Veerbhoomi Haryana/दो शब्द

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हरयाणा इतिहास ग्रन्थमाला का प्रथम मणि


वीरभूमि हरयाणा

(नाम और सीमा)


लेखक

श्री आचार्य भगवान् देव


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दो शब्द


पाठकों की सेवा में "वीरभूमि हरयाणा (नाम और सीमा)" नामक पुस्तक उपस्थित करते हुये मुझे विशेष हर्ष हो रहा है । इस विषय में कभी-कभी कई लेखकों के छोटे-मोटे लेख तो समाचार पत्रों में निकलते रहे हैं, उनमें थोड़ा-बहुत प्रकाश इस विषय में डाला गया । किन्तु साथ ही अनेक प्रकार के भ्रम भी फैले । इन सब भ्रमों के निवारण के लिये और हरयाणा प्रदेश के नाम तथा इसकी सीमा पर विस्तार से लिखने की कई वर्ष से मेरी इच्छा थी । पर्याप्‍त अनुसन्धान एवं खोज के पश्चात् आज यह पुस्तक मैं पाठकों को भेंट कर रहा हूं । यह पुस्तक हरयाणे के इतिहास की भूमिका वा झांकी है । जिसको पढ़कर पाठक यह अनुमान कर सकेंगे कि शीघ्र भविष्य में मेरे द्वारा लिखी हरयाणे के वीर यौधेय नामक पुस्तक हरयाणे का एक प्रामाणिक इतिहास होगा और जिसके द्वारा ही पाठकों को वीरभूमि हरयाणे की महत्ता का ज्ञान यथार्थ रूप में हो सकेगा । यह वीरभूमि हरयाणा पुस्तक तो उसकी भूमिका मात्र है । वैसे तो यह पुस्तक भी अपने विषय की एक प्रामाणिक खोजपूर्ण पुस्तक है, इसे पढ़े बिना “हरयाणा प्रदेश का नाम हरयाणा क्यों है ? और इसकी सीमायें भिन्न-भिन्न कालों में कहाँ तक रही हैं ?” इत्यादि बातों से पाठक वञ्चित रह जायेंगे ।


इस पुस्तक के लिखने में मुझे अनेक विद्वानों की पुस्तकों से तथा शुभ परामर्श से पर्याप्‍त सहायता मिली है । एतदर्थ मैं उन सबका आभारी वा कृतज्ञ हूँ ।


श्री आदरणीय पं० जगदेव जी सिद्धान्ती, एम० पी० ने इस पुस्तक की भूमिका लिखने की महती कृपा की है और अनेक उपयोगी प्रमाण खोजकर इस पुस्तक में उचित परिवर्तन और परिवर्धन करने की सहायता की है । इतना ही नहीं, इस पुस्तक को आद्योपान्त बहुत ध्यान पूर्वक पढ़कर उचित परामर्श देकर मुझे उत्साहित किया है । पुस्तक के शुद्ध मुद्रण के लिये पूज्य सिद्धान्ती जी ने ईक्ष (प्रूफ) भी देखने की कृपा की है । यह पुस्तक सर्वथा शुद्ध और शीघ्र छपे एतदर्थ पूज्य सिद्धान्ती जी ने पूरा सहयोग दिया है । इस अनुकम्पा और सहयोग के लिये मैं उनका आभारी तथा कृतज्ञ हूँ । आशा है भविष्य में भी मुझे सिद्धान्ती जी इसी प्रकार सहयोग देकर उत्साहित करते रहेंगे ।


श्री माननीय प्रो० रणजीतसिंह जी ने भी इस पुस्तक को आद्योपान्त पढ़कर अनेक उचित परामर्श देने की कृपा की, वे इस विषय में सभी प्रकार की सहायता करते रहते हैं । इसके लिये मैं उनका कृतज्ञ हूं । और उनका धन्यवाद करता हूं । श्री प्रिय पं० वेदव्रत जी स्नातक गुरुकुल झज्जर ने मुद्रण संचिका (प्रेस कापी) को आद्योपान्त पढ़कर शुद्ध करने का यत्‍न किया है । श्री पं० सुदर्शनदेव जी ने भी लेखन कार्य में प्रशंसनीय योग दिया है ।


ब्र० सुरेन्द्र जी वेदवाचस्पति, ब्र० आनन्ददेव जी वेदवाचस्पति, ब्र० विरजानन्द जी व्याकरणाचार्य तथा ब्र० योगानन्द जी वेदवाचस्पति ने इस पुस्तक के लिखने तथा मुद्रण संचिका (प्रेस कापी) तैयार करने में मुझे पूरा सहयोग दिया है ।


ब्र० विरजानन्द और ब्र० देवव्रत जी व्याकरणाचार्य ने वीरभूमि हरयाणा अर्थात् यौधेय जनपद का मानचित्र (नक्शा) तैयार करने में पर्याप्‍त परिश्रम किया जो इसी पुस्तक में छपा है । ब्र० ओमप्रकाश जी सिद्धान्त शिरोमणि ने भी लेख लिखने में मुझे सहयोग दिया है । इस पुस्तक के लिखने में ब्र० योगानन्द जी ने बहुत अधिक सहयोग दिया है । यह पुस्तक इनके सतत प्रयत्‍न का ही फल है । यौधेयों के दो मुद्रांकों (मोहरों) तथा मुद्राओं (सिक्कों) पर विशेष प्रकाश ब्र० योगानन्द जी ने ही डाला है । यथार्थ रूप में वह ही इन लेखों का लेखक है । मैंने तो उचित परामर्श ही दिया है । मैं अपने इन सभी ब्रह्मचारियों को आशीर्वाद देता हूँ कि ये सभी फलें-फूलें और सुयोग्य लेखक बनकर संसार की सेवा करने में समर्थ हों और आशा करता हूँ कि ये सभी मुझे भविष्य में पूर्ण सहयोग देने के लिये कटिबद्ध रहेंगे; जिससे मैं हरयाणे का प्रामाणिक इतिहास “वीर यौधेय” लिखने में समर्थ हो सकूँ ।


रोहतक के प्रसिद्ध फोटोग्राफर “पाल स्टूडियो” ने भी मुद्राओं और मोहरों के चित्र (फोटो) बनाकर और यथा समय देकर मेरी सहायता की । सम्राट् प्रेस वालों ने भी इस पुस्तक को शीघ्र और शुद्ध प्रकाशित करने में जो मुझे सहयोग दिया इस के लिये मैं इनका आभारी हूँ ।


भापड़ौदा ग्राम ने २५००) इस पुस्तक के प्रकाशानार्थ प्रदान करके मुझे अत्यन्त उत्साहित किया है । इसी पुस्तक में मैं उनके लिये धन्यवाद पृथक् लिख चुका हूँ । मेरे पास कोई ऐसे शब्द नहीं जिनसे कि मैं इनका धन्यवाद कर सकूँ । भापड़ौदा निवासियों ने भविष्य में भी सहायता करने का वचन देकर मेरे उत्साह को द्विगुण कर दिया है । हरयाणे के इतिहास लिखने और प्रकाशित करने में प्रचुर धन की आवश्यकता है । आशा है इस कठिन कार्य को पूर्ण करने में मुझे सभी भाई यथोचित सहयोग देंगे । मैं पुनः उन सज्जनों के प्रति आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने मुझे तन मन वा धन से किसी भी प्रकार का सहयोग प्रदान किया है ।


सबका कृतज्ञ

- भगवान् देव


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