Ravana

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Ravana (रावण) is the primary antagonist in the ancient Hindu epic Ramayana where he is depicted as Rakshasa (demon) king of Lanka. According to Ramayana, Ravana was the son of Virochana, the grandson of Pulastya.

Ravana, a devotee of Lord Shiva, is depicted and described as a great scholar, a capable ruler and a maestro of the Veena, a musical instrument. In Puranas, he is also described as extremely powerful, with ten heads, representing his knowledge of the six shastras and the four Vedas.

In the Ramayana, Ravana kidnaps Rama's wife Sita to exact vengeance on Rama and his brother Lakshmana for having cut off the ears and nose of his sister Shurpanakha.

Ravana, as a practitioner of Buddhism, is a major character in Buddhist texts such as the Laṅkāvatāra Sūtra and the Gathering of Intentions, a text of the Nyingma school of Tibetan Buddhism.

Ravana is worshipped by Hindus in some parts of India, Sri Lanka and Bali (in Indonesia.) He is considered to be the most revered devotee of Shiva.

रावण आदि राक्षसों का वंश

लेखक - स्वामी ओमानन्द सरस्वती

(विस्तार से यहां पढिये - Haryana Ke Vir Youdheya/तृतीय अध्याय (पृष्ठ 108-109)

राक्षसराज सुमाली की कन्या ने अपने पिता की आज्ञा से वैश्रवण (कुबेर) को वर लिया । उनकी सन्तान इस प्रकार हुई ।

विश्रवा (पत्‍नी - सुमाली की कन्या कैकसी)
•रावण, •कुम्भकर्ण, •सूर्पणखा, •विभीषण

यह सब जानते हैं कि रावण और कुम्भकर्ण दोनों महाबली राक्षस लोक में उद्वेग (हलचल) उत्पन्न करने वाले थे । विभीषण बाल्यकाल से ही धर्मात्मा थे । वे सदा धर्म में स्थिर रहते थे । स्वाध्याय और नियमित आहार करते हुये इन्द्रियों को अपने वश में रखते थे ।

विभीषणस्तु धर्मात्मा नित्यं धर्मे व्यवस्थितः ।
स्वाध्यायनियताहार उवास विजितेन्द्रियः ॥३९॥
(उत्तर काण्ड ९ सर्ग)

ऐसा प्रतीत होता है कि विश्रवा और वैश्रवण नाम के अनेक ऋषि इस वंश में हुये हैं । उनमें से ही एक विश्रवा की सन्तान रावण आदि राक्षस थे । प्राचीन साहित्य में यह रीति प्रचलित थी कि प्रसिद्ध व्यक्तियों के नाम देकर साधारण व्यक्तियों के नाम छोड़ देते थे । ऐसा ही यहां किया गया है ।

इससे यही सिद्ध होता है कि देव, असुर, किन्नर, राक्षस, वानर आदि सब ऋषियों की सन्तान हैं । जो महर्षि ब्रह्मा के शिष्यों (मानसपुत्रों) की ही सन्तान हैं, उनके बहुत शिष्य थे, उनकी सन्तानों से सभी देवासुरादि की सृष्टि वा परम्परा चालू हुई । यह प्राचीन साहित्य से प्रमाणित होता है । इन्हीं की सन्तान ने अमेरिका आदि देशों को बसाया तथा वहां पर आर्य सभ्यता का प्रचार वा प्रसार किया ।

कृषि की शिक्षा देकर भौतिक उन्नति के साधनों को जुटाया । खाना, पीना, ओढ़ना, पहनना, भवन निर्माण, पशु-पालन और अनेक प्रकार के कलाकौशल भी सिखलाये ।

जिन ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि ऋषियों तथा उनके शिष्यों और पुत्र पौत्रों ने इस पवित्र वैदिक संस्कृति का सारे विश्व में सन्देश फैलाया, वे जिन विशेष गुण, कर्म और स्वभाव के कारण सब देवों में शिरोमणि माने जाते हैं उन वैदिक काल वा देवयुग के त्रिदेव का इतिहास आप अग्रिम अध्याय में अवलोकन करें ।

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References