Sardar
Origin
When the tenth Sikh Guru, Guru Gobind Singh started Khalsa sect, he bestowed upon all of his disciples with the title SARDAR i.e. a brave person who is always ready to sacrifice his head ('sir') for the cause of the community. Although today in Punjab, even a low-caste Sikh is called a 'Sardar', in those days only the big zamindars and influential Jats who had vast tracts of land and had a special influence, were called Sardar. Today, in Indian Army, Junior Commissioned Officers, (JCOs), specially Jats, are called 'Sardars'.
History
सरदार
दसवें गुरु गोविन्दसिंह जी ने जब नानक-पंथ को वीर खालसा का रूप दिया तब सभी सिक्ख शिष्यों को उन्होंने सरदार की उपाधि से सम्मानित किया। यानि जो वीर अपना सिर (सर) बलिदान करने के लिए सदा तैयार रहे, उसको सरदार कहा गया। यद्यपि पंजाब में रामदासिये, कलाल, भंगी, तरखान, रामगढिये आदि सभी को सिक्ख होने पर सरदार की उपाधि मिल जाती है। परन्तु जाटों के राज्य थे व इनकी बड़ी-बड़ी जमीदारियां अधिक होने और इनका खास प्रभाव होने के कारण ही गांवों में जाटों को ही सरदार कहा जाता है, छोटी जातियों को नहीं। सेना में जूनियर आफिसरों (JCOs) को भी सरदार कहा जाता है, विशेषकर हिन्दू जाट जे० सी० ओ० को। इन सैनिक जाट जे० सी० ओ० को सरदार बहादुर की उपाधि दी गई, जैसे - सरदार बहादुर मलिक भोरनसिंह, सूबेदार मेजर कुरमाली, सरदार बहादुर कैप्टन रघबीरसिंह ए० डी० सी० वायसराय आदि आदि।[1]
Notable persons
The first Home Minister of India, Sardar Vallabhbhai Patel, was using both the titles - 'Sardar' and 'Patel'.
भारत के भूतपूर्व गृहमन्त्री सरदार वल्लभभाई पटेल जी सरदार और पटेल दोनों उपाधियों से सम्मानित थे।[2]
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter II (Page-84)
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter II (Page-85)
Back to Jat Gotras