Sunhari Gitanjali
सुनहरी गीतांजली
(सन् 1946)
पुस्तक में महाशय धर्मपाल सिंह भालोठिया (27.1.1926 - 8. 10.2009) द्वारा सन् 1946 में रचित सामाजिक बुराइयों व कुरीतियों एवं लुहारू नवाब के जुल्मों के विरूद्ध गाने हैं।
गीत - 1
बेबे रटो ओउ्म का नाम, दुनिया हो हो जानी हे ।। टेक ।।
रावण से बलवान गये, दुर्योधन नादान गये ।
सिकंदर नहीं ले गया छदाम, बदी ले गए अज्ञानी हे ।। 1 ।।
परम पिता ने जन्म दिया, उसका ना कभी नाम लिया ।
किया ना कोई उत्तम काम, करी जग में मनमानी हे ।। 2 ।।
जिसने दिया मनुष्य चोला, यह जीवन जग में अनमोला ।
बनाया जिसने जगत तमाम, हवा पृथ्वी और पानी हे ।। 3 ।।
उत्तम काम करो जग में, अपना नाम करो जग में ।
दुष्टों का कर दो कत्लेआम, बन झांसी की रानी हे ।। 4 ।।
जीवित पित्तरों की करो सेवा, दुनिया में पावो मेवा ।
संध्या करो सुबह और शाम, तजो सैयद सेढ़ मसानी हे ।। 5 ।।
दुनिया में धक्के खाओ ना, काशी मथुरा जाओ ना ।
क्यों दुनिया में हो बदनाम, दो दिन की जिंदगानी हे ।। 6 ।।
नकली गहने देओ बिसार, करलो विद्या का सिंगार ।
पैदा करो भरत और राम, कर्ण सरीखे दानी हे ।। 7 ।।
रखो केसरिया बाना हे, सुनो धर्मपाल का गाना हे ।
जिसका एक छोटा सा गांव, भालोठियों की ढाणी हे ।। 8 ।।
गीत - 2
तर्ज:- मेरा कहा मान छोहरे नौकर ना जाइए ……
वेद विद्या बस में, धर्म पर चलना बस में ।
अधर्म कमाना री, बस कोन्या मेरे बस में ।। टेक ।।
संध्या करना बस में, ईश्वर की भक्ति बस में ।
घंटे बजाना री, बस कोन्या मेरे बस में ।। 1 ।।
सासू सेवा बस में, सुसरे की सेवा बस में ।
पोप जिमाणा री, ए कोन्या मेरे बस में ।। 2 ।।
पति पूजा बस में, उसकी टहल बजानी बस में ।
सैयद पर जाणा री, ए कोन्या मेरे बस में ।। 3 ।।
नणदल देवी बस में, उसको लेना देना बस में ।
गौ माता बस में, उसकी सेवा करना बस में ।
गधे चराणा री, ए कोन्या मेरे बस में ।। 5 ।।
वैद्य बुलाणा बस में, इलाज कराना बस में ।
झाड़े लगवाना री, ए कोन्या मेरे बस में ।। 6 ।।
दिवाली मनाणी बस में, और करना खाना बस में ।
गोवर्धन बनाणा री, ए कोन्या मेरे बस में ।। 7 ।।
होली मनाणी बस में, करना खाना बस में ।
पाप कमाना री, ए कोन्या मेरे बस में ।। 8 ।।
बोहतराम बुलाणा बस में, धर्मपाल बुलाणा बस में ।
नाच कराना री, ए कोन्या मेरे बस में ।। 9 ।।
गीत – 3
- ==गीत – 3 सच्ची देवी का उपदेश ==
साजन छोड़ देवो पाखंड, यूं ही वृथा उमर गंवाई हो ।। टेक ।।
झूठे रच कर ग्रंथ वेद मरियाद छुड़ाई हो ।
दिया धर्म वेद का छोड़, पोप के क्या मन भाई हो ।। 1 ।।
