Mera Anubhaw Part-2/Chanchal-Man, Gaddari, Karmhin, Khatka
रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया
ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो॰ 946038954668. दिल डटता कोनी, डाटूँ सूँ रोज भतेरा
- भजन-68
तर्ज - सांगीत - मरण दे जननी,मौका यो ठीक बताया.......।
दिल डटता कोनी, डाटूँ सूँ रोज भतेरा।। टेक ।।
कभी मन चाहे मेरे, छात पर अटारी हो।
कभी मन चाहे मेरे, मोटरकार लारी हो।
कभी मन चाहे मेरे, हाथी की सवारी हो।
कभी मन चाहे मैं, धरती पर ना पैर धरूँ।
कभी मन चाहे मैं, आसमान की सैर करूँ।
कभी मन चाहे मैं, जहाजों में माल भरूँ।
कभी-कभी मन चाहे हो, चढणे नै उलेल बछेरा।
दिल डटता कोनी..........।। 1 ।।
कभी मन चाहे मेरे, बाग में शिवाला हो।
कभी मन चाहे मेरे, कन्धे पर दुशाला हो।
कभी मन चाहे मेरे, साग में मसाला हो।
कभी मन चाहे मेरे, बैठक बंगले नोहरे हों।
कभी मन चाहे मेरे, दूध के बखोरे हों।
कभी मन चाहे मेरे, पाँच सात छोरे हों।
कभी-कभी मन न्यूँ चाहे, यहाँ घूमे जा लठ मेरा।
दिल डटता कोनी.........।। 2 ।।
कभी मन चाहे मेरे, करोड़ों की कमाई हो।
कभी मन चाहे मेरे, बढ़िया सी असनाई हो।
कभी मन चाहे मेरे, खाणे को मिठाई हो।
कभी मन चाहे मैं, अच्छे-अच्छे काज करूँ।
कभी मन चाहे मैं, दुनिया का राज करूँ।
कभी मन चाहे मैं, नखरे और मिजाज करूँ।
कभी-कभी मन न्यूँ चाहे, मेरा हो अरबों का डेरा।
दिल डटता कोनी..........।। 3 ।।
कभी मन चाहे मैं, साहूकार अमीर बनूँ।
कभी मन चाहे मैं, निर्मोही फकीर बनूँ।
कभी मन चाहे मैं, देश का वजीर बनूँ।
कभी मन चाहे मैं, गाँधीजी की गैल बनूँ।
कभी मन चाहे मैं, नेहरू या पटेल बनूँ।
कभी मन चाहे मैं, भगतसिंह दलेल बनूँ।
‘सुभाष’ कहे मन चाल, करूँ चरखी में दूर अंधेरा।
दिल डटता कोनी..........।। 4 ।।
- === गद्दारी===
69. भाइयों के संग गद्दारी, कर
- ।। भजन-69 ।।
तर्ज - चौकलिया
भाईयों के संग गद्दारी कर, कहो कौन सुख पाया।
गद्दारी का बुरा नतीजा, अन्त समय पछताया।। टेक ।।
एक भयानक बन में रहता, शेर बड़ा बलशाली।
शेर गया कहीं जंगल में और गुफा पड़ी थी खाली।
गीदड़ और गीदड़ी आ गये, शाम थी होने वाली।
दो बच्चे थे साथ में उनके, उमर थी जिनकी बाली।
खाली गुफा देख गीदड़ ने, अपना डेरा लगाया।
- गद्दारी का बुरा नतीजा..........।। 1 ।।
पूरी रात शेर जंगल में, करता रहा घुमाई।
हुआ सवेरा उसने अपने, घर की सुरत लगाई।
गीदड़ को जिस वक्त शेर, दिया आता हुआ दिखाई।
कहने लगा भगवान आज ये, कहाँ से आफत आई।
बचने के लिए गीदड़ ने, फिर कैसा दाँव चलाया।
- गद्दारी का बुरा नतीजा..........।। 2 ।।
जोर से बोला बनरानी, ये बच्चे क्यों चिल्लाते।
बोली सिंह पछाड़ ये बच्चे, भूखे रूदन मचाते।
शाम को लाया मांस शेर का, उसको क्यों नहीं खाते।
बन रानी कहे नहीं खाने को, ताजा मांस मँगाते।
गीदड़ बोला ठहर जरा, एक शेर नजर में आया।
- गद्दारी का बुरा नतीजा..........।। 3 ।।
