Mera Anubhaw Part-2/Geet

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रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया

ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो. 9460389546

गीत...भजन क्रमांक:73-87

73. ल्याई ल्याई है खुशी - दीवाली

।। गीत-73 (दीवाली ) ।।

तर्ज - राजा राम की कलाली...........


लाई लाई है खुशी अपार , हे राजा राम की दीवाली।। टेक ।।


लंका जीत राम घर आये, सीता लक्ष्मण को संग लाये।

हो रही जय-जयकार, हे राजा राम की दीवाली ।। 1 ।।

कार्तिक मास अमावस काली, आती अब हर साल दीवाली।

करें लोग इन्तजार, हे राजा राम की दीवाली ।। 2 ।।

दीवारों पर दीप जले हैं, मानों बाग में फूल खिले हैं।

दूर किया अन्धकार, हे राजा राम की दीवाली ।। 3 ।।

गली-गली में बजें पटाके, कहीं छोटे कहीं बड़े धमाके।

खुश हो रहे नर-नार, हे राजा राम की दीवाली ।। 4 ।।

घर-घर में हो रही सफाई, रंग रोगन से करें पुताई।

चमके शहर बाजार, हे राजा राम की दीवाली ।। 5 ।।

रात अंधेरी कीर्ति शिखर में, लक्ष्मी पूजा हो घर-घर में।

रहें घर के खुल्ले द्वार, हे राजा राम की दीवाली ।। 6 ।।

किसान के घर ऊँट और घोड़ी, गऊ भैंस बैलों की जोड़ी।

करें उनका सिंगार, हे राजा राम की दीवाली ।। 7 ।।

धोले-धोले चावल ऊपर बूरा, आज मजा आवेगा पूरा।

देशी घी की धार, हे राजा राम की दीवाली ।। 8 ।।

सुबह उठ के घर-घर जाते, राम-राम कह हाथ मिलाते।

प्रेम भरा सत्कार, हे राजा राम की दीवाली ।। 9 ।।

भालोठिया रहे याद दीवाली, बारह महीना बाद दीवाली।

लाइयो शुभ सामाचार, हे राजा राम की दीवाली ।। 10 ।।

74. साथण चाल पड़ी हे - ससुराल जाते समय

।। गीत-74।। (लड़की ससुराल जाते समय का )

तर्ज - साथन चाल पड़ी हे, मेरा डब-डब भर आया नैण........


साथण चाल पड़ी हे म्हारी, सुनती जा दो बात।। टेक ।।


चाचा ताऊ और दादा जी, देते आशीर्वाद पिताजी।

सिर पर धर-धर हाथ। साथण......।। 1 ।।

दादी जी और चाची ताई, माताजी दे रही विदाई।

भाभी जी और भ्रात । साथण......।। 2 ।।

भुआ बहन भतीजी सारी, करें नमस्ते बारी-बारी।

बचपन की मुलाकात । साथण......।। 3 ।।

पतिदेव का कहन पुगाना, सास ससुर की सेवा बजाना।

समझ पिता और मात । साथण......।। 4 ।।

नणद तेरी दोरानी जिठाणी, बोलिये उनसे मीठी बाणी।

हो सुख की बरसात । साथण.......।। 5 ।।

अगले नगर में भली कहाना, हमको आवे नहीं उलाहना।

सुख पावेगी दिन-रात। साथण......।। 6 ।।

यहाँ पर मात-पिता और भाई, अगर सुनेंगे तेरी बुराई।

दुख पावेगा गात । साथण......।। 7 ।।

धर्मपाल सिंह का हो आना, प्रेम से उसका सुनियो गाना।

छोड़ सभी उत्पात। साथण......।। 8 ।।

75. छठे रोज - जच्चा गीत

गीत-75 (छठी का)

