Mera Anubhaw Part-2/Shikshaprad Sheekh

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रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया

ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो. 9460389546

शिक्षाप्रद सीख...भजन क्रमांक:54-62

54. प्यारे बच्चो, विद्या अनमोल खजाना - विद्याधन

गीत-54 (विद्याधन)

तर्ज - फिरकी वाली, तु कल फिर आना..........


प्यारे बच्चो, विद्या अनमोल खजाना, सुनलो मत शोर मचाना ।

एक गीत सुनाऊँ खास मैं, जीवन चमके विद्या के प्रकाश में।। टेक ।।


बचपन में मिलता है ये धन, मेहनत करने वालों को, पढ़ो लगाके होड़ ।

गुरू का भारी, आज्ञाकारी, जो करता नहीं मरोड़।

छोड़ बुराई, करता दिन-रात पढ़ाई, वो प्रथम रहे क्लास में।

जीवन चमके.......।। 1 ।।

अन्न सब्जी फल दूध मलाई, सादा खानपान हो, खाओ भर-भर पेट।

शराब पीना, कर्म कमीना, बीड़ी और सिगरेट।

प्लेट बगाओ, मत अंडे मांस खाओ, रहो ब्रह्मचर्य लिबास में।

जीवन चमके.........।। 2 ।।

स्कूल से जब छुट्टी होज्या, सारे बच्चे प्रेम से, ऐसा खेलो खेल।

मिट जा सुस्ती, कसरत कुश्ती , करो लगाके तेल।

बेल घुमाओ, तुम मतना वक्त गँवाओ, चिर-भिर चौपड़ ताश में।

जीवन चमके........।। 3 ।।

भाई बटाले, चोर चुराले, घर में जितना माल हो, जेवर और सामान।

होगा हिस्सा, बिस्सा-बिस्सा, धरती और मकान।

ज्ञान तुम्हारा, नहीं हो इसका बटवारा, ये रहे आपके पास में।

जीवन चमके.........।। 4 ।।

देश विदेशों में जाओ, ये रहे आपके पास में, नहीं एक तोला भार ।

खर्च दिखाओ, दुगणा पाओ, बणज्यां दो के चार।

बाहर जाओ, भालोठिया आदर पाओ, अमरीका रूस फ्राँस में।

जीवन चमके.........।। 5 ।।

55. बन्दे दुनिया हो हो जानी

भजन-55- (शरीर नश्वर है)

तर्ज - हरि नाम के बिना, ना तेरी गति होवेगी........

बन्दे दुनिया हो हो जानी, ये जिन्दगानी ना रहे।। टेक ।।


चार दिन की चाँदनी, लख फूला नहीं समाया।

आँख खुली जब हुआ अंधेरा, ढलती फिरती छाया।

काया हो ज्यागी बिरानी, ये जवानी ना रहे ।। 1 ।।

दिन तो खोया बदफैली में, सो के खोई रात।

हुआ सवेरा उठ के तू , करण लगा उत्पात।

बात करता है मनमानी, ये शैतानी ना रहे ।। 2 ।।

कितना सुन्दर बना बुलबुला, दिख रहा सै जल में।

पता नहीं कहाँ गया अचानक, थोड़ी सी हलचल में।

पल में हो पानी में पानी, कोई निशानी ना रहे ।। 3 ।।

मालिक के दरबार में जब, होवेगा इंसाफ।

‘भालोठिया’ कहे माल खजाना, सब हो जावे साफ।

माफ नहीं हों राजा रानी, राजधानी ना रहे ।। 4 ।।

56. दुनियां में आ, शुभ कर्म कमा

भजन-56

तर्ज - मन डोले, मेरा तन डोले........


दुनिया में आ, शुभ कर्म कमा, है दो दिन का मेहमान रे,

ये दुनिया हो हो जानी है।। टेक ।।

जन्म-जन्म के शुभ कर्मों से, नर तन चोला पाया।

रंग रूप और देख जवानी, क्यों मन में गरभाया।

घड़ी और पल, हो ज्या मुश्किल, करे वर्षों का सामान रे,

ये दुनिया हो हो जानी है ।। 1 ।।

दिन तो खोया बदफैली में, सो के रात गँवाई।

इसी तरह से चाहता अपनी, सारी उमर बिताई।

कर्मों का फल, होता है अटल, नहीं टाल सके इंसान रे,

ये दुनिया हो हो जानी है ।। 2 ।।

तन मन धन से जीवन में, कोई सेवा धर्म कमाले।

जन-जन की सेवा करके तूँ , जीवन सफल बनाले।

जाये समय निकल, होवे चल चल, फिर पछतावे नादान रे,

ये दुनिया हो हो जानी है ।। 3 ।।

एक रोज दुनिया से नाता, तोड़ के जाना होगा।

धर्मपाल सिंह तेरी जगह, किसी और का गाना होगा।

तज दे छल बल, हो आज या कल, तेरा चलने का ऐलान रे,

ये दुनिया हो हो जानी है ।। 4 ।।

57. बन्दे धर्म कर्म क्यों भूला

भजन-57

तर्ज - होगा गात सूक के माड़ा, पिया दे दे मनै कुल्हाड़ा .........