शेर ने जब ये बात सुनी, उसकी तबियत घबराई।
सिंह पछाड़ और बनरानी से, भाग कर जान बचाई।
आगे शेर को इसी गीदड़ का, मिला पड़ौसी भाई।
गजब किया उसने अपने, भाई की चुगली खाई।
घर का भेदी लंका ढ़ावे, वही कर दिखलाया।
- गद्दारी का बुरा नतीजा..........।। 4 ।।
चला शेर के साथ में गीदड़, खुशी मनाई भारी।
सिंह पछाड़ ने देखा, सुमरे दीनों के हितकारी।
बन रानी इन बच्चों के आज, हो गई क्या बीमारी।
बोली बच्चे भूखे मरते, रात बीतगी सारी।
सिंह पछाड़ कहे भेजा नौकर, शेर यहीं बुलवाया।
- गद्दारी का बुरा नतीजा..........।। 5 ।।
शेर ने जब ये बात सुनी, नहीं रहा था जोश बदन में।
जैसे तैसे करके बड़ग्या, भाग-दौड़ के बन में।
पीछे-पीछे आया गीदड़, हँसता आवे मन में।
क्यों सिंहनी का दूध लजाया, धूल तेरे इस तन में।
यदि वह होता इसा शिकारी, क्यूँ नहीं मुझको खाया।
- गद्दारी का बुरा नतीजा..........।। 6 ।।
तेरे बिना नहीं बन का राजा, और कोई जंगल में।
हिम्मत करले तेरा ये मसला, करवाऊँगा हल मैं।
करले तू विश्वास तेरे संग, नहीं करने का छल मैं।
यदि नहीं एतबार तेरी ले, पूँछ बांध मेरे गल में।
अब के कर इन्तजाम शेर ने, अपना कदम उठाया।
- गद्दारी का बुरा नतीजा..........।। 7 ।।
सिंह पछाड़ ने देखा अबके, भाई ने करा चाळा।
हिम्मते-मर्दे मददे-खुदा, अपना हथियार संभाला।
बनरानी अबके नौकर ने, शेर के फँदा डाला।
धर्मपालसिंह सुन केहरी का, ढीला हुआ मसाला।
मारा शेर ने घसीट गीदड़, करणी का फल पाया।
- गद्दारी का बुरा नतीजा..........।। 8 ।।
- === कर्महीन ===
70. सकल पदार्थ हैं जग मांही
- ।। भजन-70।।
तर्ज - होगा गात सूक के माड़ा,पियाजी दे दे मनैं कुल्हाडा़..........
सकल पदारथ है जग मांही, कर्महीण नर पावत नाहीं।
आई चौपाई रामायण में, रहे कर्महीण नुकसान में।। टेक ।।
शिव पार्वती बैठे बन में, प्राणी आ गये तीन।
एक लड़का दो बुड्ढ़ा-बुड्ढ़ी, उनका दिखाऊँ सीन।।
कर्महीन थे तीनों प्राणी, खोवें टोटे में जिन्दगानी।
हानि लाभ रहे नहीं ध्यान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 1 ।।
गोरां बोली पति आप हो, परदुख भंजन हारी।
इनको मालोमाल बना दो, मिटे मुसीबत सारी।।
भारी उठा रहे परेशानी, रहेगी आपकी बनी कहानी।
दानी हो सबसे बड़े जहान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 2 ।।
शिवजी बोले बूढ़े बाबा, कुछ भी मांग लो आज।
अन्न-धन की नहीं कमी रहण द्यूँ ,चाहे मांग लो राज।।
ताज तखत मिले सरकारी, हो दरबार की शोभा न्यारी।
सारी बनजां बात जबान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 3 ।।
हाथ जोड़ कर बूढ़ी बोली, नहीं माँगू धन-माल।
जेवर कपड़े रंग रूप दो, उमर अठारह साल।।
बाल काले हों, जावे बुढ़ापा, खाऊँ गूँद देखल्यूँ जापा।
छापा लागे उमर जवान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 4 ।।
फिर बोली बूढ़े से, बाबा सुनले तोड़ खुलासा।
तेरे साथ मैं नहीं रहूँ ,अब नया करूँ घर बासा।।