तर्ज - चौकलिया

छठे रोज माता अपने, बच्चे को दूध पिलावै सै।

न्यूँ जीवन में याद हमेशा, दूध छठी का आवै सै।। टेक ।।


बाहर निकल के आया गर्भ से, हुई आजादी बच्चे की।

भागी दौड़ी फिरे उछलती, खुशी में दादी बच्चे की।

थाली बजाके सारे नगर में, करे मनादी बच्चे की।

कुटुम्ब कबीला सारे नगर में, दे प्रसादी बच्चे की।

खादी बच्चे की मँगवा, कोमल पोशाक बनावै सै ।। 1 ।।

पाँच रोज तक माँ बच्चे को, औषधियों की घुट्टी दे।

पूरी खुराक बन जावे सब मिला जड़ी और बूटी दे।

कभी जायफल देती घिस के, कभी रगड़ के सूँठी दे।

छठे रोज रही बांट पताशे, सबको भर-भर मुट्ठी दे।

गूंठी दे फिर चूँची धुवाई, नणद का मान बढ़ावै सै ।। 2 ।।

पी के दूध छठी का, दूर हुई परेशानी बच्चे की।

मामा के जब भेली पहुँची, मिली निशानी बच्चे की।

धन्य घड़ी धन्य भाग आज, खुश हो रही नानी बच्चे की।

दिन-दिन कला सवाई होती, आई जवानी बच्चे की।

सयानी माता बच्चे की नित्य हल्का खाना खावै सै ।। 3 ।।

घर कुणबे की भुआ बहन सब, छठी में आई बच्चे की।

बैठे बगड़ में मंगल गावें, चाची ताई बच्चे की।

खावें मिठाई लोग लुगाई, देवें बधाई बच्चे की।

छः दिन तक करे देखभाल, रोजाना दाई बच्चे की।

कविताई बच्चे की छठी में, भालोठिया कथा गावै सै ।। 4 ।।

76. ये कितैं आया पीला - पीला

।। गीत-76।। (पीळा )

तर्ज - पीला

ये कितैं आया पीला, किसने भिजवाया जी।

किसने ये करी रंगाई, जच्चा रानी जी।

पीला मन भाया जी ।। 1 ।।

पीहर तै आया पीला, माँ ने भिजवाया जी।

लेकर के आया मेरा भाई, मेरे पिया जी।

पीला मन भाया जी ।। 2 ।।

चारों पल्लों पर लिखा है, गायत्री मंत्र जी।

बीच में ओउ्म् दे दिखाई, मेरे पिया जी ।

पीला मन भाया जी ।। 3 ।।

पीलो तो ओढ़ के जब मैं, पाणी ने चाली जी।

सारी सहेली करें बड़ाई, मेरे पिया जी।

पीला मन भाया जी ।। 4 ।।

पीला तो ओढ़ के जब मैं, पीढे पर बैठी जी।

गोदी में कंवर कन्हाई, मेरे पिया जी।

पीला मन भाया जी ।। 5 ।।

पीला तो ओढ़ के जब मैं, चौके में आई जी।

भोजन की देख सफाई, मेरे पिया जी।

पीला मन भाया जी ।। 6 ।।

किसने ये गाया पीला, किसने सुनाया जी।

किसने ये करी कविताई, जच्चा रानी जी।

पीला मन भाया जी ।। 7 ।।

धर्मपाल सिंह पीला, गाके सुनादे जी।

बुलवादो खुवा दूँ मिठाई, मेरे पिया जी।

पीला मन भाया जी ।। 8 ।।

77. आर्य बन जाओ - नणदोई

।। गीत 77।। (नणदोई)