गरुड़ गपोड़े सुना सुना म्हारी मति बोहराई हो ।
मुर्दों से बने मुर्दे कैसी मूर्खताई हो ।। 2 ।।
भूत प्रेत बतलाकर के दहशत दिखलाई हो ।
जिंदे डरैं मुर्दों से तरक्की कैसी पाई हो ।। 3 ।।
छोड़ी पित्तर सेवा करनी नहीं सुहाई हो ।
मुर्दों के दोष लगा खाने की राह चलाई हो ।। 4 ।।
संध्या जाणे ना गायत्री सभी भुलाई हो ।
मनमानी करने लगे इनकी यही बड़ाई हो ।। 5 ।।
शिव पार्वती सालिगराम कहीं तुलसा माई हो ।
जड़ पुजवा कर पोपों ने बड़ी लूट मचाई हो ।। 6 ।।
कहीं गुड़गावें पर जाकर के जात दिवाई हो ।
बकरे मुर्गे काट खून की नदी बहाई हो ।। 7 ।।
अपनी देते जात आप कुछ शर्म ना आई हो ।
फिरें भटकते दुनिया में यह लोग लुगाई हो ।। 8 ।।
घरों में कुदा-कुदा मुस्टंडे रात जगाई हो ।
उल्टे काम किए अपनी हंसी उड़वाई हो ।। 9 ।।
कर व्रत आत्मा मोसी गंदी कथा कराई हो ।
सुनती थी दिन-रात समझ में कुछ ना आई हो ।। 10 ।।
हो वृथा लुटे था माल, रहे थे धगड़े खाई हो ।
दिन रात माल खाते और देते शुद्र बताई हो ।। 11 ।।
देख देश की दशा दया दयानंद को आई हो ।
छूटी थी वेदों की विद्या फिर फैलाई हो ।। 12 ।।
गुरु बोहतराम का नाम सुन, ठगणी घबराई हो ।
पोपजी भागा फिरै, ना ठोड़ ल्हुकन ने पाई हो ।। 13 ।।
गीत - 4
तर्ज:- पिया ब्याही थी मन करके, अब छोड़ गया परदेश ……..
अब मिट गया घोर अंधेरा, पोपों में पड़ी दुहाई री ।
जले रोवें खीर के मारे ।। टेक ।।
इन ठगियों ने बहका कर, म्हारी सब मरियाद भुलाई री ।। जले…..1
रच पुराण कुरीत फैला दी, वेदों की चाल छुड़ाई री ।। जले ….. 2
कंकर पत्थर पुजवाए, संध्या करणी भुलाई री ।। जले ….. 3
मुर्दों के दोष लगाते रहे, माल मुफ्त का खाई री ।। जले ….. 4
कह रहे स्वर्ग में भेजें, ना कभी रसीद दिखाई री ।। जले ….. 5
खाते हैं शर्म ना आती, करवा तेहरामी ख्याई री ।। जलें ….. 6
चाहे मरण और जामण हो, दिया सब पर टैक्स लगाई री।। जले….7
कैसा पाखंड रचाते, एक थैली लाल रंगाई री ।। जले ….. 8
रहे हाथ हिला, ले माला, मुर्दों को रहे जलाई री ।। जले ….. 9
लूटैं थे धोखा देकर, दिया मूर्ख देश बनाई री ।। जले ….. 10
ठाकुर को दीवा दिखावें, रहे जल के छींटे लाई री ।।जले ….. 11
नक्कारे घंटे बाजैं, पत्थरों को रहे जगाई री ।। जले ….. 12
ले नाम राम कृष्ण का, खाते थे पोप मिठाई री ।। जले ….. 13
सब लोग भरम में गेरे, ठगियों ने लूट मचाई री ।। जले ….. 14
श्री स्वामी जी ने आकर, पोपों की पोल डिगाई री ।। जले ….. 15
गुरु बोहतराम जब आए, दई बता पोप की दवाई री ।। जले….16
