Swadharm Sandesh
स्वधर्म संदेश 1100
देश के जिम्मेवार लोगों द्वारा जिस तरह से देश हित के गंभीर मुद्दों पर बेतुका और गलत ब्यानी की जा रही है, उससे देश के अंदर और भी ज्यादा परेशानियां बढ़ रही हैं, और वह सरकार जो देश हित के लिए समर्पित है उसके काम में संस्थाओं की निष्पक्ष भूमिका का अभाव परेशानी पैदा कर रहा है।
आजादी, लोकतंत्र, सरकार और संविधान - इन चार विषयों को बहुत गंभीरता से समझने की जरूरत है। भारत का लोकतंत्र भारतीय संप्रभुता की रक्षा के लिए जिन संवैधानिक व्यवस्थाओं को स्वीकार कर देश के अंदर लोकतंत्र और आजादी के अस्तित्व को स्थापित करने के लिए प्रभावी किया गया था, क्या संविधान अपने उस दायित्व को अब तक निभाने का काम किया है या संविधान की मान्यताओं का दुरुपयोग कर संविधान के तहत काम करने वाले नेताओं ने संविधान की मूल भावना का अनादर कर भारत के अस्तित्व को ज्यादा कठिनाई में पहुंचाया है?
इस बात को बहुत गंभीरता से समझने की जरूरत है। आजादी का मतलब होता है अपने तंत्र में जीना ! अपनी व्यवस्थाओं में जीना ! अपने कायदा कानून नीति-नियम के माध्यम से अपने देश की जनता के हितों की रक्षा करना। क्या आजादी के 75 वर्षों के बाद भी आज तक देश की सरकारों ने आजादी के इस विचार के अनुसार देश के संविधान का सही अनुपालन करते हुए देश के जनता के हितों के लिए संवैधानिक व्यवस्था में बदलाव करते हुए जनहित को स्थापित किया है? अगर नहीं तो भारत विरोधी गतिविधियों को संरक्षित करने वाली व्यवस्था के पक्ष में ब्यान बाजी करना किसी भी दृष्टिकोण से भारतीयता के हित को सुरक्षित नहीं कर सकता है। मोहन भागवत का यह बयान कि मस्जिदों में मंदिर खोजना उचित नहीं है, मुझे हतप्रभ कर दिया। मोहन भागवत जी को इस बात को समझना चाहिए कि संविधान के अनुच्छेद 49 में यह प्रावधान है कि देश की संस्कृति, सभ्यता, संस्कार, रीति-रिवाज और पूर्वजों की ऐतिहासिक विरासत की रक्षा करना उसके साथ हुई गलत गतिविधियों की जानकारी प्राप्त करना और उसे रिस्टोर करना जनहित के लिए जरूरी है। फिर भी किसी खास वर्ग विशेष के पक्ष में भय, राग अथवा द्वेष के आधार पर कोई भी विचार अभिव्यक्त करना लोकतांत्रिक मर्यादाओं का अपमान करता है।
भारतीय संविधान में लोकतांत्रिक गतिविधियों का मूल उद्देश्य देश की जनता के हितों की रक्षा करना और भारत विरोधी गतिविधियों को रोकने की प्राथमिकता को सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है। जनहित के लिए संविधान की व्यवस्था में जो आवश्यक बदलाव की जरूरत है। उसे करने की व्यवस्था दी गई है ताकि हर हाल में संविधान की प्रासंगिकता जनहित में स्थापित हो सके और जनहित सुरक्षित और व्यवस्थित रह सके। संविधान की व्यवस्था की गलत व्याख्या करते हुए कोई समाज जो भारत को इस्लामिक देश बनाने के लिए हर तरह से प्रयासरत है, भारतीयता और संविधान का हितैषी कैसे माना जा सकता है? संविधान अगर उसके गलत उद्देश्य को स्वीकार कर ले तो सही है और अगर किसी की गलती को गलती कह दे तो संविधान लोकतंत्र और सर्वोच्च न्यायालय गलत हो जाता है। इस तरह की सोच रखने वाले लोगों के पक्ष को सुरक्षित करने के लिए देश के अंदर भारतीय सभ्यता, संस्कृति, संस्कार के स्रोतों की जानकारी प्राप्त करना उसका संरक्षण करना देश की जनता को सही बात की जानकारी देना अगर लोकतंत्र के विरुद्ध है, तब तो देश विरोधी पक्ष रखने वाली बड़ी संस्थाओं के लोगों को हम सही मान सकते हैं। इसलिए आजादी का मतलब क्या होता है? इस बात को समझना चाहिए!