तर्ज - लोकगीत

आर्य बन जाओ, शुभ कर्म कमाओ।

छोड़ दो बुराई, ओ प्यारे नणदोई ।। टेक ।।


ईश्वर एक शक्ति, उसकी करें भक्ति।

ये दुनिया बनाई, ओ प्यारे नणदोई ।। 1 ।।

अंधविश्वास में, देवों की तलाश में।

वृथा ठोकर खाई, ओ प्यारे नणदोई ।। 2 ।।

गठजोड़े की जात में, नणद गई साथ में।

शर्म नहीं आई, ओ प्यारे नणदोई ।। 3 ।।

खाना पीना जल हो, अन्न सब्जी फल हो।

दूध घी मलाई, ओ प्यारे नणदोई ।। 4 ।।

शराब मत पीना, ये बदनामी का जीना।

होती लोग हँसाई, ओ प्यारे नणदोई ।। 5 ।।

अंडे मत लाना, मांस मत खाना।

ये खाते हैं कसाई, ओ प्यारे नणदोई ।। 6 ।।

लड़का लड़की सारे, गुरूकुल में न्यारे-न्यारे।

करवाना पढ़ाई, ओ प्यारे नणदोई ।। 7 ।।

जिस दिन वो जवान हों, पढ़ लिखकर विद्वान हों।

करना ब्याह सगाई, ओ प्यारे नणदोई ।। 8 ।।

धर्मपाल सिंह आर्य, करते हैं शुभ कार्य।

देश की भलाई, ओ प्यारे नणदोई ।। 9 ।।

78. सोहनी सी सुरत - बनड़ा

गीत-78 (ढ़ुका पर सहेलियों का)

सोहनी सी सुरत, सुहावे सखी बनड़ा।। टेक ।।


हाथियों की झूल बेबे, कढ़े सुनहरी फूल बेबे।

काली सी घोड़ी नै, नचावे तेरा बनड़ा।।

सोहनी सी सुरत........।। 1 ।।

मोती लगे ताज में, वीरों के समाज में।

तीरों का खेल , दिखावे तेरा बनड़ा।।

सोहनी सी सुरत........।। 2 ।।

तारों के चंदा बीच में, सखियों के बंदा बीच में।

यो प्रेम का मेल , बनावे तेरा बनड़ा ।।

सोहनी सी सुरत........।। 3 ।।

हंसनी और हंस की,राशी मिली वंश की।

फिरे आजाद , बतावैं तेरा बनड़ा ।।

सोहनी सी सुरत........।। 4 ।।

79. सावन आया बहना सारी झूलती हे - विरह गीत

गीत-79 (सावन का विरह गीत)

तर्ज -सावन की मल्हार - बाजन लगे समर के ढोल ----


सावन आया, बहना सारी झूलती हे,

हे री मेरा, कहाँ गया चित चोऽऽर ।

सावन सूना, सैंया बिन रह गया री ।। टेक ।।


नगर हिंडोले, बहना मेरी गड गये री ।

हे री कोई, जिनकी हो समय डोऽऽर ।

सावन सूना, सैंया बिन........।। 1 ।।

काले काले बदले, बहना मेरी छा गये री ।

ऐरी कहीं, बिजली कर रही घोर ।

सावन सूना, सैंया बिन........।। 2 ।।

पी पी पपीहा, बहना मेरी बोलता री ।

एरी कहीं, मोर मचावें शोर ।

सावन सूना, सैंया बिन........।। 3 ।।

छोटी छोटी बुन्दियां, बहना मेरी पड़ रही री ।

एरी कहीं, परवा हवा का जोर ।

सावन सूना, सैंया बिन........।। 4 ।।

हरी हरी खेती, बहना मेरी लहलहा रही री ।

एरी कहीं, दूब चरैं सैं ढ़ोर ।

सावन सूना, सैंया बिन........।। 5 ।।

पृथ्वीसिंह भाई बहना मेरी गा रहा री ।

एरी कहीं भोले की टंकार ।

सावन सूना, सैंया बिन........।। 6 ।।

80. खुरपा जाली हाथ में - सावन की छवि

।। गीत-80।। (सावन की छवि )

तर्ज - गंगाजी तेरे खेत में, घले रे हिन्डोले चार..............


