Mera Anubhaw Part-2/Bure Vyasan-Nasha
रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया
ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, 946038954623. छोड़ दे सजनवां, छोड़ दे, शराब पीना
कवि ने समाज में व्यापत शराब रूपी बीमारी को दूर करने के लिए अपनी रचनाओं के माध्यम से जनता को जागृत किया -
- ।। भजन-23 ।।
तर्ज - छोड़ दे सजनीया, छोड़ दे, पतंग मेरी छोड़ दे........
छोड़ दे सजनवां , छोड़ दे, शराब पीना छोड़ दे ।। टेक ।।
लख चौरासी के चक्कर का, देखा अद्भुत खेल यहाँ।
जन्म-जन्म के शुभ कर्मों का, जिस दिन होता मेल यहाँ।
खोड़ दे सजनवां, खोड़ दे, भगवान मनुष्य की खोड़ दे।।
- छोड़ दे सजनवां---।। 1 ।।
गंदा खाना, गंदा बाना, समझो नरक निशानी हो।
इज्जत लुट जा धेले में, और धन जोबन की हानि हो।
मोड़ दे सजनवां, मोड़ दे, जीवन की धारा मोड़ दे ।।
- छोड़ दे सजनवां--।। 2 ।।
जो कोई पीता, करे फजीता, गिरता गंदी नाली में।
सात पुश्त का लुटे खजाना, एक छोटी सी प्याली में।
तोड़ दे सजनवां, तोड़ दे, इस पापण से मोह तोड़ दे ।।
- छोड़ दे सजनवां---।। 3 ।।
धर्मपाल सिंह भालोठिया की, झूठ रत्ती नहीं वाणी में।
लाखों घर बर्बाद हुए , इन बोतलों के पाणी में।
फोड़ दे सजनवां, फोड़ दे, हरी लाल पीली फोड़ दे ।।
- छोड़ दे सजनवां--।। 4 ।।
24. देखी महफिल, अजब निराली
- ।। भजन-24।। (शराब का खण्डन)
तर्ज - तेरे कहे में रहूँ ऋषि जी, रहूँ ऋषि जी, मैं मैं मैं मैं मैं ........
देखी महफिल, अजब निराली, अजब निराली, पी पी पी पी पी।
हो रही पी पी पी पी पी, करें मतवाले पी पी पी पी पी ।। टेक ।।
छठी दिसोठण गृहस्थी के, शुभ दिन भगवान दिखावे।
झाबर झण्डू मांगे ठण्डू , कोई नाचे कोई गावे।
आवे जिस दिन, होली दिवाली, होली दिवाली, पी पी पी पी पी।।
- हो रही पी पी पी पी पी -----।। 1 ।।
ब्याह शादी में पी पी हो रही, पीवण लागे बाराती।
एक जगह मांढेती पीवें, एक जगह पर भाती।
खुराफाती फिर, दे रहे गाली,दे रहे गाली, पी पी पी पी पी ।
- हो रही पी पी पी पी पी -----।। 2 ।।
पी मतवाले पागल हो गये, तन की सुध बुध भूली।
धक्का मुक्की लात चलें, गई टूट एक की कुल्ली।
खुल्ली लांगड़, फिरे कुचाली, फिरे कुचाली, पी पी पी पी पी।
- हो रही पी पी पी पी पी ----।। 3 ।।
समधी-समधी पीवण लागे, मिली गजब की जोट।
धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, करें चोट पर चोट।
नोट बीस का और एक प्याली, और एक प्याली, पी पी पी पी पी।
- हो रही पी पी पी पी पी ----।। 4 ।।
25. भांति भांति की बीमारी
- ।। भजन-25।।
तर्ज - चौकलिया
एड्स कैंसर की बीमारी, मारे एक बीमार को।
एक बीमारी शराब मारे, एक साथ परिवार को।। टेक ।।
टी. बी.,कैंसर एड्स तन में, मौत का त्यार करें चेजा।
इनका रोगी चन्द रोज में, कुणबे को धक्का देजा।
बिजली जैसा झटका कर दे, जिस दिन आ जावे हैजा।
