Panchajanya: Difference between revisions
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[[Vijayendra Kumar Mathur|विजयेन्द्र कुमार माथुर]]<ref>[[Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur]], p.537</ref> ने लेख किया है ...[[Panchajanya|पांचजन्य]] ([[AS]], p.537) महाभारत के अनुसार [[Dwarka|द्वारका]] के पूर्व की ओर स्थित [[Raivataka|रैवतक नामक पर्वत]] के निकट पांचजन्य नामक वन सुशोभित था. इसी के पास [[Sarvaturkavana|सर्वतुर्क वन]] भी था. इन दोनों वनों को चित्रित वस्त्र की भांति रंग-बिरंगा कहा गया है- 'चित्रकंबल वर्णाभं पांचपांचजन्यवनं तथा सर्वतुर्क वनंचैव भाति रैवतकं प्रति' सभापर्व 38 (दक्षिणापथ्य पाठ) | [[Vijayendra Kumar Mathur|विजयेन्द्र कुमार माथुर]]<ref>[[Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur]], p.537</ref> ने लेख किया है ...[[Panchajanya|पांचजन्य]] ([[AS]], p.537) महाभारत के अनुसार [[Dwarka|द्वारका]] के पूर्व की ओर स्थित [[Raivataka|रैवतक नामक पर्वत]] के निकट पांचजन्य नामक वन सुशोभित था. इसी के पास [[Sarvaturkavana|सर्वतुर्क वन]] भी था. इन दोनों वनों को चित्रित वस्त्र की भांति रंग-बिरंगा कहा गया है- 'चित्रकंबल वर्णाभं पांचपांचजन्यवनं तथा सर्वतुर्क वनंचैव भाति रैवतकं प्रति' सभापर्व 38 (दक्षिणापथ्य पाठ) | ||
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[[Dharmchandra Vidyalankar|डॉ. धर्मचंद्र विद्यालंकार]]<ref>[[Patanjali Ke Jartagana or Jnatrika Kaun The]],p.16</ref> ने लिखा है....संभवत: '''[[Jartagana|जर्तगणों]]''' का ही रक्त-संबंध ऋग्वेद के '''[[Panchajanya| | [[Dharmchandra Vidyalankar|डॉ. धर्मचंद्र विद्यालंकार]]<ref>[[Patanjali Ke Jartagana or Jnatrika Kaun The]],p.16</ref> ने लिखा है....संभवत: '''[[Jartagana|जर्तगणों]]''' का ही रक्त-संबंध ऋग्वेद के '''[[Panchajanya|पांचजन्यों]]''' से भी रहा हो. जिन्होंने [[Ravi River|रावी नदी]] के जल वितरण को लेकर '''आर्य शासक [[Divodasa|दिवोदास]]''' की राज्य शक्ति के विरुद्ध संघर्ष किया था. उनको भी वहां पर [[Panchakrishtya|पंचकृष्ट्य]] भी कहा गया है. जिनमें [[Yadu|यदु]], [[Anu|अनु]], [[Druhayu|द्रुह्यु]], [[Puru|पुरु]] और [[Turvasu|तुर्वसु]] भी आते हैं. संभवतः उनमें ही [[Anu|अनु]] के वंशज [[Anava|आनव]] और तत्पुत्र [[Ushinara|उशीनर]] ही दक्षिणी पश्चिमी पंजाब प्रदेश में बाद में पराजित होकर [[Beas|व्यास]] और [[Satluj|सतलुज]] जैसी सदानीरा सरताओं के उर्वर अंतर्वेद में जाकर बसे होंगे. वही प्रदेश वर्तमान में भी [[Malava|मालव गणों]] के पूर्ण प्रभुत्व के कारण [[Malwa|मालवा]] ही कहलाता है. जो कि पश्चिमी पंजाब के [[Firozpur|फिरोजपुर]]-[[Bathinda|बठिंडा]], [[Faridkot|फरीदकोट]]-[[Moga District|मोगा]] से लेकर [[पाकिस्तान]] के [[Bahawalpur|बहावलपुर]] से लेकर [[Jhang|झांग]]-[[Maghiana|मघियाना]]-[[Sargodha|सरगोधा]] से [[Multan|मुल्तान]] तक विस्तृत था. इसी पुण्य