बन्दे धर्म कर्म क्यों भूला, तू इतना मस्ती में टूला।

फूला फिरे अहँकार में, तेरा कोई नही संसार में।। टेक ।।


जब था याना तू मस्ताना, माँ की गोद में लेटा।

मात-पिता हर बात-बात में, कहें थे बेटा बेटा।

मेटा उनका सब अरमान, सारा भूल गया अहसान।

प्राण बसे तेरे एक नार में, तेरा कोई नहीं संसार में ।। 1 ।।

आई जवानी बदफैली में, कीमती जीवन खोया।

देख बुढ़ापा फिर तू अपना, मूंड पकड़ कर रोया।

बोया बीज उसा तू काटे, आगे के मुँह लेके नाटे।

डाटे कौन तनै परिवार में, तेरा साथी नहीं संसार में ।। 2 ।।

मात-पिता सुत-दारा बन्धु, किस पर तेरा भरोसा।

कोई साथ नहीं जावेगा, ये सारे दिखादें ठोसा।

गोसा पूला लक्कड़ ल्याके, एक जंगल में चिता बनाके।

ठाके फूँकें तनै अंगार में, तेरा कोई नही संसार में ।। 3 ।।

अपनी जन्म-भूमि में तेरी, राख भी नहीं सुहावे।

छाण-छाण के देखें तेरी, जो भी निशानी पावे।

लावें नहीं मिनट की देरी, चुग के हड्डी पसली तेरी।

गेरी गंगाजी की धार में, तेरा कोई नहीं संसार में ।। 4 ।।

पड़ा खाट में तू मांगे था, गुड़ की एक डली।

छोरे ने मारी डांट, बहू भी बोली बुरी भली।

चली जब होकर तेरी बिदाई, चीनी बोरी बीस मंगाई।

मिठाई पड़ी सडे़ भण्डार में, तेरा कोई नहीं संसार में ।। 5 ।।

धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, अब तो करले चेत।

शुभ कर्मों में ध्यान लगाले, दिन-दिन बणे पछेत।

ध्यान परमपिता में लाले, लाके ध्यान परमपद पाले।

जा ले ईश्वर के दरबार में, तेरा साथी नहीं संसार में ।। 6 ।।

58. जोबन जवानी, बन्दे हो हो जानी

भजन-58

तर्ज - राजा राम की कलाली........

जोबन जवानी, बन्दे हो हो जानी,

मत कर गर्व गुमान, रे भगवान के घर जाना ।। टेक ।।


रावण था कितना अहंकारी, देती जिसके पवन बुहारी

था चार वेद का ज्ञान, रे भगवान के घर जाना ।। 1 ।।

ल्याया उठाके सीता सती को, जाणा पड़ा उस लंकापति को।

लंका हो गई श्मशान, रे भगवान के घर जाना ।। 2 ।।

अति घमंडी दुर्योधन था, उसका साथी दुशासन था।

वोह भी गये शैतान, रे भगवान के घर जाना ।। 3 ।।

लख चौरासी के चक्कर में, घूमा तूं दिन रात सफर में।

बना रोज नया मेहमान, रे भगवान के घर जाना ।। 4 ।।

पा अनमोल मनुष्य की काया, कितना सेवा धर्म कमाया।

भूल गया इन्सान, रे भगवान के घर जाना ।। 5 ।।

तेरा पड़ोसी भूखा सोया, उसको देख नहीं दिल रोया।

तेरे बने पकवान, रे भगवान के घर जाना ।। 6।।

अमर नहीं तेरी जिंदगानी, मत खोवे करके मनमानी।

कर्तव्य को पहचान, रे भगवान के घर जाना ।। 7।।

जगत पिता को जवाब देना, पाई-पाई हिसाब देना।

नहीं होगा आसान, रे भगवान के घर जाना ।। 8 ।।

नहीं चलेगी हेराफेरी, काया बने राख की ढे़री।

मान चाहे मत मान, रे भगवान के घर जाना ।। 9 ।।

भालोठिया अब पड़ेगा जाना, तू भी दे घर छोड़ पुराना।

मिलेगा नया मकान, रे भगवान के घर जाना ।। 10 ।

59. तनै गजब किया रे इन्सान, धर्म को

भजन-59

तर्ज - तनै अजब बनाया भगवान खिलौना माटी का ......