चाहे जवान चाहे बच्चा बूढ़ा, डाकी मिन्टों में ले जा।
शराब अपनी धीरे-धीरे, तेज करे रफ्तार को ।।
- एक बीमारी शराब .......।। 1 ।।
और बीमारी तो ले जाती, केवल एक शरीर को।
जिसके शराब मुँह लागे, नहीं आवे नींद अमीर को।
कोई कर्ज लेकर के पीवे, कोई बेचे जागीर को।
घर की ठोड़ बटोड़ा हो, कुणबा रोवे तकदीर को।
नगरी में सन्नाटा छा जा, सुनके हाहाकार को ।।
- एक बीमारी शराब .......।। 2 ।।
ठेकेदार शराबी को कभी, आया नहीं देण न्यूता।
फिरे नशे में पागल होके, सिर में रोज पडे़ं जूता।
जब बिल्कुल बेहोश हो गया, गाळ में नंगा सूता।
मुँह पाड़ पाड़ के साँस ले रहा, मुँह में मूत रहा कुत्ता।
देख-देख के लोग हँसे, इस नरसिंह के अवतार को।।
- एक बीमारी शराब .......।। 3 ।।
शराबी का घर दिन-धोले, हम रोजाना लुटता देखें।
कभी किसी को आवे पीट के, कभी आप कुटता देखें।
सारा कुणबा परेशान, संकट में दम घुटता देखें।
बाप दादा का बसा बसाया, पल में घर छुटता देखें।
भालोठिया कहे बन्द करो, अब इस भीतरली मार को।।
- एक बीमारी शराब .......।। 4 ।।
26. देख देख तेरे कर्म राम की सूँ
- ।। भजन-26।।
तर्ज - भरण गई थी नीर राम की सूँ ......
देख-देख तेरे कर्म राम की सूँ,
आवै सै मनै शर्म राम की सूँ।। टेक ।।
खानदान घर के बच्चे, नशा नहीं किया करते।
शराब सुलफा गाँजा भाँग, कभी नहीं पीया करते।
दूध घी मलाई सब्जी, रोटी खाके जीया करते।
- न्यू कहे हमारा धर्म राम की सूँ ।। 1 ।।
जितने भी नशे हैं सब में, गन्दी है शराब पिया।
बड़े-बडे़ खोये इसने, राजा और नवाब पिया:
धन जोबन का नाश करे, खो देवे सारी आब पिया।
- खो दे सारा भ्रम राम की सूँ ।। 2 ।।
जगह-जगह शराबी के, सिर में पडें जूत पिया।
पड़ा है गली में नंगा, बना हुआ भूत पिया।
देख लो तमाशा , मुँह में कुत्ते रहे मूत पिया।
- पीवे गर्मा-गर्म राम की सूँ ।। 3 ।।
सबकी जड़ शराब जग में, जितनी भी बुराई पिया।
जिस घर में ये आई उसकी, हो गई सफाई पिया।
भालोठिया ने बात, बड़े काम की बताई पिया।
- दुख पावे मेरा ब्रह्म राम की सूँ ।। 4 ।।
27. नशेबाज बन, शराब
- ।। भजन-27।।
तर्ज - एक परदेसी मेरा दिल ले गया ........
नशेबाज बन शराब, अफलातून पीता है।
शराब नहीं अपने बच्चों का, खून पीता है ।। टेक ।।
बन जाता इतना मतिहीन, करे नित्य ओछे कर्म कमीन।
जमीन गिरवी रखदी, लेकर लोन पीता है ।। 1 ।।
शराब पीकर बना जुआरी, बेच दई सम्पत्ति सारी।
भिखारी घर-घर माँग, बेच के चून पीता है ।। 2 ।।
सब्जी बेच के पीवे माली, अन्न दूध बेच के पीवे हाली।
पाली बेच अपनी भेड़ों की ऊन पीता है ।। 3 ।।
सूक्या मांस, सुकड़गी खाल, शरीर का बनग्या कंकाल।
धर्मपाल कहे बनके कारटून पीता है ।। 4 ।।
28. देख लिया संसार में - पिंगला भरथरी
- ।। भजन-28।। जार कर्म - वासना का नशा
तर्ज - गंगाजी तेरे खेत में.............