प्रदेश का एक नाम हमें पुराकाल में '''[[Sauvira|सौवीर जनपद]]''' भी मिलता है. संभवत: [[Shivi|शिवि]] गणों के मूल अधिवास के कारण भी वैसा ही हुआ होगा. क्योंकि उसके पीछे ही [[Baluchistan|बलूचिस्तान]] से [[Iran|ईरान]] तक विस्तृत [[Shivasthan|शिवस्थान]] (Sistan|सिस्तान) प्रदेश है. जाटों में आज तक भी शिवि गणों के [[Sohu|सोहू]] और [[Teotia|तेवतिया]] जैसे कुलनाम मिलते हैं. सैवीर जनपद की ही भाषा जटकी या मुल्तानी पंजाबी अथवा सिराएकी कहलाती है. [[Jartagana|जर्तगण]] से ही और [[Jatrana|जटराणा]] जैसे वंश-वाचक कुलनाम वर्त्तमान में भी (गण, प्राचीन गण-परंपरा के प्रमुखतम प्रतिनिधि) [[जाटों]] में ही मिलते हैं. | ||
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Revision as of 16:04, 10 July 2023
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Panchajanya (पांचजन्य) was name of a forest, near Sarvaturka forest, mentioned in Mahabharata located in the east of Dwarka near Raivataka mountains.
Origin
Variants
- Panchajanyavana/Panchajanya Vana (पांचजन्य वन) (AS, p.537)
History
पांचजन्य
विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...पांचजन्य (AS, p.537) महाभारत के अनुसार द्वारका के पूर्व की ओर स्थित रैवतक नामक पर्वत के निकट पांचजन्य नामक वन सुशोभित था. इसी के पास सर्वतुर्क वन भी था. इन दोनों वनों को चित्रित वस्त्र की भांति रंग-बिरंगा कहा गया है- 'चित्रकंबल वर्णाभं पांचपांचजन्यवनं तथा सर्वतुर्क वनंचैव भाति रैवतकं प्रति' सभापर्व 38 (दक्षिणापथ्य पाठ)
पांचजन्य - जर्तगण
डॉ. धर्मचंद्र विद्यालंकार[2] ने लिखा है....संभवत: जर्तगणों का ही रक्त-संबंध ऋग्वेद के पांचजन्यों से भी रहा हो. जिन्होंने रावी नदी के जल वितरण को लेकर आर्य शासक दिवोदास की राज्य शक्ति के विरुद्ध संघर्ष किया था. उनको भी वहां पर पंचकृष्ट्य भी कहा गया है. जिनमें यदु, अनु, द्रुह्यु, पुरु और तुर्वसु भी आते हैं. संभवतः उनमें ही अनु के वंशज आनव और तत्पुत्र उशीनर ही दक्षिणी पश्चिमी पंजाब प्रदेश में बाद में पराजित होकर व्यास और सतलुज जैसी सदानीरा सरताओं के उर्वर अंतर्वेद में जाकर बसे होंगे. वही प्रदेश वर्तमान में भी मालव गणों के पूर्ण प्रभुत्व के कारण मालवा ही कहलाता है. जो कि पश्चिमी पंजाब के फिरोजपुर-बठिंडा, फरीदकोट-मोगा से लेकर पाकिस्तान के बहावलपुर से लेकर झांग-मघियाना-सरगोधा से मुल्तान तक विस्तृत था. इसी पुण्य प्रदेश का एक नाम हमें पुराकाल में सौवीर जनपद भी मिलता है. संभवत: शिवि गणों के मूल अधिवास के कारण भी वैसा ही हुआ होगा. क्योंकि उसके पीछे ही बलूचिस्तान से ईरान तक विस्तृत शिवस्थान (Sistan|सिस्तान) प्रदेश है. जाटों में आज तक भी शिवि गणों के सोहू और तेवतिया जैसे कुलनाम मिलते हैं. सैवीर जनपद की ही भाषा जटकी या मुल्तानी पंजाबी अथवा सिराएकी कहलाती है. जर्तगण से ही और जटराणा जैसे वंश-वाचक कुलनाम वर्त्तमान में भी (गण, प्राचीन गण-परंपरा के प्रमुखतम प्रतिनिधि) जाटों में ही मिलते हैं.