Ranibagh

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Chitrashila Ghat Ranibagh

Ranibagh (रानीबाग) is a town in the Nainital district of Uttarakhand state of India.

Variants

Location

रानीबाग हल्द्वानी नगर का एक आवासीय क्षेत्र और वार्ड है, जो नगर के केंद्र से 8 किमी उत्तर में राष्ट्रीय राजमार्ग 109 पर स्थित है। रानीबाग से दो किलोमीटर जाने पर एक दोराहा है। दायीं ओर मुड़ने वाली सड़क भीमताल को जाती है। जब तक मोटर - मार्ग नहीं बना था, रानीबाग से भीमताल होकर अल्मोड़ा के लिए यही पैदल रास्ता था। वायीं ओर का राश्ता ज्योलीकोट की ओर मुड़ जाता है। ये दोनों रास्ते भुवाली (Bhowali) में जाकर मिल जाते हैं। रानीबाग से सात किलोमीटर की दूरी पर 'दोगाँव' नामक एक ऐसा स्थान है जहाँ पर सैलानी ठण्डा पानी पसन्द करते हैं। यहाँ पर पहाड़ी फलों का ढेर लगा रहता है। पर्वतीय अंचल की पहली बयार का आनन्द यहीं से मिलना शुरु हो जाता है।

Origin

History

रानीबाग (Ranibagh) : काठगोदाम के बाद नैनीताल की तरफ थोड़ी दूर चलने पर रानीबाग है। रानीबाग हल्द्वानी नगर का एक आवासीय क्षेत्र और वार्ड है, जो नगर के केंद्र से 8 किमी उत्तर में राष्ट्रीय राजमार्ग 109 पर स्थित है। यह क्षेत्र हल्द्वानी नगर निगम की उत्तरी सीमा बनाता है। कहते हैं यहाँ पर पुष्पभद्रा नदी के घाट पर मार्कण्डेय ॠषि ने तपस्या की थी। पुष्पभद्रा का उल्लेख हिन्दू पौराणिक ग्रंथ भागवत में हुआ है। इसे पुष्पवहा भी कहते हैं। रानीबाग के समीप ही पुष्पभद्रा का एक अन्य छोटी नदी के साथ संगम होता है। इस संगम के बाद ही यह नदी गौला नदी के नाम से जानी जाती है। गौला नदी के दाहिने तट पर चित्रेश्वर महादेव का मन्दिर है। रानीबाग से पहले इस स्थान का नाम चित्रशिला था।

खैरागढ़ के कत्यूरी राजा पृथ्वीपाल (1380-1400) की पत्नी का नाम रानी जिया था। पृथ्वीपाल को पिथौरा शाही या प्रीतम देव भी लिखा गया है। पृथ्वीपाल की महारानी जिया का नाम प्यौला या पिंगला भी बताया जाता है। कथनानुसार वह धामदेव ब्रह्मदेव (1400-1424) की माँ थी और प्रख्यात लोककथा नायक मालूशाही (1424-1440) की दादी। कहते हैं जिया मालव देश के राजा की पुत्री थी।

सन 1418 में दिल्ली के सैयद (सुल्तान) की सेना कटेहर के हरी सिंह का पीछा करते हुए तराई-भाबर तक आ पहुंची थी। जिया रानी ने हरि सिंह को अपने राज्य में शरण दी थी और सारी सेना को तराई से मार भगा कर कटेहर पर पुनः अधिकार करने में उसकी सहायता की थी। यह युद्ध भाबर में हल्द्वानी-काठगोदाम क्षेत्र में लड़ा गया था। भीषण युद्ध के बीच सेना जिया रानी को रानी बाग (काठगोदाम) से पकड़ कर ले गई। हंसा कुँवर ने रानी को कैद से छुड़ाया। वह कुछ दिन गुप्त स्थान में छुपी रही। बाद में उसकी मृत्यु हो गई। इस वीरांगना की स्मृति में चित्रशिला घाट रानीबाग में उस युग की बनी रानी की समाधि आज भी कत्यूरी युग की याद ताजा कराती है। चित्रशिला घाट रानीबाग का एक पवित्र धार्मिक स्थल है।[1]

कत्यूर कौन थे: इतिहासकार मानते हैं कि 7वीं सदी के उत्तरार्ध में उत्तराखंड में कत्यूरी राज स्थापित हुआ। कहा जाता है कि कत्यूर काबुल के कछोर वंशी थे। अंग्रेज पावेल प्राइस कत्यूरों को कुविंद मानता है। कार्तिकेय पर राजधानी होने के कारण वे कत्यूर कहलाए। कुछ इतिहासकार कत्यूरों व शकों को कुषाणों के वंशज मानते हैं। बागेश्वर बैजनाथ की घाटी को भी वे कत्यूर-घाटी मानते हैं।[2]

कुछ इतिहासकार कत्युरों की उत्पत्ति कुणिन्द से मानते हैं क्योंकि कुणिन्द शासकों के सिक्के इस क्षेत्र में मिले हैं। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये शकों के वंशज हैं, जो ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी में भारत में थे। इन शकों को वह खश के रूप में पहचानते हैं। [3]

External links

References

  1. https://umjb.in/gyankosh/jiya-rani-uttarakhand-first-warlord
  2. https://umjb.in/gyankosh/jiya-rani-uttarakhand-first-warlord
  3. Handa, O.C(Omacanda) (2002). History of Uttaranchal. New Delhi: Indus Publishing. pp. 22–26. ISBN 9788173871344.