तैंने गजब किया रे इन्सान, धर्म को भूल गया।। टेक ।।


बचपन खोया खेलों में, तूने पूंगी बजाई मेलों में।

तू जब तक था नादान, मर्म को भूल गया ।। 1 ।।

जवान उमर में फूल गया, मनमानी में टूल गया।

तू इतना बना शैतान, शर्म को भूल गया ।। 2 ।।

दूध गर्म कर नहीं पीया, बोतल में फँसग्या जीया।

ठंडा किया जलपान, गर्म को भूल गया ।। 3 ।।

सत्य बोलना कर्म तेरा, अहिंसा परमोधर्म तेरा।

अहिंसा को तज अज्ञान, परम को भूल गया ।। 4 ।।

नई-नई सोचे युक्ति, सब पाप कटें होज्या मुक्ति।

नदियों में करे स्नान, कर्म को भूल गया ।। 5 ।।

भालोठिया फिरे तलाशी में, नहीं पावे मथुरा काशी में।

मन मन्दिर में भगवान, ब्रह्म को भूल गया ।। 6 ।।

60. हाथियन के दांतन के

कवित्त-60

हाथियन के दांतन के, खिलौने भांतिन भांतिन के।

मृग की तो खाल, किसी योगी मन भावेगी ।। 1 ।।

शेर की खाल पै, कोई बैठेगा योगी जति ।

बकरी की खाल, कछु पाणी भर ल्यावेगी ।। 2 ।।

गैन्डे की ढाल से तो, लड़ते हैं सिपाही लोग।

साबर की खाल, राजा राणा मन भावेगी ।। 3 ।।

पशुओं के हड्डी चाम, आते हैं दुनिया के काम।

मनुष्य तेरी चाम, किसी काम नहीं आवेगी ।। 4 ।।

61. मरना एक दिन जरूर सै

भजन-61
तर्ज - चौकलिया

मरना एक दिन जरूर सै, चाहे डर के मर जाओ।

डर के मरने से अच्छा, कुछ कर के मर जाओ।। टेक ।।


करना तो बिल्कुल भूलगे, ऐसे बने भोले।

पूरे उतरते थे सदा, जब भी कभी तोले।

दुश्मन की खातिर थे, तुम्हीं आतिश के शोले।

पड़ते थे बनकर जंग में, बारूद के गोले।

चाहे आवारा दर-दर , कहीं बिचर के मर जाओ।

डर के मरने से.........।। 1 ।।

आसमान तक हिला दिया, आँधी के बन झोंके।

पर्वत की राई कर दई, सिन्धु तलक सोके।

दुनिया तक फिरे थे रोंदते, रूकते नहीं रोके।

मालूम नहीं क्यों बैठगे, कमजोर अब होके।

अपने हक पै लड़ो या कहीं, पसर के मर जाओ।

डर के मरने से...........।। 2 ।।

जुल्म कमाने वाला नर, शैतान होता है।

जो करता सहन जुल्म को, नीच महान होता है।

जुल्म से लड़ने वाला, वीर जवान होता है।

जो करे गरीब की रक्षा, वोह भगवान होता है।

चाहे कुर्बानी दे दो, चाहे दुख भर के मर जाओ।

डर के मरने से.............।। 3 ।।

कायर और कमजोर जो, घर में बड़ के मरता है।

वीर बहादुर मैदान में, लड़ लड़ के मरता है।

कायर और कमजोर, खाट में पड़ के मरता है।

वीर बहादुर जुल्म के आगे, अड़ के मरता है।

कहे भालोठिया कफन, सिरहाने धर के मर जाओ।

डर के मरने से..............।। 4 ।।

62. सेवा से करते जाना प्यार रे

।। भजन-62।।

सेवा से करते जाना प्यार, रे नादान मुसाफिर ।

नैया को करते जाना पार, रे नादान मुसाफिर।। टेक ।।


सेवा ना छोड़ देना, हिेम्मत ना तोड़ देना ।

वर्ना तू डूबेगा मझधार, रे नादान मुसाफिर ।। 1 ।।

नेकों की संगत करना,बदियों से हरदम डरना ।

जीते जी करना पर उपकार, रे नादान मुसाफिर ।। 2 ।।

जीवन में खुशबू भरजा, जग को सुगन्धित करजा ।

करना जो चाहे मौज बहार, रे नादान मुसाफिर ।। 3 ।।

बापू की शान रखना, भारत का मान रखना ।

देना हो सिर भी देना वार, रे नादान मुसाफिर ।। 4 ।।

जब तक है जोश जवानी, बिगड़ी हर बात बनानी।

होने ना पाये अत्याचार, रे नादान मुसाफिर ।। 5 ।।

प्रेम की बूँद पिलाजा, खुश रंग कोई फूल खिलाजा।

हल्का हो कुछ तो तेरा भार, रे नादान मुसाफिर ।। 6 ।।

जीवन अनमोल हीरा, मिट्टी ना रोळ वीरा।

तुझको समझाया बारम्बार, रे नादान मुसाफिर ।। 7 ।।

सेवा से प्रीति रखना, इसका फल मुक्ति चखना।

सागर से ‘‘देश‘‘ हो बेड़ा पार, रे नादान मुसाफिर ।। 8 ।।




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