खुरपा जाली हाऽऽऽथ में, चली मृगां जैसी डार।

सावण माऽऽऽस में, हरियाणा की छोरीऽऽऽ।। टेक ।।


हरा भरा जंगल सारा, सावण की छवि निराली दीखै।

गुवार बाजरा मूँग मोठ की, खेतां में हरियाली दीखै।

कहीं पर बाड़ी ईख खड़े सैं, कहीं साढ़ू का हाली दीखै।।

नियम कुदरती खिली प्रकृति, धरती के चढ़ा रूप सवाया।

गऊ चरें कहीं बजे बांसुरी, पालियों में आनन्द छाया।

नदी में न्हावें डाक लगावें, फूली नहीं समावे काया।।

आया स्वर्ग देहाऽऽऽत में, पड़ने लगी फुहार।

घटा आकाऽऽऽश में, बरसन नै होरीऽऽऽ ।। 1 ।।

तीजां का त्यौहार रंगीला, मानसून का हुआ जोर।

पपीहा की हूक न्यारी, खुशी में मचावें शोर।

पीहू-पीहू बोल करके, जगह-जगह नाचें मोर।।

आसमान का नक्शा देखो,बादलों की लगी होड़।

छोटे नीचे ऊपर नीचे, आवण लागे दौड़-दौड़ ।

काली घटा गरज के आई, बादलों को पीछे छोड़।।

ठोड़ बात की बाऽऽऽत में, लगा बरसन मूसलाधार।

मिनट पचाऽऽऽस में, सब निकली कमजोरीऽऽऽ ।। 2 ।।

मन की मैली नई नुहेली, सारी सखी सहेली चाली।

भरती और इमरती सरती, पारवती अलबेली चाली।

केला और अंगूरी संतरो, गेंदा और चमेली चाली।

भरी उमंग में कितनी संग में, ब्याही और कंवारी चाली।

चाँदो भूरी और किस्तूरी, सत्यवती करतारी चाली।

लाली रिसाली और निहाली, बीरमती सिणगारी चाली।।

हरप्यारी चली साऽऽऽथ में, लाडो हो गई त्यार।

भतेरी पाऽऽऽस में, चली धापां धनकोरीऽऽऽ ।। 3 ।।

धर्मा फूलां दडकां भूलां, राजकली भरपाई चाली।

निम्बो माड़ी बाँध के साड़ी, गुणवंती श्योबाई चाली।

बोली जहरो थोड़ी ठहरो, बनके जहाज हवाई चाली।

शान्ति छन्नो ताई धन्नो, बेदकोर भगवानी चाली।

कड़ियां रामी संतरा बदामी, मनभरी नारानी चाली।

रतनी कमला और उर्मिला, सूरजकोर खजानी चाली।।

भानी चली बरसाऽऽऽत में, आ रही अजब बहार।

बड़गी घाऽऽऽस में, रंग की गौरी-गौरीऽऽऽ ।। 4 ।।

बाँध के जाली सिर पै ठाली, जब ये घर ने आवण लागी।

करके त्यारी मिलके सारी, लय स्वरताल मिलावण लागी।

मीठी बोली गजब की गोली, गीत सुरीले गावण लागी।।

मृगां जैसी आँख जिनकी, चेहरा बना गोल-गोल।

मोर जैसी गर्दन लम्बी, कोयल जैसी बोलें बोल।

धर्मपालसिंह देख रंग ये, समय कितना अनमोल।।

झोल पड़े थी गाऽऽऽत में, सब चन्दा की उनिहार।

भर उल्लाऽऽऽस में, मटके पोरी-पोरीऽऽऽ ।। 5 ।।


कवि ने स्त्री शिक्षा पर गीत लिखे, इस गीत में एक लड़की अपने भाई से पढ़ाने के लिए इस प्रकार अरदास करती है -

