Mera Anubhaw Part-2/Shabd Vani
रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया
ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो॰ 9460389546104. म्हाने अब के बचाले मोरी माय
- शब्द वाणी -104
म्हाने अबके बचाले मोरी माय, बटाऊ आयो लेवण न ।। टेक ।।
सांवण रा सतरा गया, और आई तीज प्रभात।
म्हारे मन में रही रमण री, संग री सहेलियाँ र साथ ।।
बटाऊ आयो ........।। 1 ।।
आठ कोटड़ी नो दरवाजा, अपणे मंदिर मांय।
लुकती छिपती मैं फिरुँ रे, लुकती न छोड़े बैरी नाय।।
बटाऊ आयो ........।। 2 ।।
हाथ जोड़कर बुढ़िया बोली, सुनो पावणा बात।
म्हारी कन्या बावली भोली, अबके ले जाइयो मतना साथ ।।
बटाऊ आयो .........।। 3 ।।
कही पावणे सुन बुढ़िया जी, मैं ना मानूँ बात।
भीर करण री करो तैयारी, चलणो तो पड़सी मांझल रात ।।
बटाऊ आयो .........।। 4 ।।
भाई बन्ध और कुटुम्ब कबीला, फेरो शीश पर हाथ।
पाँच भाईयां री बहनड़ चाली, कोई ना चाल्यो इनरे साथ ।।
बटाऊ आयो .........।। 5 ।।
कहत कबीर सुनो रे साधो, न्यू सासरिये जांय।
ईं सासरिये सब न जाणो ,कोई बचण रो नाय ।।
बटाऊ आयो .........।। 6 ।।
105. भजन बिना बावरे
- शब्द वाणी-105
भजन बिना बावरे, तूने हीरा सा जन्म गंवाया।। टेक ।।
कभी ना आया संत शरण में, ना कभी हरि गुण गाया।
बह बह मरा बैल की भांति, सोय रहा उठ खाया ।।
भजन बिना........।। 1 ।।
यह संसार फूल सेमल का, सूआ देख लुभाया।
मारी चोंच रुई निकसाई, मुंडी धुन पछताया ।।
भजन बिना........।। 2 ।।
यह संसार हाट बनिये की, सब जग सौदा आया।
चातुर माल चौगुणा करगे, मूर्ख माल ठगाया ।।
भजन बिना........।। 3 ।।
यह संसार माया का लोभी, ममता महल चिनाया।
कहत कबीर सुनो रे साधो, हाथ कछु नहीं आया ।।
भजन बिना........।। 4 ।।
106. म्हारे सतगुरू ने दई ए बताय
- शब्द वाणी-106
म्हारे सतगुरु न दई बताय, दलाली हीरा लालन की।। टेक ।।
लाल लाल सब ही कहें रे, लाल जगत में दोय।
एक लाल जननी जनै रे, एक समुंद्र में होय ।।
दलाली हीरा ........।। 1 ।।
लाल पड़़्या मैदान में रे, रह्यो कीच लिपटाय।
नुगरा नुगरा लख गया रे, सुगरे ने लिया उठाय।।
दलाली हीरा ........।। 2 ।।
उधर से अंधा आंवता और इधर से अंधा जाय।
अंधे से अंधा मिला रे, अब रस्ता कौन बताय ।।
दलाली हीरा ........।। 3 ।।
मक्खी बैठी शहद पर रे, पंख रही लिपटाय।
उड़ने की आशा करे रे, लालच बुरी बलाय ।।
दलाली हीरा ........।। 4 ।।
ज्यों मेंहदी के पात में रे, लाली लखे ना कोय।
लाली लखी कबीर नैं रे, दियो आवागमन मिटाय ।।
दलाली हीरा ........।। 5 ।।
107 माया हे रंग बादली
माया हे रंग बादली, जामै चन्दा दरसे नाय ।। टेक ।।
काया में माया बसे रे, ज्यूँ चकमक में आग।
जै इच्छा तेरी हरि मिलन री, तो चकमक होके लाग ।।
माया हे रंग ........।। 1 ।।
काम क्रोध की बनी बदलिया, गरज रहा अहंकार।
आशा तृष्णा खींव बिजली, भीज रहा रे संसार ।।
माया हे रंग ........।। 2 ।।
एक बेल क दोय तूमड़ी, एक ही उनकी जात।
एक गलियों में फिरे गुरड़ती, एक गुरु के हाथ ।।
माया हे रंग ........।। 3 ।।
ज्ञान पवन जब से चली, सब बदले दिये हटाय।
कहत कबीर सुनो रे साधो, चन्दा भी दरसे आय ।।
माया हे रंग ........।। 4 ।।
108 नातो नाम को
नातो नाम को।
मोसु तन से न छोड़ो जाय , नातो नाम को ।। टेक ।।
पानां ज्यों पीली पड़ी मैं, लोग कहें पिन्ड रोग।
छानै लांघन मैं किया रे,पिया मिलन रो जोग।।