संप्रभुता संविधान और लोकतंत्र में सभ्यता संस्कृति और देश की विरासत की वास्तविक खोज करना उसका संरक्षण करना अगर लोकतांत्रिक मर्यादा के तहत नहीं हो तब तो कोई भी व्यक्ति तुष्टिकरण की नीति के तहत वोट के लिए अगर कुछ भी बयान बाजी करता है तो उसे सही माना जा सकता है, पर अगर लोकतांत्रिक व्यवस्था में देश के अस्तित्व और उसके इतिहास की घटनाओं को जानना समझना खोज करना संरक्षित करना जरूरी है क्योंकि हमें अपनी सभ्यता संस्कृति की जानकारी देश को देना जरूरी होता है। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक बहुत बड़ा दायित्व पूर्ण जिम्मेदारियां हैं! ऐसे मुद्दों को नजरअंदाज करना और यह कह देना कि मस्जिदों में मंदिर की खोज करना अनुचित है तो यह देश के लिए सबसे बड़ी दुर्भाग्य पूर्ण अभिव्यक्ति मानी जाएगी। पुरातात्विक खोज के आधार पर हमारी सभ्यता संस्कृति के जो स्रोत हैं उसकी जानकारी प्राप्त करना और विरासत की रक्षा करना सरकार की प्रमुख जिम्मेदारी होती है।
देश के अंदर हिंदू मुस्लिम के मुद्दे को उठाकर जो माहौल बनाया जा रहा है वास्तविकता में वह हिंदू मुस्लिम का विषय बनता ही नहीं है बल्कि हमारी संप्रभुता, हमारे संस्कार, हमारी ऐतिहासिक परंपराओं की पुरातात्विक सत्य को देश के सामने रखने का एक जो जिम्मेदारी सरकार की है। उस दिशा में किया गया प्रयास ही उसे देखा जाना चाहिए। जो लोग के हाल दिनों में भारतीय सभ्यता के विलुप्त अवशेषों की खोज पर गलत टिप्पणियां दे रहे हैं। शायद वे लोग ना तो लोकतंत्र की बात समझते हैं और ना ही किसी देश की सभ्यता संस्कृति संस्कार और संप्रभुता के सत्य को ही जानने का प्रयास कर रहे हैं बल्कि वह सिर्फ किसी वर्ग समुदाय के तुष्टीकरण की नीति को ध्यान में रखकर अपने वक्तव्य को जारी कर रहे हैं, जो देश के हित में नहीं है। देश के जिम्मेदार लोगों को ऐसे वक्तव्य से बचना चाहिए।
- डॉ राजू कुमार विद्यार्थी
- सामाजिक राजनीतिक विचारक
- संस्थापक
- स्वधर्म संदेश हिंदी मासिक पत्रिका फरीदाबाद हरियाणा।
- 7217731138
स्वधर्म संदेश 1101
देश के पढ़े-लिखे पद प्रतिष्ठा प्राप्त लोगों में ज्ञान प्राप्ति के प्रति रुचि के अभाव को मैंने बहुत ही स्पष्ट रुप से देखा है। जो लोग पढ़ लिख करके पद प्रतिष्ठा को प्राप्त कर लिए हैं उन लोगों के मन में यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि अब उन्हें पढ़ने लिखने या कुछ सीखने की जरूरत नही है। दूसरे के विचारों को जानने में उनकी कहीं किसी प्रकार की कोई रुचि नहीं है। खासकर बड़े पदों पर बैठे हुए लोग अपने को ज्यादा ज्ञानी समझ बैठे हैं, जबकि व्यावहारिक रूप से उनके पास जनहित