81. बीर मनै पढ़ण बैठादे रे

गीत-81

तर्ज - लोक गीत

बीर मनै पढ़ण बैठादे रे, बिना विद्या पशु समान ।

ज्ञान बिना सूनी काया रे ।। टेक ।।

बीर मेरा नाम लिखा दे रे, तेरा भूलूँ नहीं एहसान।

ज्ञान बिना सूनी काया रे ।। 1 ।।

बीर विद्या से होता रे, अपने धर्म का ज्ञान ।

ज्ञान बिना सूनी काया रे ।। 2 ।।

बीर हम घर की लक्ष्मी रे, हो पढ़ लिखकर विद्वान।

ज्ञान बिना सूनी काया रे ।। 3 ।।

बीर हम देवी भवानी रे, जन्में ऋषि मुनि बलवान।

ज्ञान बिना सूनी काया रे ।। 4 ।।

वीर माताओं ने जाये रे, अंगद राम कृष्ण हनुमान ।

ज्ञान बिना सूनी काया रे ।। 5 ।।

बीर जो अनपढ़ नारी रे, उसकी मूर्ख सन्तान ।

ज्ञान बिना सूनी काया रे ।। 6 ।।

बीर पढ़े छोटा भाई रे, मेरा क्यों नहीं ध्यान ।

ज्ञान बिना सूनी काया रे ।। 7 ।।

बीर भालोठिया का गान, मैंने सुना लगा कर ध्यान।

ज्ञान बिना सूनी काया रे ।। 8 ।।


81.(I) === मेरे तख्ती बसता हाथ में =

गीत - 81 (I)

तर्ज - मेरे सिर पर बंटा टोकनी ----

मेरे तख्ती बस्ता हाथ में, मैं स्कूल में हुई तैयार।

मै बाबुल के लाडली ।। टेक ।।

एक पढ़ी मैं दो पढ़ी, मैं पढ़ी तीन और चार।

मैं बाबुल के लाडली ।। 1 ।।

मन लाके पढ़ती रही, मैं पढ़णें मे हुशियार।

मैं बाबुल के लाडली ।। 2 ।।

मैं पढ़ लिखकर स्याणी हुई, मेरा कर दिया ब्याह संस्कार।

मैं मेरे पिया के लाडली ।। 3 ।।

शादी होके मैं चली, सुसरा जी के द्वार

मैं ससुरा के लाडली ।। 4 ।।

सासू के चरणों पड़ी, मेरी सासुजी करे प्यार।

मैं सासु के लाडली ।। 5 ।।

होली दिवाली तीज ने, मेरा वीर गया लणिहार।

मैं मेरे वीरा के लाडली ।। 6 ।।

चाची ताई मात को, करूँ हाथ जोड़ नमस्कार।

मैं कुणबा में लाडली ।। 7 ।।

भालोठिया के गीत सुन, मेरी भावज करे सत्कार।

मैं भावज के लाडली ।। 8 ।।


कवि ने गीतों के माध्यम से स्त्रियों में अंधविश्वास को दूर करने की प्रेरणाएं दी हैं, इससे प्रभावित होकर एक स्त्री आर्य समाज का जलसा देखने को मचलती है -