तमाशा देखलो घर फूँक, बूढ़ा रोया मार के हूक।
टूक अब कुण सेकेगा छान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।।5 ।।
बुड्ढ़ा बोला शिवजी देवता, कहन पुगादे मेरा।
सूरी बनादे इस रंडी नै, गुण नहीं भूलूँ तेरा।।
डेरा बसा बसाया छुटग्या, मेरा देख-देख दम घुटग्या।
लुटग्या मैं चौडे़ मैदान में, रहे कर्महीन नुकसान में ।। 6 ।।
शिवजी महाराज ने देखी, अब बुड्ढ़े की मजबूरी।
बनड़ी बनने वाली की, तत्काल बनादी सूरी।।
भूरी भद्दी शक्ल बनाई, हो गई बुड्ढ़े की मनचाही।
ताई सूनी फिरे बियाबान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 7 ।।
लड़का रोवे खड़ा-खड़ा, मिलगे धरती आकाश।
शिवजी बोले कुछ भी माँगो, बेटा मेरे पास।।
आस मैं तेरी पूरी करद्यूँ ,जो माँगेगा वोही वर द्यूँ।
भरद्यूँ पेटा तेरा इम्तहान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 8 ।।
लड़का बोला महाराज मेरी, और नहीं कोई माँग।
म्हारा घर पहले जैसा था, उसा जचादो सांग।।
भाँग साथ में कुण्डी-सोटा, दूँगा बैल चढ़ण नै मोटा।
लंगोटा द्यूँ सम्मान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 9 ।।
भालोठिया कहे कर्महीन, रहते हैं नंगे भूखे।
भरे समंदर में बड़के ये, तीनों आ गये सूके।।
चूके वक्त का लाभ उठाणा, वही झोंपड़ी वही ठिकाणा।
दाणा मिले खेत खलिहान में, रहे कर्महीण नुकसान में ।। 10 ।।
71. कर्महीन बालक के लक्षण
- ।। भजन-71।।
- तर्ज - चौकलिया
कर्महीन बालक के लक्षण, रूठा करे त्यौंहार को।
आप तो भूखा मरे और दुखी करे परिवार को।। टेक ।।
त्यौंहार के दिन हर घर-घर में, बढ़िया माल बणा करै।
हलवा पूरी खीर किसी के, चूरमा दाल बणा करै।
कलाकन्द रसगुल्ले पेड़े, दिलखुशहाल बणा करै।
और लोग सब माल उड़ावें, उसकी टाळ बणा करै।
भगवान भी नहीं मना सके, उस मूर्ख मूढ़ गवार को।
- आप तो भूखा मरे ..........।। 1 ।।
जो कोई इसको समझावे तो, कान बंद कर नीच ले।
जो कोई इसको कहे देखण की, दोनो आँख मींच ले।
जो कोई इसको कहे बोलण की, चौकस जाड़ भींच ले।
जो कोई इसको कहे खड़ा हो, करड़ी चादर खींच ले।
नहीं समझता मूर्ख अपने, माँ-बापां के प्यार को।
- आप तो भूखा मरे ........।। 2 ।।
शिव पार्वती बैठे बन में, सामने एक आवे राहगीर।
पैरों में टूटी जूती थी, कपड़े उसके झीरम-झीर।
गोरां बोली पति आप नित्य, हरते रहे पराई पीर।
इसने आपका क्या बिगाड़ा, क्यों इसकी फोड़ी तकदीर।
शिव बोला ये कर्महीन, नहीं समझे पर उपकार को।
- आप तो भूखा मरे .......।। 3 ।।
हाल देख राहगीर का शिव के, जाग उठी हमदर्दी थी।
मोहर अशरफी की थैली, उसके मार्ग में धर दी थी।
अपनी समझ में शिव ने उसकी, सारी काढ़ कसर दी थी।
लेकिन कर्महीन ने वो थैली, अनदेखी कर दी थी।
भालोठिया कहे आँख मींच के, तेज करी रफ्तार को ।
- आप तो भूखा मरे ........।। 4 ।।
- === खटका ===
72. हर प्राणी को रहता, बबाल का खटका
- भजन-72 खटका
तर्ज - काली टोपी वाले तेरा नाम तो बता -----
हर प्राणी को रहता, किसी बबाल का खटका।