गीत - 5
भारत में घोर अंधेरा था, सब दूर किया अंधकार नणदी ।
आज बधावा ऋषि दयानंद का ।। टेक ।।
पुराणों ने जोर जमाया था, किया वेदों का उजियार नणदी ।।आज ….1
ब्याहों में नाच कराते थे, अब होय वेद प्रचार नणदी ।। आज …. 2
जितने थे दुखिया भारत में, सबका किया उद्धार नणदी ।। आज ….3
जो कन्या का मोल चुकाते थे, वो दूर हटाया भार नणदी ।। आज …. 4
गउवों की सेवा बता दई हो इनका बेड़ा पार नणदी ।। आज …. 5
विद्यालय गुरुकुल खुलवाए, जो विद्या के भंडार नणदी । । आज ….6
यहां सब नारी मूर्ख थे, कर गए ऋषि होशियार नणदी ।। आज …. 7
हमें नीच बता धन लेते थे, जाति के ठेकेदार नणदी ।। आज …. 8
आज लिए जनेऊ फिरते हम, रहे क्षत्री धर्म को धार नणदी।। आज …. 9
धन्यवाद कहो ऋषि दयानंद को, कर गए हमको बेदार नणदी ।।आज ….10
बोहतराम धर्म का गाना गा, संग धर्मपाल तैयार नणदी ।। आज …. 11
गीत - 6
प्यारी लागै हे आर्यों की वैदिक चाल ।। टेक ।।
ओउ्म के झंडे गड़े आर्यों के, अम्बर में धजा रही हाल ।। 1 ।।
चारों खंबे गाड़े सतरंगे, जणु कोई भूपाल ।। 2 ।।
गायत्री मंत्र लिख राखे, देख होंय खुशहाल ।। 3 ।।
झालर पत्ते लगे आम के, केले की हरियल डाल।। 4 ।।
पत्ते पत्ते की कतरण न्यारी, देखकर होंय निहाल ।। 5 ।
सुंदर बेदी खूब सजाई, रंग पीले हरे लाल ।। 6 ।।
क्या शोभा बणी मंडप की, राजों केसा हाल ।। 7 ।।
बोहतराम के गीत प्यारे, कर रहा ‘धर्म’ कमाल ।। 8 ।।
गीत - 7
तर्ज:- मैं खड़ी बुर्ज के बंगले …….
ना जग में रही अविद्या, फरका दिया वैदिक झंडा री,
ऋषि दयानंद स्वामी ने ।। टेक ।।
कुरुक्षेत्र पुष्कर गंगा, वहां लूटैं थे ठग पंडा री ।। ऋषि .... 1
कहीं शिव पिंडी ठाकुर जी, कहीं हनुमान प्रचंडा री ।। ऋषि ....2
कहीं बर्णी कहीं गरुड़ के, लिया सीख पोप हथकंडा री ।। ऋषि ....3
लूटैं थे माल हरामी, फिरें कहीं रंडी कहीं रंडा री ।। ऋषि .... 4
कोई औघड़ और कनफाड़े, ये माल उड़ावें संडा री ।। ऋषि .... 5
कोई बन गए भगत सियाने, करते थे डोरी गंडा री ।। ऋषि .... 6
मारे सबके मान ऋषि ने, कर लिया ज्ञान का झंडा री।।ऋषि ....7
गुरु बोहतराम के डर से, हुआ खून पोप का ठंडा री ।। ऋषि .... 8
गीत - 8
तर्ज :- मैं बेशर तोता पहर कूवे पर आई रे, कूवे पर बैठा छैल ---
मैं बेशर तोता पहर सेढ़ पर आई रे ।। टेक ।।
वहां बैठा मस्त कुम्हार, सेढ़ ना पाई रे । 1 ।
मैं सेढ़ जिमा अपनी गलती को पछताई रे । 2 ।
वहां कुत्ते खा कर रहे थे मौज उड़ाई रे । 3 ।
मारैं थे मूत की धार बोलती नाहीं रे । 4 ।
मैं हंसला झालर पहर पीर पर ध्याई रे । 5 ।