के दृष्टिकोण से जो समझ होनी चाहिए इसके व्यापक अभाव को व्यावहारिक रूप में हम देखते हैं। डॉक्टर को अगर आप इलाज के संदर्भ में किसी प्रकार की राय दें तो उसके मन में यह भाव बनता है कि यह व्यक्ति हमको समझाने आया है। हम डॉक्टर हैं, यही हमको डॉक्टरी बताने आया है ! यही स्थिति सेवा के हर क्षेत्र में पद प्रतिष्ठा प्राप्त लोगों के मन की मुख्य सोच बन चुकी है जिसकी वजह से उनको किसी भी विषय पर विशेष जानकारी के लिए समय नहीं है।
कोई व्यक्ति बहुत ज्यादा अनुभवी हो, देश और समाज के लिए सही मार्गदर्शन करने की क्षमता रखता है, पर संस्थानों में बैठे हुए पदाधिकारी के मन में सकारात्मक समझ के अभाव के कारण जो सम्मान सकारात्मक राय देने वालों की होनी चाहिए, उसके प्रति आकर्षण का व्यापक अभाव व्यवहारिक जीवन में देखा जाता है। इसीलिए जनहित के प्रति सेवा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के मन में जिस तरह का भाव होना चाहिए इसका व्यापक अभाव इस देश में बने होने से व्यवस्था की विद्रूपता को खत्म करना थोड़ा ज्यादा कठिन है।
देश के सामाजिक जीवन में बढ़ रही समस्याओं के मूल कारण में आज इंसानों की इसी तरह की सोच की वजह से सबसे ज्यादा परेशानियां है। जीवन के हर क्षेत्र में हर जगह पर हर व्यक्ति और समाज की सोच अपनी आवश्यकताओं के आधार पर सुनिश्चित हो गई है। इसलिए बेहतर संबंध सोच की व्यवस्था को ताकत नहीं मिलने से सामाजिक जीवन में विचारों की विभिन्नता ने अलग-अलग विषयों पर अलग-अलग ढंग से सोच विकसित कर लिया है। इसके कारण देश और समाज की समस्याओं के समाधान में सर्वमान्य निर्णय बनने में भयंकर परेशानियों का प्रभाव सामाजिक जीवन में दिखाई देता है और देश की मूल समस्या विचारों के विभिन्नता ही है।
देश में दिखने वाली समस्याएं सब सरकार और संस्थाओं के सकारात्मक गतिविधियों के माध्यम से समाप्त हो सकती हैं पर जब संस्थाओं को चलाने वाले लोगों में सकारात्मक विचारों के प्रति संवेदना बढ़ेगी तभी ऐसा कुछ संभव हो सकता है। कानून का सबसे ज्यादा दुरुपयोग कानून के रक्षकों द्वारा ही किया जाता है। इसलिए देश और समाज में जो भी समस्यायें हैं उसका मूल कारण विचारों की विभिन्नता और जीवन में स्वार्थ की मानसिकता के वर्चस्व की वजह से बढ़ गई है। इसे समाप्त करने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर समाज को सही बात समझने के लिए और शिक्षा के मूल विचारों में बदलाव के लिए प्रयास किए जाने की जरूरत है।
- डॉ राजू कुमार विद्यार्थी
- सामाजिक राजनीतिक विचारक
- संस्थापक
- स्वधर्म संदेश हिंदी मासिक पत्रिका फरीदाबाद हरियाणा।
- 7217731138
- 28 December 2024