कहीं प्रकृति का कोप, कहीं भूचाल का खटका।। टेक ।।
कहीं बाढ़ कहीं सूके धान, प्रकृति का कोप महान।
किसान को रहे सबसे बड़ा, अकाल का खटका।
पशुओं को चारा और रोटी-दाल का खटका।
- हर प्राणी को रहता..........।। 1 ।।
खटका रहता हर प्राणी में, जीवन बीते परेशानी में।
पानी में मछली को रहता, जाल का खटका।
मल्लाह को रहता पानी में, झाल का खटका।
- हर प्राणी को रहता ..........।। 2 ।।
लगे जिसके खटके की मार, नींद नहीं आवे उसको यार।
साहूकार को रहे अपने, धनमाल का खटका।
चोर को रहता हरदम, कोतवाल का खटका।
- हर प्राणी को रहता ..........।। 3 ।।
है खटका चिन्ता का बीज, कोई नहीं अच्छी लागे चीज।
मरीज को रहता है, अपने हाल का खटका।
आँखों में बन जाता है, पड़बाल का खटका।
- हर प्राणी को रहता ..........।। 4 ।।
नहीं खटके का कोई हिसाब, खटका अच्छा नहीं जनाब।
शराब पीने वालों को, धर्मपाल का खटका।
भ्रष्टाचारी को रहता हरदम हवालात का खटका।
- हर प्राणी को रहता ..........।। 5 ।।
- ==== विविध भजन ====
72. (i) डंडे बिना जग में कोई करे नहीं प्रीत
भजन - 72 (i) == डंडा शक्ति का प्रतीक ==
डंडे बिना जग में कोई करे नहीं प्रीत ।। टेक ।।
सारी शक्ति बसे वहां पर, जहां डंडे का बल होता ।
डंडे वालों का दुनिया में, हर एक मसला हल होता ।
देश द्रोही स्वार्थियों का कभी नहीं कोई दल होता ।
लापरवाही ब्लैक रिश्वत, नहीं झूठ व छल होता ।
राई का बने पहाड़ और पहाड़ की जगह दंगल होता ।
जहां पानी वहां थल होता, जहां पर थल वहां जल होता ।
जो कुछ प्रोग्राम बन गया, वह समझो काम अटल होता ।
इतनी शक्ति डंडे में, नहीं कोई काम मुश्किल होता ।
आगे पीछे इधर उधर, डंडा हर जगह सफल होता ।
सुबह नहीं तो शाम को होता, आज नहीं तो कल होता ।
जग में डंडे वालों की जय बोला करती भीत ।। 1 ।।
नहीं राजा नहीं रंक और नहीं छिपी पुजारी पंडे से ।
छोटे और बड़े जितने सब, शिक्षा पावें डंडे से ।
कहने से नहीं समझे मूर्ख, समझ में आवे डंडे से ।
अड़ियल घोड़ा ऊँट को फेरा, चाल सिखावे डंडे से ।
खेती करे किसान बैल को चलना आवे डंडे से ।
चले सर्कस में खूनी हाथी खेल दिखावे डंडे से ।
बाजीगर बन्दर भालू को, नाच नचावे डंडे से ।
चार ऊँगल की लकड़ी पे बकरा, पैर जमावे डंडे से ।
डंडे से महानीच अधर्मी, पकड़े धर्म की रीत ।। 2 ।।
जब से सरकार ने दिया डंडा अलमारी में छोड़ यहां ।
अवसरवादी खुदगर्जो की होने लगी घुड़दौड़ यहां ।
रंग बिरंगे झण्डे ले लागी आपस में होड़ यहां ।
घर-घर में लीडर बनगे और करने लगे मरोड़ यहां ।
स्वार्थ में अन्धे होकर चले बांध-बांध के मोड़ यहां ।
भूल गये जिम्मेवारी दिया अनुशासन को तोड़ यहां ।
कोई दुर्योधन जयचन्द बना, कोई बन गया अर्जुन गौड़ यहां ।
जगह-जगह लगवादी आग, करवादी तोड़ फोड़ यहां ।
कहीं रेल की लाइन उखाड़ी, कहीं तुड़वादी रोड़ यहां ।
भले आदमी के लिए, छोड़ी नहीं रहने को ठोड़ यहां ।
आपाधापी चली रहा नहीं कोई किसी का मीत ।। 3 ।।