82. गुरूकुल जांगी रे

गीत-82

तर्ज:- लोक गीत


गुरूकुल जांगी रे, मेरे हुये आर्य भाई ।। टेक ।।


ना पूजूँ देव पत्थर का हे, म्हारे पति देवता घर का हे।

जिसके मैं ब्याही आई ।। 1 ।।

ना पूजूँ पीर निगोड़ा हे, म्हारे पूजन जोगा बूढ़ा हे।

पोळी में देत दिखाई ।। 2 ।।

ना पूजूँ सेढ मसानी हे, ये डाकण बच्चे खाणी हे।

घर बुढ़िया सास बताई ।। 3 ।।

ना पूजूँ देवी पत्थर की हे, म्हारे नणदल देवी घर की हे।

मेरी सास की जाई ।। 4 ।।

ना घंटे टाल बजाऊँ हे, मैं ओउ्म नाम को ध्याऊँ हे।

जिसने ये दुनिया बनाई ।। 5 ।।

नहीं स्याणे सेवड़े बुलवाऊँ, नहीं झाड़ा बुझा करवाऊँ।

अब रोग की मिले दवाई ।। 6 ।।

जब स्वामी दयानन्द आए हे, हमें चारों वेद सुनाए हे।

पोपों में पड़ी दुहाई ।। 7 ।।

सुनो धर्मपाल का गाना हे, यहां होता है रोजाना हे।

जिन नई नई तर्ज बताई ।। 8 ।।

83. पढ़ादे मेरे वीर पढूंगी गुरूकुल में

गीत-83

तर्ज- लोक गीत

पढ़ादे मेरे वीर , पढूँगी गुरूकुल में ।। टेक ।।

करम हमारा , धर्म तुम्हारा ।

निभादे मेरे वीर , पढूँगी गुरूकुल में ।। 1 ।।

पढे़ छोटा भाई , फिर मेरी क्यों मनाही।

खिनादे मेरे वीर , पढूँगी गुरूकुल में ।। 2 ।।

जलसा निराला , गुरूकुल वाला।

दिखादे मेरे वीर , पढूँगी गुरूकुल में ।। 3 ।।

सत्यार्थप्रकाश मैं , पढूँ बारहमास मैं,

मंगवादे मेरे वीर , पढूँगी गुरूकुल में ।। 4 ।।

मान मेरा कहना ,विद्या का गहना।

घड़वादे मेरे वीर , पढूँगी गुरूकुल में ।। 5 ।।

नहीं तीरथ धाम करूं,संध्या सुबह शाम करूं।

सिखादे मेरे वीर , पढूँगी गुरूकुल में ।। 6 ।।

भाई धर्मपाल के ,गीत नई चाल के।

सुनादे मेरे वीर , पढूँगी गुरूकुल में ।। 7 ।।


83. (I) == जीजा विद्या पढ़ाइयो हमारी बेबे न

गीत 83 (I) जीजा

तर्ज :-जीजा टेवटो घड़ा दे, सोनों है सस्तो -----

जीजा विद्या पढाइयो हमारी बेबे न ।। टेक ।।

जीजा जितने कर्म गृहस्थी के, जीजा सारे बताइयो

हमारी बेबे न ।। 1 ।।

जीजा प्रेम से काम कराओ सारा, जीजा मत धमकाइयो

हमारी बेबे न ।। 2 ।।

जीजा गलती हो समझा देना, जीजा मतना सताइयो,

हमारी बेबे न ।। 3 ।।

जीजा जितना जेवर विद्या का, जीजा सारा पहनाइयो,

हमारी बेबे न ।। 4 ।।

जीजा पत्थर पूजा छुड़वाके, जीजा संध्या सिखाइयो,

हमारी बेबे न ।। 5 ।।

जीजा जहां पर जात दई जाती, जीजा मत ले जाइयो,

हमारी बेबे न ।। 6 ।।

जीजा धर्मपाल सिंह बुलवाके, जीजा गाना सुनवाइयो,

हमारी बेबे न ।। 7 ।।


83.(II) == आओ सखी गाओ, बधाई बनड़े की

गीत - 83 (I) बारोठी का

तर्ज :- बन्ना तेरी घोड़ी चने के खेत में -----

आओ सखी गाओ, बधाई बनड़े की ।। टेक ।।


आरता करेगी बनड़ी आई बनड़े की ।

सोहनी सी सूरत दे दिखाई बनड़े की ।

सारी नगरी करती बड़ाई बनड़े की ।

दादा जी ने जोड़ी, मिलाई बनड़े की ।

चन्दा जैसी सूरत, मन भाई बनड़े की ।

बनड़ी बड़े भाग तै, है पाई बनड़े की ।

फूल माला किसने, बनाई बनड़े की ।

बनड़ी बना के माला, ल्याई बनड़े की ।

यार दोस्त खावेंगे, मिठाई बनड़े की ।

भालोठिया ने बना दी, कविताई बनड़े की ।

सुभाष ने आरती फिर गाई बनड़े की ।।

84. बन्ना दादाजी का प्यारा रे

गीत-84 बनड़ा

