Veer Satyavadi Tejaji
Author:Ranvir Singh Tomar |

वीर तेजा या सत्यवादी तेजाजी एक राजस्थानी लोक देवता हैं । उन्हें शिव के प्रमुख 11 अवतारों में से एक माना जाता है तथा राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में देवता के रूप में पूजा जाता है । तेजाजी का जन्म विक्रम संवत 1130, माघ सुदी चौदस, (अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार 29 जनवरी 1074) के दिन खरनाल के नागवंशी धौल्या गोत्र के जाट परिवार जिला नागौर राजस्थान में हुआ था । इनके पिता कुंवर ताहड़ देव और माता रामकुंवरी थे। जन्म के समय तेजाजी की आभा इतनी मजबूत थी कि उन्हें तेजा नाम दिया गया था । तेजाजी का विवाह पेमल से हुआ था,जो झांझर गोत्र के रायमल जाट की पुत्री थी, तथा गाँव पनेर के प्रमुख थे ।
एक बार तेजाजी को उनकी भाभी ने तानों के रूप में एक बात उनसे कह दी तब तानो से त्रस्त होकर अपनी पत्नी पेमल को लेने के लिए घोड़ी (लीलण) पर सवार होकर अपने ससुराल पनेर गए। लाछा गूजरी की गाएं मेर के व्यक्ति (मीणा) चुरा ले गए । रास्ते में तेजाजी को एक साँप आग में जलता हुआ मिला तो उन्होंने उस साँप को बचा लिया किन्तु वह साँप जोड़े के बिछुड़ जाने के कारण अत्यधिक क्रोधित हुआ और उन्हें डसने लगा तब उन्होंने साँप को लौटते समय डस लेने का वचन दिया और ससुराल की ओर आगे बढ़े । लाछा की प्रार्थना पर वचनबद्ध हो कर तेजाजी ने मेर के (मीणा) लुटेरों से संघर्ष कर गाएं छुड़ाई । इस गौरक्षा युद्ध में तेजाजी अत्यधिक घायल हो गए । वापस आने पर वचन की पालना में साँप के बिल पर आए तथा पूरे शरीर पर घाव होने के कारण सांप ने काटने से मना किया तब उन्होंने जीभ पर साँप से कटवाया । किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मृत्यु भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160 (28 अगस्त 1103) को हो गई तथा पेमल भी उनके साथ सती हो गई । उस साँप ने उनकी वचनबद्धता से प्रसन्न हो कर उन्हें वरदान दिया । इसी वरदान के कारण तेजाजी भी साँपों के देवता के रूप में पूज्य हुए । गाँव-गाँव में तेजाजी के देवरे या थान में उनकी तलवारधारी अश्वारोही मूर्ति के साथ नाग देवता की मूर्ति भी होती है। इन देवरो में साँप के काटने पर जहर चूस कर निकाला जाता है तथा तेजाजी की तांत बाँधी जाती है।
तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजा दशमी के रूप में मनाया जाता है,और अनेक स्थानों पर तेजाजी के नाम पर मेले लगते हैं । सारांश यह है कि राजपूताना में इनको शिव गणेश की भांति देवता समझा जाता है। तेजाजी के भारत में अनेक मंदिर हैं। तेजाजी का मुख्य मंदिर खरनाल में हैं। तेजाजी के मंदिर राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, गुजरात तथा हरियाणा में हैं। वीर तेजाजी सत्यवादी , गौ रक्षक, निर्बल के रक्षक , धर्मनिष्ठ, वचन वद्ध के रूप में जाने जाते हैं ।
राजस्थान का इतिहास बहुत सारी वीर गाथाओं और उदाहरणों से भरा पड़ा है जहाँ लोगों ने अपने जीवन और परिवारों को जोखिम में डाल दिया है और निष्ठा, स्वतंत्रता, सच्चाई, आश्रय, सामाजिक सुधार आदि जैसे गौरव और मूल्यों को बरकरार रखा है । वीर तेजा राजस्थान के इतिहास में इन प्रसिद्ध लोगों में से एक थे ।
मानवविज्ञानी कहते हैं कि तेजाजी एक नायक है जिन्होने जाति व्यवस्था का विरोध किया ।
रेल मंत्रालय ने 28 मई 2015 को जयपुर जैसलमेर इंटरसिटी एक्सप्रेस का नाम तेजाजी की लीलण घोड़ी के नाम पर लीलण एक्सप्रेस कर दिया है । राजस्थान राज्य वीर तेजाजी कल्याण बोर्ड का गठन (2 मार्च 2023) एवं मध्य प्रदेश में वीर तेजाजी कल्याण बोर्ड का गठन (8 जून 2023) को किया गया है ।