Shravanabelagola
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Shravanabelagola (श्रवणबेलगोला) is a town located near Channarayapatna of Hassan district in the Indian state of Karnataka and is 144 km from Bangalore.
Variants
- Shramanabelagola श्रमणबेलगोला = श्रवणबेलगोला, मैसूर, (AS, p.914)
- Śravaṇa Beḷagoḷa
Location
Shravanabelagola is located at 11 km to the south-east of Channarayapatna in the Channarayapatna taluk of Hassan district of Karnataka. It is at a distance of 51 km south-east of Hassan, Karnataka, the district centre. It is situated at a distance of 12 km to the south from the Bangalore-Mangalore road (NH-75), 18 km from Hirisave.
Origin of name
Belagola (बेलगोला) is Kannada word for 'white pond' (=Dhavalasarovara) . Shravanabelagola means "White Pond of the Shravana".
History
The Gommateshwara Bahubali statue at Shravanabelagola is one of the most important tirthas (pilgrimage destinations) in Jainism, one that reached a peak in architectural and sculptural activity under the patronage of Western Ganga dynasty of Talakad. Chandragupta Maurya is said to have died here in 298 BCE after he became a Jain monk and assumed an ascetic life style.[1]
Sacred places are spread over two hills, Chandragiri and Vindyagiri, and also among the villages at the foothills.
श्रमणबेलगोला = श्रवणबेलगोला
श्रवणबेलगोला (AS, p.914): विजयेन्द्र कुमार माथुर [2] ने लेख किया है ... यह स्थान चन्द्रगिरि और इन्द्रगिरि नामक पहाड़ियों के मध्य में स्थित यह स्थान प्राचीनकाल में जैन धर्म एवं संस्कृति का महान् केन्द्र था. यहां का संसार प्रसिद्ध स्मारक गोम्मटेश्वर की विराट 57 फुट ऊंची मूर्ति है जो एक ही पत्थर से काटकर इस स्थान पर बनवाई गई है. यह गंग नरेशों (लगभग 1000 ई.) की कीर्ति की अचल पताका है. जैन किंवदंती के अनुसार सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य वृद्धावस्था में राजपाट त्यागकर दक्षिण भारत चले आए थे और जैन धर्म में दीक्षित होकर इसी स्थान (चंद्रगिरि) पर रहने लगे थे. उपयुक्त दोनों [p.915]: पहाड़ियों पर प्राचीन ऐतिहासिक अवशेष बिखरे पड़े हैं. बड़ी पहाड़ी इंद्रगिरि पर ही गोम्मटेश्वर की मूर्ति स्थित है. यह पहाड़ी 470 फुट ऊंची है. पहाड़ी के नीचे कल्याणी नामक झील है जिसे धवलसरोवर भी कहते थे. बेलगोल कन्नड़ का शब्द है जिसका अर्थ है धवलसरोवर. यहां से प्राय: 500 सीढ़ियों पर चढ़कर पहाड़ी की चोटी पर पहुंचा जा सकता है. गोम्मटेश्वर की मूर्ति मध्ययुगीन मूर्तिकला का अप्रतिम उदाहरण है. फर्ग्युसन के मत में मिस्र देश को छोड़ कर संसार में अन्यत्र इस प्रकार की विशाल मूर्ति नहीं बनाई गई.
यहाँ के गंग शासक रचमल्ल के शासनकाल में उनके प्रधान मंत्री चामुण्डराय ने 983 ई. में बाहुबलि (गोमट) की विशालकाय जैन मूर्ति का निर्माण करवाया था। कहा जाता है कि मूर्ति उदार ह्रदय बाहुबलि (ऋषभदेव के पुत्र)) की है जिन्होने अपने बड़े भाई भरत के साथ हुए घोर संघर्ष के पश्चात् जीता हुआ राज्य उसी को लौटा दिया था। इस प्रकार इस मूर्ति में शक्ति तथा साधुत्व और बल तथा सौंदर्य की उदात्त भावनाओं का अपूर्व संगम प्रदर्शित किया गया है. इस मूर्ति का अभिषेक विशेष पर्वों पर होता है.
इस विषय का सर्वप्रथम उल्लेख 1398 ई. का मिलता है। इस मूर्ति का सुन्दर वर्णन 1180 ई. में वोप्पदेव कवि के द्वारा रचित एक कन्नड़ शिलालेख में है। श्रमणबेलगोल से प्राप्त दो स्तम्भलेखों में पश्चिमी गंग राजवंश के प्रसिद्ध राजा नोलंबांतक, मारसिंह (975 ई.) और जैन प्रचारक मम्मलीषेण (1129 ई.) के विषय में सूचना प्राप्त होती है, जिसने वैष्णवों तथा जैनों के पारस्परिक विरोधों को मिटाने की चेष्टा की थी और दोनों सम्प्रदायों को समान अधिकार दिए थे।