वहां पर थे पुजारे यह नीच कसाई रे । 6 ।
मैं दामन चुंदड़ी पहर मंदिर में गई रे । 7 ।
रहे पत्थरों आगे टाल पोप खुड़काई रे । 8 ।
देखो कुंडली के बीच लिंग गड़वाई रे । 9 ।
बैठे पाखंडी पास सब शर्म गंवाई रे । 10 ।
मै पूजण चाली गुडगांवे की माई रे । 11 ।
चोरों ने खोस लिया माल लुटा घर आई रे। 12 ।
देवी भैरूं माता मैं सारे देख्याई रे । 13 ।
जहां देख्या वहां ही लूट माचती पाई रे । 14 ।
पोपों का जाइयो नाश इन्हें बहकाई रे । 15 ।
भाई बोहतराम की बात मेरे मन भाई रे । 16 ।
तनै धर्मपाल आज नई नई तर्ज बताई रे । 17 ।
गीत – 9
बनड़ा घुड़चढ़ी
शहजादा म्हारा बनड़ा, घोड़ी का असवार ।। टेक ।।
हे गुरुकुल में पढ़कर आया वेदों की पोथी चार ।
पूर्ण विद्वान कहावे व्रत ब्रह्मचर्य रहा धार ।। 1 ।।
पून्यू केसा चंद्रमा है, मुख पर अजब बहार ।
हे क्या सुंदर खेल दिखावे, कैसा कैसा है होशियार ।। 2 ।।
छाती पर सजा जनेऊ गायत्री रहा उच्चार ।
सुहानी सी सूरत प्यारी है क्षत्री राजकुंवार ।। 3 ।।
खुश मात-पिता और भाई हो रहा मगन परिवार ।
झुक सबको करै नमस्ते जब हुआ चलन को त्यार ।। 4 ।।
यह धर्म वीर कहलाए करें दुनिया में उपकार ।
और श्रेष्ठ आर्य कुल की ब्याहेगा सुंदर नार ।। 5 ।।
अब सजी बारात सुहानी चलते ना लाई वार ।
गुरू बोहतराम भी संग में और धर्मपाल तैयार ।। 6 ।।
गीत – 10
गीत बारोठी
बर ब्याहवन आया हे, आज म्हारे शुभ की घड़ी ।। टेक ।।
पून्यू केसा खिला चंद्रमा सबके मन भाया हे ।। 1 ।।
ऊंचे कुल का छैला बनड़ा, विद्वान बताया हे ।। 2 ।।
धन्य धन्य बेबे सावित्री, तेरा भाग सवाया हे ।। 3 ।।
सिर पर मुकुट, गले में जनेऊ, हद जामा बनाया हे ।। 4 ।।
नैनों में स्याही करी चतुराई, ब्रह्मचारी कहाया हे ।। 5 ।।
लीली सी घोड़ी पर सोहे, म्हारी पोल पर आया हे ।। 6 ।।
धन्य बनड़े तेरे माता-पिता को, देखन सब आया हे ।। 7 ।।
क्या कहूं सखी बनड़े की, बोहतराम ने गाया हे ।। 8 ।।
गीत - 11
तर्ज:- रे गांधी के महल तले के लिकड़ा,रे गांधी के महल रहा गरनाय--
हेरी मेरी सासड़ पाखंड सारे छोड़ दे,
हेरी मेरी सासड़ हुआ वेद प्रचार री ।
दयानंद पर पोथी वेद की ।। टेक ।।
हेरी मेरी सासड़ बागों में जलसा हुआ,
हेरी मेरी सासड़ शोभा कही नहीं जाय री ।। 1 ।।
हेरी मेरी सासड़ झंडे फरके ओउ्म के,
हेरी-मेरी सासड़ वेद मंत्रों की बहार री ।। 2 ।।
हेरी मेरी सासड़ ऊपर तन रही चांदणी,
हेरी मेरी सासड़ बिछ रही लाल बनात री ।। 3 ।।
हेरी मेरी सासड़ भजनी भजन सुना रहे,
हेरी मेरी सासड़ पंडित करें उपदेश री ।। 4 ।।
