Tamraparni: Difference between revisions
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बौद्ध ग्रंथ [[Mahavansha|महावंश]] 6, 47 के अनुसार भारत के [[Latadesha|लाटदेश]] का निवासी [[Prince Vijaya|कुमार विजय]] जलयान से [[Sinhaladesha|सिंहल देश]] पहुँचकर वहाँ ताम्रपर्णी नामक स्थान पर उतरा था। यह वही दिन था, जब [[Kushinagara|कुशीनगर]] में [[Buddha|महात्मा बुद्ध]] ने निर्वाण प्राप्त किया था। महावंश (7,39) में राजकुमार विजय द्वारा ताम्रपर्णी नगर के बसाए जाने का उल्लेख है। इसके अनुसार जब विजय और उसके साथी नौका से भूमि पर उतरे, तो थकावट के कारण भूमि पर हाथ टेक कर बैठ गए। ताम्र वर्ण की मिट्टी के स्पर्श से उनके हाथ तांबे के पत्र से हो गए, इसीलिए उस प्रदेश और द्वीप का नाम ताम्रपर्णी (तंब-पण्णी) हुआ। | बौद्ध ग्रंथ [[Mahavansha|महावंश]] 6, 47 के अनुसार भारत के [[Latadesha|लाटदेश]] का निवासी [[Prince Vijaya|कुमार विजय]] जलयान से [[Sinhaladesha|सिंहल देश]] पहुँचकर वहाँ ताम्रपर्णी नामक स्थान पर उतरा था। यह वही दिन था, जब [[Kushinagara|कुशीनगर]] में [[Buddha|महात्मा बुद्ध]] ने निर्वाण प्राप्त किया था। महावंश (7,39) में राजकुमार विजय द्वारा ताम्रपर्णी नगर के बसाए जाने का उल्लेख है। इसके अनुसार जब विजय और उसके साथी नौका से भूमि पर उतरे, तो थकावट के कारण भूमि पर हाथ टेक कर बैठ गए। ताम्र वर्ण की मिट्टी के स्पर्श से उनके हाथ तांबे के पत्र से हो गए, इसीलिए उस प्रदेश और द्वीप का नाम ताम्रपर्णी (तंब-पण्णी) हुआ। | ||
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[[Ashoka|सम्राट अशोक]] को सर्वाधिक सफलता भी 'ताम्रपर्णी' में ही प्राप्त हुई थी। ताम्रपर्णी का राजा [[Tissa|तिस्स]], अशोक से इतना प्रभावित था कि उसने भी अशोक के समान ही 'देवानांप्रिय' की उपाधि धारण कर ली। अपने दूसरे राज्याभिषेक में उसने अशोक को विशेष निमंत्रण भेजा था, जिसके फलस्वरूप सम्भवतः अशोक का पुत्र महेंद्र 'बोधिवृक्ष' की पौध लेकर वहाँ पहुँचा। श्रीलंका में यह बौद्ध धर्म का पदार्पण था।<ref></ref> | [[Ashoka|सम्राट अशोक]] को सर्वाधिक सफलता भी 'ताम्रपर्णी' में ही प्राप्त हुई थी। ताम्रपर्णी का राजा [[Tissa|तिस्स]], अशोक से इतना प्रभावित था कि उसने भी अशोक के समान ही 'देवानांप्रिय' की उपाधि धारण कर ली। अपने दूसरे राज्याभिषेक में उसने अशोक को विशेष निमंत्रण भेजा था, जिसके फलस्वरूप सम्भवतः अशोक का पुत्र महेंद्र 'बोधिवृक्ष' की पौध लेकर वहाँ पहुँचा। श्रीलंका में यह बौद्ध धर्म का पदार्पण था।<ref>[http://bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A5%80 भारतकोश-ताम्रपर्णी]</ref> | ||
== ताम्रपर्णी नदी == | == ताम्रपर्णी नदी == |
Revision as of 16:16, 23 January 2019
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Tamraparni (ताम्रपर्णी) is an ancient name of a river proximal to Tirunelveli of South India and Puttalam of Western Sri Lanka.[1]
