Tofa singh
कुंवर तोफासिंह का जन्म सौंख के अधिपति पाण्डव वंशी जाट ठाकुर श्याम सिंह तोमर (कुन्तल) के घर हुआ था।
वंशावली
अनंगपाल प्रथम (736-754) → वासुदेव (754-773) → गंगदेव/गांगेय (773-794) → पृथ्वीमल (794-814) → जयदेव (814-834) → नरपाल देव/वीरपाल (834-849) → उदय राज (849-875) → आपृच्छदेव → पीपलराजदेव → रघुपालदेव → तिल्हण पालदेव → गोपालदेव → सलकपाल/सुलक्षणपाल (976-1005) → जयपाल → कुँवरपाल (महिपाल प्रथम) → अनंगपाल द्वितीय (1051-1081) → सोहनपाल → जुरारदेव → सुखपाल → चंद्रपाल → देवपाल → अखयपाल → हरपाल → हथिपाल → नाहर → प्रहलाद सिंह (5 पुत्र, एक गोद किया) → सहजना (डूंगर सिंह ) → पाला सिंह → करना (करनपाल) → नौधराम → सुरतपाल → भीकम → लालसिंह → भूरिया(भूरसिंह) → अमर सिंह → गुलाब सिंह → सुखपाल → हठी सिंह/हाथी सिंह → श्याम सिंह - तोफा सिंह[1]
तोफा सिंह के जीवन के दो प्रमुख युद्ध
पथेना का युद्ध
गढ़ पथेना रासो मुगकालीन रासो पुस्तक है इसके रचनाकारकवि चतुरानन्द (कवि चतुरा ) थे। गढ़ पथैना रासो में पथेना गढ़ी(भरतपुर जिले का एक ठिकाना) में हुए मुग़ल सआदत खान और जाटों के एक युद्ध का वर्णन किया गया है यह युद्ध माघ सुदी 11 सन 1777 ईस्वी के दिन लड़ा गया था। मुग़ल सेनापति अमीर उलउमरा मिर्जा नजफखां (अब्दाली का प्रतिनिधि) के साले सआदत खान को टोडाभीम के कुछ भाग की जागीरी दी गयी थी।इस समय तक सौंख के राजा हठी सिंह की मृत्यु हो चुकी थी सौंख पर उनके पौत्र तोफा सिंह का राज था।
सआदत खान पथैना के जाट जागीरदार ठाकुर किशन सिंह जी (सिनसिनवार गोत्रीय ) से खिराज की मांग कर रहा था। भरतपुर रियासत में पथेना के जाट जागीरदार भरतपुर राजपरिवार के वंशज होने के साथ साथ बड़े वीर थे।
पथेना के जाट सरदारों ने सआदत खान को युद्ध के लिए ललकारा की तेरी इतनी हिम्मत कैसे हो गई कि तुम शेरो को झुकाने की सोच रहा है।
इस युद्ध में सभी जाट पाल(खाप) ने भाग लिया इसमें सौंख और अडिंग के पांडव वंशी कुंतल(तोमर) जाटों ने तोफा सिंह और शीशराम सिंह के नेतृत्व में सेना भेजी थी। खुटेल सेना का संचालन तोफा सिंह ने किया था।भरतपुर महाराजा रणजीत सिंह ने एक सैनिक टुकड़ी कुम्हेर से पथेना भेजी थी। सआदत खान ने अपना पड़ाव भैसिना गाम में डाला, सआदत खान भी जाटों की वीरता से परिचित था।इसलिए सआदत खान की हिम्मत जाटों पर हमला करने की नही हो रही थी। इस कारण से सआदत खान ने संधि वार्ता के लिए सेठ सवाई राम को जाटों के पास भेजा लेकिन कोई हल नहीं निकला(जाटों ने संधि प्रस्ताव को ठुकरा दिया)
इसके बाद भयंकर युद्ध हुआ जाटों ने असादत खान की सेना।को परास्त कर दिया। मुगल सेना युद्ध स्थल से भाग खड़ी हुई थी। जब युद्ध ख़त्म हो गया तब सभी खाप सरदार अपने अपने गढ़ में लोट गये कवि चतुरानन्द ने रणभूमि में खुटेल सरदारों का मनमोहक वीरतापूर्ण वर्णन किया है
- "काल खण्ड के खूटेल आये मुच्छ ऊचे को किये
- द्व-द्व धरे तरबार तीखी चाव लरिब को हिये||
- तोफा सिंह आइयो ल साथ खुटेल सग ही |
- जो सबै रण समरथ बलि अरि काटी डारे जग ही |
- दाखिल गढ़ भीतर भये जिन मुख बरसात नूर ||"[2]
चतुरानन्द कवि ने लिखा है तोफा सिंह अपने साथ शीशराम सिंह और सैकड़ो खुटेल वीरो को रणभूमि लाया था। इन वीरो ने युद्ध में दुश्मनों को गाजर मूली की तरह काट डाला तोफा सिंह की वीरता के कारन कवि चतुरानन्द ने पथेना के युद्ध में सौंख , अडिंग के इन तोमर वंशी खुटेलो को मुगलों के लिए काल लिखा है जिन्होंने अपनी तलवार की धार से सैकड़ो मुगलों का रक्त बहा दिया था। इस युद्ध में सआदत खान के पठानों मुगलों के खिलाफ सौंख के जाट वीरो ने दोनों हाथो से तलवार चलाकर युद्ध स्थल पर जोहर दिखाए जब यह तोमरवंशी खुटेल पथेना गढ़ में दाखिल हुए तो इनका स्वागत किया गया उनके मुख पर रण में विजय होने की चमक थी यह जीत प्रथम पथेना युद्ध में हुई थी।
कवि चतुरानंद ने सौंख के तोफा सिंह(राजा हठी सिंह के पौत्र) की वीरता का वर्णन करते हुए लिखा है कि दुश्मनों से युद्ध मे कठिन से कठिन मोर्चे पर दुश्मन(मुगल और पठान) के रक्त से अपनी तलवार की भूख शांत की[3]