हेरी मेरी सासड़ सारी शोभा क्या कहूं,
हेरी मेरी सासड़ छवि छा रही अपार री ।। 5 ।।
हेरी मेरी सासड़ जलसे अंदर जायके,
हेरी मेरी सासड़ सुनी धर्म की बात री ।। 6 ।।
हेरी मेरी सासड़ सुन सुन बानी वेद की,
हेरी मेरी सासड़ भ्रम हुआ सब दूर री ।। 7 ।।
हेरी मेरी सासड़ कल्पित बातों को छोड़ो,
हेरी मेरी सासड़ सत्य धर्म पहचान री ।। 8 ।।
हेरी मेरी सासड़ गरुड़ बचानी छोड़ दे,
हेरी मेरी सासड़ चारों वेद मंगाय री ।। 9 ।।
हेरी मेरी सासड़ पत्थर पूजा छोड़ दे,
हेरी मेरी सासड़ संध्या में मन लाय री ।। 10 ।।
हेरी मेरी सासड़ कर कुणबे ने आर्य,
हेरी मेरी सासड़ पोपों न धमकाय री ।। 11 ।।
हेरी मेरी सासड़ बुलवाले बोहतराम ने,
हेरी मेरी सासड़ आवे "धर्म" भी साथ री ।। 12 ।।
गीत - 12
होजा बहना त्यार, सासु के घर पर जाना हे ।। टेक ।।
ना पत्थर पूजन जाइए, हरदम ईश्वर के गुण गाइए ।
कर संध्या सुबह शाम, हवन करो रोजाना हे ।। 1 ।।
बुड्ढों की करना सेवा हे, भगवान पार करै खेवा हे ।
फिर मिलेगा सुखधाम, और छोटों को समझाना हे ।। 2 ।।
मानो सत्य पुरुषों का कहना, सुख पाओ भोली बहना ।
सब करना सत्य काम, बस हरदम कहन पुगाना हे ।। 3 ।।
जितनी द्योर-जेठानी, सबसे बोलो मीठी वाणी ।
नणदी का करियो मान, प्रीतम से प्रेम बढ़ाणा हे ।। 4 ।।
घर की सुंदरताई, और रखना खूब सफाई ।
यो तुम्हारा खास काम, ना किसी में गलती खाना हे ।। 5 ।।
सुबह चक्की चलाइए, नित्य चौका लाइए ।
ला पानी कर स्नान, फिर भोजन शुद्ध बनाना हे ।। 6 ।।
जलसे में जाना, धर्म की बात सुन आना ।
बोहतराम का सुन प्रचार, धर्मपाल बुलवाना हे ।। 7 ।।
गीत-13
तर्ज -लोक गीत
गुरूकुल जांगी रे, मेरे हुये आर्य भाई ।। टेक ।।
ना पूजूँ देव पत्थर का हे, म्हारे पति देवता घर का हे ।
जिसके मैं ब्याही आई ।। 1 ।।
ना पूजूँ पीर निगोड़ा हे, म्हारे पूजन जोगा बूढ़ा हे ।
पोळी में देत दिखाई ।। 2 ।।
ना पूजूँ सेढ मसानी हे, ये डाकण बच्चे खाणी हे ।
घर बुढ़िया सास बताई ।। 3 ।।
ना पूजूँ देवी पत्थर की हे, म्हारे नणदल देवी घर की हे ।
मेरी सास की जाई ।। 4 ।।
ना घंटे टाल बजाऊँ हे, मैं ओउ्म नाम को ध्याऊँ हे ।
जिसने ये दुनिया बनाई ।। 5 ।।
नहीं स्याणे सेवड़े बुलवाऊँ, नहीं झाड़ा बूझा करवाऊँ ।
अब रोग की मिले दवाई ।। 6 ।।
जब स्वामी दयानन्द आए हे, हमें चारों वेद सुनाए हे ।
पोपों में पड़ी दुहाई ।। 7 ।।
सुनो धर्मपाल का गाना हे, यहां होता है रोजाना हे ।
जिन नई नई तर्ज बताई ।। 8 ।।
गीत – 14
साजन मत धर सिर बदनामी ।। टेक ।।
