सरकारी देखो ।

करो सभी रोजगार ।। 4 ।।

सड़कों के काम कहीं चालू करवाए यहां ।

प्यासों के लिए पैसे पानी पर लगाए यहां ।

कितने ही तालाब, कुंड, कूप बनवाए यहां ।

कई जगह बड़े-बड़े जोहड़े खुदवाए यहां ।

जगह-जगह नहरों के भी जाल से बिछाये देखो ।

शिक्षा के लिए पैसे पानी ज्यों बहाए देखो ।

गरीबों के बच्चे देकर वजीफा पढ़ाये देखो ।

सरकीबंद लोग कितने गांवों में बसाये देखो ।

करने को उद्धार ।। 5 ।।

आज के वजीर करते रात दिन काम यहां ।

कांग्रेसी वर्करों ने सुबह और शाम यहां ।

कहत रूपी राक्षस से किया संग्राम यहां ।

भूख जैसी चीज का कहीं छोड़ा नहीं नाम यहां ।

मजदूर किसान की यहां एकता बनाई देखो ।

कहते सुने मैंने आज राजस्थानी भाई देखो ।

भूले नहीं श्री कुंभाराम की भलाई देखो ।

धर्मपाल सिंह बना बना कविताई देखो ।

करता रहा प्रचार ।। 6 ।।

भजन-19 (मोहनलाल सुखाड़िया मुख्यमंत्री)

तर्ज:- चौकलिया

आज देश में लगा दई अपनी सेवा की छाप तनै ।

मोहनलाल जी सुखाड़िया कहूं क्या राणा प्रताप तनै ।। टेक ।।

राणा उदयसिंह चित्तौड़ छोड़ उदयपुर आन बसाई थी ।

चित्तौड़ की रक्षा के लिए प्रताप ने तेग बजाई थी ।

भूखा प्यासा बन पहाड़ों में सारी उमर बिताई थी ।

मन के सपने मन में रह गये नहीं सफलता पाई थी ।

स्वर्ग में आज सुने राणा के दुख से भरे अलाप तनै ।। 1 ।।

गाडोलिये लुहार भी फिर चित्तौड़ की आशा छोड़ चले ।

देख गुलाम जन्मभूमि को सुख से नाता तोड़ चले ।

दर-दर फिरे भटकते देश में अपने गाड़े जोड़ चले ।

नेहरू जी के द्वारा आज वो फिर वापिस चित्तौड़ चले ।

उनके मन का धोया आज गुलामी वाला पाप तनै ।। 2 ।।

आपने चार सौ साल बाद राणा की आज्ञा पाली है ।

चित्तौड़ एक नहीं बल्कि बाईस चित्तौड़ संभाली है ।

विशाल राजस्थान की जबसे मिली आपको ताली है ।

आपकी सेवा के कारण यहां चमक उठी हरियाली है ।

आबू और अजमेर साथ में मिला लिए चुपचाप तनै ।। 3 ।।

मान और प्रताप के अंदर जब से मनमुटाव चला ।

जयपुर और उदयपुर में फिर शत्रुता का भाव चला ।

अब तक दोनों खानदान में रोज दांव पर दांव चला ।

नहीं मर्ज काबू में आया दिन दिन बढ़ता घाव चला ।

राष्ट्रपति द्वारा उनका करवाया आज मिलाप तनै ।। 4 ।।

जागीर प्रथा समाप्ति का जब यहां पर ऐलान हुआ ।

जागीरदारों के द्वारा यहां भारी खड़ा तूफान हुआ ।

भूस्वामी संघ नाम से एक आंदोलन का सामान हुआ ।

बनकर सत्याग्रही एकत्रित दस हजार इंसान हुआ ।

शांति और चतुरता से किया यह मार्ग भी साफ तनै ।। 5 ।।

किसान के हक में जो आपने अपना कदम उठाया है ।

किसी प्रांत ने अब तक नहीं ऐसा कानून बनाया है ।

खातेदारी हक देकर कितना फायदा पहुंचाया है ।

सिवाय किसान भूमि का नहीं मालिक और बताया है ।

धर्मपाल सिंह भालोठिया कहै कीले जहरी सांप तनै ।। 6 ।।

भजन - 20 (चौ. कुंभाराम आर्य मन्त्री )

