Undasa

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Undasa (उंदासा) is a village in tahasil and district Ujjain in Madhya Pradesh, India.

Location

The location code or village code of Undasa village is 471890. Undasa village is located in Ujjain Tehsil of Ujjain district in Madhya Pradesh, India. It is situated 8km away from Ujjain. The total geographical area of village is 1242 hectares. Undasa has a total population of 1,247 peoples. There are about 235 houses in Undasa village. Ujjain is nearest town to Undasa which is approximately 8km away.[1]

History

Vaishya Tekri: This site at Undasa is a part of ancient Ujjain. Structural remains of Mauryan period have been found. Stupas are the conspicuous evidence of ancient habitation. [2]

भैरोंगढ़, उज्जैन

भैरोंगढ़ (AS, p.678) जिला उज्जैन, मध्य प्रदेश में उज्जैन से एक मील उत्तर की ओर स्थित है. भैरोगढ़ में दूसरी-तीसरी शती ई. पू. की उज्जयिनी के खंडहर पाए गए हैं. यहाँ 'वेश्या-टेकरी' (Vaishya Tekri) और 'कुम्हार-टेकरी' (Kumhar-Tekari) नाम के टीले हैं, जिनको खोदने से तत्कालीन उज्जयिनी के अनेक अवशेष मिले हैं. इन टीलों से कई प्राचीन किंवदंतियों का सम्बन्ध बताया जाता है. [3]

वेैश्य टेकरी (बौद्ध स्तूप) उज्जैन मध्यप्रदेश

उज्जैेन शहर से लगभग 5-6 किलो मीटर दूरी पर उज्जैन से मक्सी रोड पर ग्राम कानीपुरा के पास स्थित पीलिया खाल नाले पर दो बौद्ध स्तूप स्थित हैं। जिनकी ऊचाई 100 और ब्यास लगभग 350 फीट है। बौद्ध स्तूप मौर्यकाल के पूर्व के हैं उपरोक्त बौद्ध स्तूपों के समूह को वर्तमान में वेश्या टेकरी के नाम से जाना जाता है। सम्राट अशोक की पत्नि वैश्य पुत्री देवी ने उज्जैन में उक्त बौद्ध स्तूपों को बनवाया था। इसलिए वर्तमान में स्तूप समूह को वेश्या टेकरी के नाम से जाना जाता है। सम्राट अशोक के समय इन्हीं स्तूपों को जीर्णोधार हुआ था क्योंकि यहां से प्राग मौर्य एवं मौर्यकालीन दोनेां प्रकार की ईटें मिलती हैं। उत्खनन के दौरान इन स्तूपों में बौद्ध भिक्षुओं के शरीर के अवशेष प्राप्त हुये हैं। बौद्ध स्तूपों का निर्माण मिट्टी से बनाई गई ईटों से किया गया है वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा वेश्या टेकरी स्तूपों को संरक्षित घोषित किया गया है। परन्तु स्तूपों से लगी जमीन में संबंधित किसानों द्वारा खेती की जाती है और संबंधित स्तूपों से लगी जमीन से किसानों द्वारा स्तूपों को क्षतिग्रस्त किया जाकर और उनकी मिट्टी तथा ईट को निकालकर स्तूपेां की जमीन को खेती की जमीन में सम्मिलित किया जा रहा है। मौके पर स्तूपेां को संरक्षण के लिए कोई फेंसिंग की ब्यवस्था नहीं है। अतः मौके पर स्तूपेां का संरक्षण अतिआवश्यक है जिसके लिए फेंसिंग लगाया जाना और स्तूपेां के आसपास की जमीन को संरक्षित किया जाना भी आवश्यक है।[4]

External links

References