वेद धर्म का दुश्मन बन, अधर्म की डिग्री थामी ।। साजन …. 1
सत्य पुरुषों से दूर रहा, तनै पाले नमक हरामी ।। साजन …. 2
देश धर्म की सेवा छोड़ी, तू बना बिलकुल बेकामी ।। साजन …. 3
जीते मात-पिता नहीं पूजे, मुर्दों का बन गया हामी ।।साजन …. 4
पत्थर पूजकर उमर गंवाई, तज ईश्वर अंतरयामी ।। साजन …. 5
श्रेष्ठ आर्य नाम बिसारा, बना हिंदू काफिर कामी ।। साजन …. 6
क्षत्री धर्म लगा नहीं प्यारा, शूद्र पदवी लई निकामी ।। साजन ….7
भलाई नित्य पैरों से कुचली, तू बणग्या नरका गामी ।। साजन …. 8
अधर्म में मन बसा हमेशां, तेरी देखी सीतारामी ।। साजन …. 9
अब भी चेत वक्त जाता है, गए जगा दयानंद स्वामी ।। साजन ….10
बोहतराम कर नेक कमाई, बना धर्मपाल अनुगामी ।। साजन ….11
गीत - 15
तर्ज- तुम तो चाले पिया परदेश ---
यह मुर्दा था हमारा भारत देश, श्री स्वामी यहां आगए, दयानंद ।। टेक ।।
छाई थी अंधेरी यहां रात, रोशनी दिखला गए दयानंद ।। 1 ।।
अंधेरे में लूटैं थे बदकार, वह सारे बतला गए, दयानंद ।। 2 ।।
गेरैं थे खढ़े में पुराणों वाले, झूठे कर बैठा गए, दयानंद ।। 3 ।।
कहते मुस्लिम इल्हांमी कुरान, मोहम्मदी जतला गए, दयानंद ।। 4 ।।
फिरंगी भी खेलैं थे शिकार, उनके दिल दहला गए, दयानंद ।। 5 ।।
चढ़े थे शिखर पर गैर, सबको नीचा गिरा गए, दयानंद ।। 6 ।।
गल में थी गुलामी की जंजीर, गांधी से वीर बना गए, दयानंद।। 7 ।।
सोवे था गफलत में भारत देश, पकड़ कर उठा गए, दयानंद ।। 8 ।।
रच गए सुंदर सत्यार्थप्रकाश, आप सबके मन भा गए, दयानंद ।। 9 ।।
बोहतराम तनै ऐसे ऐसे गीत, गाणे सिखला गए, दयानंद ।। 10 ।।
गीत - 16
तर्ज - नंदलाल बजाई बांसली
हेरी सासड़ गुरुकुल गुरुकुल हो रही, री सासड़ जलसा देखण चाली री ।
दयानंद ने बजाई बांसली ।। टेक ।।
हेरी सासड़ झूठे पुराण बता दिए, री कहा वेद पढ़ी मन लाय री ।। 1 ।।
हेरी सासड़ पत्थर पूजा खो दई, री दिए संध्या करण सिखाय री ।। 2 ।।
हेरी सासड़ हिंदू काफिर नाम था, री गया आर्य श्रेष्ठ बनाय री ।। 3 ।।
हेरी सासड़ वर्णों में हम नीच थे, री अब क्षत्री वर्ण कहाए री ।। 4 ।।
हेरी सासड़ घणे दिनों का निकला, री जनेऊ गए दिलवाए री ।। 5 ।।
हेरी सासड़ कन्या को जो बेचते, वो दीन्हे समझाय री ।। 6 ।।
हेरी सासड़ विधवा दुख पाती घणे, री दिया पुनर्विवाह करवाय री ।। 7 ।।
हेरी सासड़ गउवों के दुख देख के, री गए गौशाला खुलवाय री ।। 8 ।।
हेरी सासड़ अनाथ बच्चे जो मिले, री गए प्रबंध कराय री ।। 9 ।।
हेरी सासड़ जितने लुटेरे लूटते, री वो दीन्हे धमकाय री ।। 10 ।।
हेरी सासड़ रही सही कुछ भूल थी, गया बोहतराम मिटाय री ।। 11 ।।
