Vasudeva Kushan
Vasudeva (140 - 180 AD) (वासुदेव) was the Kushan ruler in India who sat on throne after the death of Havishka.
History
Vasudeva ruled from 140 - 180 AD in India. The inscriptions of his rule bear 'Maharaja Rajadhiraj Devputra Shahi Vasudeva'. His coins are of gold, silver and copper. On the one side of coins is image of the ruler and on the other side there is figure like that of Shiva and written name as 'Baijodeo'. After Vasudeva the Kushan rule was divided into small republics.
इतिहास
ठाकुर देशराज[1] लिखते हैं कि....हुविष्क की मृत्यु के बाद वासुदेव राजगद्दी पर बैठा। इसके जो लेख मिले हैं, उनमें इसकी उपाधि “महाराज राजाधिराज देवपुत्र वासुदेव” मिलती है। इसके सिक्के सोने, चांदी और तांबे के मिले हैं। जिन पर एक तरफ इनकी मूर्ति और दूसरी तरफ शिवजी की आकृति बनी रहती है और ’बैजौडेओ’ इसका नाम लिखा रहता है। इसके समय से कुषाणों का राज्य छिन्न-भिन्न होने लग गया था। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि कुषाण साम्राज्य का अन्त किस तरह हुआ। इसका राज्य काल 140 ई. से 180 ई. तक बताया जाता है। लेकिन कुछ लोग 182 ईसवी से 220 ईसवी तक भी मानते हैं। इस बात का पता नहीं चलता कि वासुदेव की मृत्यु के बाद कोई सम्राट या बड़ा राजा इनमें हुआ हो। मालूम ऐसा होता है कि कुषाण साम्राज्य का अधःपतन होते ही इनका साम्राज्य छोटे-छोटे भागों में बंट गया और कुछ काल तक कुषाण राजा काबुल और उसके आस-पास के ही शासक रह गये। क्योंकि वासुदेव के पीछे उसके उत्तराधिकारियों के भी सिक्के मिलते हैं। वे सिक्के धीरे-धीरे ईरानी ढंग के हो गये हैं।
श्रीयुत आर. डी. बेनरर्जी वासुदेव के पश्चात्, कनिष्क द्वितीय, वासुदेव द्वितीय और वासुदेव का क्रमशः राजा होना अनुमान करते हैं। इस राज्यवंश के पश्चात् तृतीय शताब्दी में जो राज्यवंश हुए वे बहुत ही छोटे-छोटे थे। कुषाणों के सिक्कों से यह पता चलता है कि ईसा की पांचवी शताब्दी तक इनका राज्य काबुल और उसके आस-पास के प्रदेश पर रहा, जिसको अन्त में हूणों ने इनसे छीन लिया। फिर भी कुछ छोटे-छोटे स्थान बच रहे थे, उनको ईसा की सातवीं सदी में ईरान-विजयी अरबों ने समाप्त कर दिया।
Further reading
- Thakur Deshraj: Jat Itihas (Hindi), Maharaja Suraj Mal Smarak Shiksha Sansthan, Delhi, 1934, 2nd edition 1992.
See also
References
- ↑ जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठ-207
Back to The Rulers