Jat re Jat

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Jat re Jat जाट रे जाट - राजस्थानी जाट कथाएं :by Rajendra Kedia :लेखक - राजेन्द्र केडिया प्रकाशक - वृन्दा प्रकाशन, 16, नूरमल लोहिया लेन, कोलकाता-700007 ISBN 978-81-903894-1-9

राजेन्द्र केडिया का राजस्थानी जाट कहानी संग्रह उनके राजस्थान की जमीन और भाषा से जुडे होने का जीवन्त प्रमाण है। कलकत्ता के पते पर निवास कर रहे श्री केडिया का परिचय उनके साहित्यिक जीवन की सुदीर्घ यात्रा का परिचायक है। जिस रचनाकार ने विविध भाषाओं की पन्द्रह हजार से अधिक पुस्तकों एवं पाण्डुलिपियों के पठन-पाठन और संग्रह में गहरी अभिरुचि दिखाई उसके अनुभवों का संसार कितना समृद्ध है, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। फतेहपुर शेखावाटी, राजस्थान के प्रति अपना कृतज्ञता ज्ञापन ही ’जाट रे जाट‘ की प्रेरणा भूमि रही होगी। इस संकलन में छत्तीस कहानियाँ हैं जो एक पंक्ति में लोकोक्ति लगती है और विस्तार में जीवनानुभवों का निचोड। कलेवर में छोटी किन्तु सोच में सशक्त कहानियाँ लोकाभिमुख होने की वजह से बहुत प्रारम्भ में ही पाठक की पकड को मजबूत बना देती हैं। कथ्य की ताकत वस्तु विधान और भाषा दोनों रूपों में अपनी विशेषता प्रकट करती है। कौतुहल और रवानगी से भरी इन कहानियों में जाट एक चरित्र भी है और प्रतीक भी। चरित्र के रूप में वह सरल, भोला, हँसमुख है और प्रतीकात्मक दृष्टि से प्रबल, साहसी, श्रमशील और जीवनेच्छा से भरा है। ’साँड‘ कहानी में धेलिये जाट ने ठाकर की चालाकी पकड ली। वह जानता था खीर ठाकर ने खायी थी किन्तु दुनिया के सामने यह नाटक रचना चाहता है कि चन्द्र-देवता ने भोग लगाया। ’जाट और ससुराल‘ कहानी में जाट-जाटनी ने ससुराल जाने का विचार किया। विचार अच्छा था किन्तु ससुराल वालों की चालाकी भी ताड ली। ससुर ने जंवाई को बेटा कहकर खेत में काम कराया तो जाट जंवाई ने फसल बेचकर रकम खुद रख ली। इसलिये कि ससुर को यह भान हो सके कि उसने गलती की है। ’बेटा और जंवाई‘ एक नहीं होते। ’पावणाँ सू पीढी कोनी चालै, जवायाँ सू खेती कोनी चालै।‘ ’जाटनी और हाकम‘ में हाकम की अकड और जाटनी की समाजोपयोगी बातें ध्यान खींचती हैं। ’जाट और बावलिया‘ में जाट ने अपनी बुद्धिमत्ता का सबूत दिया। ’जाट और गुरु‘, ’कुआँ‘, ’जूतियाँ‘, ’बातों के कारीगर‘ जैसी प्रशंसनीय कहानियों में जाट के अलग-अलग चेहरे हैं जो यह दर्शाते हैं कि जीवन की पाठशाला में अनुभवों की किताब से ही सफल और श्रेष्ठ परिणाम मिलते हैं।


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