गीत – 17
मेरे मन बस गया हे, आर्यों का प्रचार ।। टेक ।।
बादल अविद्या का था जग में, छा रहा था अंधकार ।। 1 ।।
लूटैं थे ठग बहुत लुटेरे, महा पापी बदकार ।। 2 ।।
पतरे वाले कर मुंह काले, फिरते लारमलार ।। 3 ।।
कहीं पत्थर कहीं रुंख पुजाए, करते जय जय कार ।। ।4 ।।
ढैया साढ़े सात की तिघरी , और ग्रहों के ठेकेदार ।। 5 ।।
जल स्नान दर्शन पत्थर के, जहां गए वहीं पर त्यार ।। 6 ।।
धक्का खाया सबर न आया, होते फिरे ख्वार ।। 7 ।।
पता धर्म का कहीं मिला ना, दुष्ट मिले मक्कार ।। 8 ।।
दक्षिण से एक साधु आया, कर दिए सब बेदार ।। 9 ।।
बोहतराम का सुनकर गाना, हुआ मेरे एतबार ।। 10 ।।
गीत - 18
सब देखण आइयो हे, जलसा आर्यों का ।। टेक ।।
पत्थर की मत पूजा करना, मन संध्या में लाइयो हे ।। 1 ।।
सुसरे की तुम सेवा करना, यह पोप हटाइयो हे ।। 2 ।।
सेढ़ मसानी मतना पूजो, सासु को जिमाइयो हे ।। 3 ।।
सैयद भैयां पीर छोड़ दो, पति प्रेम बढ़ाइयो हे ।। 4 ।।
पत्थर की मत देवी पूजो, नणदी ने बुलवाइयो हे ।। 5 ।।
गंदे मेलों में मत जाओ, जलसों में जाइयो हे ।। 6 ।।
भूखी मरना व्रत छोड़ दो, सत्य पर मन लाइयो हे ।। 7 ।।
मतना भद्दी सुनो कहानी, ना धर्म गंवाइयो हे ।। 8 ।।
गंदे गीत छोड़ दो गाने, तुम ऐसे गाइयो हे ।। 9 ।।
नीचों का मत नांच देखियो, प्रचार कराइयो हे ।। 10 ।।
बोहतराम का सुनियो गाना, धर्मपाल सरहाइयो हे ।। 11 ।।
गीत – 19
आज घर खुशी हुई , सब गावो मंगलाचार ।। टेक ।।
जन्मा पुत्र परोपकारी, धर्मवीर औतार ।। 1 ।।
दादा दादी बहन और बुआ, मगन सभी परिवार ।। 2 । ।
चंद्रमा सी सूरत कुंवर की, करेगा यह उपकार ।। 3 ।।
मिलकर गावो गीत धर्म के, वेदों के अनुसार ।। 4 ।।
विद्वान पंडित बुलवाकर, सामान करो तैयार ।। 5 ।।
सुंदर वेदी रचवा करके, करवाओ संस्कार ।। 6 ।।
सब नर नारी खुशी मनावो, करै बोहतराम प्रचार ।। 7 । ।
धर्मपाल के गीत प्यारे, सुने सभी नर नार ।। 8 । ।
गीत – 20
सुन री सखी सुनाऊं बात, लोहारू के ताजा हालात ।
आर्य वीर विजय पाए ।। टेक ।।
लोहारू जैसा अत्याचार, कहीं पर और नहीं सरकार ।। आर्य ….. 1
नहीं कोई धार्मिक तालीम, नित्य बनावे नई स्कीम ।। आर्य …. 2
पहुंचे स्वामी स्वतंत्रानंद, काट गए जो दुखियों के बंद ।। आर्य …..3
सब नर नार लोहारू में, दिए कर बेदार लोहारू में ।। आर्य ….. 4
भक्त फूलसिंह जी महाराज, जो हैं स्वर्ग के वासी आज ।। आर्य ….. 5
स्वामी कर्मानन्द धन्य धन्य, आपने कष्ट सहे अनगिन ।।आर्य …..6
फिरे घूमते दिन और रात, नहीं था दूसरा कोई साथ ।। आर्य ….. 7
