Teej

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The 3rd day of the Shrawan month, the day of 'surangi'(colorful)Teej; middle of rainy season; greenery all around; rows and columns of dark clouds disbursing rains everywhere. The festival celebrates the youthfulness of the nature and humanity. The newlywed daughters are brought to their parental homes. They, singing folk songs on the theme of love and nature, go to village ponds and take bath. Young ladies in pairs can be seen taking ride on "Jhula" (swing made from grass rope, two ropes suspended from a branch of a tree and tied to a foot board to stand on). Kheer is cooked in every home.

There is a popular saying in Rajasthani Language about Gangaur:

Teej tyoharan bawri, le dubee gangaur (तीज त्योंहरा बावड़ी हाड़ो ले डूबी गंगोर) means festivals begin with Teej and end with Gangaur. It speaks chronology of Hindu festivals.

तीज त्यौहार पर एक निबंध

साभार - https://thesimplehelp.com/essay-on-teej-festival-in-hindi/

प्रस्तावना

सावन का महीना महिलाओं के लिए सबसे खास महीना होता है। इस महीने में महिलाएं पूजा-पाठ करती हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सावन के महीने में बहुत सारे त्योहार आते है। इस महीने में हरियाली तीज का त्योहार भी आता है। सावन के महीने में चारों तरफ हरियाली दिखाई देती है, इसलिये तीज के त्यौहार को हरितालिका तीज भी कहते हैं। हरितालिका तीज के त्योहार को महिलाएं बड़े उत्साहपूर्वक मनाती हैं। हरितालिका तीज का महिलाओं के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होता है, इस दिन महिलाओं और कुँवारी लड़कियों के द्वारा की जानी वाली पूजा से उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

मुख्य रूप से तीज का त्योहार अच्छे और मनचाहे वर की प्राप्ति के लिये कुँवारी लड़कियां उपवास रखती है। और ज्योतिषियों का कहना यह होता है कि जिन लड़कियों का विवाह नहीं हो पाता है, उन लड़कियों को तीज के दिन उपवास रखना चाहिए और सच्चे मन से पूजा-पाठ करना चाहिए क्योंकि तीज के दिन पूजा-पाठ का करने का एक अलग ही विशेष महत्व होता है।

हरियाली तीज - एक पौराणिक कथा

प्रचलित कथा कथाओं के अनुसार सती ने हिमालयराज के घर पार्वती के रूप में उनका फिर से पुनर्जन्म हुआ था, तब उन्होंने शिवजी को पति के रूप में पाने के लिये बहुत तपस्या की। लेकिन उसी समय नारद मुनि राजा हिमालय से मिलने के लिये गये और माता पार्वती की शादी करने के लिए भगवान विष्णु से शादी करने का सुझाव दिया। और नारद मुनि के इस सुझाव से हिमालयराज बहुत पसंद हुए और पार्वती जी का विवाह विष्णु जी से करवाने के लिये पूरी तरह से तैयार हो गये।

जब यह बात पार्वती जी को चलती है कि पार्वती जी का विवाह उनके पिताजी हिमालयराज ने भगवान विष्णु से तय कर दिया है। तो इस बात से पार्वती बहुत दुखी होती है और दुख में आकर वह जंगल की ओर चली जाती है। पार्वती ने वहां पर रेत से शिवलिंग बनाया और शिवजी को पति के रूप मे पाने के लिए कई वर्षों तक कठोर तपस्या की। पार्वती जी ने तपस्या करते समय अन्न जल सब कुछ त्याग दिया। उस समय माता पार्वती के सामने कई समस्यायें आयीं लेकिन पार्वती जी ने हार नहीं मानी और सभी चुनौतियों का डट कर सामना किया। तभी गिरिराज को अचानक पार्वती जी के गुम होने की खबर मिलती है, तो गिरिराज ने पार्वती जी को खोजने में धरती-पाताल एक कर दिया परन्तु गिरिराज को पार्वती जी कही नहीं मिली। उस समय माता पार्वती जंगल में एक गुफा के अंदर बैठ कर सच्चे मन से शिवजी को पाने की आराधना कर रही थी।

माता पार्वती जी की तपस्या करने से शिवजी का हृदय प्रभावित हुआ और शिवजी श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया दिन को माता पार्वती जी के समाने प्रकट हुये और उसको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया और माता पार्वती जी को इच्छा पूर्ति का वरदान दिया। इसके बाद पार्वती जी के पिता जब उनको ढूंढते हुए जंगल की ओर पहुंचे तो पार्वती जी ने अपने पिताजी के साथ जाने से मना कर दिया और पार्वती जी ने अपने पिताजी के समाने एक शर्त रखी कि मैं आपके साथ तब जाऊंगी जब आप मेरा विवाह शिवजी के साथ करेंगे। तभी उनके पिताजी हार मानकर पार्वती जी सारी शर्ते मानकर पार्वती जी को घर वापस ले गय। कुछ समय बाद उनके पिताजी ने पूरे रीति-रिवाज के साथ शिवजी और पार्वती जी का विवाह कराया।

