Rohnat

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1857 का एक मात्र क्रान्तिकारी गाँव

Rohnat (रोहनात) is a village in Bawani Kheda tehsil of Bhiwani district, Haryana.

Jat Gotras

History

Due to its participation in Indian Rebellion of 1857, the village was nicknamed by British Raj as the village of rebels, all the lands of zamindars were taken away and freedom fighters were crushed under the road-roller stone.

General Courtland attacked the village for their prolific role in the rebellion. Villagers fought back bravely. Courtland ordered the destruction of the village by bombarding it with cannon shells. Chaudhary Birhad Das Bairagi (चौधरी बिरहड़ दास बैरागी) was tied to the mouth of a canon and blasted. Among the villagers who were caught, some were hanged by the still-extant banyan tree [dying and in the need of revival] on the banks of "Dhab Johad" (ढ़ाब जोहड़) wetland, others were crushed in Hansi town under the road-roller on the "Lal Sadak" (लाल सड़क, literally "Red Road" which denotes the "Blood Road"). Naunda Jat (नौंदा जाट) and Rupa Khati (रुपा खाती) were among the martyrs. Surviving villagers refused to apologise, as required by the British colonials, for their part in the 1857 war of independence. Consequently, the land of freedom fighters was confiscated and auctioned off as a punishment. Their land rights have not been restored to them until now, an injustice to the brave martyrs which remains uncorrected. Due to which, since independence of India, villagers neither celebrate the Independence Day nor unfurl the national flag as the freedom for them has not arrived yet. On Martyrs' Day on 23 March 2018, on the death anniversary of the Bhagat Singh, Sukhdev Thapar and Shivaram Rajguru, Chief Minister Manoharlal for the first time got an elder of the village to unfurl the flag in the village in his presence. (source: wikipedia)

1857 का एक मात्र क्रन्तिकारी गाँव

गाँव रोहनात, तहसील हांसी, जिला हिसार पूरे देश में मात्र एक गाँव है जिसके समस्त लोग 1857 की क्रांति में शामिल हुए. अंग्रेजी शासन के दोबारा स्थापित होने पर 20 जुलाई 1858 को इस गाँव के 50 -60 की संख्या में वीरों को जंजीरों से जकड़ कर हांसी की लाल सड़क पर रोलर से पीस दिया गया. इस गाँव के तीन नेता चौधरी न्योणदा राम बूरा , चौधरी बिरड दास स्वामी, तथा एक अन्य को फांसी पर लटका दिया गया था.

1857 की क्रान्ति में रोहणात गांव का योगदान

Rohnat Village martyrs.jpg

बात 1857 की क्रांति के समय की है। हरियाणा उस समय उबल रहा था। गांव शहर सब आजादी के नारों से गूंज रहे थे। अनेक अंग्रेज अफसरों को मौत के घाट उतारा जा चुका था, जगह जगह सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया गया था। हरियाणा के लगभग हर जिले में अंग्रेजों ने इस क्रांति को दबाने के लिए कई गांवों में नरसंहार किये थे, अनेकों वीरों को फांसी दी थी तो अनेकों को असहनीय यातनाएं देकर मृत्युदण्ड दिया था। यहां तक कि अंग्रेजों ने देख लिया था कि यह प्रदेश अब उनसे न सम्भलने वाला इसलिए हरियाणा को तोड़कर 1858 में पंजाब में मिला दिया था।

इसी क्रांति का एक जोरदार विद्रोह हुआ था रोहनात गांव में। रोहनात गांव में जाट जमींदारों का बाहुल्य था और अन्य जातियों के लोग भी खुशी खुशी रहते थे। गांव व आस पास के सब लोगों की आंखों में अंग्रेजों की गुलामी खटकती थी। इसी गांव के एक महान वीर थे चौधरी न्योंदाराम सिंह बूरा। क्षत्रिय परंपरा को निभाने के लिए वे सर्वप्रथम आगे आये। उन्होंने गांव में स्थित एक बैरागी साधु स्वामी बिरड़ादास जी से मुलाकात की। उन्होंने उनसे कहा कि वे अंग्रेजों को अपनी धरती से उखाड़ना चाहते हैं। साधु महाराज भी क्रांतिकारी विचारों से भरे हुए थे। दोनो में अच्छी मित्रता हो गई। न्योंदाराम ने साधु के साथ मिलकर गांव व आस पास के क्षेत्र में क्रांति की ज्वाला तैयार करनी शुरू कर दी। अंग्रेजों को भी इस बात की भनक लग चुकी थी। अंग्रेज जब इस गांव में आये तो चौधरी साहब के नेतृत्व में गांव वालों ने उनके वाहनों को आग लगा दी और उन्हें मारना शुरू कर दिया। बूरा खाप ने भी चौधरी साहब का पूर्ण साथ दिया।

