Mera Anubhaw Part-2/Vishva Ki Dasha

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रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया

ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, 9460389546

विश्व की दशा...भजन क्रमांक:19-20

भजन-19 विश्व के वर्तमान हालात

== दोहा ==

धरती माता पर चढ़ा, अति पाप का भार ।

ज्वालामुखी फटने लगे, भू काँपे कई बार ।।


तर्ज - गंगाजी तेरे खेत में, घले रे हिन्डोले चार ........


आग लगी आकाऽऽऽश में, झड़-झड़ पड़ें अंगार।

मेरे परमाऽऽऽत्मा, आज तुही बचावणियांऽऽऽ।। टेक ।।


अमरीका और रूस दोनों, आकाश में रहे दौड़।

नये नये हथियारों की, आपस में लगी है होड़।

आग बिखेरें दुनिया में और कीमत लें कई सौ करोड़।।

रात-दिन वायुमण्डल में, गूँजती सुने आवाज।

आग लेकर घूम रहे, हजारों हवाई जहाज।

ऐसे लक्षण दीख रहे, सारी दुनिया जले आज।

इलाज नहीं कोई पाऽऽऽस में, नहीं बसावे पार ।।

मेरे परमाऽऽऽत्मा ...............।। 1 ।।

एशिया महाद्वीप यूरोप, उत्तरी अमरीका जले।

दक्षिणी अमरीका, आस्ट्रेलिया और अफ्रीका जले।

सातवाँ महाद्वीप भी पूरा, अंटार्कटिका जले।

धरती में सुरंग बिछी, ऊपर आसमान जले।

सवारी के साधन रेल, रोडवेज विमान जले।

गाँव कस्बा शहर पशु, पक्षी और इन्सान जले।

प्राण जलें हर सांऽऽऽस में, हो रही धुआँधार।।

मेरे परमाऽऽऽत्मा ...... ।। 2 ।।

उग्रवादी अंगारों में आज, सारा जहान जले।

बाग बगीचा कोठी बंगला, महल आलीशान जले।

कहाँ पर छुपावेगा सिर, गरीब की छान जले।

जैन, बौद्ध, सिक्ख, ईसाई, हिन्दू मुसलमान जले।

गिरजाघर, गुरूद्वारा, मस्जिद, मन्दिर में भगवान जले।

बाइबिल, गुरूग्रन्थ, गीता, वेद और कुरान जले।

ज्ञान जले इतिहाऽऽऽस में, फैलेगा अन्धकार।।

मेरे परमाऽऽऽत्मा ............।। 3 ।।

अब तो मेरी आप से ही, अर्ज है परमात्मा।

आप ही करोगे आग, लगावणियों का खात्मा।

ऋषि दयानन्द जैसा, भेजो कोई महात्मा ।

घूमकर सारी दुनिया में, वेदों का बजा दे डंका।

अंधविश्वास और पाखण्ड की जलादे लंका।

भालोठिया कहे ऊँच और नीच की मिटादे शंका ।

पक्का मेरे विश्वाऽऽऽस में, सुखी रहे संसाऽऽऽर ।।

मेरे परमाऽऽऽत्मा............।। 4 ।।

।। भजन-20।। परिवर्तन की आँधी

तर्ज - सांगीत- मरण दे जननी,मौका ये ठीक बताया .......