नातो नाम को........।। 1 ।।
बाबुल वैद्य बुला लिया रे, पकड़ दिखाई म्हारी बांह।
मूर्ख वैद्य मर्म नहीं जाने, काहे का इलाज करे।।
नातो नाम को........।। 2 ।।
जाओ वैद्य घर आपणै रे, म्हारो नाम न लेय ।
मैं तो दाधी विरह की,काहे की औषध देय।।
नातो नाम को........।। 3 ।।
माँस गल गल सीजीयारी , करंक रहा गळियार ।
म्हारी आंगलियांरी मूंदड़ी रे, आवण लागी बांह।।
नातो नाम को........।। 4 ।।
काढ़ कलेजो मैं धरूँ रे, कौआ तू ले जाय,
जिन मुलकां मेरे साजन बैठे, उसे दिखा के खाय।
नातो नाम को........।। 5 ।।
म्हारो नातो नाम को जी और नातो ना कोय,
या मीरा व्याकुल विरह की, दर्शन दीज्यो आय।
नातो नाम को........।। 6 ।।
109 राम भज तुही तुही
राम भज तुही तुही।
तेरे चरखे में बोले राम, राम भज तुही तुही।। टेक ।।
चरखा तेरा रंग रंगीला, पीढा लाल गुलाल ।
कातण आली श्याम सुन्दरी, मुड़ तुड़ घाले तार।।
राम भज तुही तुही........।। 1 ।।
रूई पीनावण मैं गई रे, सुन पिनरे मेरी बात ।
रूई पिनरे के न खा गई रे, मैं मलती रह गई हाथ।।
राम भज तुही तुही....... ।। 2 ।।
जेठानी ने ब्याह रचाया, देवरानी ने मांढ़ा ।
नणदोईया चूंरी चढ़ा, और देवर फेरे खाय।।
राम भज तुही तुही........।। 3 ।।
बेटी बोली बाप से तू , अणजायो वर लाय।
अणजायो वर ना मिले तो, तेरो मेरो साथ।।
राम भज तुही तुही........।। 4 ।।
ऊंचै टीबै हलियो जोड़्यो, गऊ भरैं सैं पेट ।
हाळी तो यो झूले पालणे, रोटी पहुँची खेत।।
राम भज तुही तुही........।। 5 ।।
चरखा चरखा सभी कहें, चरखा लखा न जाय।
यो चरखा लखा कबीर नै, दियो आवागमन मिटाय।।
राम भज तुही तुही........।। 6 ।।
110 मन लागो मेरो यार
मन लागो मेरो यार फकीरी में ।। टेक ।।
जैसा मजा फकीरी में रे,वो सुख नाहीं अमीरी में।
मन लागो ........।। 1 ।।
भली बुरी सब की सुन लीजै, कर गुजरान गरीबी में।
मन लागो ........।। 2 ।।
प्रेम नगर में रहन हमारी रे,भली बनी आई सबूरी में ।
मन लागो........।। 3 ।।
हाथ में कुण्डी बगल में सोटा, चारों दिशा जागीरी में ।
मन लागो........।। 4 ।।
आखिर में तन खाक मिलेगा रे,काहे फिरत मगरूरी में ।
मन लागो ........।। 5 ।।
कहत कबीर सुनो भई साधो,साहेब मिले सबूरी में ।
मन लागो ........।। 6 ।।
111. अब तो सोच समझ कर चाल
- शब्द वाणी-111
अब तो सोच समझकर चाल, गलती में जो कुछ बणी सो बणी ।। टेक ।।
बिना पढाये आपै पढ जा, जितने कर्म चण्डाल।
चोरी जारी बदमाशी की नहीं कहीं चटसाल।।
बदी की पट्टी जितनी, अब तो सोच ........।। 1 ।।
धर्म राज तेरे कर्मों की, जिस दिन करे सम्भाल।
चिमटे लाल करवाय के, तेरी खींचवायेगा खाल ।।
जिगर में लागे सेलों की अणी, अब तो सोच ........।। 2 ।।
तेरे कर्मों के आगे,फिर कौन बांधेगा पाल।
मात पिता सुत दारा बन्धु, कोई ना लगावे तेरे ढाल।।
अकेली जागी या जान आपणी, अब तो सोच ........।। 3 ।।
जो कुछ बन गया पीछे बन गया, आगे कर ले खयाल।
काटा जा तो काट कबीरा, मोह माया का जाल।।
गीती तो गाली बहुत घणी, अब तो सोच ........।। 4 ।।
112. दुनिया भ्रम न खाई रे
- शब्द वाणी - 112
दुनिया भ्रम न खाई रे ।। टेक ।।
ना कोई तेरा ना कोई मेरा,यह दुनिया चिड़िया रैन बसेरा।
ये झूठी बात बनाई रे, दुनिया भ्रम न खाई रे ।। 1 ।।
देखा जगत का झूठा नाता,नहीं किसी के पिता और माता।
ना किसी के बहन और भाई रे, दुनिया भ्रम न खाई रे ।। 2 ।।