Rajiv Sandhu

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Rajiv Sandhu

Rajiv Sandhu (Second Lt) (12.11.1966 - 19.07.1988) became martyr during Operation Pawan in Srilanka on 19.07.1988. He was from Chandigarh, [Punjab]]. He was in Unit: 19 Madras batallion. He was awarded Mahavir Chakra for his act of bravery.

सेकिंड लेफ्टिनेंट राजीव संधू

सेकिंड लेफ्टिनेंट राजीव संधू

12-11-1966 - 19-07-1988

महावीर चक्र (मरणोपरांत)

यूनिट - 7 आसाम रेजिमेंट/ 19 मद्रास रेजिमेंट

ऑपरेशन पवन 1988

सेकिंड लेफ्टिनेंट राजीव संधू का जन्म 12 नवंबर 1966 को, पंजाब के चंडीगढ़ शहर में, एक सैन्य परिवार मेंं, श्री देविंदर सिंह संधू एवं श्रीमती जयकांत संधू के घर उनकी एकमात्र संतान के रूप में हुआ था। राजीव संधू ने सेंट जॉन्स हाई स्कूल, चंडीगढ़ में अपनी आरंभिक शिक्षा पूरी की और उन्होंने डीएवी कॉलेज, पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी। 5 मार्च 1988 को उन्हें भारतीय सेना की असम रेजिमेंट की 7 वीं बटालियन में, कमीशन प्राप्त हुआ था। जून 1988 में उन्हें, श्रीलंका में शांति स्थापना अभियान में तैनात की गई 19 मद्रास बटालियन की C कंपनी में स्थानांतरित कर दिया गया।

19 जुलाई 1988 को, सेकिंड लेफ्टिनेंट राजीव संधू श्रीलंका में, दो वाहनों के एक छोटे काफिले का नेतृत्व कर रहे थे। वह एक खुली RCL (रिकॉइलस गन) जीप और 1 टन लॉरी से लगभग 8 किमी दूर 19 मद्रास पोस्ट से राशन लेने जा रहे थे। जब यह काफिला जंगल में एक सूने भवन के समीप से निकल रहा था, तो आगे चल रही जीप पर सड़क के दाईं ओर से, लिट्टे उग्रवादियों ने घात लगाकर भारी स्वचालित हथियारों और 40 mm रॉकेट लॉंचर से भीषण आक्रमण कर दिया। जीप के पिछले हिस्से में बैठे लांस नायक नंदेश्वर दास और सिपाही लालबुआंगा दोनों स्वचालित गोलीबारी से वहीं वीरगति को प्राप्त हो गए, वहीं 40 mm रॉकेट जीप के सामने से टकराया। जीप चालक नायक राजकुमार को, रॉकेट के आघात ने जीप से बाहर उछाल दिया। उनके जबड़े का निचला भाग फट गया और वह गंभीर रूप से घायल हो गए।

आगे की सीट पर बैठे, सेकिंड लेफ्टिनेंट संधू को रॉकेट का सीधा आघात लगा, जिससे उनके दोनों पैर क्षत-विक्षत होने से वह पूरी तरह से पंगु हो गए। अत्यधिक रक्तस्राव होने पर भी सेकिंड लेफ्टिनेंट संधू अपनी 9 mm कार्बाइन के साथ जीप से गिरे और बाहर निकलने में सफल रहे व उन्होंने निकट ही मोर्चा ले लिया। लिट्टे उग्रवादियों ने यह सोचा कि जीप में सवार सभी सैनिक मारे गए हैं। इसलिए उनमें से एक आतंकवादी छिपते हुए आया और हथियार और गोला-बारूद लेने के लिए जीप के समीप पहुंचा।

यद्यपि, सेकिंड लेफ्टिनेंट संधू के दोनों पैर चकनाचूर हो गए थे और उनका शरीर गोलियों से छलनी हो गया था, फिर भी उन्होंने रक्त भरे हाथों से अपनी कार्बाइन उठाई और फायर कर उस उग्रवादी को मार गिराया। बाद में, उस उग्रवादी की पहचान लिट्टे के बट्टीकोला सेक्टर के कमांडर कुमार के निजी गुर्गे कुमारन के रूप में हुई। उग्रवादियों ने सेकिंड लेफ्टिनेंट संधू पर फायरिंग जारी रखी। इसी बीच फायरिंग सुनते ही 1 टन में यात्रा कर रही कलेक्शन पार्टी कूद पड़ी और रेंगते हुए उग्रवादियों से लड़ने के लिए आगे बढ़ी।

नायक भगीरथ आगे जीप की ओर आए और देखा कि सेकिंड लेफ्टिनेंट संधू घातक रूप से घायल होने और अत्यधिक रक्त बहने के उपरांत भी उग्रवादियों पर गोलीबारी कर रहे हैं। सेकिंड लेफ्टिनेंट संधू ने दबे हुए स्वर में, उन्हें उग्रवादियों से आगे निकलने व भागने से रोकने का संकेत दिया। यह सब इतनी तत्परता से व कड़ी प्रतिक्रिया से हुआ कि उग्रवादी मारे गए उग्रवादियों के शवों, हथियारों और गोला-बारूद को वहीं छोड़कर जंगल में भाग गए। 1 टन की टीम ने उग्रवादियों का पीछा किया परंतु, वह जंगल में भाग गए।

इस बीच, सिपाही कामखोलम ने अपना 1 टन वाहन जीप की ओर आगे बढ़ाया व सेकिंड लेफ्टिनेंट राजीव संधू, नायक राजकुमार और सुरक्षा दल के अन्य गिरे हुए सैनिकों को उठाया। गंभीर घावों से व रक्त की कमी से अत्यंत कमजोर सेकिंड लेफ्टिनेंट राजीव संधू ने पहले नायक राजकुमार और सुरक्षा दल को पहले उठाने का आदेश दिया; हथियार एकत्र किए गए और क्षेत्र को निगरानी में रखने के लिए एक समूह को पीछे छोड़ा गया। रक्त की अति अल्पता से सेटिंग लेफ्टिनेंट संधु कोमा में चले गए। उन्हें हेलिकॉप्टर से हॉस्पिटल ले जाया गया किंतु वह मार्ग में ही वीरगति को प्राप्त हुए।

इस भीषण मुठभेड़ में, सेकिंड लेफ्टिनेंट राजीव संधू ने अत्यंत साहस, दृढ़ संकल्प, कर्तव्य के प्रति समर्पण और निस्वार्थता का परिचय दिया। 26 जनवरी 1990 को, महामहिम राष्ट्रपति द्वारा उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

शहीद को सम्मान

स्रोत

बाहरी कड़ियाँ

चित्र गैलरी

संदर्भ

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