Nakkai
Nakkai was one of Misal in Punjab. The leader of this Misal belonged to Nakka, Bhunewal, was its capital.Hira Singh Sidhu was the founder of this Misl.
Origin
The misl derives its name from a place named Nakka.
Organization
This Misl had a large army numbering sixty thousand. Ranjit Singh was married into this Misal also. Ranjit Singh took this territory away from a careless chief and handed it over to his nephew Kharak Singh.
Nakai Misal artillery cannon
The pride of the Nakai Misal artillery cannon named Fateh Singh (the Victorious Lion) "Satguru Sahi" made on the 15th Assu 1855 Sammat corresponding to 30th September 1799 AD for Sardar Khazan Singh Nakai and used during the conquest of Lahore by the Nakai Misal troops under the command of Maharaja Ranjit Singh. This cannon was dug up during excavations around Fort Beharwal the Nakai capital and is presently displayed in the Lahore Museum.
ठाकुर देशराज लिखते हैं
ठाकुर देशराज लिखते हैं कि नकिया मिसल का संस्थापक चौधरी हेमराज का पुत्र हीरासिंह था। यह मौजा भरवाल के रहने वाले थे। रावी नदी के किनारे, लाहौर से पश्चिम की ओर, नक्का नाम इलाके में रहने के कारण, इनकी मिसल का नाम नकिया मिसल पड़ा। गोत्र इनका सिन्धु था। आरम्भ में इनकी आर्थिक अवस्था कुछ अच्छी न थी। हीरासिंह सिख होने के बाद लुटेरे दल में सम्मिलित हो गया और धीरे-धीरे यहां तक शक्ति बढ़ा ली कि उसकी एक अलग मिसल बन गई और हीरासिंह उस मिसल का सरदार बन गया। बहुत से सवार और प्यादे हो जाने के पश्चात् राज्य की बुनियाद भी डाल दी। सतलज नदी के किनारों तक अनेक स्थानों पर कब्जा कर लिया। पाकपट्टन में उस समय शेखसुजान कुर्रेसी का अधिकार था। वहां गौवध खूब होता था। यह बात जब हीरासिंह तक पहुंची तो वह आगबबूला हो गया और उसने शेख पर चढ़ाई कर दी। दैवात् हीरासिंह के सिर में गोली लगी और इस तरह उस धर्मयुद्ध में शहीद हुआ। चूंकि उसका लड़का नाबालिग था, इसलिए भतीजे नाहरसिंह ने सरदारी सम्हाली । किन्तु तपेदिक के रोग से एक ही साल में मर गया और मिसल की सरदारी उसके छोटे भाई वजीरसिंह के हाथ में आ गई। अब तक इस मिसल के पास नौ लाख का इलाका आ चुका था, जिसमें शाकपुर, मांट-गोमरी, गोगेरा प्रसिद्ध इलाके थे। 1872 ई० में इस मिसल की सरदारी और राज्य की हुकूमत सरदार भगवानसिंह के हाथ में आई। भगवानसिंह ने भी सैयद पर चढ़ाई की और गौवध के उठा देने के लिए होने वाले पाक-पट्टन के युद्ध में मारा गया। भगवानसिंह के मरने के बाद उसका भाई ज्ञानसिंह राज्य का मालिक हुआ। ज्ञानसिंह के दो पुत्र थे - खजानसिंह और काहनसिंह। 1804 ई० में ज्ञानसिंह के मर जाने पर महाराज रणजीतसिंह ने इस राज्य को जब्त कर लिया और काहनसिंह तथा खजानसिंह को
जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-229
15000 की जागीर देकर रियासत से पृथक् कर दिया । महासिंह नाम का सरदार हीरासिंह के निकट सम्बन्धियों में से था। महाराजा रणजीतसिंह ने इसको भी जागीर दी। यद्यपि इस मिसल वालों ने रणजीतसिंह को अपनी लड़की देकर सम्बन्ध स्थापित कर लिया था, किन्तु महत्त्वाकांक्षी महाराज रणजीतसिंह ने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए इसका कुछ भी खयाल न कर, अपने राज्य में मिला लिया। (जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठ-229)