Tekram Singh Hooda

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Tekram Singh Hooda (born:?-Death: 1926 AD) was a freedom fighter and social worker from Khidwali village in Rohtak district of Haryana.

Tekram Singh Hooda Haveli

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Tekram Singh Hooda Haveli, Khadwali, Rohtak

Village of Khidwali is a stronghold of Hooda Jats of Rohtak. It was a centre of rebellion in war of 1857. Here the Jat villagers under their headman attacked and defeated many British contingents, most notably the Hodson Horse.

This haveli in the picture is owned by family of Ch Tekram Singh Hooda ,whose ancestors fought against the British forces in revolt of 1857.

Source - Jat Kshatriya Culture

History

चौ० टेकराम हूडा

दलीप सिंह अहलावत [1] लिखते हैं - चौ० टेकराम हूडा का जन्म खिडवाली गांव (जि० रोहतक) में हुआ था। आपके पिताजी का नाम चौ० रामजीलाल हूडा था। आप एक निडर योद्धा, साहसी, हिन्दूधर्म के रक्षक तथा गोमाता के सच्चे सेवक एवं रक्षक थे। चौ० टेकराम की महानता इस कारण है कि आपने वह कार्य पूरा किया जो ईश्वर का आदेश है कि - हे राजपुरुषो! जैसे सूर्य मेघ को मार और उसको भूमि में गिरा सब प्राणियों को प्रसन्न करता है वैसे ही गौओं के मारने वाले को मार गौ आदि पशुओं को निरन्तर सुखी करो।" (ऋग्वेद मं० 1/अ० 18/सू० 120/मन्त्र 10)।

ईश्वर के इस आदेश का पालन करने के चौ. टेकराम के अनेक उदाहरण हैं जिनमें से कुछ का ब्यौरा निम्न प्रकार है -

1. एक बार रोहतक शहर के मुसलमान कसाई ईद पर्व के दिन एक गाय को सजा-धजा कर उसे काटने के लिए बूचड़खाने में ले जा रहे थे। पता लगने पर वीर टेकराम हूडा उचित समय पर कसाइयों की गली में पहुंच गया। गाय को साथ ले जाने वालों पर वीर योद्धा टेकराम ने शेर की तरह झपटकर उनको मारना शुरु कर दिया। इनकी मार से दो-तिहाई मर गए और कई घायल हो गये। शेष गाय को छोड़कर भाग खड़े हुए। उस वीर ने अपने एक साथी को, जो कि कुछ दूरी पर खड़ा था, इस गाय को भगा ले जाने को पुकारा और वह इस गाय को भगाकर शहर से दूर ले गया। जब चौ० टेकाराम ने देखा कि सब कसाई उससे भयभीत होकर गाय को वापिस लाने का साहस छोड़ बैठे हैं, तब आप भी वहां से भागकर अपने गांव में आ गये।

2. इस घटना के कुछ समय पश्चात् वीर योद्धा टेकराम अपने कुछ साथियों को लेकर रोहतक के बूचड़खाने में घुस गए जहां पर कई कसाई गौओं तथा बछड़ों की हत्या करने ही वाले थे। उन्होंने सब कसाइयों को मौत के घाट उतार दिया और सब गौओं तथा बछड़ों को वहां से निकाल लाए। ऐसी थी चौ० टेकराम की महान् वीरता।

3. चौ० टेकराम ने अपने मित्र पहलवान लोटनसिंह अहलावत जो चिराग दिल्ली के निवासी थे, को दिल्ली के मुसलमान कसाइयों से गौओं को छुड़ाने हेतु युद्ध करने में कई बार सहायता दी। पहलवान लोटनसिंह अहलावत ने दिल्ली के कसाइयों को मार-मार कर इतना भयभीत कर दिया था कि उन्होंने पशुहत्या बंद कर दी। चौ० लोटनसिंह भी चौ० टेकराम की इस गोरक्षा सहायता के लिए रोहतक आते रहते थे।

चौ० टेकराम ने रोलट एक्ट के विरुद्ध हरयाणा में स्वाधीन विचारों का प्रसार किया। परिणामस्वरूप इन्हें सन् 1919 ई० में लाहौर किले में 3 वर्ष बन्दी रखा गया।

हण्टर कमेटी ने इनकी स्वाधीनता का उल्लेख अपनी उस रिपोर्ट में किया जो हाउस ऑफ कामन्स में प्रस्तुत की गई थी।

जब चौ० लालचन्द जी चौ० मातुराम को हराकर एम.एल.सी. बने तथा वजीर भी बनाए गए, तब चौ० मातुराम ने चौ० लालचन्द के खिलाफ चुनाव याचिका दायर कर दी। ट्रिब्यूनल ने चौ० लालचन्द की सदस्यता खत्म कर दी, साथ ही उन्हें वजारत भी छोड़नी पड़ी। उपचुनाव में चौ० मातुराम के मुकाबले में चौ० छोटूराम ने चौ० टेकराम को खड़ा किया। इस चुनाव में चौ० टेकराम भारी मतों से विजयी होकर एम.एल.सी बने।

दुर्भाग्य से अगस्त 1926 ई० में चौ० टेकराम को रोहतक में प्रेम निवास (सर छोटूराम की नीली कोठी) चौराहे पर उनके शत्रुओं ने कत्ल कर दिया।

वीर योद्धा चौ० टेकराम पर केवल हूडा गोत्र एवं जाट जाति को ही नहीं, बल्कि समस्त हिन्दू जाति को गर्व है। इनकी महानता सदा अमर रहेगी।

External links

References

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