इसके बाद चौधरी न्योंदाराम सिंह जी ने हिसार जेल पर आक्रमण कर दिया जहां अनेकों क्रांतिकारियों एवं निर्दोष भारतीयों को अंग्रेजों ने बन्द कर रखा था। हरियाणा के इन वीरों ने जेल तोड़कर सबको आजाद कर दिया। गुस्साए अंग्रेजों ने गांव पर भारी सेना और तोपों के साथ हमला कर दिया। अंग्रेजों ने 8 तोपों से सैंकड़ो गोले दागे और घरों को तबाह कर दिया। चौधरी साहब, स्वामी बिरड़ादास जी एवं कुछ अन्य मुख्य क्रांतिकारियों ने गांव को बचाने के लिए आत्मसमर्पण कर दिया।

उनके आत्मसमर्पण के बाद भी अंग्रेजों की आत्मा को शांति न मिली। उन्होंने गांव पर फिर गोलाबारी की जिसमे 100 के करीब क्रांतिकारी एवं निर्दोष बच्चे महिलाएं वीरगति को प्राप्त हुए। अंग्रेजों ने गांव की जमीन गांव के लोगों से छीनकर नीलाम करके बेच दिया जिसका अभी तक गांव के लोगों को इंसाफ नहीं मिला है।

स्वामी बिरड़ादास और कुछ अन्य क्रांतिकारियों को गांव में ही चौधरी साहब (बेड़ियों से बांधकर) की आंखों के सामने फांसी तोड़ दिया। चौधरी न्योंदाराम सिंह को हांसी तहसील ले जाया गया। हांसी में आज जिसे लाल सड़क कहते हैं, वहां पर हिसार व आस पास के क्षेत्र के अनेकों क्रांतिकारियों को इकट्ठा कर रखा था। वहां सर्वप्रथम चौधरी न्योंदाराम सिंह बूरा को अंग्रेजों ने अनेक यातनाओं के बाद एक विशाल पत्थर की गिरड़ी के नीचे धीरे धीरे करके कुचल दिया था लेकिन फिर भी चौधरी साहब आखिरी सांस तक देश की आजादी के नारे लगाते रहे थे। उसके बाद अंग्रेजों ने सब क्रांतिकारियों को कुचल दिया था। क्रांतिकारियों के रक्त से सड़क का रंग बिल्कुल लाल हो गया था। इसलिए आज भी उस सड़क को लाल सड़क के नाम से जाना जाता है।

हरियाणा एवं देश के इन महान क्रांतिकारियों को हमने भुला दिया। आज उनकी कोई मूर्ति रोहनात गांव में या हांसी की लाल सड़क पर नहीं हैं। न ही उनके बारे में विस्तार से किसी स्कूली किताब में पढ़ाया जाता हैं। हरियाणा की धरती पर ऐसी हजारों वीरगाथाएं सिमटी पड़ी है उन वीरों के द्वारा हमारे लिए दिए बलिदान को सार्थक सिद्ध करते हुए उन्हें सँजोकर आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना हम सबका कर्तव्य बनता है।

जय हिंद। जय भारत माता। जय वीरभूमि हरियाणा। जय चौधरी शहीद न्योंदाराम बुरा, शहीद श्री रूपा खाती, शहीद स्वामी बीरड़ादास जी की और सभी क्रन्तिकारियों को कोटि-कोटि शत-शत नमन।

संदर्भ - सुरेश पंघाल प्रतिनिधि हरियाणा, राजस्थान & पंजाब जाट संसार पत्रिका [The above text was copied from a social media (Whatsapp) group chat]

Population

(Data as per Census-2011 figures)

Total Population Male Population Female Population
3785 1970 1815

Notable persons

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References


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