Variants
Tamraparni River (ताम्रपर्णी) (AS, p.394)
History
A toponym, "Tamraparniyan" is eponymous with the socio-economic and cultural history of this area and its people. Movement of people across the Gulf of Mannar during the early Pandyan and Anuradhapura periods, between the Tirunelveli river of Pothigai, Adam's Peak and the estuary of the Gona Nadi/Kala Oya river of Northwest Sri Lanka, Java and Sumatra led to the shared application of the name for the closely connected region's culture.[2] The entire island of Sri Lanka itself was known in the ancient world as "Tamraparni", with use dating to before the 6th century BC. It is a rendering of the original Tamil name Tān Poruṇai of the Sangam period, "the cool river Porunai".[3][4]
ताम्रपर्णी
विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ... 1. ताम्रपर्णी (AS, p.394): ताम्रपर्णी 'सिंहलद्वीप' या श्रीलंका' का प्राचीन नाम है, जिसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी। 17वीं शती में अंग्रेज़ी भाषा के कवि मिल्टन ने 'पैरेडाइज लॉस्ट' नामक महाकाव्य में ताम्रपर्णी को 'टाप्रोवेन' लिखा है--From India’s golden chersonese and utmost Indian isle of Taprobane. dusk faces with white silken turbans wreathed-- कुछ विद्वानों के मत में श्रीलंका-भारत के बीच के समुद्र में स्थित जाफना द्वीप ही ताम्रपर्णी है। ताम्रपर्णी के 'शिरीषवस्तु' [p.395]: नामक 'यक्षनगर' का उल्लेख 'बलाहाश्व' जातक में है- 'अतीते तंबपष्णि द्वीपे सिरीसवत्थुं नाम यक्खनगरं अहोसि।'
बौद्ध ग्रंथ महावंश 6, 47 के अनुसार भारत के लाटदेश का निवासी कुमार विजय जलयान से सिंहल देश पहुँचकर वहाँ ताम्रपर्णी नामक स्थान पर उतरा था। यह वही दिन था, जब कुशीनगर में महात्मा बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया था। महावंश (7,39) में राजकुमार विजय द्वारा ताम्रपर्णी नगर के बसाए जाने का उल्लेख है। इसके अनुसार जब विजय और उसके साथी नौका से भूमि पर उतरे, तो थकावट के कारण भूमि पर हाथ टेक कर बैठ गए। ताम्र वर्ण की मिट्टी के स्पर्श से उनके हाथ तांबे के पत्र से हो गए, इसीलिए उस प्रदेश और द्वीप का नाम ताम्रपर्णी (तंब-पण्णी) हुआ।
सम्राट अशोक को सर्वाधिक सफलता भी 'ताम्रपर्णी' में ही प्राप्त हुई थी। ताम्रपर्णी का राजा तिस्स, अशोक से इतना प्रभावित था कि उसने भी अशोक के समान ही 'देवानांप्रिय' की उपाधि धारण कर ली। अपने दूसरे राज्याभिषेक में उसने अशोक को विशेष निमंत्रण भेजा था, जिसके फलस्वरूप सम्भवतः अशोक का पुत्र महेंद्र 'बोधिवृक्ष' की पौध लेकर वहाँ पहुँचा। श्रीलंका में यह बौद्ध धर्म का पदार्पण था।[6]
ताम्रपर्णी नदी
विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ... ताम्रपर्णी (AS, p.395) ताम्रपर्णी नदी दक्षिण भारत की नदी है, जो केरल राज्य में बहती है। ये मद्रास प्रान्त के तिनेवली ज़िले की एक नदी मानी जाती है, जिसका स्थानीय नाम परुणै है। जातक कथाओं में भी इस नदी का उल्लेख हुआ है। मौर्य सम्राट अशोक के मुख्य शिलालेख दो और तेरह में तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अध्याय ग्यारह में भी ताम्रपर्णी नदी का नामोल्लेख है। महाभारत, वनपर्व (88, 14-15) में ताम्रपर्णी तथा उसके तट पर स्थित गोकर्ण को वर्णन है- 'ताम्रार्णीं तु कौंतेय कीर्तियिष्यामि तां श्रुणु यत्र देवैस्तपस्तप्तं महदिच्छद्भिराश्रमे गोकर्ण इति विख्यात स्त्रिषुलोकेषु भारत'
श्रीमद्भागवत (5, 19, 18) में ताम्रपर्णी नदी का अन्य नदियों के साथ उल्लेख है- 'चंद्रवसा ताम्रपर्णी अवटोदा कृतमाला वैहायसी...।'
विष्णुपुराण (2,3,13) में ताम्रपर्णी नदी को मलय पर्वत से उद्भूत माना है- 'कृतमाला ताम्रपर्णी प्रमुखा मलयोद्भवा:।'
'एपिग्राफ़िका इंडिका'[8] के अनुसार ताम्रपर्णी नदी का स्थानीय नाम पोरुंडम और मुडीगोंडशोलाप्पेरारु था। अति प्राचीन काल में इस नदी के तट पर अवस्थित कोरकई और कायल नामक बंदरगाह उस समय के सभ्य संसार में अपने समृद्ध व्यापार के कारण प्रख्यात थे। पांड्य नरेशों के समय मोतियों और शंखों के व्यापार के लिए कोरकई प्रसिद्ध था। वर्तमान तिरुनेल्वेलि या तिन्नेवली और त्रिवेंद्रम से 12 मील पूर्व तिरुवट्टार नामक नगर ताम्रपर्णी के तट पर स्थित है।
ताम्रपर्णी वर्तमान पलमकोटा के निकट बहती हुई मन्नार की खाड़ी में गिरती है। मन्नार की खाड़ी सदा से मोतियों के लिए प्रसिद्ध रही है और इसीलिए कालिदास ने ताम्रपर्णी के संबंध में मोतियों का भी वर्णन किया है- 'ताम्रार्णीसमेतभ्य मुक्तासारं महोदधे: ते निपत्य ददुस्तस्मै यश: स्वमिवसंचि तम्’ (रघुवंश 4,50) अर्थात् पांड्य वासियों ने विनयपूर्वक रघु को अपने संचित यश के साथ ही ताम्रपर्णी-समुद्र संगम के सुंदर मोती भेंट किए। मल्लिकानाथ ने इसकी टीका में यथार्थ ही लिखा है- 'ताम्रपर्णीसंगमे मोक्तिकोत्परिति प्रसिद्धम।' संस्कृत परवर्तीकाल के प्रसिद्ध कवि तथा नाटककार राजशेखर ने भी ताम्रपर्णी नदी का उल्लेख किया है।
External links
References
- ↑ Pillai, M. S. Purnalingam (2010-11-01). Ravana The Great : King of Lanka. Sundeep Prakashan Publishing. ISBN 9788175741898.
- ↑ K. Sivasubramaniam - 2009. Fisheries in Sri Lanka: anthropological and biological aspects, Volume 1.
- ↑ Leelananda Prematilleka, Sudharshan Seneviatne - 1990: Perspectives in archaeology: "The names Tambapanni and Tamra- parni are in fact the Prakrit and Sanskrit rendering of Tamil Tan porunai"
- ↑ John R. Marr - 1985 The Eight Anthologies: A Study in Early Tamil Literature. Ettukai. Institute of Asian Studies
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.394
- ↑ भारतकोश-ताम्रपर्णी
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.395
- ↑ एपिग्राफ़िका इंडिका 11 (1914) पृ. 245