तर्ज:- सांगीत-एजी एजी जगत में आएगा तूफान ----

एजी एजी मेरी बात सुनो कर गौर ।

हाथी चलता देखा कुत्ते लगे मचाने शोर ।। टेक ।।

आज की ना बात बहुत पुरानी मिसाल भाई ।

कुत्तों ने देखी थी एक दिन हाथी की चाल भाई ।

देख कर के जलने लगे पापी चांडाल भाई ।

कैसे इसको फेल करें दिल में किया खयाल भाई ।

आगे खड़ा होने से तो गले नहीं दाल भाई ।

हाय तौबा करने लगे करी नहीं टाल भाई ।

परंतु हाथी का नहीं बांका हुआ बाल भाई ।

उसी तरह चलता रहा हथनी का लाल भाई ।

कुत्तों का चला नहीं जोर ।। 1 ।।

राजस्थान प्रांत में एक फेफाना है ग्राम देखो ।

किसान के घर में जन्मे श्री कुंभाराम देखो ।

कौरवों के लिए पैदा हुआ घनश्याम देखो ।

गुंडे और बदमाशों की मौत का पैगाम देखो ।

गरीबों का सेवक बनके आया श्री राम देखो ।

किसान और मजदूर के घर में सुबह और शाम देखो ।

श्रद्धा और प्रेम से इनका रटा जाता नाम देखो ।

देश हित में समझा अपना जेलों में आराम देखो ।

गर्मी सर्दी भूख प्यास सहन कर तमाम देखो ।

कर्मवीर बन रोजाना करता रहा काम देखो ।

घूम घूम चहूँ ओर ।। 2 ।।

जनता की छाती पर शिला रखी हुई चार यहां ।

अंग्रेज, राजा, पूंजीपति, जागीरदार यहां ।

देख कर चौधरी दुखी हुआ था अपार यहां ।

कैसे काम करूं, करने लगा यह विचार यहां ।

जब तक चार शिला नहीं दूंगा मैं उतार यहां ।

अपना जन्म लेना देखो समझूंगा बेकार यहां ।

करके प्रण चला वीर छोड़ के घरबार देखो ।

रास्ते में आई चाहे आपत्ति हजार देखो ।

प्रतिदिन तेज होती गई रफ्तार देखो ।

तीन शिला तार दई चौथी पै सवार देखो ।

चलै तूफानी दौर ।। 3 ।।

आज चौधरी को करने चले हैं बदनाम देखो ।

राजा जागीरदार पूंजीपति सरे आम देखो ।

कुछ कौमी गद्दार मिले आदत के गुलाम देखो ।

चोरी डाके बदमाशी के लगावें इल्जाम देखो ।

लेकिन उन साथियों से मेरी है अरदास सुनो ।

काम करना सीखो आप छोड़ के बकवास सुनो ।

अगर देश सेवा में तुम होते नहीं पास सुनो ।

धर्मपाल सिंह कहै लाओ काट-काट घास सुनो ।

चराओ अपने ढोर ।। 4 ।।

भजन – 21 (चौ. कुंभाराम आर्य मन्त्री)

तर्ज:- चौकलिया

धर्म नकुल सहदेव भीम कहूँ अर्जुन या घनश्याम तनै ।

राजस्थान के सपूत बेटे धन्य धन्य कुंभाराम तनै ।। टेक ।।

जब से होश संभाला अपने दिल में सोची बात तनै ।

देश की सेवा करनी चाहिए चिंता की दिन-रात तनै ।

गरीब जनता के ऊपर होते देखे उत्पात तनै ।

छोड़ नौकरी सरकारी स्वार्थ के मारी लात तनै ।

आजादी की लड़ूँ लड़ाई बना लिया प्रोग्राम तनै ।। 1 ।।

मजदूर और किसानों का करवा आपस में मेल तनै ।

सामंत शाही के खिलाफ करवा दी धक्का पेल तनै ।

बड़ी सावधानी से खेला आजादी का खेल तनै ।

जिसके कारण कई बार फिर पड़ी देखनी जेल तनै ।

जेलों के अंदर ही समझा अपना ऐशो आराम तनै ।। 2 ।।

बीकानेर वजीर बने वहां लिया महकमा माल तनै ।

मजदूर और किसानों की जड़ गाड़ दई पाताल तनै ।

जयपुर में जा गृहमंत्री पद को दिया संभाल तनै ।

गृह विभाग के इंतजाम की छोड़ी बना मिसाल तनै ।

खुले चरते देखे उनके डाली पकड़ लगाम तनै ।। 3 ।।

अपना फर्ज अदा करने का रहा हमेशा ध्यान तनै ।

मरुभूमि का देश में सबसे ऊंचा किया निशान तनै ।

स्वार्थवश बदनाम करैं आज कुछ थोड़े शैतान तनै ।

उनके लिए ईश्वर से मांग्या सद्बुद्धि का दान तनै ।

सद्बुद्धि मिल जाने पर वह नहीं करैं बदनाम तनै ।। 4 ।।

पशु कहाने वालों को आज बना दिया इंसान तनै ।

जोश के इंजेक्शन देकर मुर्दों में डाली ज्यान तनै ।

अपने असली रूप की सबको करवाई पहचान तनै ।

जुग-जुग याद करेगी मजदूर किसान की संतान तनै ।

ह्रदय सम्राट मानैं यहां के गरीब लोग तमाम तनै ।। 5 ।।

गांव गांव और गली गली में खूब लगाई दौड़ तनै ।

सदियों से बिखरे मणिये दिए फिर माला में जोड़ तनै ।

गुंडे और बदमाशों की भी छोड़ी नहीं मरोड़ तनै ।

जागीरदारी गंदी प्रथा का दिया भंडाफोड़ तनै ।

धर्मपाल सिंह भालोठिया कहै खूब किया इंतजाम तनै ।। 6 ।।

गयादत्त प्रेस, बाग दिवार, देहली