देख लिया संसाऽऽऽर में, हो धन जोबन का नाश।
मनुष्य बदनाऽऽऽम हो,विषयों में फँसकेऽऽऽ।। टेक ।।
कामी नर के हरदम विषय, वासना का नशा रहे।
चौबीस घन्टे चैन नहीं, मन विषयों में फँसा रहे।
अैयासी के गीत गावे, रोगी जैसी दशा रहे।
कहानी एक सुनो राजा, भरथरी के काल की।
आये थे ऋषि एक जहाँ, सभा थी महीपाल की।
ऋषिजी के हाथ में थी, चीज एक कमाल की।
राजा को उपहाऽऽऽर में, दे दिया अमर फल खास।
- मनुष्य बदनाऽऽऽम हो .........।। 1 ।।
राजा मन में सोचे किया ऋषि ने उपकार मेरा।
लेकिन दुनिया जाने कितना, रानीजी से प्यार मेरा।
दिन और रात तड़फे वोह भी, करके इन्तजार मेरा।
क्या करूँगा अमर होके, खाना सै बेकार मेरा।
रानी जी की भेंट करूँ, यही सै विचार मेरा।
पतिव्रता देवी वही, जीवन का आधार मेरा।
एतबार मेरा उस नाऽऽऽर में, झट आया था रणवास।
- मनुष्य बदनाऽऽऽम हो .......।। 2 ।।
राजा बोला महल में, जरूरी काम आया रानी।
तेरे लिए एक मैं, अनोखी चीज लाया रानी।
उसको तू खालेगी तेरी, अमर होज्या काया रानी।
देकर के अमरफल, राजा भरथरी रवाना हुआ।
रानी जी अमर हो, मेरा स्वर्ग में ठिकाना हुआ।
उसी समय महल में फिर, कोतवाल का आना हुआ।
थी जिसके इन्तजाऽऽऽर में, हो गई थी पूरी आस।
- मनुष्य बदनाऽऽऽम हो ....... ।। 3।।
रानी बोली कोतवाल से, भेंट ये मंजूर करें।
प्रेम की निशानी याद, मेरी ये जरूर करें।
इसको इस्तेमाल करके, मौत का भय दूर करें।
अमरफल को लेकर उसने, महल से प्रस्थान किया।
मुबारक हो रानी तैने, मेरे पै अहसान किया।
उसने फिर अमरफल ल्याके, रंडी को दान किया।
मान किया तेरे प्याऽऽऽर में, बने मेरा इतिहास।
- मनुष्य बदनाऽऽऽम हो ........ ।। 4।।
रंडी ने फिर अपनी सारी, जिंदगी का खयाल किया।
बदफैली में फँस के जन्म, हीरा सा पायमाल किया।
मेरा तो मरना ही अच्छा, अपना बुरा हाल किया ।
भरथरी की बच्चा-बच्चा, घर-घर में बड़ाई करे।
पर उपकारी राजा, दीन दुखियों की सहाई करे।
हो जावे अमर तो और दुनिया की भलाई करे।
सुनाई करे दरबाऽऽऽर में, जा दिया अमरफल खास।
- मनुष्य बदनाऽऽऽम हो ........।। 5 ।।
फल को लेके राजा बोला, देवी सुनले मेरी बात।
लाई है कहाँ से, मैं करूँगा पूरी तहकीकात।
रंडी बोली राजा, मेरी कोतवाल से मुलाकात।
राजा बोला कोतवाल से, इस फल का बतादे बाग।
कहाँ पर हैं पेड़ इसके और भी हों सब्जी साग।
घूमकर देखूँगा उसको, कोयल भौंरे गावें राग।
राजन हूँ लाचाऽऽऽर मैं, रानी से करो तलाश।
- मनुष्य बदनाऽऽऽम हो ....... ।। 6 ।।
रानी को बुलाके राजा, बोला था बतादे प्यारी।
अमरफल दिया था उसमें, कुछ थोड़ा सा ल्यादे प्यारी।
उसके बिना ज्यान जा सै, मरते न बचादे प्यारी।
रानी बोली राजा मैं हूँ , पतिव्रता रानी आज।
आपके बदले में दे दूँ , मैं अपनी जिन्दगानी आज।
अमरफल तो खाया उसकी, मिले नही निशानी आज।
भालोठिया प्रचाऽऽऽर में, दे मिटा तेरा विश्वास।
- मनुष्य बदनाऽऽऽम हो ....... ।। 7 ।।