बन्ना दादाजी का प्यारा रे, दादीजी की आँख का तारा रे ।

बन्ना गुरूकुल तैं पढ़ आया रे, बन्ना चारों वेद संग लाया रे।

धर्म रंग राग अलबेला रे, बन्ना दयानंद का चेला रे।

बांधो ना दमड़ी,जाओ ना पटना रे,लाओ ना हल्दी, बनाओ उबटना रे।

लाओ ना खुरासान की घोड़ी रे,मिलाई करतार ने जोड़ी रे।

बन्नी बड़े बाप की जाई रे, हमें बड़े भाग से पाई रे ।

85. .बन्ना बैठा दादाजी की पोल - बनड़ा

गीत-85 बनड़ा

बन्ना बैठा दादाजी की पोळ ,कागज में सुरत लगाई जी ।

बन्ना दादी जी पूछे हंस बोल, कहां से चिट्ठी आई जी ।

बन्ना चिट्ठी की पीळी पीळी कोर ,धोळे पर काळी स्याही जी ।

दादी दूर कुन्दनपुर देश, राजा की रूक्मणी बाई जी ।

बाई की माता ने ढूँढा शिशपाल, माता के शामिल भाई जी ।

एक बाई, दूजा बाई का बाप, दोन्या की मर्जी नाहीं जी ।

बाई ने जांचा द्वारका सा देश, बर जांचा कंवर कन्हाई जी ।

पंडित ने लगन लिखी सै अपने हाथ, नाई के हाथ पहुँचाई जी ।

बन्ना ब्राहम्ण न तारो रंग लाल, खाने न दूध मलाई जी ।

बन्ना हाथी सजाओ गजराज, हाथियों पर जरद अंम्बारी जी ।

बन्ना घोड़ा सजाओ लख चार , देखैं सैं बाट सिपाही जी ।

बन्ना तोपां बत्तीदो गिरवाय, नगरी घेरा धाई जी ।

बन्ना कौन चिकारा शिशपाल , लाओ ना रूक्मणी बाई जी ।।

86. जागो जागो हे भारत की देवियो

भजन-86

तर्ज:- लोकगीत


जागो जागो हे भारत की देवियो, सोई सोई हजारों साल।

अविद्या रूपी नींद में ।। टेक ।।


कभी वेद हमारा धर्म था, आज गई वेद की हे चाल।

अविद्या रूपी नींद में ।। 1 ।।

कभी सोने की चिड़िया देश था, आज हो गया कंगाल ।

अविद्या रूपी नींद में ।। 2 ।।

कभी हीरा मोती जवाहरात थे, आज गये किरोड़ीलाल।

अविद्या रूपी नींद में ।। 3 ।।

कभी देवी तुम्हारा नाम था, आज हुआ हाल बेहाल।

अविद्या रूपी नींद में ।। 4 ।।

कभी भोजन हलवा पूरी खीर था, आज अंडे मांस के थाल।

अविद्या रूपी नींद में ।। 5 ।।

कभी दूध दही का था पीवणा, आज पीवें शराब चांडाल ।

अविद्या रूपी नींद में ।। 6 ।।

कभी छियानवें करोड़ गऊ देश में, आज लाखों मरें हर साल ।

अविद्या रूपी नींद में ।। 7 ।।

कहे धर्मपाल सिंह भालोठिया, अब तो करल्यो खयाल ।

अविद्या रूपी नींद में ।। 8 ।।

87. सखी हमें करना हे, नव भारत का निर्माण

भजन-87

तर्ज:- साथन चाल पड़ी हे ......


सखी हमें करना हे, नव भारत का निर्माण ।। टेक ।।


टीलों को नीचा करना हे, झीलों में मिट्टी भरना हे ।

भूमि हो एक समान ।। 1 ।।

धरती का कोना कोना हे, पानी से आज भिगोना हे ।

बाड़ी, ईंख और धान ।। 2 ।।

पक्की सभी गली बनानी हे, गन्दगी की मिटे निशानी हे।

सभी सुखी रहें ईन्सान ।। 3 ।।

नगरी हों एक सी सारी हे,नई नई हों चित्रकारी हे।

सुन्दर लगें मकान ।। 4 ।।

नहरों का जाल बिछाना हे, सड़कों से सड़क मिलाना हे।

हमें करना है श्रमदान ।। 5 ।।

लाडो और सिणगारी हे, हों बी.ए., एम. ए. सारी हे।

फिर बनें कुटुम्ब की शान ।। 6 ।।

धापां जहरो माड़ी हे, चलें पहन के साड़ी हे ।

सुन्दर लगे पहरान ।। 7 ।।

होजा दूर कंगाली हे, खुश होकर हाळी पाळी हे।

सुनों भालोठिया का गान ।। 8 ।।




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