दुनिया में कैसी गजब की आँधी आई ।। टेक ।।


धुआँधार धमधम करती हुई,पल में सिर पे आन चढ़ी।

बाल्य अवस्था नहीं बुढ़ापा,बन बिल्कुल नौजवान चढ़ी।

अपनी ताकत अजमाने को, ले पूरा सामान चढ़ी।

मौत और जिन्दगी का युग में,लेकर एक तूफान चढ़ी।

दुनिया वाले होश करो अब,करती ये ऐलान चढ़ी।

भरे समुद्र सुखा दिये,पहाड़ों से कर मैदान चढ़ी।

अपने और पराये की, करके पूरी पहचान चढ़ी ।

कितनों को जीवन दे गई और कितनों के ले प्राण चढ़ी।

दिन दूनी और रात चौगुनी होती गई सवाई ।। 1 ।।

इस आँधी में भारत वर्ष से, अंग्रेजों का राज उड़ा।

काफिर नीच गुलाम कुली और काले का इल्फाज उड़ा।

हराम का खाने वालों का, चक्की चूल्हा छाज उड़ा।

चिड़िया नहीं उड़ी, चिड़िया खाने वाला बाज उड़ा।

भारतीयों पर लागू था, वह अंग्रेजी कानून उड़ा।

इग्लैंड से बन कर आता, वह पूरा मजमून उड़ा।

जुल्म से जनता का पिया था,आज वह सारा खून उड़ा।

कन्ट्रोल से मिलने वाला ,चीनी कपड़ा चून उड़ा।

जिसने पैर जमाया उसकी, पल में शान उड़ाई ।। 2 ।।

जनता से नफरत करते,वह मिस्टर और जनाब उड़े।

गर्भ के अन्दर आते थे,वह राज ताज के ख्वाब उड़े।

पीढ़ी दर पीढ़ी बनते वह,राजे और नवाब उड़े।

वोट से राज चलेगा अब वह,जन्म के गलत हिसाब उड़े।

राजाओं के बाद में, जागीरदारों की जागीर उड़ी।

मस्तक में लिखवाकर लाये, वह सब की तहरीर उड़ी।

गरीबों पर चलने वाली,जालिम की शमशीर उड़ी।

सेवा नहीं उड़ी, आलसी बन्दों की तकदीर उड़ी।

जिसको दी फटकार, नहीं दुनिया में मिली दवाई ।। 3 ।।

फिजूलखर्ची करने वालों की, बेढंगी चाल उड़ी।

सुलफा और शराब अमल, रंडी भाण्डों की ताल उड़ी।

गाय व बकरी उड़ी नहीं और घोड़ों की घुड़साल उड़ी।

लाठी जेली उड़ी नहीं, बर्छी भाले और ढ़ाल उड़ी।

छान झोंपड़ी उड़ी नहीं,कोठी बंगले गढ़ हाल उड़े।

छप्पन भोग लगा करते वह,सोने चांदी के थाल उड़े।

बिना भूख खाये जाते वह, तरह तरह के माल उड़े।

निर्दोषों को फंसाने वाले,पारधियों के जाल उड़े।

देशद्रोही गद्दारों की, करदी लोग हँसाई ।। 4 ।।

मृत्यु कर के बनते ही,लक्ष्मी होकर आजाद उड़ी।

तिजोरियों में बन्द पड़ी रहने की आज मियाद उड़ी।

बड़े बड़े पूंजीपतियों की, सम्पति जायदाद उड़ी।

ईश्वर के दरबार से जालिम,जुल्मी की फरियाद उड़ी।

साम्प्रदायिकता फैलाने वालों के प्रचार उड़े।

अनुचित बातें लिखने वाले,कितने ही अखबार उड़े।

छुआछूत बिमारी के आज,रोगी बेशुमार उड़े।

धर्म नहीं उड़ने वाला, पर धर्म के ठेकेदार उड़े।

स्वार्थी उड़ने लगे, धर्म की देने लगे दुहाई ।। 5 ।।

आँधी मतना समझ बावले,इन्कलाब की छाया है।

परिवर्तन है विश्व में, आँधी का रूप बनाया है।

जन जागृति का युग के, घर घर में बिगुल बजाया है।

जिसने इसको नहीं पहचाना,वही आज पछताया है।

युग को पलटा खाता देखकर, परिवर्तन भूगोल हुआ।

किसी की बात अधूरी रह गई,किसी का पूरा कौल हुआ।

किसी का वक्त बुरा आया,किसी के लिये अनमोल हुआ।

किसी की जड़ पाताल गई, किसी का बिस्तर गोल हुआ।

धर्मपालसिंह वक्त मुताबिक, शोभा दे कविताई ।। 6 ।।


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