जिस दिन भारत सरकार ने, डंडे के लगाया तेल यहां ।
जितने पड़ोसी दुश्मन उनकी स्कीम हो गई फेल यहां ।
चीन और अमरीका वाली, लगी मुरझाने बेल यहां ।
उनके जितने एजेन्ट उनके डाली पकड़ नकेल यहां ।
बदअमनी फैलाने वाले, बैठे काटो जेल यहां ।
आन्दोलन हड़तालों का सब बन्द हो गया खेल यहां ।
एरोप्लेन और रोडवेज समय पर चलती रेल यहां ।
पांच मिनट एडवान्स आ रही सब लोकल व मेल यहां ।
अनुशासन में बंधगे सारे न कोई फिरे अकेल यहां ।
अमन की लहर देश में आई मिटगी धक्का-पेल यहां ।
धर्मपाल सिंह भालोठिया गावे डंडे के गीत ।। 4 ।।
72.(II)== मैं क्या गाऊँ तुम क्या सुनोगे ==
भजन - 72 (II) संगीत शास्त्र में परिवर्तन
मैं क्या गाऊँ तुम क्या सुनोगे, गाने का स्वर बदल गया।
गाने वाला बदल गया, श्रोता नारी नर बदल गया।।टेक।।
स्वर में हारमोनियम सारंगी बीन बंसरी प्यारी थी ।
ताल में खरताल खंजरी ढोलक नकारा ढोल नकारी थी ।
स्वर और ताल मिले दोनों, गावणियें की लयदारी थी ।
निहालदे आल्हा पीला धुन, सामण फागण की न्यारी थी ।
अब कम्पीटीशन वाले आ गये, संगीत का घर बदल गया ।। 1 ।।
कलाकार आ गया तख्त पर पहन के ढीला सा चोला ।
कभी मनावे सदाभवानी जिसने घट का पट खोला ।
रसना पर बासा करो माई, कान पकड़ के न्यू बोला ।
कभी मनावे गौरी पुत्र, ब्रह्मा विष्णु शिव भोला ।
ओम का सुमरण करते थे, वो नाम पवित्र बदल गया ।। 2 ।।
दस बारह का साथ जोड़ के, आ गया मलंगा का टोला ।
साज बाज की कमी नहीं थी घड़वे धरे पन्द्रह सोला ।
वर्कसोप से लाये मुफ्त में, ट्यूबां का भरके झोला ।
पैग लगावें शराब का कहे पीऊँ सूं कोका कोला ।
जाड़ भींच मारें किलकारी, नत्थू मनभर बदल गया ।। 3 ।।
लीलो चमन और ज्यानी चोर का सांग करण लागे धोला ।
गावें रागनी अक्खन काणा, हीर का ले गया डोला ।
हाथां नै फटकारण लाग्या, जाणु बगावै सै गोला ।
बांह चढ़ावे बार-बार, ज्याणु इब यो काढ़ैगा ओला ।
देख देख के लट्टू हो गया, मांगे खोपर बदल गया ।। 4 ।।
हरियाणा संगीत का दादा बस्तीराम खजाना था ।
ईश्वर सिंह, स्वामी भीष्म इनका गजब तराना था ।
पृथ्वी सिंह बेधड़क, मेहर सिंह का जोशीला गाना था ।
लखमी, बाजे, मांगे, धनपत इनका राग जनाना था ।
धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, गोधू झाबर बदल गया ।। 5 ।।
- 72. (III) == बड़ाई चाहो तो बड़ों से करो मेल ==
- == भजन - 72 (III) शिक्षाप्रद ==
बड़ाई चाहो तो बड़ों से करो मेल ।। टेक ।।
एक काठ की कड़ी, लोहे में जड़ी ।
तराई चाहो तो, दो पाणी में धकेल ।। 1 ।।
पौधा दो पान का, कोमल बिरवान का ।
चढ़ाई चाहो तो, दरखत पै चढ़ जा बेल ।। 2 ।।
जाओ गुरू के पास, हो बुद्धि का विकास ।
पढाई चाहो तो, कभी नहीं हो फेल ।। 3 ।।
यदि सीखो तुम गाना, भालोठिया गुरू बनाना ।
कविताई चाहो तो ये बुद्धि का खेल ।। 4 ।।
- 72 . (iv) == मेरे वीर जनेऊ धार ==
- भजन 72 (iv) == जनेऊ ==
मेरे वीर जनेऊ धारो, ये म्हारे धर्म का कहना ।
है वैदिक धर्म हमारा, हमे इसी पर कायम रहना ।
