Vanaspara

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Vanaspara (वनस्पर) (ruled c. 130 CE) was an Indo-Scythian Northern Satrap (kshtrapa).

Variants

Jat Gotras Namesake

History

He is mentioned as a "Satrap" (Brahmi:, Kṣatrapa, "Satrap") of Kushan ruler Kanishka I on an inscription discovered in Sarnath, and dated to the 3rd year of Kanishka (c. 130 CE), in which Kanishka mentions he was, together with "Great Satrap" Kharapallana, governor of the eastern parts of his Empire.[1]

The inscription was discovered on an early statue of a Boddhisattva, the Sarnath Bala Boddhisattva, now in the Sarnath Museum .[2]

Jat History

वनस्पर

सारनाथ के दो शिलालेखों से हमें पता चलता है ( E. I. खंड ८, पृ० १७३ ) कि कनिष्क के शासन-काल के तीसरे वर्ष में वनस्पर उस प्रांत का क्षत्रप या गवर्नर था जिसमें बनारस पड़ता था। उस समय वनस्फर (वनस्पर ) केवल एक क्षत्रप या गवर्नर था। और उसका प्रधान खरपल्लान महाक्षत्रप या वाइसराय था । बाद में वनस्फर भी महाक्षत्रप हो गया होगा। उसका शासन-काल कुछ अधिक दिनों तक था, इसलिये हम यह मान सकते हैं कि उसका समय लगभग सन् 90 ई० से 120 ई० तक रहा होगा। यह वही समय है जो विदिशा के नागों ने अज्ञातवास में बताया था। [3]

इस वनस्पर का महत्त्व इतना अधिक था कि इसके वंशज, जो बुंदेलखंड के बनाफर कहलाते हैं, चंदेलों के समय तक अपनी वीरता और युद्धकौशल के लिये बहुत प्रसिद्ध थे । मूल या उत्पत्ति के विचार से ये लोग कुछ निम्न कोटि के माने जाते थे और राजपूतों के साथ विवाह-संबंध स्थापित करने में इन्हें कठिनता होती थी। आज तक ये लोग समाज में कुछ निम्न कोटि के ही माने जाते हैं। बुंदेलखंड में उनके नाम से एक बनाफरी बोली भी प्रचलित है।[4]

References