रेल से उतरे थे एक रोज, खुफिया फिरैं काढ़ते खोज ।। आर्य …… 8
था आधी रात वक्त भाई , दमकोरे की ली राही ।। आर्य …. 9
स्वामी जा रहे थे अनबोल, चला था पीछे से पिस्तौल ।। आर्य ….. 10
हुई ईश्वर की मेहरबानी, बच गई स्वामी की जिंदगानी ।। आर्य ….11
स्वामी सच्चे आर्यवीर, फिर भी करते रहे तदबीर ।। आर्य ….. 12
गांव-गांव में पाठशाला, खोल दिया विद्या का ताला ।। आर्य ….. 13
खुशी मनावें नर और नार, बोलें स्वामी जी की जैजैकार।। आर्य …..14
यह साधु परोपकारी है, न्यू कहते सब नर नारी हैं ।। आर्य ….. 15
फिर श्री ईशानंद स्वामी, बन गए दुखियों के हामी ।। आर्य ….. 16
शहर में ठाकुर भगवंत सिंह, जो बरसा रहे वैदिक रंग ।। आर्य ….. 17
शुरू में किया आपने ख्याल, अब तो जड़ जम गई पाताल ।।आर्य …18
दमकोरे का देखा हाल, नवाब ने एक गेरा जाल ।। आर्य ….. 19
लेकिन नहीं हुए भयभीत, आर्य गए मुकदमा जीत ।। आर्य ….. 20
साथी शेर सिंह रतिराम दोनों करैं धर्म के काम ।। आर्य ….. 21
प्रधान चौधरी निहाल सिंह, उनका है न्यारा ही ढंग ।। आर्य ….. 22
सेहर में स्योनंद मूलाराम, सेवा करैं सुबह और शाम ।। आर्य ….. 23
चहड़ में चौधरी भूपाल, उनकी सच्ची वैदिक चाल ।। आर्य ….. 24
आपका सारा ही परिवार, करता वेद धर्म से प्यार ।। आर्य ….. 25
गोकुलपुरा निकम्मा गांव, जिसमें निकले छांगाराम ।। आर्य ….. 26
ग्राम शेरला जिसका नाम, जिसमें चौधरी सेढूराम ।। आर्य ….. 27
सुरखराम मुकदम हरियावास, कर रहे रियासत प्रकाश । आर्य ….. 28
बड़ी चहड़ दो चंदगीराम, एक सोहन चौथा जगराम ।। आर्य ….. 29
बिसलवास उदमी शिवलाल, जिनका बांका होना बाल । आर्य ….. 30
नंबरदार वहां कुरड़ाराम, फिजूल में हो गया बदनाम ।। आर्य ….. 31
बारवास में हैं दो भ्रात, कुछ-कुछ वह भी देते साथ ।। आर्य …… 32
जब वहां उपदेशक आए थे, गांव वाले घबराए थे ।। आर्य ….. 33
एक देवी ने ठहराये थे , वैदिक प्रचार कराये थे ।। आर्य ….. 34
उस देवी सी आत्मा , घर-घर हो परमात्मा ।। आर्य ….. 35
कुतुकपुरे भरथा मोहबत, जिनकी भाइयों से मोहब्बत ।। आर्य ….. 36
गागड़वास में श्योकरण, जिसका बिल्कुल सच्चा प्रण ।। आर्य ….. 37
गिगनाऊं में गंगा सहाय, जिसकी वेद धर्म में राय ।। आर्य ….. 38
मंत्री भरत सिंह विद्वान, वो भी यहां पर पहुंचे आन ।। आर्य ….. 39
तन मन धन कर दिया अर्पण, लगे भाइयों का दुख हरण ।।आर्य …..40
हो रहा मंदिर का निर्माण, जल्दी ही जलसे का ध्यान ।। आर्य ….. 41
लेखनी बंद करो धर्मपाल, आगे का फिर लिखना हाल ।। आर्य ….. 42