न्यू कह गये ऋषि दयानन्द, चाहे पड़े मुसीबत सहना ।
ये चोटी और जनेऊ है म्हारा कदीनी गहना ।
थे राम जनेऊ धारी, अर्जुन कृष्ण ने पहना ।
जो मनुष्य धर्म से गिर गया, उसकी होती जय ना ।
धर्मपाल धर्म मत हारो फिर दुनिया में कोई भय ना ।।
बीकानेर रियासत द्वारा वर्ष 1946 में प्रतिबंधित पुस्तक बागड़ मेल के 2 गाने –
72.(v) == जुल्मों की हद होली, भगवान ==
- भजन - 72 (v)
जुल्मों की हद होली, भगवान बीकानेर में ।।टेक।।
दिन दूने रात चौगुने जुल्म कमाये जा रहे ।
भोली जनता को आज डाकू लूट लूट कर खा रहे ।
बना बना के टोली, भगवान बीकानेर में ।। 1 ।।
आज ठिकाने जुल्मों से जागीर बचाना चाहते हैं ।
मारपीट प्रजा की आवाज दबाना चाहते हैं ।
चले डंडे और लठोली, भगवान बीकानेर में ।। 2 ।।
कहीं पुलिस वाले गांव में लोगों को धमकाते हैं ।
अगर कोई जय हिंद बोले तो उसकी खाल उड़ाते हैं ।
पीट रहे दिन धोली, भगवान बीकानेर में ।। 3 ।।
एक रोज की बात कहूं जो जाती नहीं सुनाई ।
रायसिंहनगर में इकट्ठे होकर आए थे अन्यायी ।
वहां चली धड़ाधड़ गोली, भगवान बीकानेर में ।। 4 ।।
श्री स्वामी कर्मानन्द जी जो रियासत को जगा रहे ।
गांव गांव में घूम घूम कर पाठशाला खुलवा रहे ।
दे रहे शिक्षा अनमोली, भगवान बीकानेर में ।। 5 ।।
इसी लगन में छोड़ नौकरी चौधरी कुंभाराम फिरे ।
वीर मास्टर दीपचंद, प्रजा परिषद का काम करे ।
बना बना के टोली, भगवान बीकानेर में ।। 6 ।।
बुगला भक्त बना बैठा है, आज यहां का न्यायाधीश ।
कहे प्रजा के हक दे दूंगा लेकिन करै चारसो बीस ।
रहा पहर कपट की चोली, भगवान बीकानेर में ।। 7 ।।
चाहे कितने ही यतन करो, अब पाप का मटका फूटेगा ।
धर्मपाल सिंह बच्चा-बच्चा, जय हिंद करके उठेगा ।
खून बहे ज़्यूं रोली, भगवान बीकानेर में ।। 8 ।।
72.(vi) == बीकानेर के वीर जवान ==
- भजन - 72 (vi)
बीकानेर के वीर जवान, करके दुश्मन को ऐलान,
- चलो आजादी के जंग में ।। टेक ।।
रियासत बीकानेर में आज, नहीं कोई जुल्मों का अंदाज ।। 1 ।।
हुकूमत गैर जिम्मेदार, इसी से हो रहे अत्याचार ।। 2 ।।
यह बनी डाकुओं की सरकार, करते खूब लूट और मार ।। 3 ।।
राजा डाकुओं का सरदार, छोड़े डाकू बेशुमार ।। 4 ।।
नाजिम और जागीरदार, नायब और तहसीलदार ।। 5 ।।
गिरदावर और पटवारी, कहीं थानेदार की मक्कारी ।। 6 ।।
तरह-तरह के टैक्स लगा, नर नारी सब किये तबाह ।। 7 ।।
कपड़ा चीनी तेल अनाज, कोई चीज ना मिलती आज ।। 8 ।।
जो कुछ आता है सामान, खा जाते डाकू बेईमान ।। 9 ।।
मिलकर सब मजदूर किसान, क्या हिंदू क्या मुसलमान ।। 10 ।।
प्रेम के जत्थे बना बना, सत्याग्रह में नाम लिखा ।। 11 ।।
चलेंगे स्वामी कर्मानन्द , साथ मास्टर दीपचन्द ।। 12 ।।
चौधरी कुंभाराम चले, कर दुष्टों को बदनाम चले ।। 13 ।।
चलेंगे और कौमी सरदार, हनुमान का सब परिवार ।। 14 ।।
मत मुंह देखो मक्कार का, उस ख्याली सिंह गद्दार का ।। 15।।
धर्मपाल सिंह करके मेल, कर दो एकदम धक्का-पेल ।। 16 ।।