- खुटेल एक तोफा
- वह चतुर सामिल भयो
- वाने मारे मोरचा बढ़ो
सौंख का युद्ध 1777 ईस्वी
मुग़ल सेनापति अमीर उलउमरा मिर्जा नजफखां (अब्दाली का प्रतिनिधि) ने सन 1777 ईस्वी में भरतपुर किले पर हमले की योजना बनाई थी इस समय तक महाराजा जवाहर सिंह की मृत्यु के बाद सिर्फ 10 साल में ही तीन राजा (रतन सिंह, केहरी सिंह, रणजीत सिंह) गद्दी पर बैठ चुके थे | सभी जाट पाले आपस में लड़कर आंतरिक युद्धओ से अपनी ताकत को कमजोर कर रही थी| ऐसी विकट घडी में मुग़ल रूपी शत्रु ने जाटों पर हमले की योजना बनाई
मुग़ल सेनापति अमीर उलउमरा मिर्जा नजफखां (अब्दाली का प्रतिनिधि) ने जाट राज्य पर चढ़ाई करने के उदेश्य से गोवर्धन के समीप पहुंच कर अपना सैनिक कैंप लगाया सौंख गढ़ के जाट वीरो ने गोवर्धन में नजफखां की सैनिक छावनी पर हमला करके कुछ मुग़ल सैनिको को मौत के घाट उतार दिया था |
इस घटना का जाटों से बदला लेने के उदेश्य से मुग़ल सेनापति अमीर उलउमरा मिर्जा नजफखां (अब्दाली का प्रतिनिधि) ने दिसम्बर में सन 1777 ईस्वी में सौंख के किले पर घेरा डाल दिया था| इस समय सौंख गढ़ पर राजा तोफा सिंह कुंतल (तोमर) का शासन था| मुगलों की सेना से जाटों का तीन महीने तक संघर्ष चला हर मोर्चे पर जाट मुगलों पर हावी रहे जबकि सौंख के किले की सुरक्षा सिर्फ जाटों के बाहुबल पर निर्भर थी क्योंकि सौंख के किले को प्राकृतिक सुरक्षा (पर्वत ,खाई ) का पूर्णरूप से आभाव था।
फ़्रांसी सेनापति समरु और मैडिक जो पहले भरतपुर की सेना में तैनात थे | यह दोनों जाटों से गद्दारी करके मुगलों से जा मिले थे| इन्होने गुप्त रास्ते और किले से सम्बंधित सभी गुप्त जानकारी नजब खान को दे दी थी|
अब महाराजा अनंगपाल के वंशजों ने अंतिम युद्ध से पहले अपनी कुल देवी मंशा देवी की स्तुति की राजा तोफा सिंह की सेना में 5000 सैनिक थे तो दूसरी तरफ मुगलों, पठानों और फ्रांस सेना के प्रशिक्षित कुल 70,000 सैनिक थे|।पंडित गोकुलराम चौबे के अनुसार 11 दिसम्बर 1777 ईस्वी में यह (सौंख का युद्ध) युद्ध हुआ था।
सौंख के युद्ध में अनंगपाल के वंशज कुंतल वीर जाट प्रथम पहर में मुगलों के लिए काल सिद्ध हुए प्रथम हमले में मुगलों के हरावल को वीरों ने पीछे धकेल दिया था| तब समरू ने अपनी बंदूकची सेना को आगे किया और प्रशिक्षित बंदूकची सैनिकों के छुप कर किए वार से ठाकुर तोफा सिंह (हाथी सिंह के पौत्र) घायल हो गये थे| इस युद्ध में मुगलों की सहायता पांडिचेरी (पण्डिच्चेरी) के फ्रांसीसी गवर्नर एम० चवलियर (M.Chevalier) ने की थी| क्योंकि मुग़ल बादशाह शाहआलम ने अंग्रेजों के खिलाफ फ्रांसीसी गवर्नर को मदद करने का आश्वासन दिया हुआ था| गद्दारों ने किले की समस्त जानकारी पहले ही मुगलों को दे दी थी| इसलिए कवि ने लिखा है –
जाट हारा नहीं कभी रण में तीर तोप तलवारों से, जाट तो हारा हैं,गद्दारों से.......
इतिहासकार जदुनाथ सरकार के अनुसार इस युद्ध में 3000 अनंगपाल के वंशज तोमर जट्ट वीरों ने वीरगति पाई थी| मुग़ल सेना को जाटों से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा था| मुगलों के आधे से ज्यादा सैनिक या तो घायल हो गए या जाटों के हाथो से मारे गए।
तोफा सिंह समेत सभी मुख्य सरदार इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए।| जिस कारण से सौंख के किले पर मुगलों ने कब्ज़ा कर लिया था| युद्ध के बाद सौंख के किले को भारी नुकसान पहुँचाया गया था|
इन्तखाब्बुतवारीख में लिखा है की - नजब खान इस युद्ध में हुई हानि और अपने मुख्य योद्धाओं को खोने के कारण इतना अधिक विचलित हुआ कि उसने इस क्षेत्र की निर्दोष जनता पर अत्याचार करना शुरू कर दिए शेष बचे तोमर वीरों ने नजब खान को इतना परेशान किया कि उसे अपनी सैनिक छावनी यहाँ से उठानी पड़ी थी|[4]
चित्र गैलरी
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Tofa Singh
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Battle of Singh