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को शिवजी और माता पार्वती के मिलन का दिन माना जाता है। शिवेजी ने इस दिन पार्वती के सच्चे मन से की हुयी तपस्या से खुश होकर कहा था कि इस दिन पार्वती जी ने मुझे पाने के लिये सच्चे मन से आराधना करके उपवास किया था, उसी के परिणाम से हम दोनों का विवाह सम्पन्न हुआ था। आज के बाद जो भी कुंवारी लड़कियां इस उपवास को सच्चे मन से पूजा-पाठ करेंगी ,उसे मैं उस कन्या की इच्छानुसार उसे वर प्राप्ति का वरदान दूंगा,। चाहे स्त्री हो या कुंवारी लड़कियां, उनको पार्वती जी की तरह अचल सुहाग प्राप्ति होंगी। इसलिए तीज के दिन सुहागन महिलाओं और कुंवारी कन्याओं के लिये तीज का दिन बहुत ही सौभग्य का दिन होता है। तीज के त्यौहार का महत्व

तीज के त्यौहार का सबसे अधिक महत्व महिलाओं के जीवन में होता है। हमारी संस्कृति के अनुसार तीज-त्यौहारों, पर्व-उत्सवों से पूरी तरह सजा रहता है। भारतीय धार्मिक संस्कृति के अनुरूप सात वार और नौ त्यौहार होते है। तीज का त्यौहार रंग-रंगीली संस्कृति की जान होता है, हमारी परंपराएं हमारे देश के हर प्रांत की अनूठी परंपराओं मे धड़कता हुआ नज़र आता है। हमारी भारतीय संस्कृति तीज का त्यौहार दिल होता है, जब तीज के त्यौहार में भक्ति-भाव में लीन हो कर उपवास और आराधना करते हैं, तो खुद भगवान धरती पर उतरकर हमें आशीर्वाद देने के लिये प्रकट होते हैं। सावन के इस शुभ अवसर पर बारिश की रिमझिम फुहारों के साथ स्नान कर रही धरती पूरी तरह हरी चुनरी ओढ़ कर तैयार रहती है। सावन का महीना खत्म होते ही हरी-भरी धरती की सौगात भादों के हाथ में सौंप दिया जाता है।

शिव जी और पार्वती जी के पुर्नमिलान के रूप में इस दिन को यादगार के रूप मे मनाया जाता है। तीज के त्योहार को लेकर यह मान्यता है कि माता पार्वती जी ने शिव जी को पति के रूप मे प्राप्ति करने के लिये 107 बार जन्म धरती पर लिया था। अंतः माता पार्वती के कठोर तपस्या करने और ज़ब माता पार्वती 108वीं बार जन्म लिया तब भगवान शिव जी ने पार्वती जी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।

तभी से शिव और पार्वती जी के मिलन के इस मान्यता पर तीज का व्रत रखने वाली महिलाओं को माता पार्वती जी खुश होकर उपवास रखने वाली महिलाओं के पतियों को लम्बी आयु का आशीर्वाद देती है। सावन माह में चारों ओर हरियाली फैली होने के कारण इस तीज को हरियाली तीज या तीज त्यौहार के नाम जाना जाता है।

निष्कर्ष

तीज का त्यौहार भारतीय संस्कृति मे बहुत ही प्रचलित है। तीज त्यौहार महिलाओं और कुँवारी लड़कियों के लिये सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार होता है, क्योंकि इस दिन महिलाएं सोलह सिंगार करती है और अपने पति की लम्बी आयु के लिये शिव जी और पार्वती जी की मूर्ति को स्थापित करके फूलोमाला सुई धागा से बनाती हैं। और ज़ब पूजा-पाठ करती हैं, तो शिवजी और पार्वती जी को फूलमाला चढ़ा कर पूजा अर्चना सच्चे मन से करती हैं।

वहीं, कुँवारी कन्यायें भी तीज का उपवास रखती है, और शिव जी और पार्वती जी की पूजा-पाठ मे लीन हो जाती हैं और भगवान शिव से प्रार्थना करती हैं कि मुझे भी शिवजी जैसे वर की प्राप्ति हो और सच्चे मन से शिवजी की आराधना करने से तीज के दिन सारी मनोकामनाये पूरी होती है।